सफला एकादशी, इसका महत्व और व्रत विधि, पूजा विधि व्रत कथा और आरती 

पद्मपुराण में पौषमास के कृष्णपक्ष की एकादशी के विषय में युधिष्ठिर के पूछने पर भगवान श्रीकृष्ण बोले-बडे-बडे यज्ञों से भी मुझे उतना संतोष नहीं होता, जितना एकादशी व्रत के अनुष्ठान से होता है। इसलिए एकादशी-व्रत अवश्य करना चाहिए। पौषमास के कृष्णपक्ष में सफला नाम की एकादशी होती है। इस दिन भगवान नारायण की विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए। यह एकादशी कल्याण करने वाली है। एकादशी समस्त व्रतों में श्रेष्ठ है।

Significance of Saphala Ekadashi in Hindi सफला एकादशी का महत्व 

सफला एकादशी के बारे में माना जाता है कि सौ राजसूय यज्ञों को करने से भी इतना पुण्य फल प्राप्त नहीं होता है जितना फल सफला एकादशी का व्रत नियम और निष्ठा से करने पर मिलता है। सफला शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है समृद्ध होना, सफल होना। इसलिए जीवन में समृद्धि और सफलता के लिए सफला एकादशी का व्रत बहुत ही लाभकारी माना गया है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से सौभाग्य, धन वृद्धि, समृद्धि, सफलता और वृद्धि के द्वार खुलते हैं।

Safala Ekadashi Vrat Vidhi in Hindi सफला एकादशी व्रत विधि 

सफला एकादशी के दिन श्रीहरिके विभिन्न नाम-मंत्रों का उच्चारण करते हुए फलों के द्वारा उनका पूजन करें। धूप-दीप से देवदेवेश्वरश्रीहरिकी अर्चना करें। सफला एकादशी के दिन दीप-दान जरूर करें। रात को वैष्णवों के साथ नाम-संकीर्तन करते हुए जगना चाहिए। एकादशी का रात्रि में जागरण करने से जो फल प्राप्त होता है, वह हजारों वर्ष तक तपस्या करने पर भी नहीं मिलता।

व्रत विधान के विषय में जैसा कि श्री कृष्ण कहते हैं दशमी की तिथि को शुद्ध और सात्विक आहार एक समय लेना चाहिए. इस दिन आचरण भी सात्विक होना चाहिए. व्रत करने वाले को भोग विलास एवं काम की भावना को त्याग कर नारायण की छवि मन में बसाने हेतु प्रयत्न करना चाहिए. एकादशी तिथि के दिन प्रात: स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण कर माथे पर श्रीखंड चंदन अथवा गोपी चंदन लगाकर कमल अथवा वैजयन्ती फूल, फल, गंगा जल, पंचामृत, धूप, दीप, सहित लक्ष्मी नारायण की पूजा एवं आरती करें. संध्या काल में अगर चाहें तो दीप दान के पश्चात फलाहार कर सकते हैं। द्वादशी के दिन भगवान की पूजा के पश्चात कर्मकाण्डी ब्राह्मण को भोजन करवा कर जनेऊ एवं दक्षिणा देकर विदा करने के पश्चात भोजन करें।

जो भक्त इस प्रकार सफला एकादशी का व्रत रखते हैं व रात्रि में जागरण एवं भजन कीर्तन करते हैं उन्हें श्रेष्ठ यज्ञों से जो पुण्य मिलता उससे कहीं बढ़कर फल की प्राप्ति होती है।

सफला एकादशी व्रत कथा Safala Ekadashi Vrat Katha in Hindi 

एक थे राजा महिष्मति उनके पांच पुत्रों में सबसे बड़ा पुत्र बहुत ही अधर्मी था. वह सदा नीच कर्म करता था. शास्त्रों में जो भी पाप कर्म बताये गये हैं वह उन सभी मे लिप्त रहता था. धर्मात्मा राजा अपने पुत्र के स्वभाव एवं व्यवहार से अत्यंत दुखी था. पुत्र के इस नीच कर्म को देखकर राजा ने उसका नाम लुम्भक रख दिया और उसे उत्तराधिकार से वंचित कर देश त्यागने का आदेश दिया.

