हिंदू धर्म में हनुमान जी को सर्व शक्तिमान और प्रभु श्रीराम का परम भक्त माना जाता है जो कि रामायण महाकाव्य जैसे महाग्रंथ के प्रमुख पात्र से एक है ऐसी अनुश्रुति है कि हनुमान जी, भगवान शंकर के ग्यारहवें अवतार थे । जिन्हें रुद्रावतार भी कहा जाता है रामायण में वर्णित हनुमान जी का रूप- उनका मुख वानर समान और शरीर मानव समान है । शरीर अत्यंत बलिष्ठ और वज्र समान है । हनुमान जी जनेऊ धारण करते हैं तथा केवल लंगोट प्रयोग करते हैं । मस्तक पर स्वर्ण का मुकुट और शरीर पर कुछ आभूषण धारण करते हैं । हनुमान जी की पुंछ वानर समान लंबी है और अस्त्र में गदा का प्रयोग करते हैं

हनुमान जी के पिता का नाम केसरी था, इसलिए उन्हें केसरी नंदन कहा जाता है पवन देव के मुंह बोले पुत्र होने की वजह से मारुति नंदन भी कहा जाता है । मारुति अर्थात पवन अर्थात वायु, इसलिए उन्हें मारुति नंदन कहा जाता है महाबली हनुमान को महावीर नाम से भी जाना जाता है सभी संकट से पार लगा देते है, इसलिए संकट मोचन कहा जाता है हनुमान जी को बालाजी और हनुमते नाम से भी जाना जाता है

आज मैं आपको इन्ही अतुलित बलशाली हनुमान जी का एक ऐसा अत्यंत दुर्लभ स्तोत्र बताने जा रहा हूँ जिसका नाम है, घटिकाचल हनुमान स्तोत्र। यह शक्तिशाली घटिकाचल हनुमान स्तोत्र जीवन से सभी परेशानियों को दूर करने और आपको जीवन की हर बाधाओं से बचाने की शक्ति रखता है। ऐसी मान्यता है कि इस स्तोत्र का नियमित रूप से पाठ करने से भगवान हनुमान भक्त की हर मनोकामना पूरी करते हैं और वह आनंदमय जीवन व्यतीत करते हैं।

॥ श्री घटिकाचल हनुमत्स्तोत्रम् ॥ 

शङ्खचक्रधरं देवं घटिकाचलवासिनम् ।

योगारूढं ह्याञ्जनेयं वायुपुत्रं नमाम्यहम् ॥ १॥

भक्ताभीष्टप्रदातारं चतुर्बाहुविराजितम् ।

दिवाकरद्युतिनिभं वन्देऽहं पवनात्मजम् ॥ २॥

कौपीनमेखलासूत्रं स्वर्णकुण्डलमण्डितम् ।

लङ्घिताब्धिं रामदूतं नमामि सततं हरिम् ॥ ३॥

दैत्यानां नाशनार्थाय महाकायधरं विभुम् ।

गदाधरकरो यस्तं वन्देऽहं मारुतात्मजम् ॥ ४॥

नृसिंहाभिमुखो भूत्वा पर्वताग्रे च संस्थितम् ।

वाञ्छन्तं ब्रह्मपदवीं नमामि कपिनायकम् ॥ ५॥

बालादित्यवपुष्कं च सागरोत्तारकारकम् ।

समीरवेगं देवेशं वन्दे ह्यमितविक्रमम् ॥ ६॥

पद्मरागारुणमणिशोभितं कामरूपिणम् ।

पारिजाततरुस्थं च वन्देऽहं वनचारिणम् ॥ ७॥

रामदूत नमस्तुभ्यं पादपद्मार्चनं सदा ।

देहि मे वाञ्छितफलं पुत्रपौत्रप्रवर्धनम् ॥ ८॥

इदं स्तोत्रं पठेन्नित्यं प्रातःकाले द्विजोत्तमः ।

तस्याभीष्टं ददात्याशु रामभक्तो महाबलः ॥ ९॥

इसे भी पढ़ें Lord Hanuman: जानें श्री हनुमानजी पूजन की प्राचीन वैदिक विधि और चोला चढ़ाने की विधि