Chandra Grah Ke Upay चंद्र ग्रह विस्तृत परिचय एवं उपाय 

नव ग्रह में जिस प्रकार सूर्य को राजा का दर्जा प्राप्त है उसी प्रकार चंद्र को स्त्री ग्रह होने के कारण रानी का पद मिला है। ज्योतिष में चंद्र को सूर्य की अर्धांगिनी भी कहा जाता है। चन्द्र को कालपुरुष का मन कहा गया है इसी लिए कहा जाता है कि “चंद्रमा मनसो जातः” फलित ज्योति में चंद्र के आधार पर ही जातक के मन का पता लगाया जाता है। चंद्रमा के लिये बृहद पाराशर होरा शास्त्र में कहा गया है।

बहुवातकफ: प्राज्ञश्चन्द्रों वृततनुर्द्विज।

शुभदृक मधु वाक्यश्च चंचलो मदनातुर:।।

अर्थात चंद्रमा वायु, कफयुक्त प्रकृति वाला, बुद्धिमान, गोल शरीर, सुन्दर नेत्र व मीठे वचन बोलने वाला, चंचल व कामी है।

चंद्र सौम्य एवं शीतल प्रकृति वाला ग्रह है। इसके अन्य नामो में निशापति, मृगांक, अम्बु, शीतरश्मी, शीतद्युति, राकापति, मयंक, रजनीश, अमृत, सोम, शशधर, हिमकर, तारापति, इंदु, कुमुद, जलज व निशाकर है। चंद्र गौर वर्ण वायव्य दिशा व वर्षा ऋतु का स्वामी है। इसका क्रीड़ा स्थल जलीय क्षेत्र जैसे नदी, तालाब वैश्य वर्ण का, सत्व, गुणी धातु रक्त है। चंद्र के अधिष्ठाता देव वरुण है। रस लवण तथा शुक्ल पक्ष रात्रि व दक्षिणायन में बलि होता है।

चंद्र ग्रह पौराणिक कथा 

पद्म पुराण के अनुसार ब्रह्माजी के पुत्र महर्षि अत्रि ने अपने पिता की आज्ञानुसार सृष्टि उत्पन्न करने के लिये एक विशेष प्रकार का तप किया जिसको अनुत्तर कहा जाता है। तप की समाप्ति पर महर्षि अत्रि के नेत्रों से जल की कुछ बूंदे गिरी, उस जल की बूंदों के प्रकाश के प्रभाव से सारा जगत प्रकाश मान हो उठा। उस प्रकाश से प्रभावित होकर समस्त दिशाओं ने उस जल को पुत्र प्राप्ति के उद्देश्य से ग्रहण कर लिया।

परंतु वह उस गर्भ रूपी जल को धारण किए रहने में असमर्थ रहे। उन्होंने उस जल का त्याग कर दिया तब ब्रह्मा जी ने दिशाओं द्वारा परित्यक्त गर्भ को एक सुंदर युवक का रूप दे दिया तत्पश्चात ब्रह्मा जी उस युवक को अपने साथ ब्रह्म लोक ले गए और उसका नाम चंद्रमा रख दिया। नामकरण के समय ब्रह्मलोक में उपस्थित अन्य देव यक्ष गंदर्भ अप्सरा ऋषि-मुनियों द्वारा चंद्रमा की स्तुति किए जाने से चंद्र के तेज में और अधिक वृद्धि हो गई। जिसके प्रभाव तथा वातावरण के सहयोग करने से पृथ्वी लोक में अनेक प्रकार की दिव्य औषधियों की उत्पत्ति हुई।

दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार ब्रह्मा जी द्वारा उत्पन्न किए आदि पुरुष मनु की तीन पुत्रियां थी जिनमें देवहुति नाम की दूसरी कन्या का विवाह ब्रह्मा जी के पुत्र महर्षि से हुआ इन दोनों के संयोग से नौ कन्याओं का जन्म हुआ इसमें दूसरी कन्या अनुसुइया का विवाह महर्षि अत्रि से हुआ इनके संयोग से तीन पुत्रों का जन्म हुआ जिनका नाम दत्तात्रेय दुर्वासा व सोम अर्थात चंद्र था। मतानुसार सूर्य की किरणों से लगभग एक लाख योजन की दूरी पर चंद्रमा की स्थिति है। नव ग्रहों में सर्वाधिक गति चंद्र की है यह एक राशि में लगभग सवा दो दिन रहता है।

