कामना वाला मनुष्य सदा दु:खी क्यों रहता है। हरे कृष्णा 

कामना करने के बाद जब वह वस्तु (धन आदि) मिलती है, तब मन में स्थित कामना के निकलने के बाद (दूसरी कामना के पैदा होने से पहले) उसकी अवस्था निष्काम हो जाती है और उसी निष्कामता का उसे सुख होता है; परंतु उस सुख को मनुष्य भूल से सांसारिक वस्तु की प्राप्ति से उत्पन्न हुआ मान लेता है तथा उस सुख को ही प्रीति, तृप्ति और संतुष्टि के नाम से कहता है।

अगर वस्तु की प्राप्ति से वह सुख होता, तो उसके मिलने के बाद उस वस्तु के रहते हुए सदा सुख रहता, दु:ख कभी नहीं होता और पुनः वस्तु की कामना उत्पन्न नहीं होती। परंतु सांसारिक वस्तुओं से कभी भी पूर्ण (सदा के लिए) प्रीति, तृप्ति और संतुष्टि प्राप्त न हो सकने के कारण तथा संसार से ममता का संबंध बना रहने के कारण वह पुन: नयी-नयी कामनाएं करने लगता है।

कामना उत्पन्न होने पर अपने में अभाव का तथा काम्य वस्तु के मिलने पर अपने में पराधीनता का अनुभव होता है। अतः कामना वाला मनुष्य सदा दु:खी रहता है।