Shardiya Navratri नवरात्रि एक हिंदू पर्व है। नवरात्रि एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है ‘नौ रातें’। इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति- देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है। दसवाँ दिन दशहरा के नाम से प्रसिद्ध है। नवरात्रि पर्व वर्ष में दो बार मनाते है। चैत्र और अश्विन प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाता है। नवरात्रि के नौ रातों में दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा होती है, जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं । इन नौ दिनों के दौरान, शक्ति- देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है। दुर्गा का मतलब जीवन के दुख को हटानेवाली होता है। नवरात्रि एक महत्वपूर्ण प्रमुख त्योहार है, जिसे पूरे भारत में महान उत्साह के साथ मनाया जाता है।
देवी के नौ रुप
शैलपुत्री– इसका अर्थ- पहाड़ों की पुत्री होता है। ब्रह्मचारिणी इसका अर्थ- ब्रह्मचारीणी चंद्रघंटा– इसका अर्थ- चाँद की तरह चमकने वाली। कूष्माण्डा इसका अर्थ- पूरा जगत उनके पैर में है। स्कंदमाता– इसका अर्थ- कार्तिक स्वामी की माता। कात्यायनी– इसका अर्थ- कात्यायन आश्रम में जन्मि। कालरात्रि– इसका अर्थ- काल का नाश करने वाली। महागौरी इसका अर्थ- सफेद रंग वाली मां। सिद्धिदात्री– इसका अर्थ- सर्व सिद्धि देने वाली
1. शैलपुत्री
शैल का अर्थ है शिखर, दुर्गा को शैल पुत्री क्यों कहा जाता है, यह बहुत दिलचस्प बात है। जब ऊर्जा अपने शिखर पर होती है, केवल तभी आप शुद्ध चेतना या देवी रूप को देख, पहचान और समझ सकते हैं। उससे पहले, आप नहीं समझ सकते, क्योंकि इसकी उत्त्पति शिखर से ही होती है। किसी भी अनुभव के शिखर से यदि आप 100% क्रोधित हैं, तो आप देखें कि किस प्रकार क्रोध आपके सारे शरीर को जला देता है।
किसी भी चीज़ का 100% आपके सम्पूर्ण अस्तित्त्व को घेर लेता है, तब ही वास्तव में दुर्गा की उत्पत्ति होती है। मां शैलपुत्री को सफेद चीजों का भोग लगाया जाता है, और अगर यह गाय के घी में बनी हों तो व्यक्ति को रोगों से मुक्ति मिलती है, और हर तरह की बीमारी दूर होती हैं।
2. ब्रह्मचारिणी
ब्रह्मचारिणी का अर्थ है अनंत में व्याप्त अनंत में गतिमान असीम ब्रह्मा असीम है जिसमें सबकुछ समाहित है। आप यह नहीं कह सकते कि मैं इसे जानता हूँ क्योंकि यह असीम है। जिस क्षण आप जान जाते हैं यह सीमित बन जाता है और अब आप यह नहीं कह सकते कि मैं इसे नहीं जानता क्योंकि यह वहां है तो आप कैसे नहीं जानते ? क्या आप कह सकते हैं कि मैं अपने हाथ को नहीं जानता। आपका हाथ तो वहां है न ? इसलिये आप इसे जानते हैं। ब्रह्म असीम है इसलिये आप इसे नहीं जानते आप इसे जानते हैं, और फिर भी आप इसे नहीं जानते। दोनों इसीलिये यदि कोई आप से पूछता है तो आपको चुप रहना पड़ता है।