चंद्र ग्रह वैज्ञानिक परिचय 

वैज्ञानिकों के आधार पर चंद्रमा पृथ्वी का ही एक ऐसा भाग है जो कालांतर में अपनी गुरुत्वाकर्षण शक्ति को त्यागकर पृथ्वी से दूर सौरमंडल में एक ग्रह के रूप में पृथ्वी की परिक्रमा करता है। कुछ वैज्ञानिकों का मत है कि अन्य ग्रहों की भांति चंद्र की उत्पत्ति सूर्य से ही हुई है। कुछ कहते हैं कि चंद्र भी पृथ्वी की भांति एक गैस का गोला था। यह अंदर ही अंदर खौलता रहता था। जो धीरे-धीरे ठंडा हो गया चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट है। यह पृथ्वी से 238 हजार मील की दूरी पर है। यह एक तीव्रगामी ग्रह है। यह 2180 मील प्रति घंटे की गति से चलकर 27 दिन 7 घंटे 44 मिनट में 52 सेकेंड में पूर्ण भचक्र (सौरमंडल) की परिक्रमा करता है।

गोचर अनुसार चंद्र 

चंद्रमा अपने संक्रमण काल में अर्थात राशि में प्रवेश से पहले लगभग तीन घटी अर्थात लगभग एक घंटा 11 मिनट पर फल देने लगता है। प्रत्येक राशि में चंद्र का गोचर निम्न प्रकार से रहता है। यहां मतांतर के मत को कोष्टक में व्यक्त किया गया है।

जन्म राशि धन लाभ (शुभ फल, स्वादिष्ट भोजन अथवा अन्न की प्राप्ति)

जन्म राशि से द्वितीय स्थान आर्थिक हानि (मन संतोष)।

तृतीय स्थान आर्थिक लाभ

चतुर्थ स्थान नेत्र रोग (कलह, क्लेश)

पंचम स्थान कार्य में रुकावट (बुद्धि लाभ)

षष्ठ स्थान धन लाभ (धान्य लाभ)

सप्तम स्थान जीवनसाथी से धन लाभ (विजय)

अष्टम स्थान मृत्यु तुल्य कष्ट (जल से हानि)

नवम स्थान राज्य से भय अथवा हानि (धर्म लाभ)

दशम स्थान राज्य लाभ (सुख, कार्य सफलता)

एकादश स्थान आर्थिक लाभ (सार्वजनिक सम्मान)

द्वादश स्थान रोग कष्ट धन हानि नेत्र रोग।

चंद्रमा एक सौम्य ग्रह है। यह कर्क राशि का स्वामी है। चंद्र जल तत्व प्रधान, वायव्य,(उत्तर-पश्चिम) दिशा का स्वामी है।यह रात्रि बलि, सत्व गुणी, एवं चर संज्ञक है। यह श्वेत, शुभ एव गौर वर्ण का, वात-कफ प्रकृति,सत्व गुण प्रधान, चंचल स्वाभाव वाला तरुण स्त्री ग्रह है।

यह ग्रह वायव्य दिशा, सोमवार, दक्षिणायन, चतुर्थ भाव में बलि होता है।

पृथ्वी के सबसे नजदीक भ्रमणशील होने के कारण शास्त्रों में चंद्र को मन (अन्तः करण) का प्रतिक (चन्द्रमा मनसो जातः) कहा गया है। चन्द्रमा को नैसर्गिक तौर पर सूर्य, मंगल, बुध, गुरु का मित्र, तथा शुक्र, शनि व् राहु का शत्रु माना जाता है। चौथे भाव के कारक चंद्र को संवेदनाओं, माता धन एवं स्त्री का कारक माना जाता है।

इसके अतिरिक्त चन्द्रमा से स्त्री सुख, सौंदर्य, भावनात्मकता, कल्पनाशक्ति, ज्योतिष् में रूचि, सम्पति, यात्रा, राज्य कृपा, चावल, श्वेत वस्त्र, लवण आदि का भी विचार किया जाता है।उच्च राशिस्थ एवं शुक्ल पक्षीय पूर्ण चंद्र शुभ तथा नीच राशिस्थ या कृष्ण पक्ष षष्ठी से अमावस तक का चंद्र एवं राहु आदि पाप ग्रह से युत या दृष्ट चंद्र क्षीण एवं अशुभ फल माना जाता है।

