सुजन्म द्वादशी व्रत का पौराणिक महत्व और सुजन्म द्वादशी पूजा विधि सुजन्म द्वादशी मंत्र 

सुजन्म द्वादशी का उत्सव पौष माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी के दिन मनाया जाता है. यह पर्व पुत्रदा एकादशी के अगले दिन द्वादशी तिथि पर आरंभ होता है. इस दिन भगवान विष्णु के पूजन का विधान है. एक अन्य मान्यता अनुसार इस व्रत का महत्व तब और भी अधिक बढ़ जाता है जब इस तिथि के दिन ज्येष्ठा नक्षत्र भी पड़ रहा हो, तो उस समय पर इस दिन व्रत एवं पूजा इत्यादि समस्त कार्यों को करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है।

सुजन्म द्वादशी व्रत में एकादशी से ही व्रत का आरंभ करना श्रेयस्कर होता है. अगर संभव न हो सके तो द्वादशी को व्रत आरंभ करें. पूरे दिन उपवास रखने के बाद रात को जागरण कीर्तन करना चाहिए तथा और दूसरे दिन स्नान करने के पश्चात ब्राह्मणों को फल और भोजन करवा कर उन्हें क्षमता अनुसार दान देना चाहिए. अंत में स्वयं भोजन करना चाहिए

पौष मास की द्वादशी के दिन श्री विष्णु के नारायण स्वरुप की पूजा एवं नमो: नारायण नाम का जाप करना चाहिए. श्री विष्णु भगवान के नारायण रुप की पूजा ही मुख्य रुप से इस दिन की जाती है।

सुजन्म द्वादशी व्रत का पौराणिक महत्व 

भागवद एवं विष्णु पुराण इत्यादि धर्म ग्रंथों में द्वादशी के पूजन का विशेष महत्व बताया गया है. भगवान श्री कृष्ण स्वयं द्वादशी व्रत का माहात्म्य कहते हैं. भगवान श्रीकृष्ण से जब सुजन्म द्वादशी व्रत के फल को जानने का प्रयास किया जाता है तब भगवन अपने भक्तों को इस दिन की शुभता एवं महत्ता के बारे में बताते हुए कहते हैं कि “हे भक्तवतस्ल द्वादशी का व्रत सभी तरह के व्रतों में श्रेष्ठ और कल्याणकारी होता है. द्वादशी तिथि की जो महिमा नारद को बतलाई वही मैं तुम से कहता हूं अत: तुम ध्यान पूर्वक इस वचन को सुनो. जो मनुष्य द्वादशी के दिन मेरी आराधना करता है वह सैकेडौं यज्ञों को करने के समान फल पाता है, भक्त की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. जिस प्रकार मुझे एकादशी प्रिय है उसी प्रकार द्वादशी भी मुझे अत्यंत प्रिय है।

सुजन्म द्वादशी व्रत महात्म्य Sujanma Dwadashi Vrat Mahatmya in Hindi 

सुजन्म द्वादशी व्रत सब प्रकार के उपवासों में जो सबसे श्रेष्‍ठ, महान फल देने वाला और कल्‍याण का सर्वोत्तम साधन हो, वह सुजन्म द्वादशी व्रत है. इस द्वादशी तिथि के दिन जो भक्त स्‍नान आदि से पवित्र होकर श्री नारायण का भक्‍तिपूर्वक नाम लेता है, व्रत धारण करता है. और तीनों प्रहर श्री नारायण की पूजा में उपासना में लीन रहता है. वह भक्त साधक सम्‍पूर्ण यज्ञों का फल पाकर श्री नारायण के धाम को पाता है. उसके समस्त पापों एवं दोषों का नाश होता है।

भगवान श्री विष्णु को एकादशी और द्वादशी दोनों ही तिथि में समान रुप से पूजा जाता है. यह दोनों तिथियों का संबंध भगवान श्री विष्णु से बताया गया है. यह दोनों ही तिथियां भगवान श्री विष्णु को अत्यंत प्रिय हैं और इन दोनों ही समय पर विधि-विधान से किया गया पूजन अत्यंत फलदायी होता है.

धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान श्री विष्णु भगवान का आशीर्वाद पाने हेतु भक्त को उचित रुप से इन तिथियों के दिन पूजन करना चाहिए. यदि किसी कारणवश एकादशी उपवास एवं पूजन न हो सके तो, भक्त केवल सुजन्म द्वादशी को व्रत एवं पूजन धारण करें तो इस से भी भगवान श्री हरि की कृपा प्राप्त होती है. कहा भी गया है की – पौष मास की सुजन्म द्वादशी के दिन को व्रत एवं पूजन करने व श्री नारायण नाम का जाप करने मात्र से ही भक्त को अश्वमेध यज्ञ का फल पाता है. 

