पद्मिनी एकादशी पुरुषोत्तम (कमला) एकादशी पौराणिक महत्व पूजन विधि कथा आरती एवं नियम
अधिक मास में आने वाली एकादशी को विशेष पुण्यफल देने वाली माना गया है। शास्त्रों के अनुसार, अधिक मास के स्वामी भगवान विष्णु हैं इसलिए इस महीने को पुरुषोत्तम का महीना भी कहा जाता है। इस महीने में आने वाली शुक्ल पक्ष की एकादशी को कमला एकादशी, अधिकमास एकादशी, पुरुषोत्तमी एकादशी या मलमासी एकादशी पद्मिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है पद्मिनी एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति की मनोकामना पूरी होती है । श्रीकृष्ण ने अर्जुन को इस व्रत का महत्व बताते हुए कहा है कि, जो व्यक्ति पद्मिनी एकादशी का व्रत करता है उसके मन से सभी तरह के विकार दूर हो जाते हैं।
पद्मिनी एकादशी (पुरुषोत्तम कमला) एकादशी महत्व (Purushottam Kamala Ekadashi importance in Hindi)
पुरुषोत्तम एकादशी को पद्मिनी एकादशी, कमला एकादशी भी कहा जाता है। पुरुषोत्तम मास में पड़ने के कारण इस एकादशी का नाम पुरुषोत्तम एकादशी पड़ा है। विष्णु पुराण के अनुसार पुरुषोत्तम एकादशी दुर्लभ एकादशी मानी जाती है। क्योंकि अधिकमास (मलमास) यानि तीन साल में एक बार यह एकादशी पड़ती है। पुराणों में आयी कथा के अनुसार जो विवाहित महिलाएं संतान की कामना लेकर पुरुषोत्तम कमला एकादशी व्रत को करती हैं। उन्हें सुयोग्य संतान की प्राप्ति होती है।
शास्त्रीय मान्यता के अनुसार पुरुषोत्तम कमला एकादशी के दिन कांसे के पात्र में भोजन नहीं करना चाहिए। पुरुषोत्तम कमला एकादशी साथ ही इस एकादशी के दिन मसूर की दाल, चना, शहद, शाक और लहसुन, प्याज के सेवन से बचना चाहिए। इसके अलावा इस दिन दूसरे किसी अन्य का दिया हुआ भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए। इस एकादशी के दिन मीठे भोजन में केवल फलाहार का सेवन ही करना चाहिए। मान्यताओं के अनुसार इस एकादशी पर जो मनुष्य इन नियमों का पालन करते हुए भगवान विष्णु की आराधना करता है वह जन्म-जन्मांतर के पापों से मुक्त हो जाता है।
पद्मिनी एकादशी पूजन विधि (Padmini Ekadashi Pujan Vidhi)
एकादशी के दिन स्नानादि से पवित्र होने के पश्चात् पूजा का संकल्प लेना चाहिए। इसके बाद श्री विष्णु के विग्रह का पूजन करना चाहिए। भगवान विष्णु को फूल, फल, तिल, दूध, पंचामृत आदि पदार्थ निवेदित करके, आठों प्रहर निर्जल रहकर विष्णु जी के नाम का स्मरण और संकीर्तन करना चाहिए।
एकादशी व्रत में ब्राह्मण भोजन एवं दक्षिणा का बड़ा ही महत्व है। इसलिए ब्राह्मण को भोजन करवाकर दक्षिणा सहित विदा करने के बाद ही भोजन ग्रहण करना शुभ माना गया है। इस प्रकार जो कामिका एकादशी का व्रत रखता है उसकी कामनाएं पूर्ण होती हैं।
पूजा के लिये आवश्यक सामग्री
श्री विष्णु जी की मूर्ति, वस्त्र, पुष्प, पुष्पमाला, नारियल, सुपारी, अन्य ऋतुफल, धूप, दीप, घी, पंचामृत (दूध (कच्चा दूध), दही, घी, शहद और शक्कर का मिश्रण), अक्षत, तुलसी दल, चंदन, मिष्ठान आदि।
पारण विधि
द्वादशी के दिन घर पर ब्राह्मण को बुलाएं और उन्हें खाना खिलाएं और सामर्थ्य अनुसार उन्हें दान दक्षिणा दें। उसके बाद स्वयंं पारण करें. ध्यान रहे कि पारण के समय के दौरान ही पारण किया जाना चाहिए। अगर ब्राह्मण को घर बुलाकर भोजन कराने का सामर्थ्य नहीं है तो आप एक व्यक्ति के भोजन के बराबर अनाज किसी गरीब को या मंदिर में दान कर दें। यह भी आपको उतना ही फल प्रदान करेगा।
पुरुषोत्तम कमला एकादशी व्रत कथा (Purushottam Kamala Ekadashi Vrat Katha in Hindi)
इस एकादशी व्रत के पुण्य प्रभाव से मृत्यु के उपरांत इस ब्राहमण पुत्र को श्रीकृष्ण ने गोलोक में स्थान दिया। पुरुषोत्तम कलमा एकादशी व्रत में दान का विशेष महत्व है। इस दिन गरीब के बीच तिल, वस्त्र, धन आदि का दान करने से पुण्य के कार्यों में चार गुना वृद्धि होती है।
धर्मराज युधिष्ठिर बोले- हे जनार्दन अधिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का क्या नाम है तथा उसकी विधि क्या है? कृपा करके आप मुझे बताइए।
श्री भगवान बोले हे राजन- अधिक मास में शुक्ल पक्ष में जो एकादशी आती है वह पद्मिनी (कमला) एकादशी कहलाती है। वैसे तो प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिक मास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर २६ हो जाती है।
