भगवन राम की समृति को समर्पित है रामनवमी 

रामनवमी एक ऐसा पर्व है, जिस पर चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को प्रतिवर्ष नए विक्रमी संवत्सर का प्रारंभ होता है और उसके आठ दिन बाद ही चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी को एक पर्व राम जन्मोत्सव का, जिसे रामनवमी के नाम से जाना जाता है, समस्त देश में मनाया जाता है। इस देश की राम और कृष्ण दो ऐसी महिमाशाली विभूतियां रही हैं, जिनका अमिट प्रभाव समूचे भारत के जनमानस पर सदियों से अनवरत चला आ रहा है।

रामनवमी भगवान राम की स्मृति को समर्पित है। राम सदाचार के प्रतीक हैं और इन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है। रामनवमी को राम के जन्मदिन की स्मृति में मनाया जाता है। राम को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है, जो पृथ्वी पर अजेय रावण (मनुष्य रूप में असुर राजा) से युद्ध लड़ने के लिए आए। राम राज्य (राम का शासन) शांति व समृद्धि की अवधि का पर्यायवाची बन गया है। रामनवमी के दिन श्रद्धालु बड़ी संख्या में उनके जन्मोत्सव को मनाने के लिए राम जी की मूर्तियों को पालने में झुलाते हैं…

भगवान श्री राम चैत्र शुक्ल तिथि नवमी को माता कौशल्या की गोद में शिशु रूप में अवतरित हुए थे। माना जाता है कि वे भगवान विष्णु के सातवें अवतार हैं। भगवान श्री राम जी ने मानव रूप में मर्यादा पूर्ण जीवन जीया। इसलिये वे मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम कहलाये। उनका सम्पूर्ण जीवन प्रेरणा व शिक्षा से पूर्ण एक खुली पुस्तक के समान है। उनका अपने भाईयों व माताओं से असीम प्रेम हमारे लिए शिक्षा प्रदान करता है। भगवान श्री राम जी माता कैकेई व माता सुमित्रा से भी उतना ही प्रेम व सम्मान करतें थे जितना वे माता कौशल्या से करते थे।

भगवान श्री राम जी अपने राज्यभिषेक की सूचना से न तो खुश थे और न वन जाने से दु:खी थे। वन जाना उन्होंने सहर्ष स्वीकार किया था और अपना सौभाग्य समझा था। भगवान श्री राम जी क्षत्रिय होते हुए भी शबरी, निषाद व केवट से अथाह प्रेम करतें थे। वे सभी जाति व वर्ण के लोगों से प्रेम करतें थे। भगवान श्री राम जी ने वानर-भालू जैसे जानवरों की सेना की सहायता से शक्तिशाली व विद्वान रावण का वध कर दिया था। इससे हमें यही शिक्षा मिलती है कि एकता में शक्ति होती हैं और सदैव जीत सत्य की ही होती हैं। जीत के लिए दृढ़ इच्छा शक्ति का भी होना अति आवश्यक है।

भारतीय समाज में मर्यादा, आदर्श,विनय,विवेक,लोकतांत्रिक मूल्यों और संयम का नाम राम है। राम परम शक्ति है। भगवान श्री राम जी के चरित्र में पग-पग पर मर्यादा, त्याग, प्रेम और लोक व्यवहार के दर्शन होते हैं। राष्ट्रीय संस्कृति की रक्षा, दुष्टों का विनाश और समाज सेवा का संकल्प भगवान श्री राम जी ने किशोरावस्था में ही ले लिया था।भगवान श्री राम जी का सम्पूर्ण जीवन भारतीय संस्कृति और राष्ट्रजीवन का पर्याय है। वह वर्तमान भारतीय समाज के उन युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है जो व्यसनों व प्रलोभनों में फँसकर भारत की महान सांस्कृतिक धरोहर से दूर हटते जा रहें हैं।

भगवान श्री राम जी के समान और कोई दूजा नाम नही है। भगवान श्री राम जी का नाम ह्रदय में वसा लेने मात्र से सारे काम-काज पूर्ण हो जाते हैं। जिनके स्मरण मात्र से सारे संकट दूर हो जाते हैं। ऐसे भगवान श्री राम जी को कोटि कोटि नमन।

मर्यादा पुरुषोत्तम 

भगवान विष्णु ने राम रूप में असुरों का संहार करने के लिए पृथ्वी पर अवतार लिया और जीवन में मर्यादा का पालन करते हुए मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए। आज भी मर्यादा पुरुषोत्तम राम का जन्मोत्सव तो धूमधाम से मनाया जाता है, पर उनके आदर्शों को जीवन में नहीं उतारा जाता। अयोध्या के राजकुमार होते हुए भी भगवान राम अपने पिता के वचनों को पूरा करने के लिए संपूर्ण वैभव को त्याग 14 वर्ष के लिए वन चले गए और आज देखें तो वैभव की लालसा में ही पुत्र अपने माता-पिता का काल बन रहा है।

राम का जन्म

पुरुषोत्तम भगवान राम का जन्म चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को पुनर्वसु नक्षत्र तथा कर्क लग्न में कौशल्या की कोख से हुआ था। यह दिन भारतीय जीवन में पुण्य पर्व माना जाता है। इस दिन सरयू नदी में स्नान करके लोग पुण्य लाभ कमाते हैं।

रामनवमी की पूजा

हिंदू धर्म में रामनवमी के दिन पूजा की जाती है। रामनवमी की पूजा के लिए आवश्यक सामग्री रोली, ऐपन, चावल, जल, फूल, एक घंटी और एक शंख हैं। पूजा के बाद परिवार की सबसे छोटी महिला सदस्य परिवार के सभी सदस्यों को टीका लगाती है। रामनवमी की पूजा में पहले देवताओं पर जल, रोली और ऐपन चढ़ाया जाता है, इसके बाद मूर्तियों पर मुट्ठी भरके चावल चढ़ाए जाते हैं। पूजा के बाद आरती की जाती है और आरती के बाद गंगाजल अथवा सादा जल एकत्रित हुए सभी जनों पर छिड़का जाता है।

राम नवमी का महत्व

राम नवमी के दिन लोग स्नान आदि से निवृत होकर व्रत का संकल्प करते हैं। उसके बाद सूर्योदय से लेकर अगले दिन के सूर्योदय तक व्रत रखते हैं। राम नवमी के दिन भगवान श्री राम की विधि विधान से पूजा की जाती है। इस दिन मंदिरों में रामचरितमानस की चौपाइयां सुनने को मिलती हैं। लोग अपने मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए भगवान श्रीराम के चरणों में श्रद्धा के पुष्प अर्पित करते हैं।

चैत्र शुक्ल नवमी के दिन भगवान राम का जन्म हुआ, इसलिए इस तिथि का महत्व ​अधिक है क्योंकि भगवान राम तो स्वयं ही भगवान विष्णु के अवतार हैं। इस दिन भगवान स्वयं धरती पर जन्मे थे। ऐसे में लोग उनकी आराधना कर अपने मनोकामनाओं की पूर्ति कर लेना चाहते हैं।

राम नवमी पूजा विधि (Ram Navami Puja Vidhi)

नवमी की तिथि वाले दिन प्रात:काल स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें. पूजा स्थान को शुद्ध करने के बाद पूजा आरंभ करें. हाथ में अक्षत लेकर व्रत का संकल्प लें. भगवान राम का पूजन आरंभ करें. पूजन में गंगाजल, पुष्प, 5 प्रकार के फल, मिष्ठान आदि का प्रयोग करें. रोली, चंदन, धूप और गंध आदि से षोडशोपचार पूजन करें. तुलसी का पत्ता और कमल का फूल अर्पित करें. पूजन करने के बाद रामचरितमानस, रामायण और रामरक्षास्तोत्र का पाठ करना अति शुभ माना गया है. पूजा समापन से पूर्व भगवान राम की आरती करें.

