कार्तिक माह महात्म्य सोलहवां अध्याय Kartik Month Mahatmya Sixteenth Chapter 

सुनो लगाकर मन सभी, संकट सब मिट जायें ।

कार्तिक महात्म का “कमल” पढो़ सोलहवां अध्याय ।।

राजा पृथु ने कहा– हे नारद जी ये तो आपने भगवान शिव की बडी़ विचित्र कथा सुनाई है. अब कृपा करके आप यह बताइये कि उस समय राहु उस पुरूष से छूटकर कहां गया ?

नारद जी बोले उससे छूटने पर वह दूत बर्बर नाम से विख्यात हो गया और अपना नया जन्म पाकर वह धीरे-धीरे जलन्धर के पास गया. वहां जाकर उसने शंकर की सब चेष्टा कही. उसे सुनकर दैत्यराज ने सब दैत्यों को सेना द्वारा आज्ञा दी. कालनेमि और शुम्भ-निशुम्भ आदि सभी महाबली दैत्य तैयार होने लगे. एक से एक महाबली दैत्य करोडों– करोडों की संख्या में निकल युद्ध के लिए जुट पड़े. महा प्रतापी सिन्धु पुत्र शिवजी से युद्ध करने के लिए निकल पड़ा. आकाश में मेघ छा गये और बहुत अपशकुन होने लगे. शुक्राचार्य और कटे सिर वाला राहु सामने आ गये. उसी समय जलंधर का मुकुट खिसक गया, परंतु वह नहीं रूका।

उधर इन्द्रादिक सब देवताओं ने कैलाश पर शिवजी के पास पहुंच कर सब वृतांत सुनाया और यह भी कहा कि आपने जलंधर से युद्ध करने के लिए भगवान विष्णु को भेजा था. वह उसके वशवर्ती हो गये हैं और विष्णु जी लक्ष्मी सहित जलंधर के अधीन हो उनके घर में निवास करते हैं. अब देवताओं को भी वहीं रहना पड़ता है. अब वह बली सागर पुत्र आपसे युद्ध करने आ रहा है. अतएव आप उसे मारकर हम सबकी रक्षा कीजिये।

यह सुनकर शंकरजी ने विष्णु जी को बुलाकर पूछा हे ऋषिकेश! युद्ध में आपने जलंधर का संहार क्यों नहीं किया और बैकुण्ठ छोड़ आप उसके घर में कैसे चले गये ?

यह सुन कर विष्णु जी ने हाथ जोड़ कर नम्रतापूर्वक भगवान शंकर से कहा– उसे आपका अंशी ओर लक्ष्मी का भ्राता होने के कारण ही मैने नहीं मारा है. यह बड़ा वीर और देवताओं से अजय है. इसी पर मुग्ध होकर मैं उसके घर में निवास करने लगा हूं।

विष्णु जी के इन वचनों को सुनकर शंकर जी हंस पड़े उन्होंने कहा– हे विष्णु आप यह क्या कहते हैं मैं उस दैत्य जलंधर को अवश्य मारूंगा अब आप सभी देवता जलंधर को मेरे द्वारा ही मारा गया जान अपने स्थान को जाइये।

जब शंकर जी ने ऎसा कहा तो सब देवता सन्देह रहित होकर अपने स्थान को चले गये. इसी समय पराक्रमी जलंधर अपनी विशाल सेना के साथ पर्वत के समीप आ कैलाश को घोर सिंहनाद करने लगा. दैत्यों के नाद और कोलाहल को सुनकर शिवजी ने नंदी आदि गणों को उससे युद्ध करने की आज्ञा प्रदान की, कैलाश के समीप भीषण युद्ध होने लगा. दैत्य अनेकों प्रकार के अस्त्र शस्त्र बरसाने लगे, भेरि, मृदंग, शंख और वीरों तथा हाथी, घोडों और रथों के शब्दों से शाब्दित हो पृथ्वी कांपने लगी. युद्ध में कटकर मरे हुए हाथी, घोड़े और पैदलों का पहाड़ लग गया. रक्त-मांस का कीचड़ उत्पन्न हो गया.

दैत्यों के आचार्य शुक्रजी अपनी मृत संजीवनी विद्या से सब दैत्यों को जिलाने लगे. यह देखकर शिव जी के गण व्याकुल हो गये और उनके पास जाकर सारा वृतांत सुनाया, उसे सुनकर भगवान रूद्र के क्रोध की सीमा न रही. फिर तो उस समय उनके मुख से एक बड़ी भयंकर कृत्या उत्पन्न हुई, जिसकी दोनों जंघाएं तालवृक्ष के समान थीं. वह युद्ध भूमि में जा सब असुरों का चवर्ण करने लग गयी और फिर वह शुक्राचार्य के समीप पहुंची और शीघ्र ही अपनी योनी में गुप्त कर लिया फिर स्वयं भी अन्तर्धान हो गयी।

शुक्राचार्य के गुप्त हो जाने से दैत्यों का मुख मलिन पड़ गया और वे युद्धभूमि को छोड़ भागे इस पर शुम्भ निशुम्भ और कालनेमि आदि सेनापतियों ने अपने भागते हुए वीरों को रोका. शिवजी के नन्दी आदि गणों ने भी– जिसमें गणेश और स्वामी कार्तिकेयजी भी थे– दैत्यों से भीष्ण युद्ध करना आरंभ कर दिया।

Must Read Kartik Month Mahatmya Fifteenth Chapter कार्तिक माह महात्म्य पंद्रहवां अध्याय