जो लोग इसे जानते हैं वे बस चुप रहते हैं क्योंकि यदि मैं कहता हूँ कि “मैं नहीं जानता” मैं पूर्णत: गलत हूँ और यदि मैं कहता हूँ, कि “मैं जानता हूँ” तो मैं उस जानने को शब्दों द्वारा बुद्धि द्वारा सीमित कर रहा हूँ। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी वो है, जोकि असीम में विद्यमान है, असीम में गतिमान है। गतिहीन नहीं, बल्कि अनंत में गतिमान। ये बहुत ही रोचक है, एक गतिमान होना दूसरा विद्यमान होना। ब्रह्मचर्य का अर्थ है तुच्छता में न रहना आंशिकता से नहीं पूर्णता से रहना। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी चेतना है जोकि सर्व-व्यापक है। मां ब्रह्मचारिणी को मिश्री चीनी और पंचामृत का भोग लगाया जाता है। इन्हीं चीजों का दान करने से लंबी आयु का सौभाग्य भी पाया जा सकता है।
3. चन्द्रघंटा
प्राय: हम अपने मन से ही उलझते रहते हैं। सभी नकारात्मक विचार हमारे मन में आते हैं ईर्ष्या आती है घृणा आ आती है, और आप उनसे छुटकारा पाने के लिये और अपने मन को साफ़ करने के लिये संघर्ष करते हैं। मैं कहता हूँ कि ऐसा नहीं होने वाला। मैं आप अपने मन से छुटकारा नहीं पा सकते। आप कहीं भी भाग जायें चाहे हिमालय पर ही क्यों न भाग जायें आपका मन आपके साथ ही भागेगा। यह आपकी छाया के समान है। हाँ प्राणायाम सुदर्शन क्रिया बहुत सहायक हो सकते हैं पर फिर भी मन सामने आ ही जाता है।
मन को घंटे की ध्वनि के समान स्वीकार करें। घंटे की ध्वनि एक होती है यह कई नहीं हो सकती यह केवल एक ही ध्वनि उत्पन्न कर सकता है सभी छायाओं के बीच मन में एक ही ध्वनि सारी अस्तव्यस्तता दैवीय शक्ति का उद्भव करती है। वो है चन्द्रघंटा अर्थात् चन्द्र और घंटा मां चंद्रघंटा को दूध और उससे बनी चीजों का भोग लगाएं और और इसी का दान भी करें। ऐसा करने से मां खुश होती हैं और सभी दुखों का नाश करती हैं।
4. कूष्माण्डा
‘कू’ का अर्थ है छोटा, ‘इश’ का अर्थ है, ऊर्जा और अंडा’ का अर्थ है ब्रह्मांडीय गोला। सृष्टि या ऊर्जा का छोटे से वृहद ब्रह्मांडीय गोला। यह बड़े से छोटा होता है, और छोटे से बड़ा। यह बीज से बढ़ कर फल बनता है और फिर फल से दोबारा बीज हो जाता है। इसी प्रकार ऊर्जा या चेतना में सूक्ष्म से सूक्ष्मतम होने की और विशाल से विशालतम होने का विशेष गुण है जिसकी व्याख्या कूष्मांडा करती हैं। मां कुष्मांडा को मालपुए का भोग लगाएं। इसके बाद प्रसाद को किसी ब्राह्मण को दान कर दें और खुद भी खाएं। इससे बुद्धि का विकास होने के साथ-साथ निर्णय क्षमता भी अच्छी हो जाएगी।
5. स्कंदमाता
स्कन्दमाता वो दैवीय शक्ति है जो व्यवहारिक ज्ञान को सामने लाती है। वो जो ज्ञान को कर्म में बदलती हैं। मां स्कंदमाता पंचमी तिथि के दिन पूजा करके भगवती दुर्गा को केले का भोग लगाना चाहिए, और यह प्रसाद ब्राह्मण को दे देना चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य की बुद्धि का विकास होता है।
6. कात्यायनी