अशुभ चंद्र 

चंद्र के अशुभ होने से जातक अति चंचल, उतावला, उद्विग्न, स्वार्थी, विलासीया अस्थिर एवं अशांत मन वाला होता है।अरिष्टकर होने से मानसिक दौर्बल्य, उन्माद, मस्तिष्क विभ्रम, नेत्र पीड़ा ,आलस्य, मानसिक पीड़ा, व्याकुलता, शीत/कफ रोग, कंठ से हृदय तक के रोग, एवं स्त्री जनित गर्भाशय के रोग भी अशुभ चंद्र के कारण ही होते है।

अशुभ चंद्र के कारण जातक का मन मिथ्याभ्रमणशील, जिद्दी, क्रोधी, दोष दर्शी, अनावश्यक खर्चीला, एवं चिड़चिड़े स्वाभाव का हो जाता है।इसके कारण गुप्त रोग, मस्तिष्क विकार, आदि अशुभ फल होते है।

शुभचन्द्र

चन्द्रमा के शुभ प्रभाव से व्यक्ति का उत्तम स्वास्थ्य, उदार ह्रदय, सुन्दर बदन, और आकर्षक नेत्र, भूमि, धन, वाहन, आदि सुख सुविधाओं से युत, व्यवहार कुशल, हंसमुख एवं परोपकारी स्वाभाव का होता है।

चंद्र का बल

चंद्र स्व राशि कर्क, उच्च राशि वृषभ, दिन द्रेष्काण, स्व होरा, स्वयं होरा में स्वयं नवांश, राशि के अंत में, शुभ ग्रहों से दृष्ट, रात्रि में, चतुर्थ भाव व दक्षिणायन में व शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि से कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि तक मतांतर से पंचमी तिथि तक बलि होता है। इसके अतिरिक्त मघा पूर्वाफाल्गुनी उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में भी विशेष बलि होता है।

राशि विशेष में चंद्र का प्रभाव

चंद्र अपनी उच्च राशि वृषभ में होने पर जातक मिष्ठान प्रिय, अलंकार प्रिय, विलासी, स्वभाव का होता है। नीच राशि वृश्चिक में होने पर जातक अधिकतर रोग से ग्रस्त रहने वाला नीच प्रकृति व अल्प धनी होता है। मूल त्रिकोण में होने पर सुंदर सुखी व भाग्यशाली धनवान। चंद्र यदि अपने शत्रु की राशि में हो तो माता के कारण दुखी ह्रदय रोग की संभावना अपने मित्र की राशि में होने पर अधिक गुण वाला , धन्यवाद व सुखी और यदि चंद्रमा स्वक्षेत्रीय हो अर्थात अपनी राशि कर्क में हो तो सुंदर रूप में साथ तेजस्वी धनवान व भाग्यशाली होता है।

चंद्र का प्रत्येक भाव पर दृष्टि फल 

प्रत्येक ग्रह अपने घर से सातवें भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता है। इसके साथ ही साथ कुछ ग्रह जैसे गुरु, मंगल, शनि व मतांतर से राहु व केतु की कुछ अन्य दृष्टियां भी होती हैं। इसके अतिरिक्त चंद्र की अन्य दृष्टि भी होती है जिसे एक पाद द्विपाद व त्रिपाद कहते हैं। परंतु फल पूर्ण दृष्टि का होता है। इसलिए हम यहां चंद्र की पूर्ण दृष्टि के फल की ही चर्चा करेंगे। उदाहरण के लिए जैसे चंद्र लग्न में बैठा है तो वह सातवें भाव को पूर्ण दृष्टि से देखेगा।

प्रथम भाव पर

प्रथम भाव अर्थात लग्न पर यदि चंद्र की दृष्टि हो तो ऐसा व्यक्ति अधिकतर प्रवास पर रहने वाला, भाग्य का धनी, स्त्री वर्ग से विशेष प्रेम करने वाला, होता है। व्यवसाय तो अवश्य करता है परंतु सदैव कृपण हीं रहता है।

द्वितीय भाव पर

इस घर पर चंद्र की यदि पूर्ण दृष्टि हो तो जातक सामान्य सुखी। 7 से 12 वर्ष तक शारीरिक कष्ट पाने वाला होता है। पूर्ण जीवन जल आघात का भय रहता है। संतान अधिक होती है। इसको जब-तब आर्थिक समस्या के साथ शरीर पर घाव चोट आदि सामान्य खरोच लगती रहती है। जो बाद में बड़ा रूप ले सकती है।