अधिक मास या मलमास को जोड़कर वर्ष में २६ एकादशी होती है। अधिक मास में दो एकादशी होती है जो पद्मिनी एकादशी (शुक्ल पक्ष) और परमा एकादशी (कृष्ण पक्ष) के नाम से जानी जाती है। ऐसा श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा है। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को इस व्रत की कथा बताई थी।
भगवान कृष्ण बोले- मलमास में अनेक पुण्यों को देने वाली एकादशी का नाम पद्मिनी है। इसका व्रत करने पर मनुष्य कीर्ति प्राप्त करके बैकुंठ को जाता है। जो मनुष्यों के लिए भी दुर्लभ है।
यह एकादशी करने के लिए दशमी के दिन व्रत का आरंभ करके काँसी के पात्र में जौं-चावल आदि का भोजन करें तथा नमक न खावें। भूमि पर सोए और ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें। एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में शौच आदि से निवृत्त होकर दन्तधावन करें और जल के बारह कुल्ले करके शुद्ध हो जाए।
सूर्य उदय होने के पूर्व उत्तम तीर्थ में स्नान करने जाए। इसमें गोबर, मिट्टी, तिल तथा कुशा व आँवले के चूर्ण से विधिपूर्वक स्नान करें। श्वेत वस्त्र धारण करके भगवान विष्णु के मंदिर जाकर पूजा-अर्चना करें।
हे मुनिवर! पूर्वकाल में त्रेया युग में हैहय नामक राजा के वंश में कृतवीर्य नाम का राजा महिष्मती पुरी में राज्य करता था। उस राजा की एक हजार परम प्रिय स्त्रियाँ थीं, परंतु उनमें से किसी को भी पुत्र नहीं था, जो उनके राज्य भार को संभाल सकें। देवता, पितृ, सिद्ध तथा अनेक चिकित्सकों आदि से राजा ने पुत्र प्राप्ति के लिए काफी प्रयत्न किए लेकिन सब असफल रहे। एक दिन राजा को वन में तपस्या के लिए जाते थे उनकी परम प्रिय रानी इक्ष्वाकु वंश में उत्पन्न हुए राजा हरिश्चंद्र की पद्मिनी नाम वाली कन्या राजा के साथ वन जाने को तैयार हो गई। दोनों ने अपने अंग के सब सुंदर वस्त्र और आभूषणों का त्याग कर वल्कल वस्त्र धारण कर गन्धमादन पर्वत पर गए।
राजा ने उस पर्वत पर दस हजार वर्ष तक तप किया परंतु फिर भी पुत्र प्राप्ति नहीं हुई। तब पतिव्रता रानी कमलनयनी पद्मिनी से अनुसूया ने कहा- बारह मास से अधिक महत्वपूर्ण मलमास होता है जो बत्तीस मास पश्चात आता है। उसमें द्वादशीयुक्त पद्मिनी शुक्ल पक्ष की एकादशी का जागरण समेत व्रत करने से तुम्हारी सारी मनोकामना पूर्ण होगी। इस व्रत करने से पुत्र देने वाले भगवान तुम पर प्रसन्न होकर तुम्हें शीघ्र ही पुत्र देंगे।
रानी पद्मिनी ने पुत्र प्राप्ति की इच्छा से एकादशी का व्रत किया। वह एकादशी को निराहार रहकर रात्रि जागरण करती। इस व्रत से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया। इसी के प्रभाव से पद्मिनी के घर कार्तिवीर्य उत्पन्न हुए। जो बलवान थे और उनके समान तीनों लोकों में कोई बलवान नहीं था। तीनों लोकों में भगवान के सिवा उनको जीतने का सामर्थ्य किसी में नहीं था।
सो हे नारद जिन मनुष्यों ने मलमास शुक्ल पक्ष एकादशी का व्रत किया है, जो संपूर्ण कथा को पढ़ते या सुनते हैं, वे भी यश के भागी होकर विष्णु लोक को प्राप्त होते है।
भगवान जगदीश्वर जी की आरती
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे।
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥ ॐ जय जगदीश…
जो ध्यावे फल पावे, दुःख बिनसे मन का।
सुख सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय जगदीश…
मात पिता तुम मेरे, शरण गहूं मैं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूं मैं जिसकी॥ ॐ जय जगदीश…
तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतरयामी।
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सब के स्वामी॥ ॐ जय जगदीश…
तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता।
मैं सेवक तुम स्वामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय जगदीश…
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय जगदीश…
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम रक्षक मेरे।
करुणा हाथ बढ़ाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ जय जगदीश…
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ॐ जय जगदीश…
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