Ramnavami fasting रामनवमी व्रत

रामनवमी के दिन जो व्यक्ति पूरे दिन उपवास रखकर भगवान श्रीराम की पूजा करता है तथा अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार दान-पुण्य करता है, वह अनेक जन्मों के पापों को भस्म करने में समर्थ होता है।

जानें रामनवमी व्रत कथा

राम, सीता और लक्ष्मण वन में जा रहे थे। सीता जी और लक्ष्मण को थका हुआ देखकर राम जी ने थोड़ा रुककर आराम करने का विचार किया और एक बुढि़या के घर गए। बुढि़या सूत कात रही थी। बुढि़या ने उनकी आवभगत की और बैठाया, स्नान-ध्यान करवाकर भोजन करवाया। राम जी ने कहा, ‘बुढि़या माई, पहले मेरा हंस मोती चुगाओ, तो मैं भी करूं।’ बुढि़या बेचारी के पास मोती कहां से आवें, सूत कात कर गरीब गुजारा करती थी। अतिथि को न कहना भी वह ठीक नहीं समझती थी। दुविधा में पड़ गई। अतः दिल को मजबूत कर राजा के पास पहुंच गई और अंजली मोती देने के लिए विनती करने लगी। राजा अचंभे में पड़ा कि इसके पास खाने को दाने नहीं हैं और मोती उधार मांग रही है। इस स्थिति में बुढि़या से मोती वापस प्राप्त होने का तो सवाल ही नहीं उठता।

आखिर राजा ने अपने नौकरों से कहकर बुढि़या को मोती दिला दिए। बुढि़या मोती लेकर घर आई, हंस को मोती चुगाए और मेहमानों की आवभगत की। रात को आराम कर सवेरे राम जी, सीता जी और लक्ष्मण जी जाने लगे। राम जी ने जाते हुए उसके पानी रखने की जगह पर मोतियों का एक पेड़ लगा दिया। दिन बीतते गए और पेड़ बड़ा हुआ, पेड़ बढ़ने लगा, पर बुढि़या को कुछ पता नहीं चला। मोती के पेड़ से पास-पड़ोस के लोग चुग-चुगकर मोती ले जाने लगे। एक दिन जब बुढि़या उसके नीचे बैठी सूत कात रही थी, तो उसकी गोद में एक मोती आकर गिरा।

बुढि़या को तब ज्ञात हुआ। उसने जल्दी से मोती बांधे और अपने कपड़े में बांधकर वह किले की ओर ले चली। उसने मोती की पोटली राजा के सामने रख दी। इतने सारे मोती देख राजा अचंभे में पड़ गया। उसके पूछने पर बुढि़या ने राजा को सारी बात बता दी। राजा के मन में लालच आ गया। वह बुढि़या से मोती का पेड़ मांगने लगा। बुढि़या ने कहा कि आस-पास के सभी लोग ले जाते हैं। आप भी चाहें तो ले लें। मुझे क्या करना है।

राजा ने तुरंत पेड़ मंगवाया और अपने दरबार में लगवा दिया। पर रामजी की मर्जी, मोतियों की जगह कांटे हो गए और आते-आते लोगों के कपड़े उन कांटों से खराब होने लगे। एक दिन रानी की ऐड़ी में एक कांटा चुभ गया और पीड़ा करने लगा। राजा ने पेड़ उठवाकर बुढि़या के घर वापस भिजवा दिया। पेड़ पर पहले की तरह से मोती लगने लगे। बुढि़या आराम से रहती और खूब मोती बांटती।

भजु दीनबंधु दिनेश दानव, दैत्यवंश-निकन्दंन |

रघुनन्द आनंदकंद कौशलचन्द दशरथ-नन्दनं ||

रामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएं 

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