कात्यायनी अज्ञात की वो शक्ति है, जोकि अच्छाई के क्रोध से उत्पन्न होती है। क्रोध अच्छा भी होता है और बुरा भी। अच्छा क्रोध ज्ञान के साथ किया जाता है और बुरा क्रोध भावनाओं और स्वार्थ के साथ किया जाता है। ज्ञानी का क्रोध भी हितकर और उपयोगी होता है। जबकि अज्ञानी का प्रेम भी हानिप्रद हो सकता है। इस प्रकार कात्यायनी क्रोध का वो रूप है जो सब प्रकार की नकरात्मकता को समाप्त कर सकता है। मां कात्यायनी षष्ठी तिथि के दिन देवी के पूजन में मधु का महत्व बताया गया है। इस दिन प्रसाद में मधु यानि शहद का प्रयोग करना चाहिए। इसके प्रभाव से साधक सुंदर रूप प्राप्त करता है
7. कालरात्रि
कालरात्रि देवी माँ के सबसे क्रूर सबसे भयंकर रूप का नाम है। दुर्गा का यह रूप ही प्रकृति के प्रकोप का कारण है। प्रकृति के प्रकोप से कहीं भूकंप कहीं बाढ़ और कहीं सुनामी आती हैं। ये सब माँ कालरात्रि की शक्ति से होता है। इसलिये जब भी लोग ऐसे प्रकोप को देखते हैं, तो वो देवी के सभी नौ रूपों से प्रार्थना करते हैं। मां कालरात्रि सप्तमी तिथि के दिन भगवती की पूजा में गुड़ का नैवेद्य अर्पित करके ब्राह्मण को दे देना चाहिए। ऐसा करने से व्यक्ति शोकमुक्त होता है।
8. महागौरी
महागौरी माँ का आठवां रूप अति सुंदर है सबसे सुंदर सबसे अधिक कोमल पूर्णत: करुणामयी सबको आशीर्वाद देती हुईं यह वो रूप है जो सब मनोकामनाओं को पूरा करता है। मां महागौरी अष्टमी के दिन मां को नारियल का भोग लगाएं नारियल को सिर से घुमाकर बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें। मान्यता है कि ऐसा करने से आपकी मनोकामना पूर्ण होगी।
9. सिद्धिदात्री
नवां रूप, सिद्धिदात्री, सिद्धियाँ या जीवन में सम्पूर्णता प्रदान करने वाला है। सम्पूर्णता का अर्थ है, विचार आने से पूर्व ही काम का हो जाना, यही सम्पूर्णता है। आप कुछ चाहो और वो पहले से ही वहां आ जाये। आपकी कामना उठे, इस से पहले ही सबकुछ आ जाये, यही सिद्धिदात्री है। मां सिद्धिदात्री नवमी तिथि पर मां को विभिन्न प्रकार के अनाजों का भोग लगाएं जैसे:- हलवा, चना-पूरी, खीर और पुए और फिर उसे गरीबों को दान करें। इससे जीवन में हर सुख शांति मिलती है।
कलश स्थापना
नवरात्री में घट स्थापना का बहुत महत्त्व होता है। नवरात्री की शुरुआत घट स्थापना से की जाती है। शुभ मुहूर्त में कलश स्थापित किया जाता है। घट स्थापना प्रतिपदा तिथि के पहले एक तिहाई हिस्से में कर लेनी चाहिए। इसे कलश स्थापना भी कहते है। कलश को सुख समृद्धि, ऐश्वर्य देने वाला तथा मंगलकारी माना जाता है। कलश के मुख में भगवान विष्णु, गले में रूद्र, मूल में ब्रह्मा तथा मध्य में देवी शक्ति का निवास माना जाता है। नवरात्री के समय ब्रह्माण्ड में उपस्थित शक्तियों का घट में आह्वान करके उसे कार्यरत किया जाता है। इससे घर की सभी विपदा दायक तरंगें नष्ट हो जाती हैं, तथा घर में सुख शांति तथा समृद्धि बनी रहती है।
कलश स्थापना सामग्री
1. जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र । यह वेदी कहलाती है।
