दशहरा (विजयदशमी,आयुध-पूजा) विशेष: जानें रावण दहन का सही मुहूर्त और विजयादशमी की पूजा विधि और दशहरे का महत्व
आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को विजय दशमी या दशहरे के नाम से मनाया जाता है। भगवान राम ने इसी दिन रावण का वध किया था। इसे असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। इसीलिए इस दशमी को विजयादशमी के नाम से जाना जाता है। दशहरा वर्ष की तीन अत्यन्त शुभ तिथियों में से एक है, अन्य दो हैं चैत्र शुक्ल की एवं कार्तिक शुक्ल की प्रतिपदा।
इसी दिन लोग नया कार्य प्रारम्भ करते हैं, शस्त्र-पूजा की जाती है। प्राचीन काल में राजा लोग इस दिन विजय की प्रार्थना कर रण-यात्रा के लिए प्रस्थान करते थे। इस दिन जगह-जगह मेले लगते हैं। रामलीला का आयोजन होता है। रावण का विशाल पुतला बनाकर उसे जलाया जाता है। दशहरा अथवा विजयदशमी भगवान राम की विजय के रूप में मनाया जाए अथवा दुर्गा पूजा के रूप में, दोनों ही रूपों में यह शक्ति-पूजा का पर्व है, शस्त्र पूजन की तिथि है। हर्ष और उल्लास तथा विजय का पर्व है। भारतीय संस्कृति वीरता की पूजक है, शौर्य की उपासक है। व्यक्ति और समाज के रक्त में वीरता प्रकट हो इसलिए दशहरे का उत्सव रखा गया है। दशहरा का पर्व दस प्रकार के पापों- काम, क्रोध, लोभ, मोह मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी के परित्याग की सद्प्रेरणा प्रदान करता है।
दशहरा 2023 कब है ?
इस साल आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि की शुरुआत 23 अक्तूबर को शाम 05 बजकर 44 मिनट से हो रही है। इसका समापन 24 अक्तूबर को दोपहर 03 बजकर 14 मिनट पर होगा। उदया तिथि 24 अक्तूबर को प्राप्त हो रही है, इसलिए दशहरा यानी विजयादशमी का पर्व 24 अक्तूबर को मनाया जाएगा।
देवी अपराजिता और शमी
विजयादशमी के दिन आपको पूजा के लिए शुभ मुहूर्त दोपहर 02 बजकर 03 मिनट से लेकर दोपहर 2 बजकर 50 मिनट तक रहेगा।
इस अवधि में आपको देवी अपराजिता और शमी वृक्ष की पूजा करनी चाहिए।
दशहरा 2023 पर रावण दहन का मुहूर्त
दशहरा के दिन सूर्यास्त बाद प्रदोष काल में रावण के पुतले का दहन किया जाता है। इस साल रावण दहन 24 अक्तूबर को शाम 05 बजकर 43 मिनट के बाद से किया जाएगा।
विजयादशमी 2023 शस्त्र पूजा मुहूर्त
विजयादशमी पर शस्त्र पूजा की जाती है। इस दिन शस्त्र पूजा विजय मुहूर्त में की जा जाएगी। 24 अक्तूबर को विजय मुहूर्त दोपहर 01 बजकर 58 मिनट से लेकर दोपहर 02 बजकर 43 मिनट तक है। इसके अलावा इस दिन अभिजीत मुहूर्त या उस दिन का शुभ समय 11 बजकर 43 मिनट से दोपहर 12 बजकर 28 मिनट तक है।
शस्त्र पूजन विधि एवं मंत्र
सायंकाल में नित्यकर्म से निवृत्त होकर सभी प्रकार के अस्त्र-शस्त्रादि को एकत्र करके हाथ में जलपुष्पादि के साथ अपना नाम, गोत्रादि के साथ संकल्प करें,
यथा-”ममक्षेमारोग्य आदि सिद्धयर्थं यात्रायांविजय सिद्धयर्थं गणपतिमातृका श्रीराम, शिवशक्ति व सूर्यादि देवता अपराजिता शमीपूजन-अस्त्र-शस्त्रादि पूजनानि करिष्ये।’
पुष्पाक्षत लेकर स्वऽस्तिवाचन, गणेश पूजन तथा शक्ति-मंत्र, खड्ग-मंत्र एवं अग्नि यंत्र-मंत्र से पुष्पाक्षत एवं तिलक लगाकर सत्कार पूजन करने के पश्चात् अपराजिता पूजन, भगवान राम, शिव, शक्ति (दुर्गा), गणेश तथा सूर्यादि देवताओं का पूजन करके आयुध-अस्त्र-शस्त्रों (हथियारों) की पूजा इस प्रकार करें-
