माला में सबसे पहले मनकों (पिरोई जाने वाली मणियों-दानों) की संख्या पर ध्यान दिया जाना चाहिए पूजा में 15, 27 या 54 दानों की माला सामान्य कही गई है। 108 दानों की माला पूजा के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी गई है। यदि हम 108 को आपस में जोडें तो योग 9 (1+0+8) होगा। नौ का अंक सर्वश्रेष्ठ अंक है। पूजा करते समय माला को शुद्ध जल से धो लेना चाहिए तथा गुरु दीक्षा में दिया गया मंत्र और माला को जपने की विधि सीख लेनी चाहिए माला फेरते समय शरीर स्थिर और एकाग्र होना चाहिए। इससे सिद्धि मिलती है।
माला का आकार-प्रकार माला सही गुंथी हुई होनी चाहिए। उसका बार-बार टूटना शुभ नहीं होता। माला को ढक कर हृदय के समीप लाकर जप करना चाहिए। रुद्राक्ष की माला सर्वश्रेष्ठ मानी गई है। अलग-अलग मुखों के रुद्राक्ष की माला से अलग-अलग सिद्धि प्राप्त होती है। सामान्यतः पंचमुखी रुद्राक्ष की माला का प्रयोग किया जाता है।
हाथी दांत के मनकों से बनी हुई माला: यह गणेश जी की उपासना में विशेष लाभदायक होती है। यद्यपि यह बहुत मूल्यवान होती है, इसलिए साधारण लोग इसका उपयोग नहीं कर पाते।
कमलगट्टे की माला: प्रयोग भेद से यह माला शत्रु दमन और धन प्राप्ति के लिए प्रयुक्त होती है।
पुत्रजीवा की माला: इसका प्रयोग संतान प्राप्ति हेतु की जाने वाली साधना में होता है। यह अल्प मोती माला है।
चांदी की माला: पुष्टि कर्म के अंतर्गत, सात्विक अभीष्ट की पूर्ति हेतु इस माला को बहुत प्रभावी माना जाता है।
मूंगे की माला: मूंगे की माला गणेश और लक्ष्मी की साधना में प्रयुक्त होती है। धन-संपत्ति, द्रव्य और स्वर्ण आदि की प्राप्ति की कामना से की जाने वाली साधना की सफलता हेतु मूंगे की माला को अत्यधिक प्रभावशाली माना गया है।
कुश ग्रंथि की माला: कुश नामक घास की जड़ को खोदकर उसकी गांठों से बनाई गई यह कुश ग्रंथि माला सभी प्रकार के कायिक, वाचिक और मानसिक विकारों का शमन करके साधक को निष्कलुष, निर्मल और सतेज बनाती है। इसके प्रयोग से व्याधियों का नाश होता है।
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चंदन की माला: यह दो प्रकार की होती है- सफेद और लाल चंदन की। सफेद चंदन की माला का प्रयोग शांति पुष्टि कर्मों में तथा राम, विष्णु आदि देवताओं की उपासना में किया जाता है। जबकि लाल चंदन की माला गणेशोपासना तथा साधना (दुर्गा, लक्ष्मी, त्रिपुरसुंदरी) आदि की साधना के लिए प्रयुक्त होती है। धन-धान्य की प्राप्ति के लिए की जाने वाली साधना में इसका विशेष रूप से प्रयोग किया जाता है।
तुलसी की माला: वैष्णव भक्तों के लिए राम और कृष्ण की उपासना हेतु यह माला उत्तम मानी गई है। इसका आयुर्वेदिक महत्व भी है। इस माला को धारण करने वाले या जपने वाले को पूर्ण रूप से शाकाहारी होना चाहिए तथा प्याज व लहसुन से सर्वथा दूर रहना चाहिए।
स्वर्ण माला भी धन प्राप्ति और कामना पूर्ति की साधना में उपयोगी होती है।
स्फटिक माला सौम्य प्रभाव से युक्त होती है। इसके धारक को चंद्रमा और शिवजी की विशेष कृपा प्राप्त हो जाती है। सात्विक और पुष्टि कार्यों की साधना के लिए यह बहुत उत्तम मानी जाती है।
शंख माला भी कुछ विशेष तांत्रिक प्रयोगों में प्रभावशाली रहती है। शिवजी की पूजा-साधना और सात्विक कामनाओं की पूर्ति हेतु किए जाने वाले जप तथा सामान्य रूप से धारण करने के लिए भी इसे उत्तम माना गया है।
वैजयन्ती माला विष्णु भगवान की आराधना में प्रयुक्त होती है। वैष्णव भक्त इसे सामान्य रूप से भी धारण करते हैं।
हल्दी की माला गणेश पूजा के लिए प्रयोग में लाई जाती है। बृहस्पति ग्रह तथा देवी बगलामुखी की साधना में भी इसका प्रयोग किया जाता है
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डिसक्लेमर इस लेख में दी गई सूचनाएं सामान्य जानकारी और मान्यताओं पर आधारित हैं. ( RadheRadheje इनकी पुष्टि नहीं करता है.)
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