प्रत्येक वर्ष सुजन्म द्वादशी का व्रत करना एवं बारह वर्ष तक इस व्रत को धारण करने के उपरांत भक्त को भगवान श्री विष्णु का परमलोक प्राप्त होता है. भक्त के सभी कष्ट दूर होते हैं और रोग एवं व्याधियों से मुक्ति प्राप्त होती है. जो भी भक्त द्वादशी तिथि को शुद्ध चित मन से प्रेमपूर्वक श्री विष्णु भगवान की पूजा करता है, चन्दन, तुलसी, धूप-दीप , पुष्‍प, फल इत्यादि से भगवान नारायण का पूजन करता है वह भगवान श्री विष्णु का सानिध्य प्राप्त करता है. उस पर सदैव प्रभु की कृपा दृष्टि रहती है।

सुजन्म द्वादशी पूजा विधि Sujanma Dwadashi Puja Method in Hindi 

1. द्वादशी तिथि के दिन प्रात:काल नारायण भगवान का स्मरण करते हुए दिन का आरंभ करना चाहिए।

2. नित्य दैनिक क्रियाओं से निवृत होकर, पानी में गंगाजल डालकर स्नान करना चाहिए।

3. षोडशउपचार द्वारा भगवान नारायण का पूजन करना चाहिए।

4. श्री नारायण भगवान का आवाहन करना चाहिए. उनकी प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए।

5. चंदन, अक्षत, तुलसीदल व पुष्प को श्री नारायण बोलते हुए भगवान को अर्पित करने चाहिए।

6. भगवान की प्रतिमा को पंचामृत से स्नान करवाना चाहिए, जिसमे दूध, दही, घी, शहद तथा चीनी शक्कर इत्यादि का उपयोग करके स्नान करवाना चाहिए. इसके पश्चात प्रतिमा को पोंछने कर सुन्दर वस्त्र पहनाने चाहिए।

7. भगवान श्री विष्णु को दीप, गंध , पुष्प अर्पित करना, धूप दिखानी चाहिए।

8. भगवान की आरती करने के पश्चात भगवान को भोग लगाना चाहिए और अपनी सभी गलतियों की जो जाने-अंजाने हुई हों क्षमा मांगनी चाहिए और भगवान से घर-परिवार के शुभ मंगल की कामना करनी चाहिए।

9. भगवान के नैवेद्य को सभी जनों में बांटना चाहिए. सामर्थ्य अनुसार यदि हो सके तो ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए व दान-दक्षिणा इत्यादि भेंट करनी चाहिए।

सुजन्म द्वादशी व्रत में एकादशी से ही व्रत का आरंभ करना श्रेयस्कर होता है. अगर संभव न हो सके तो द्वादशी को व्रत आरंभ करें. पूरे दिन उपवास रखने के बाद रात को जागरण कीर्तन करना चाहिए तथा और दूसरे दिन स्नान करने के पश्चात ब्राह्मणों को फल और भोजन करवा कर उन्हें क्षमता अनुसार दान देना चाहिए. अंत में स्वयं भोजन करना चाहिए. जो भी पूरे विधि-विधान से सुजन्म द्वादशी का व्रत करता है वह भगवान के समीप निवास पाता है. विष्णु लोक को पाने का अधिकारी बनता है. इस व्रत की महिमा से व्रती के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और वह सभी सांसारिक सुखों को भोग कर पाता है।

सुजन्म द्वादशी मंत्र sujanma dwadashi mantra in Hindi 

सुजन्म द्वादशी के दिन भगवान श्री नारायण के मंत्र का जाप करना अत्यंत शुभ फलदायी होता है. श्री नारायण का स्वरूप शांत और आनंदमयी है. वह जगत का पालन करने वाले हैं. भगवान का स्मरण करने से भक्तों के जीवन के समस्त संकटों का नाश होता है और सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है. इस दिन इन मंत्रों से भगवान का पूजन करना चाहिए।

ॐ नारायणाय नम:

“ॐ नारायणाय विद्महे।

वासुदेवाय धीमहि।

तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।” 

“ॐ नमो नारायण। श्री मन नारायण नारायण हरि हरि। ”

भगवान जगदीश्वर की आरती Aarti of Lord Jagdishwar 

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।

भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे॥

जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का।

सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय…॥

मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूँ किसकी।

तुम बिनु और न दूजा, आस करूँ जिसकी॥ ॐ जय…॥

तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी॥

पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ॐ जय…॥

तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता।

मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय…॥

तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।

किस विधि मिलूँ दयामय! तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय…॥

दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।

अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ जय…॥

विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।

श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ॐ जय…॥

तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा।

तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥ ॐ जय…॥

जगदीश्वरजी की आरती जो कोई नर गावे।

कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय…॥

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