भारत का वाराणसी शहर अपने धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के लिए मशहूर है। यहां हर साल लाखों श्रद्धालु गंगा घाट के दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं। कहने को तो वाराणसी या बनारस में कई मंदिर हैं, लेकिन रत्नेश्वर मंदिर जैसा कोई और मंदिर नहीं है। इसकी एक खासियत इसे अन्य मंदिरों से अलग बनाती है। दरअसल, अन्य मंदिरों के अलावा यह मंदिर तिरछा खड़ा हुआ है।

लेकिन यह एक ऐसी इमारत है, जो पीसा से भी ज्यादा झुकी हुई और लंबी है। पीसा टॉवर लगभग 4 डिग्री तक झुका हुआ है, लेकिन वाराणसी में मणिकर्णिका घाट के पास स्थित रत्नेश्वर मंदिर लगभग 9 डिग्री तक झुका हुआ है। कुछ रिपोर्टों के अनुसार, मंदिर की ऊंचाई 74 मीटर है, जो पीसा से 20 मीटर ज्यादा है। एतिहासिक रत्नेश्वर मंदिर सदियों पुराना है।

6 महीने तक गंगा जी में डूबा रहता हैं काशी का यह मंदिर, सावन महीने में माँ गंगा करती हैं रत्नेश्वर महादेव का अभिषेक 

मंदिर बनाने की इच्छा जताई 

यह मंदिर स्थित है वाराणसी के मणिकर्णिका घाट के ठीक बगल में. इस मंदिर में भगवान शिव विराजमान हैं. इन्हें रत्नेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है. रत्नेश्वर महादेव घाट के बिल्कुल किनारे गंगा नदी के तलहटी पर बना हुआ है. लगभग 400 वर्ष पहले इसे महारानी अहिल्याबाई की दासी रत्नाबाई ने बनवाया था. कहा जाता है कि यह मंदिर बनने के ठीक बाद ही यह नदी के दाहिने ओर झुक गया था. बताया जाता है कि रानी अहिल्याबाई की दासी रत्नाबाई ने मंदिर बनाने की इच्छा जताई थी.

नाराज होकर दे द‍िया श्राप 

उन्‍होंने बताया क‍ि रानी अहिल्याबाई ने गंगा किनारे की यह जमीन रत्नाबाई को दे दी थी, जिसके बाद रत्नाबाई ने इस मंदिर को बनवाना शुरू किया. मंदिर निर्माण के दौरान कुछ रुपयों की कमी आई तो रत्नाबाई ने रानी अहिल्याबाई से रुपए लेकर के इस मंदिर का निर्माण पूर्ण कराया. मंदिर बनने के बाद जब रानी अहिल्याबाई ने मंदिर देखने की इच्छा जताई और मंदिर के पास पहुंचीं तो इसकी खूबसूरती देखकर उन्होंने दासी रत्नाबाई से इस मंदिर को नाम न देने की बात कही. इसके बाद रत्नाबाई ने इसे अपने नाम से जोड़ते हुए रत्नेश्वर महादेव का नाम दिया. इससे नाराज होकर अहिल्याबाई ने श्राप दिया और माना जाता है कि जैसे मंदिर का यह नाम पड़ा यह दाहिनी ओर झुक गया.

शिव की लघु कचहरी 

सावन के महीने में भी रत्नेश्वर महादेव में न तो बम भोले की गूंज सुनाई देती है न ही दर्शन- पूजन होता है. स्थानीय लोगों की मानें तो यह मंदिर श्रापित होने के कारण ना ही कोई भक्त यहां पूजा करता और ना ही मंदिर में विराजमान भगवान शिव को जल चढ़ाता है. आसपास के लोगों का कहना है की यदि मंदिर में पूजा की तो घर में अनिष्ट होना शुरू हो जाता है. खास बात यह है कि मंदिर के झुकने का क्रम अब भी कायम है. मंदिर का छज्जा जमीन से आठ फुट ऊंचाई पर था, लेकिन वर्तमान में यह ऊंचाई सात फुट हो गई है. मंदिर के गर्भगृह में कभी भी स्थिर होकर खड़ा नहीं रहा जा सकता है. गर्भगृह में एक या दो नहीं बल्कि, कई शिवलिंग स्थापित हैं.

इस मंदिर में भगवान शिव के रूप में शिवलिंग स्थापित किया गया है जो कि जमीन के 10 फीट नीचे है. हालांकि, यह मंदिर साल में 8 महीने गंगाजल से आधा डूबा हुआ रहता है और 4 महीने पानी के बाहर, इसके कारण इस मंदिर के गर्भगृह में कभी भी भगवान शिव का दर्शन नहीं हो पाता है. वह मिट्टी में दबे ही रहते हैं.

औघड़दानी भगवान शिव और उनकी प्रिय नगरी काशी दोनों निराली है। सावन महीने में माँ गंगा स्वयं रत्नेश्वर महादेव का जलाभिषेक करती हैं। महाश्मशान के पास बसा करीब 300 वर्ष पुराना यह दुर्लभ मन्दिर आज भी लोगों के लिए आश्चर्य ही है।

कुछ लोग इस मंदिर को काशी करवट के नाम से बताते हैं किंतु यह मंदिर रत्नेश्वर महादेव जी का है काशी करवट बनारस की कचौड़ी गली में स्थित है।

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