चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को कामदा एकादशी मनाई जाती है, इस दिन विष्णु भगवान की पूजा की जाती है। वराह पुराण के अनुसार इस दिन व्रत करने से हर तरह के दुख और कष्टों से मुक्ति मिलती है, हिंदू नववर्ष के बाद आने वाली कामदा एकादशी पहली एकादशी होती है। संस्कृत में कामदा का अर्थ है कि जो मांगा जाए उसे देना इसी कारण से कामदा एकादशी का व्रत पूरी श्रद्धा से किया जाता है। माना जाता है कि जो व्यक्ति कामदा एकादशी का व्रत पूरी श्रद्धा से रखता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

कामदा एकादशी का महत्व

कामिका एकादशी को शास्त्रों में सभी पापों से मुक्त कराने वाली एकादशी कहा गया है। कामिका एकादशी का व्रत मनुष्य को उसके जीवन के सभी जाने अनजानें पापों से मुक्ति दिलाता है। माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से सभी देवता, गंधर्व और सूर्य की पूजा का फल मिल जाता है।

शास्त्रों में एक और बात का वर्णन किया गया है कि भगवान विष्णु के आराध्य भगवान शिव है और भगवान शिव के आराध्य भगवान विष्णु ऐसे में सावन मास में आने से कामिका एकादशी का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है।

कामिका एकादशी के बारे में खुद भगवान कृष्ण ने अर्जुन को बताया था भगवान कृष्ण के अनुसार जो व्यक्ति कामिका एकादशी का व्रत रखता है। उसे अश्वमेघ यज्ञ के बराबर फल मिलता है। कृष्ण के अनुसार अपने पापों से मुक्ति पाने का इससे सरल उपाय संसार में कोई और नहीं है ।

कामिका एकादशी का व्रत न केवल सभी पापों से मुक्ति देता है। बल्कि जीवन में धन के साथ-साथ सुख और समृद्धि भी देता है। कामिका एकादशी का पुण्यफल इतना है कि जब तक मनुष्य धरती लोक पर होता है। वह जीवन के सभी सुखों का भोग करता है और मरने के बाद उसे बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है।

कामदा एकादशी पूजा विधि 

1. सबसे पहले साधक को सूर्योदय से पहले उठना चाहिए। उसके बाद स्नान आदि करके सफेद वस्त्र धारण करने चाहिए।

2. इसके बाद कलश की स्थापना करें। कलश पर आम के पल्लव, खरबूजा और लाल चुनरी बांध कर रखें।

3. इसके बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें और विधिवत पूजा करें

4. भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें और रात भर भगवान विष्णु का कीर्तन करें।

5. एकादशी के अगले दिन यानी द्वादशी के दिन व्रत का पारण करें।

कामिका एकादशी व्रत के नियम 

1. कामिका एकादशी व्रत के नियम दशमी तिथि से शुरु हो जाते हैं। इसलिए कामिका एकादशी के व्रत के नियमों का पालन दशमी तिथि से ही करें।

2. कामिका एकादशी के दिन भगवान विष्णु का पूजन तुलसी से करें।

लेकिन कामिका एकादशी के दिन तुलसी के पत्ते न तोड़े।

3. कामिका एकादशी के दिन भगवान विष्णु का पूजन पीले फूलों और पीली मिठाई से ही करना चाहिए।

4. कामिका एकादशी के पूजा के बाद भगवान विष्णु की कथा अवश्य पढ़ें। कथा पढ़े बिना कोई भी व्रत पूर्ण नहीं होता।

5. कामिका एकादशी के व्रत का पारण दूसरे दिन यानी द्वादशी के दिन किया जाता है। इसलिए कामिका एकादशी का व्रत दूसरे दिन ही खोलें।

कामदा एकादशी व्रत के फल 

1. कामिका एकादशी का व्रत रखने वाले व्यक्ति को अश्वमेघ यज्ञ के बराबर फल मिलता है।

2. कामिका एकादशी पर भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करने पर गंधर्व, सूर्य और सभी देवताओं की पूजा का फल प्राप्त होता है।