2. जौ बोने के लिए शुद्ध साफ़ की हुई मिटटी जिसमे कंकर आदि ना हो ।
3. पात्र में बोने के लिए जौ (गेहूं भी ले सकते हैं।)
4. घट स्थापना के लिए मिट्टी का कलश (सोने, चांदी या तांबे का कलश भी ले सकते हैं।)
5. कलश में भरने के लिए शुद्ध जल
6. गंगाजल
7. रोली, मौली
8. इत्र
9. पूजा में काम आने वाली साबुत सुपारी
10. दूर्वा (घास )
11. कलश में रखने के लिए सिक्का (किसी भी प्रकार का कुछ लोग चांदी या सोने का सिक्का भी रखते हैं।)
12. पंचरत्न ( हीरा, नीलम, पन्ना, माणक और मोती)
13. पीपल, बरगद, जामुन, अशोक और आम के पत्ते मिल पायें तो कोई भी दो प्रकार के पत्ते ले सकते हैं।)
14. कलश ढकने के लिए ढक्कन (मिट्टी का या तांबे का )
15. ढक्कन में रखने के लिए साबुत चावल
16. नारियल
17. लाल कपडा
18. फूल माला
19. फल तथा मिठाई
20. दीपक, धूप, अगरबत्ती
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कलश स्थापना की विधि
सबसे पहले जौ बोने के लिए एक ऐसा पात्र लें जिसमे कलश रखने के बाद भी आस पास जगह रहे यह पात्र मिट्टी की थाली जैसा कुछ हो तो श्रेष्ठ होता है इस पात्र में जौ उगाने के लिए मिट्टी की एक परत बिछा दें मिट्टी शुद्ध होनी चाहिए पात्र के बीच में कलश रखने की जगह छोड़कर बीज डाल दें फिर एक परत मिटटी की बिछा दें एक बार फिर जौ डालें।
फिर से मिट्टी की परत बिछाएं अब इस पर जल का छिड़काव करें। कलश तैयार करें। कलश पर स्वस्तिक बनायें। कलश के गले में मौली बांधें अब कलश को थोड़े गंगा जल और शुद्ध जल से पूरा भर दें।
कलश में साबुत सुपारी में फूल और दूर्वा डालें। कलश में इत्र पंचरत्न तथा सिक्का डालें। अब कलश में पांचों प्रकार के पत्ते डालें। कुछ पत्ते थोड़े बाहर दिखाई दें इस प्रकार लगाएँ। चारों तरफ पत्ते लगाकर ढक्कन लगा दें। इस ढक्कन में अक्षत यानि साबुत चावल भर दें। नारियल तैयार करें। नारियल को लाल कपड़े में लपेट कर मौली बांध दें। इस नारियल को कलश पर रखें। नारियल का मुँह आपकी तरफ होना चाहिए।
यदि नारियल का मुँह ऊपर की तरफ हो तो उसे रोग बढ़ाने वाला माना जाता है। नीचे की तरफ हो तो शत्रु बढ़ाने वाला मानते हैं, पूर्व की और हो तो धन को नष्ट करने वाला मानते हैं।
नारियल का मुंह वह होता है, जहाँ से वह पेड़ से जुड़ा होता है। अब यह कलश जौ उगाने के लिए तैयार किये गये पात्र के बीच में रख दें। अब देवी देवताओं का आह्वान करते हुए प्रार्थना करें कि हे समस्त देवी देवता आप सभी नौ दिन के लिए कृपया कलश में विराजमान हों। आह्वान करने के बाद ये मानते हुए कि सभी देवता गण कलश में विराजमान हैं। कलश की पूजा करें। कलश को टीका करें अक्षत चढ़ाएं फूल माला अर्पित करें इत्र अर्पित करें नैवेद्य यानि फल मिठाई आदि अर्पित करें। घट स्थापना या कलश स्थापना के बाद देवी माँ की चौकी स्थापित करें।
चौकी की स्थापना