पिता द्वारा अधिकार से वंचित किये जाने एवं देश से बाहर निकाल दिए जाने पर लुम्भक धनहीन हो गया. जीवन की रक्षा के लिए तब लुम्भक ने राज्य में चोरी करना शुरू कर दिया. एक दिन कोतवालों ने उसे चोरी करते पकड़ लिया और राजा के समक्ष ले जाने लगे तब उसने अपने आपको राजकुमार बताया जिससे सैनिकों ने लुम्भक को मुक्त कर दिया. अब लुम्भक जंगल में कंद मूल, फल एवं पशु पक्षियों के मांस पर आश्रित रहने लगा.

सभाग्य से माघ महीने की कृष्ण पक्ष में दशमी तिथि को उसे कुछ भी खाने को नहीं मिला और वह यूं ही सो गया लेकिन भूख के कारण उसे नींद भी नहीं आ रही थी Šৠपर से सर्दी का मसम था उसका शरीर ठंढ से अकड़ गया और वह अचेत हो गया. अगले दिन जब उसकी नींद खुली तब दिन के दो-पहर गुजर चुके थे. वह जल्दी जल्दी कंद मूल इकट्ठा करने निकल चला क्योंकि उसे लग रहा था कि अगर आज रात भी भूखा रहना पड़ा तो मृत्यु निश्चित है.

कंद मूल एवं फल इकट्ठा करते हुए कैसे सांझ ढल गयी लुम्भक को पता भी नहीं चला. जब वह अपने आश्रयदाता पीपल वृक्ष के पास पहुंचा तब काफी रात हो गयी थी और वह काफी थक भी गया था. इस स्थिति में उसने इकट्ठज्ञ किये गये फलादि को पीपल की जड़ में रख कर विष्णु का नाम लेकर सो गया लेकिन ठंढ़ ने उसे इस रात भी सोने नहीं दिया. सुबह आकाशवाणी हुई कि तुमने अनजाने ही सफला एकादशी का व्रत कर लिया जिसके पुण्य से तुम राजा बनोगे और पुत्र सुख प्राप्त करोगे.

इस घटना के पश्चात, जंगल के जीवन से जब लुम्भक दुर्बल होता जा रहा था तो उसके मन में आया कि क्यों न फिर से चोरी किया जाय सो वह शहर की ओर चल पड़ा. संयोग कि बात है कि वह जिस घर में प्रवेश किया उसमें एक साधु रहता था. साधु के घर में उसे कुछ भी नहीं मिला लेकिन उसकी आहट से साधु की नींद खुल गयी और उसने उसे भोजन कराया और प्यार से बातें की.

साधु की बातों एवं व्यवहार से प्रभावित होकर लुम्भक साधु के साथ ही रहने लगा. साधु की संगत और संस्कार ने उसके विचार एवं व्यवहार को बदल दिया और वह सदाचारी बन गया. राजकुमार का स्वभाव जब परिवर्तित हो गया तब उस साधु ने बताया कि वह साधु और कोई नहीं उसका पिता राजा महिष्मति है.

महिष्मति ने अब लुम्भक को अपना उत्तराधिकारी बनाया और वह कई वर्षो तक धर्मानुसार शासन करता हुआ एक दिन अपने पुत्र को राज्य संप कर सन्यास ग्रहण कर श्री हरि की भक्ति में लीन हो गया और मृत्यु पश्चात मोक्ष को प्राप्त हुआ।

सफला एकादशी पारण विधि Saphala Ekadashi Paran Vidhi in Hindi 

एकादशी की व्रत द्वादशी तिथि यानि दूसरे दिन पारण किया जाता है। इसलिए द्वादशी तिथि को स्नानादि करके पूजन करें उसके बाद भोजन बनाकर किसी ब्राह्मण को खिलाएं और दान दक्षिणा देकर उन्हें विदा करें। तत्पश्चात स्वयं भी भोजन ग्रहण करें।

सफला एकादशी पर ना करें ये कार्य Saphala Ekadashi Niyam in Hindi 

शास्त्रों में बताया गया है कि व्यक्ति को सफला एकादशी के दिन तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए। माना जाता है कि इस दिन प्याज, लहसुन का सेवन करने से पूजा का उचित फल प्राप्त नहीं होता है और व्यक्ति से भगवान विष्णु नाराज हो जाते हैं।

साथ ही यह भी बताया गया है कि एकादशी व्रत के दिन व्यक्ति को किसी से भी वाद-विवाद नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से भी भगवान विष्णु क्रोधित हो सकते हैं और व्यक्ति के जीवन में कई प्रकार की समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।

शास्त्रों के अनुसार एकादशी के बाल व नाखून काटना अशुभ माना जाता है। माना जाता है कि ऐसा करने से धन की हानि होती है और ग्रह दोष का खतरा भी उत्पन्न हो सकता है। इसलिए एकादशी के दिन भूलकर भी यह कार्य ना करें।

एकादशी के दिन चावल के सेवन पर मनाही है। इसका दुष्परिणाम व्यक्ति को अगले-जन्म में भोगना पड़ता है। साथ ही इस दिन घर में झाड़ू के इस्तेमाल पर भी पाबंदी है। झाड़ू के उपयोग से छोटे जीवों की हत्या का भय बढ़ जाता है।

भगवान नारायण आरती 

जय जगदीश हरे, प्रभु! जय जगदीश हरे।

भक्तजनों के संकट, छन में दूर करे॥ \ जय ..

जो ध्यावै फल पावै, दु:ख बिनसै मनका।

सुख सम्पत्ति घर आवै, कष्ट मिटै तनका॥ \ जय ..

मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूँ किसकी।

तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी॥ \ जय ..

तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतर्यामी।

पार ब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी॥ \ जय ..

तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता।

मैं मुरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ \ जय ..

तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।

किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमती॥ \ जय ..

दीनबन्धु, दु:खहर्ता तुम ठाकुर मेरे।

अपने हाथ उठाओ, द्वार पडा तेरे॥ \ जय ..

विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।

श्रद्धा-भक्ति बढाओ, संतन की सेवा॥ \ जय ..

जय जगदीश हरे, प्रभु! जय जगदीश हरे।

मायातीत, महेश्वर मन-वच-बुद्धि परे॥ जय..

आदि, अनादि, अगोचर, अविचल, अविनाशी।

अतुल, अनन्त, अनामय, अमित, शक्ति-राशि॥ जय..

अमल, अकल, अज, अक्षय, अव्यय, अविकारी।

सत-चित-सुखमय, सुन्दर शिव सत्ताधारी॥ जय..

विधि-हरि-शंकर-गणपति-सूर्य-शक्तिरूपा।

विश्व चराचर तुम ही, तुम ही विश्वभूपा॥ जय..

माता-पिता-पितामह-स्वामि-सुहृद्-भर्ता।

विश्वोत्पादक पालक रक्षक संहर्ता॥ जय..

साक्षी, शरण, सखा, प्रिय प्रियतम, पूर्ण प्रभो।

केवल-काल कलानिधि, कालातीत, विभो॥ जय..

राम-कृष्ण करुणामय, प्रेमामृत-सागर।

मन-मोहन मुरलीधर नित-नव नटनागर॥ जय..

सब विधि-हीन, मलिन-मति, हम अति पातकि-जन।

प्रभुपद-विमुख अभागी, कलि-कलुषित तन मन॥ जय..

आश्रय-दान दयार्णव! हम सबको दीजै।

पाप-ताप हर हरि! सब, निज-जन कर लीजै॥ जय..

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