3. कामिका एकादशी का व्रत रखने वाले व्यक्ति को भूमि दान के बराबर फल मिलता है।

4. कामिका एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा आराधना करने से पितृदोष से मुक्ति मिलती है

5. कामिका एकादशी पर भगवान विष्णु के साथ भगवान शिव की पूजा करने से दोनों देवों के पूजन का फल प्राप्त होता है।

भगवान विष्णु के मंत्र bhagwan Vishnu ke mantra

1. ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान। यस्य स्मरेण मात्रेण हृतं नष्टं च लभ्यते ।।

2. ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर भूरि घेदिन्द्र दित्ससि ।

ॐ भूरिदा त्यसि श्रुतः पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि ।

3. ॐ नमो नारायण श्री मन नारायण नारायण हरि हरि ।

4. ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि ।

तन्नो विष्णु प्रचोदयात् ।।

5. श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे ।

हे नाथ नारायण वासुदेवाय ।।

कामदा एकादशी व्रत कथा Kamda Ekadashi Vrat Katha

धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवन्! मैं आपको कोटि-कोटि नमस्कार करता हूँ। अब आप कृपा करके चैत्र शुक्ल एकादशी का महात्म्य कहिए। श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे धर्मराज! यही प्रश्न एक समय राजा दिलीप ने गुरु वशिष्ठजी से किया था और जो समाधान उन्होंने किया वो सब मैं तुमसे कहता हूँ ।

प्राचीनकाल में भोगीपुर नामक एक नगर था। वहाँ पर अनेक ऐश्वर्यों से युक्त पुण्डरीक नाम का एक राजा राज्य करता था। भोगीपुर नगर में अनेक अप्सरा, किन्नर तथा गन्धर्व वास करते थे। उनमें से एक जगह ललिता और ललित नाम के दो स्त्री-पुरुष अत्यंत वैभवशाली घर में निवास करते थे। उन दोनों में अत्यंत स्नेह था, यहाँ तक कि अलग-अलग हो जाने पर दोनों व्याकुल हो जाते थे।

एक समय पुण्डरीक की सभा में अन्य गंधर्वों सहित ललित भी गान कर रहा था। गाते-गाते उसको अपनी प्रिय ललिता का ध्यान आ गया और उसका स्वर भंग होने के कारण गाने का स्वरूप बिगड़ गया। ललित के मन के भाव जानकर कार्कोट नामक नाग ने पद भंग होने का कारण राजा से कह दिया।

तब पुण्डरीक ने क्रोधपूर्वक कहा कि तू मेरे सामने गाता हुआ अपनी स्त्री का स्मरण कर रहा है। अतः तू कच्चा माँस और मनुष्यों को खाने वाला राक्षस बनकर अपने किए कर्म का फल भोग पुण्डरीक के श्राप से ललित उसी क्षण महाकाय विशाल राक्षस हो गया। उसका मुख अत्यंत भयंकर, नेत्र सूर्य-चंद्रमा की तरह प्रदीप्त तथा मुख से है। संसार में इसके बराबर कोई और दूसरा व्रत नहीं है। इसकी कथा पढ़ने या सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है।

भगवान विष्णु की आरती Bhagwan Vishnu Ki Aarti

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे ।

भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे ॥

जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे ॥ ॐ जय…॥ तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा ॥ ॐ जय… ॥

सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का ॥ ॐ जय…॥

मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।

तुम बिनु और न दूजा, आस करूं जिसकी ॥ ॐ जय…॥ तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी ॥

पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी ॥ ॐ जय… ॥

तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता ।

मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता ॥ ॐ जय…॥ तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति ।

किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति ॥ ॐ जय… ॥

दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे ।

विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा

श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा ॥ ॐ जय…॥

तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा।

जगदीश्वरजी की आरती जो कोई नर गावे ।

कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय… ॥

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(Disclaimer: इस स्टोरी में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। RadheRadheje इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन तथ्यों को अमल में लाने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें)