कारकोटक कालसर्प योग की भारतीय ज्योतिष में प्रचलित परिभाषा के अनुसार यदि किसी कुंडली में राहू आठवें घर में स्थित हों, केतु कुंडली के दूसरे घर में स्थित हों तथा बाकि के सारे ग्रह कुंडली में राहू तथा केतु के बीच में स्थित हों अर्थात बाकि के सारे ग्रह कुंडली के आठवें घर से कुंडली के दूसरे घर के बीच में स्थित हों तो ऐसी कुंडली में कारकोटक कालसर्प योग बनता है जो जातक के जीवन के विभन्न क्षेत्रों में तरह तरह की समस्याएं तथा मुसीबतें पैदा कर देता है। 

किन्तु यहां पर यह बात ध्यान देने योग्य है कि कारकोटक काल सर्प योग की प्रचलित परिभाषा में दी गईं शर्तें किसी कुंडली में इस दोष की उपस्थिति को सुनिश्चित करने के लिए अपने आप में पूर्ण तथा पर्याप्त नहीं हैं तथा कुंडली में उपस्थित अन्य बहुत से महत्वपूर्ण तथ्यों का ध्यानपूर्वक अध्ययन करने के पश्चात ही किसी कुंडली में कारकोटक काल सर्प योग की उपस्थिति सुनिश्चित करनी चाहिए न कि कुंडली में केवल राहू केतु की आठवें तथा दूसरे घर में स्थिति तथा शेष सभी ग्रहों की कुंडली के आठवें तथा दूसरे घर के बीच स्थिति के आधार पर।

अब विचार करते हैं कि कुंडली में वास्तविक रुप से उपस्थित होने पर कारकोटक कालसर्प योग जातक के जीवन में किस प्रकार की समस्याएं पैदा कर सकता है।

कुंडली में कारकोटक कालसर्प योग के प्रभाव के कारण जातक को अपने बचपन के समय कई प्रकार की मुसीबतों तथा रोगों का सामना करना पड़ सकता है तथा कुछेक मामलों में तो इस दोष से पीड़ित जातक जन्म से ही रोगी पैदा होता है तथा जातक को जन्म से ही लगे हुए ऐसे रोग जातक को विशेष तौर पर उसके बाल्यकाल तक बहुत परेशान करते हैं तथा जातक के किशोरावस्था में प्रवेश करने पर आम तौर पर यह रोग बहुत हद तक कम हो जाते हैं अथवा कई बार ये रोग पूरी तरह से ठीक भी हो जाते हैं।

किसी कुंडली में कारकोटक काल सर्प दोष के बहुत बलवान होने पर जातक को जन्म के समय से ही लगे हुए ऐसे रोग कभी भी पूरी तरह से ठीक नहीं हो पाते तथा सारा जीवन जातक को परेशान करते रहते हैं। कारकोटक काल सर्प योग के प्रभाव के कारण जातक को अपने बचपन में और भी कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है तथा इस दोष से पीड़ित जातकों का बचपन आम तौर पर अच्छा नहीं निकलता।

इस दोष के प्रभाव के कारण कई बार जातक को अपने बाल्यकाल में माता पिता का पूरा स्नेह नहीं मिल पाता तथा इसके विपरीत जातक के माता पिता के मन मे जातक की एक खराब छवि बन जाती है जिसके चलते जातक के माता पिता जातक से बहुत अच्छा व्यवहार नहीं करते। कारकोटक कालसर्प योग के प्रभाव के कारण कई बार जातक के माता पिता जातक के किसी भाई अथवा बहन के प्रति अपने अधिक लगाव के चलते जातक की ओर कम ध्यान देते हैं जिसके कारण जातक को समय समय पर हीन भावना का शिकार होना पड़ता है।

इसके अतिरिक्त कुंडली में इस योग के प्रभाव के कारण जातक के बचपन के समय में और भी कई प्रकार की समस्याएं आ सकतीं हैं तथा इस दोष से पीड़ित जातक का बचपन आम तौर पर बहुत अच्छा नहीं गुजरता तथा बचपन के यह बुरे अनुभव जातक के व्यक्तित्व तथा चरित्र की रचना में बुरा प्रभाव डालते हैं जिनके चलते जातक के व्यक्तित्व में कुछ दोष रह जाते हैं।

कुंडली में कारकोटक काल सर्प योग के प्रभाव के कारण कई बार जातक को बचपन से ही खाने पीने की चीजों से संबंधित खराब आदतें लग जातीं हैं जिनके चलते जातक का रुझान अच्छी तथा स्वास्थयवर्धक वस्तुओं की ओर न होकर स्वास्थय के लिए हानिकारक वस्तुओं की ओर हो जाता है तथा अपनी खाने पीने की इन खराब आदतों के चलते जातक को अपने जीवन में आगे चलकर कई प्रकार के रोग लग सकते हैं। कारकोटक कालसर्प योग जातक की वाणी पर भी बुरा असर डाल सकता है