तृतीय भाव पर

इस घर पर चंद्र की दृष्टि होने से व्यक्ति धार्मिक प्रवृत्ति का होता है। सदैव प्रवास पर रहने वाला। 23 वर्ष की आयु तक मन में विचित्र सा भय रहता है। परंतु इस आयु के बाद पराक्रमी हो जाता है। ऐसे व्यक्ति के भाई कम तथा बहिन अधिक होती है। सदैव मिलनसार प्रवृत्ति का तथा सत्संग प्रिय होता है।

चतुर्थ भाव पर

इस भाव पर चंद्र की दृष्टि होने से भी जातक 25 वर्ष की आयु तक कष्ट में रहता है। परंतु अपनी मां की बहुत सेवा करता है। उसे भूमि से अधिक लाभ होता है। ऐसा व्यक्ति यदि कृषि करें तो बहुत लाभ होता है। ऐसा जातक राज्य से भी सम्मान प्राप्त करता है। वाहन सुख अवश्य प्राप्त करता है। यदि शुक्र की स्थिति भी शुभ अथवा अनुकूल हो तो उच्च वाहन सुख प्राप्त होता है।

पंचम भाव पर

इस भाव को चंद्र के देखने से व्यक्ति के पहली संतान पुत्र होती है परंतु यदि उच्च के चंद्र की दृष्टि हो तो कन्या संतान होती है। यदि मंगल अथवा सूर्य की दृष्टि हो तो प्रथम गर्भपात होने की संभावना रहती है। ऐसा व्यक्ति प्रत्येक कला को सम्मान की दृष्टि से देखता है। वह अत्यधिक बुद्धिमान एवं व्यवहार कुशल होता है।

छठे भाव पर

इस घर को चंद्र के देखने से व्यक्ति रोगी होता है। गुप्त रोगों से अधिक पीड़ित होता है। इतना शांत स्वभाव का होता है कि सदैव शत्रुओं इसे पीड़ित करते हैं। ऐसा व्यक्ति अत्यधिक खर्चीला होता है 24 वर्ष की आयु तक यदि जल से हानि ना हो तो फिर आयु अधिक पाता है।

सप्तम भाव पर 

इस भाव को यदि चंद्र पूर्ण दृष्टि से देखें तो व्यक्ति का जीवन साथी गोल चेहरे का सुंदर होता है। जिससे उसे पूर्ण सुख प्राप्त होता है। सदैव सत्य बोलने वाला व सत्य मार्गी होने के साथ धन संचय में अधिक रुचि होती है। वह अत्यधिक कंजूस भी होता है।

अष्टम भाव पर

इस भाव पर चंद्र की दरिष्टि होने से जातक की जलसे मृत्यु का योग निर्मित होता है। ऐसा व्यक्ति अपने पिता के द्वारा संचित धन का नाश करता है। घर परिवार का विरोधी होने के साथ लंपट स्वभाव का तथा नेत्र रोगी भी होता है।

नवम भाव पर 

इस भाव पर चंद्र की दृष्टि के शुभ फल अधिक मिलते हैं। जातक धर्म को मानने वाला भाग्य का धनी बुद्धिमान होता है। परंतु भाई के सुख से वंचित हो सकता है।

दशम भाव पर

इस घर पर चंद्र की दृष्टि से व्यक्ति कुछ चिड़चिड़े स्वभाव का, पशु व्यापार से लाभ लेने वाला, अपना धर्म बदल कर दूसरा धर्म स्वीकार करने वाला तथा सदा पिता का विरोध करने वाला होता है।

एकादश भाव पर

इस घर पर चंद्र की यदि शुभ दृष्टि हो तो शुभ फल अधिक प्राप्त होते हैं। ऐसा व्यक्ति कुशलता से व्यापार करता है। तथा अधिक लाभ भी प्राप्त करता है इसके मित्रों की संख्या अधिक होती है। कन्या संतान अधिक होती है।

द्वादश भाव पर

ऐसा व्यक्ति अपनी आयु के अंतिम पड़ाव में सुख प्राप्त करता है। उससे ऐसे कार्य होते रहते हैं। जिसकी वजह से उसका धन उसके शत्रु अधिक खर्च करवाते हैं। इसी कारण वह सदैव चिंतित रहता है।

