तुलसी माला धारण करने से होती है मोक्ष की प्राप्ति

हिंदू संस्कृति में एक पवित्र संयत्र है तुलसी माला। विष्णु प्रिया तुलसी जीव का परम कल्याण करने वाली है। जिस मनुष्य के कंठ में तुलसी होती है, वह यम की त्रास नहीं पाते। ऐसे जीव विष्णु के लोक को प्राप्त होते हैं। जन्म मरण के चक्कर से छूट जाते हैं और अंततः मोक्ष को प्राप्त होते हैं।

तुलसी माला धारण करने से मिलता है संपूर्ण तीर्थों का फल

तुलसी कंठ में धारण करते हुए स्नान करने वाले मनुष्य को संपूर्ण तीर्थों का फल प्राप्त होता है। जिस प्रकार

सौभाग्यवती नारी का परम श्रृंगार है कुमकुम, मंगलसूत्र इत्यादि। यदि नारी की मांग में कुमकुम व गले में मंगलसूत्र होता है, तो वह उसके सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है, उसी प्रकार माथे पर तिलक और कंठ में तुलसी कंठी माला, विष्णु भक्तों के सौभाग्य, समर्पण व सान्निध्य के प्रतीक हैं। जो मनुष्य भगवान विष्णु के प्रति समर्पण कर उनकी शरण ग्रहण कर उन्हीं को अपना सर्वस्व मानता है, वह तुलसी कंठी अवश्य धारण करता है। जिस तन पर तुलसी माला होती है वह भगवान का भोग हो जाता है। भगवान उसे सहजता से स्वीकार करते हैं।

तुलसी धारण के नियम

विष्णु भगवान में आस्था रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति को तुलसी माला अवश्य धारण करनी चाहिए। लेकिन तुलसी की कंठी को धारण करने वाले व्यक्ति को कुछ नियमों का पालन करना चाहिए:

तुलसी माला धारण करने वाले मनुष्य को सात्विक भोजन करना चाहिए अर्थात प्याज, लहसुन, मांसाहार का त्याग करना चाहिए। प्याज, लहसुन और मांसाहार से काम उत्तेजना को बढ़ावा मिलता है, इसलिए यह निषेध है। क्योंकि यह भक्ति में बाधा उत्पन्न करता है।

किसी भी स्थिति अथवा परिस्थिति में तुलसी की माला को तन से अलग नहीं करना चाहिए।

चारों प्रकार के आश्रमों में निवास करने वाले मनुष्य ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, संन्यासी अथवा वानप्रस्थ चारों ही आश्रम के मनुष्य इसे सरलता व सुगमता से धारण कर सकते हैं ।

परिवार में जन्म अथवा मृत्यु के समय में भी तुलसी माला का त्याग नहीं करना चाहिए अर्थात इसे अपनी देह से अलग नहीं करना चाहिए।

ध्यान दें कि मनुष्य जब मृत्यु शैया पर होता है तो अंत समय में उसके मुख में भी तुलसी दल और गंगाजल डाला जाता है। इसी प्रकार जब कंठ में तुलसी की माला धारण की हुई होती है तो वह परम कल्याणकारी होती है।

तुलसी माला की पहचान: 

तुलसी माला को पानी में 30 मिनट भिगोकर रख दें । यदि वह रंग छोड़ने लगे तो माला नकली है।

वैज्ञानिक दृष्टि से भी तुलसी में अनेकों प्रकार के औषधीय गुण विद्यमान हैं।

तुलसी एक उत्कृष्ट रसायन है यह अनेकों प्रकार के रोगों से मुक्ति देता है।

तुलसी माला धारण करने वाले मनुष्यों को रक्त विकार, वायु ज्वर, खांसी आदि दोषों से निवारण होता है । हृदय रोग, कैंसर, त्वचा के रोग वात, पित्त व हड्डियों के रोगों से निदान में सहायक होती है।

तुलसी माला धारण करने से चर्म रोग और मनोरोग में लाभ होता है। बुद्धि एकाग्र होती है मन में सात्विकता, आत्मबल व सकारात्मक ऊर्जा का भाव बढ़ता है।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार

तुलसी की माला पहनने से सभी प्रकार के सुख प्राप्त होते हैं। ऐसे व्यक्ति को कभी किसी की बुरी नजर नहीं लगती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कहा जाता है कि तुलसी की माला को पहनने से पहले तुलसी की माला को दूध और गंगाजल से पवित्र कर लेना चाहिए। तुलसी की माला पहनने से पहले किसी भी श्रीकृष्ण के मंदिर में जाकर श्रीहरि भगवान विष्णु या श्रीकृष्ण की पूजा जरूर कर लेनी चाहिए।

आइए जानते हैं कि आखिर विष्णु भक्तों के लिए तुलसी कंठी माला धारण करना अति आवश्यक क्यों है: 

पौराणिक कथाओं के अनुसार श्री हरि विष्णु ने तुलसी को यह वरदान दिया कि मैं केवल तुम्हारे द्वारा सुशोभित भोग को ही ग्रहण करूंगा। इसीलिए जिस भोग में तुलसी दल अपत किया जाता है, नारायण भगवान केवल उसी भोग को ग्रहण करते हैं। ठीक उसी प्रकार जिस विष्णु भक्त के कंठ में तुलसी कंठी माला धारण की होती है, भगवान उस मनुष्य को सहजता व सुगमता से स्वीकार करते हैं। अपनी शरण में लेते हैं तथा अंतत: अपने लोक में सुंदर स्थान प्रदान करते हैं। तुलसी विहीन भोजन व तुलसी विहीन मनुष्य का भगवान विष्णु त्याग कर देते हैं। यही कारण है कि विष्णु भक्तों का परम श्रेष्ठ अलंकार है तुलसी कंठी

तुलसी की माला

कंठ में तुलसी धारण करने से प्रत्येक क्षण भगवान को तुलसी दल अर्पण करने का फल प्राप्त होता है।

तुलसी के नियम ही सात्विकता की ओर बढ़ने वाले कदम हैं जिससे सच्चा कल्याण होता है।

नमो: तुलसी कल्याणी नमो: विष्णुप्रिये शुभ्रे। 

नमो: मोक्षप्रदे देवी नमो: संपत् प्रदायिनी।।

तुलसी प्रत्येक प्रकार के वास्तुदोष को समाप्त करती है तथा सकारात्मक ऊर्जा का स्रोत है।

तुलसी वायु प्रदूषण को रोकने में सहायक है इसलिए अधिक से अधिक तुलसी रोपण करनी चाहिए। जिस आंगन में तुलसी सिंचित होती है वहां सदैव नारायण का वास रहता है।

 

नोट: इस लेख में दी गई सूचनाएं सामान्य जानकारी और मान्यताओं पर आधारित हैं. ( RadheRadheje इनकी पुष्टि नहीं करता है.)