जिसके कारण जातक की बातचीत करने की कुशलता सामान्य से कम अथवा बहुत कम रहती है तथा जीवन में अनेक बार जातक का अपनी खराब बोली के कारण बहुत नुकसान होता है अथवा अन्य लोगों से झगड़ा हो जाता है। इस योग के प्रभाव के कारण जातक कई बार दूसरे लोगों को बहुत कड़वी बातें कह देता है जिसके कारण जातक के इन लोगों के साथ संबंधों पर बुरा असर पड़ता है।

कारकोटक कालसर्प योग के प्रभाव के कारण जातक को धन की कमी का सामना अपने जीवन में बार बार करना पड़ सकता है तथा कुछेक मामलों में जहां कुंडली में यह दोष बहुत बलवान हो तथा कुंडली में धन की प्राप्ति एवम संचय से संबंधित कोई और शुभ योग न हो तो ऐसे जातक को सारा जीवन धन की तंगी का सामना करना पड़ता है तथा अपना अधिकतर जीवन जातक कर्ज लेकर ही व्यतीत करता है तथा ऐसे जातक के सिर पर मरने के समय भी धन का कर्ज चढ़ा होता है।

किसी कुंडली में उपस्थित कारकोटक कालसर्प योग जातक के वैवाहिक जीवन पर बुरा या बहुत बुरा प्रभाव डाल सकता है तथा इस योग से पीड़ित अधिकतर जातकों का वैवाहिक जीवन आम तौर पर खराब ही रहता है। कारकोटक कालसर्प योग से पीड़ित बहुत से जातकों का विवाह आम तौर पर देरी से ही होता है तथा कुंडली में इस दोष के बलवान होने की स्थिति में कई बार जातक का विवाह बहुत देरी से होता है अथवा हो ही नहीं पाता तथा जातक को आजीवन विवाह के बिना ही रहना पड़ता है।

इस दोष के कुंडली मे बलवान होने की स्थिति में कई बार जातक का विवाह ३५ से ४० साल की उम्र के बाद ही हो पाता है। कारकोटक कालसर्प योग जातक के वैवाहिक जीवन पर भी विपरीत प्रभाव डालता है तथा इस दोष के प्रभाव के कारण जातक के वैवाहिक जीवन में तरह तरह की समस्याएं तथा परेशानियां आ सकतीं हैं जिनके कारण जातक को बहुत मानसिक तनाव का सामना करना पड़ सकता है। कारकोटक कालसर्प योग के किसी कुंडली में बलवान होने की स्थिति में जातक का अपनी पत्नि के साथ लंबा अलगाव हो सकता है तथा जातक का अपनी पत्नि के साथ तलाक भी हो सकता है।

इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि कारकोटक कालसर्प योग से पीड़ित जातक के वैवाहिक जीवन में किसी न किसी प्रकार की समस्याएं अवश्य आती हैं तथा यह समस्याएं जातक का विवाह बहुत देर से होने से लेकर जातक का विवाह टूट जाने तक किसी भी प्रकार की हो सकतीं हैं।

कर्कोटक कालसर्प दोष निवारण के उपाय 

१. कर्कोटक कालसर्प दोष से मुक्ति पाने के लिए उज्जैन में स्थित शिव जी का मंदिर माना जाता हैं जिसका नाम भी कर्कोटक हैं. ऐसा माना जाता हैं कि कर्कोटक नामक नाग शिवजी का बहुत ही बड़ा भक्त था. जिसने शिवजी की कृपा पाने के लिए घोर तपस्या की थी. जिसके परिणाम स्वरूप शिवजी ने उसे वरदान दिया था कि कर्कोटक कालसर्प दोष से पीड़ित व्यक्ति अगर इस मंदिर पर आकर शिवजी की पूजा अर्चना करेगा तो उस पर से इस दोष का प्रभाव हमेशा हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा.

इसलिए अगर कर्कोटक कालसर्प योग से आप मुक्ति पाना चाहते हैं तो इस मंदिर में पंचमी, चतुर्दशी एवं रविवार के दिन आकर शिव जी की पूजा करें. इन तीनों दिनों में से किसी भी एक दिन पूजा करने से आपको कालसर्प दोष से अवश्य मुक्ति मिल जायेगी.

२. कालसर्प दोष के अशुभ प्रभावों से बचने के लिए आप घर में कालसर्प दोष निवारण करने वाला यंत्र भी स्थापित कर सकते हैं. यंत्र को स्थापित करने के बाद रोजाना इसकी पूजा करने से तथा शनिवार के दिन एक कटोरी में सरसों का तेल भरकर उसमें अपना मुंह देख कर तथा एक सिक्का अपने सिर के ऊपर से घुमाकर यदि उस सिक्के को आप किसी गरीब व्यक्ति को दान कर देंगे तो भी इस दोष के अशुभ प्रभावों से आपको मुक्ति मिल जायेगी.

३. चाँदी की धातु से बना चकोर टुकड़ा हमेशा पाने साथ रखकर भी आप इस दोष के नकारात्मक प्रभाव से बच सकते हैं.

४. किसी शुभ मुहूर्त में नवनाग पूजन के बाद राहु केतु के निर्दिष्ट संख्या में जप तदोपरान्त दशांश हवन करने से इस दोष की शीघ्र शांति होती है।

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