लकड़ी की एक चौकी को गंगाजल और शुद्ध जल से धोकर पवित्र करें। साफ कपड़े से पोंछ कर उस पर लाल कपड़ा बिछा दें। इसे कलश के दायी तरफ रखें। चौकी पर माँ दुर्गा की मूर्ति अथवा फ्रेम युक्त फोटो रखें। माँ को चुनरी ओढ़ाएँ। धूप, दीपक आदि जलाएँ । नौ दिन तक जलने वाली माता की अखंड ज्योत जलाएँ। देवी मां को तिलक लगाए। माँ दुर्गा को वस्त्र, चंदन, सुहाग के सामान यानि हल्दी, कुमकुम, सिंदूर, अष्टगंध आदि अर्पित करें। काजल लगाएँ। मंगलसूत्र, हरी चूडियां, फूल माला, इत्र, फल, मिठाई आदि अर्पित करें।
श्रद्धानुसार दुर्गा सप्तशती के पाठ, देवी माँ के स्रोत, सहस्रनाम आदि का पाठ करें। देवी माँ की आरती करें। पूजन के उपरांत वेदी पर बोए अनाज पर जल छिड़कें। रोजाना देवी माँ का पूजन करें तथा जौ वाले पात्र में, जल का हल्का छिड़काव करें। जल बहुत अधिक या कम ना छिड़के। जल इतना हो, कि जौ अंकुरित हो सकें। ये अंकुरित जौ शुभ माने जाते हैं। यदि इनमें से किसी अंकुर का रंग सफ़ेद हो तो उसे बहुत अच्छा माना जाता है। यह दुर्लभ होता है।
नवरात्री व्रत
नवरात्री में लोग अपनी श्रद्धा के अनुसार देवी माँ की भक्ति करते हैं। कुछ लोग पलंग के ऊपर नहीं सोते। कुछ लोग शेव नहीं करते, कुछ नाखुन नहीं काटते। इस समय नौ दिन तक व्रत, उपवास रखने का बहुत महत्त्व है। अपनी श्रद्धानुसार एक समय भोजन और एक समय फलाहार करके या दोनों समय फलाहार करके उपवास किया जाता है। इससे सिर्फ आध्यात्मिक बल ही प्राप्त नहीं होता, पाचन तंत्र भी मजबूत होता है, तथा मेटाबोलिज्म में जबरदस्त सुधार आता है। व्रत के समय अंडा, मांस, शराब, प्याज, लहसुन, मसूर दाल, हींग, राई, मेथी दाना आदि वस्तुओं का उपयोग नहीं करना चाहिए इसके अलावा सादा नमक के बजाय सेंधा नमक काम में लेना चाहिए।
कन्या पूजन
महाअष्टमी या नवमी के दिन कन्या पूजन किया जाता है। कुछ लोग अष्टमी के दिन और कुछ नवमी के दिन कन्या पूजन करते है। परिवार की रीति के अनुसार किसी भी दिन कन्या पूजन किया जा सकता है। तीन साल से नौ साल तक आयु की कन्याओं को तथा साथ ही एक लांगुरिया (छोटा लड़का) को खीर, पूरी, हलवा, चने की सब्जी आदि खिलाये जाते हैं। कन्याओं को तिलक करके, हाथ में मौली बांधकर, गिफ्ट दक्षिणा आदि देकर आशीर्वाद लिया जाता है, फिर उन्हें विदा किया जाता है।
विसर्जन
महानवमी के दिन माँ का विशेष पूजन करके पुन: पधारने का आवाहन कर, स्वस्थान विदा होने के लिए प्रार्थना की जाती है। कलश के जल का छिड़काव परिवार के सदस्यों पर और पूरे घर में किया जाता है। ताकि घर का प्रत्येक स्थान पवित्र हो जाये। अनाज के के कुछ अंकुर माँ के पूजन के समय चढ़ाये जाते हैं। कुछ अंकुर दैनिक पूजा स्थल पर रखे जाते हैं, शेष अंकुरों को बहते पानी में प्रवाहित कर दिया जाता है। कुछ लोग इन अंकुर को शमीपूजन के समय शमी वृक्ष को अर्पित करते हैं, और लौटते समय इनमें से कुछ अंकुर केश में धारण करते हैं ।
जय माता दी
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