शक्ति मंत्र: शक्तिस्त्वं सर्वदेवानां गुहस्य च विशेषत:।
शक्ति रूपेण देवि त्वं रक्षां कुरु नमोऽस्तुते॥
अग्नि यंत्र-मंत्र: अग्निशस्त्र नमोऽस्तुदूरत: शत्रुनाशन।
शत्रून्दहहि शीघ्रं त्वं शिवं मे कुरु सर्वदा॥
खड्ग मंत्र: इयं येन धृताक्षोणी हतश्च महिषासुर:।
ममदेहं सदा रक्ष खड्गाय नमोऽस्तुते॥
सभी प्रकार के अस्तशस्त्रो को तिलक लगाकर पुष्प अर्पण कर देवी अपराजिता की आरती करनी चाहिये।
दशहरे का महत्त्व
भारत कृषि प्रधान देश है इसलिए जब किसान अपने खेत में सुनहरी फसल उगाकर अनाज रूपी संपत्ति घर लाता है तो उसके उल्लास और उमंग का पारावार नहीं रहता। इस प्रसन्नता के अवसर पर वह भगवान की कृपा को मानता है और उसे प्रकट करने के लिए वह उसका पूजन करता है। समस्त भारतवर्ष में यह पर्व विभिन्न प्रदेशों में विभिन्न प्रकार से मनाया जाता है। महाराष्ट्र में इस अवसर पर सिलंगण के नाम से सामाजिक महोत्सव के रूप में भी इसको मनाया जाता है। सायंकाल के समय पर सभी ग्रामीणजन सुंदर-सुंदर नव वस्त्रों से सुसज्जित होकर गाँव की सीमा पार कर शमी वृक्ष के पत्तों के रूप में ‘स्वर्ण’ लूटकर अपने ग्राम में वापस आते हैं। फिर उस स्वर्ण का परस्पर आदान-प्रदान किया जाता है।
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विजय पर्व के रूप में दशहरा
दशहरे का उत्सव शक्ति और शक्ति का समन्वय बताने वाला उत्सव है। नवरात्रि के नौ दिन जगदम्बा की उपासना करके शक्तिशाली बना हुआ मनुष्य विजय प्राप्ति के लिए तत्पर रहता है। इस दृष्टि से दशहरे अर्थात विजय के लिए प्रस्थान का उत्सव का उत्सव आवश्यक भी है।
भारतीय संस्कृति सदा से ही वीरता व शौर्य की समर्थक रही है। प्रत्येक व्यक्ति और समाज के रुधिर में वीरता का प्रादुर्भाव हो कारण से ही दशहरे का उत्सव मनाया जाता है। यदि कभी युद्ध अनिवार्य ही हो तब शत्रु के आक्रमण की प्रतीक्षा ना कर उस पर हमला कर उसका पराभव करना ही कुशल राजनीति है। भगवान राम के समय से यह दिन विजय प्रस्थान का प्रतीक निश्चित है। भगवान राम ने रावण से युद्ध हेतु इसी दिन प्रस्थान किया था। मराठा रत्न शिवाजी ने भी औरंगजेब के विरुद्ध इसी दिन प्रस्थान करके हिन्दू धर्म का रक्षण किया था। भारतीय इतिहास में अनेक उदाहरण हैं जब हिन्दू राजा इस दिन विजय-प्रस्थान करते थे।
इस पर्व को भगवती के ‘विजया’ नाम पर भी ‘विजयादशमी’ कहते हैं। इस दिन भगवान रामचंद्र चौदह वर्ष का वनवास भोगकर तथा रावण का वध कर अयोध्या पहुँचे थे। इसलिए भी इस पर्व को ‘विजयादशमी’ कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि आश्विन शुक्ल दशमी को तारा उदय होने के समय ‘विजय’ नामक मुहूर्त होता है। यह काल सर्वकार्य सिद्धिदायक होता है। इसलिए भी इसे विजयादशमी कहते हैं।
ऐसा माना गया है कि शत्रु पर विजय पाने के लिए इसी समय प्रस्थान करना चाहिए। इस दिन श्रवण नक्षत्र का योग और भी अधिक शुभ माना गया है। युद्ध करने का प्रसंग न होने पर भी इस काल में राजाओं (महत्त्वपूर्ण पदों पर पदासीन लोग) को सीमा का उल्लंघन करना चाहिए। दुर्योधन ने पांडवों को जुए में पराजित करके बारह वर्ष के वनवास के साथ तेरहवें वर्ष में अज्ञातवास की शर्त दी थी। तेरहवें वर्ष यदि उनका पता लग जाता तो उन्हें पुनः बारह वर्ष का वनवास भोगना पड़ता।
इसी अज्ञातवास में अर्जुन ने अपना धनुष एक शमी वृक्ष पर रखा था तथा स्वयं वृहन्नला वेश में राजा विराट के यहँ नौकरी कर ली थी। जब गोरक्षा के लिए विराट के पुत्र धृष्टद्युम्न ने अर्जुन को अपने साथ लिया, तब अर्जुन ने शमी वृक्ष पर से अपने हथियार उठाकर शत्रुओं पर विजय प्राप्त की थी। विजयादशमी के दिन भगवान रामचंद्रजी के लंका पर चढ़ाई करने के लिए प्रस्थान करते समय शमी वृक्ष ने भगवान की विजय का उद्घोष किया था। विजयकाल में शमी पूजन इसीलिए होता है।
विजयादशमी (दशहरा) पूजा विधि (Dussehra Puja vidhi)
1. दशहरा पर विजय मुहूर्त या अपराह्न काल में पूजा करना उत्तम माना गया है. इस दिन प्रात: काल स्नान के बाद नए या साफ वस्त्र पहने और श्रीराम, माता सीता और हनुमान जी की उपासना करें.
2. जहां पूजा करनी है वहां गंगाजल छिड़कें और चंदन से लेप लगाकर अष्टदल चक्र बनाएं. इस दिन अपराजिता और शमी पेड़ की पूजा का विशेष महत्व है.
3. अष्टदल चक्र के बीच अपराजिताय नमःलिखें. अब मां जया को दाईं तरफ और मां विजया को बाईं तरफ स्थापित करें. ॐ क्रियाशक्त्यै नमः और उमायै नमः मंत्र बोलकर देवी का आह्वान करें.
4. गाय के गोबर से 10 गोले बनाकर उसमें ऊपर से जौ के बीज लगाएं. धूप और दीप जलाकर भगवान श्रीराम की पूजा करें और इन गोलों को जला दें.
5. मान्यता है कि ये 10 गोले रावण के समान अहंकारी, लोभी, क्रोधी का प्रतीक होते हैं. इन्हें जलाकर इन बुराइयों का अंत किया जाता है.
6. पूजा के बाद ओम दशरथाय विद्महे सीतावल्लभाय धीमहि तन्नो राम: प्रचोदयात मंत्र का जाप करें. कहते हैं इससे सर्व कार्य सिद्ध होते हैं.
7. दशहरा के दिन शस्त्र पूजन का बहुत महत्व है. विजयादशमी पर क्षत्रिय, योद्धा और सैनिक सर्वत्र विजय की कामना के साथ अपने शस्त्रों की पूजा करते है
8. प्रदोष काल में रावण दहन से पूर्व शमी के पेड़ का पूजन करें. इससे शत्रु पर विजय प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है.
9. श्रवण नक्षत्र में श्रीराम और उनकी वानर सेना ने लंका पर आक्रमण किया था और विजय का परचम लहराया था, इसलिए इस दिन प्रदोषकाल में रावण का पुतला जलाने की परंपरा है.
दशहरे पर करने के कुछ विशेष उपाय
1. दशहरे के दिन नीलकंठ पक्षी का दर्शन बहुत ही शुभ होता है। माना जाता है कि इस दिन यह पक्षी दिखे तो आने वाला साल खुशहाल होता है।
2. दशहरा के दिन शमी के वृक्ष की पूजा करें। अगर संभव हो तो इस दिन अपने घर में शमी के पेड़ लगाएं और नियमित दीप दिखाएं। मान्यता है कि दशहरा के दिन कुबेर ने राजा रघु को स्वर्ण मुद्राएं देने के लिए शमी के पत्तों को सोने का बना दिया था। तभी से शमी को सोना देने वाला पेड़ माना जाता है।
3. रावण दहन के बाद बची हुई लकड़ियां मिल जाए तो उसे घर में लाकर कहीं सुरक्षित रख दें। इससे नकारात्मक शक्तियों का घर में प्रवेश नहीं होता है।
4. दशहरे के दिन लाल रंग के नए कपड़े या रुमाल से मां दुर्गा के चरणों को पोंछ कर इन्हें तिजोरी या अलमारी में रख दें। इससे घर में बरकत बनी रहती है।
आप सभी को विजय दशमी की हार्दिक शुभकामनाये
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