चंद्र की महादशा का फल (Result of Moon Mahadasha)

जन्म पत्रिका में चंद्र यदि पापी अकारक अथवा पीड़ित हो तो इसकी दशा में आगे लिखे फल प्राप्त होते हैं। यह फल देखने से पहले आप समस्त प्रकार से यह जांच लें कि आपकी पत्रिका में चंद्र की क्या स्थिति है। यह भी देखे की चंद्र के साथ किस ग्रह की युति है अथवा किस ग्रह की दृष्टि है। शुभ ग्रह लग्नेश अथवा कारक ग्रह की युति अथवा दृष्टि होने पर निश्चय ही चंद्र के अशुभ फल में कमी आएगी। छठी, सातवीं आठवीं, तथा 12 घर में विशेष अशुभ फल देता है। परंतु इसका पूर्ण निर्णय चंद्र की स्थिति पर भी निर्भर करता है। चंद्र यदि पूर्ण रुप से पापी अथवा पीड़ित हो तो इस की महादशा में तथा इसके साथ इसकी ही अंतर्दशा में निम्न अनुसार फल प्राप्त होते हैं।

लग्नस्थ चंद्र अनेक प्रकार के कष्ट देता है। दूसरे भाव में राजदंड का भय होता है। पांचवे भाव में राजदंड के साथ अग्नि भय व कोई बड़ी चोरी का भी डर होता है। छठे भाव में आग से कष्ट जल से मृत्यु तुल्य कष्ट तथा मूत्र संस्थान के रोग से पीड़ा होती है। सातवें घर के चंद्र से अपेंडिक्स का ऑपरेशन अथवा जीवनसाथी के कारण मानसिक कष्ट होता है। आठवें भाव के चंद्र से तो जो कष्ट मिले वही कम होता है।

चंद्र महादशा में अन्य ग्रहान्तर्दशा फल (Other planetary position fruits in Moon Mahadasha) 

चन्द्र की महादशा के उपयुक्त फल पूर्ण महादशा में कभी भी घटित हो सकते हैं। परंतु अन्य ग्रह की अंतर्दशा में निम्न फल प्राप्त होते हैं। इन फलों का निर्धारण भी आप चंद्र के साथ जिस ग्रह की अंतर्दशा हो उस के बल व शुभाशुभ देखकर करें।

चंद्र में चंद्र की अंतर्दशा (Moon’s antardasha in Moon) 

इस दशा काल में चंद्र यदि उच्च अथवा स्वयं क्षेत्री हो अथवा 1,5,9 अथवा ग्यारहवें भाव में हो अथवा भाग्येश के साथ हो तो जातक को सभी प्रकार का सुख सम्मान आर्थिक लाभ कन्या संतान की प्राप्ति अथवा विवाह होता है। चंद्र यदि पाप युक्त नीच अथवा शत्रु क्षेत्री अथवा 6,8 भाव में हो तो हानि अधिक होती है। राजदंड के साथ कारावास का भय, धन हानि, स्थान परिवर्तन, मानसिक संताप अथवा जीवनसाथी से विछोह होता है।

चंद्र में मंगल की अंतर्दशा 

मंगल यदि 1,4,5,7,9 व दसवें भाव में हो तो इस समय जातक को राज्य से सम्मान, सौभाग्य आदि में वृद्धि, अपने क्षेत्र में सफलता, शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है यदि मंगल व चंद्र दोनों ही उच्च अथवा स्वयं क्षेत्री हो तो और भी अधिक शुभ फल प्राप्त होता है। परंतु मंगल अथवा चंद्र 6,8 अथवा बारहवें भाव में होने पर फल में अशुभता आकर अधिक विपरीत फल प्राप्त होते हैं। इसके साथ ही भाइयों से विरोध अथवा विछोह, रक्त विकार, अग्नि व पित्त भय, शत्रु कष्ट व चोरों से हानि हो सकती है। धन के साथ मान सम्मान की हानि भी होती है।

चंद्र में राहु की अंतर्दशा (Rahu’s antardasha in Moon) 

राहु 1,4,5,7,9 अथवा दसवें भाव में होने पर सभी प्रकार का भय शत्रु पीड़ा भाइयों व मित्रों से विरोध, आर्थिक क्षेत्र में अपमान दुखा आदी का फल देता है। लेकिन राहु के 3,6, 10 व ग्यारहवें भाव में होने पर अथवा शुभ दृष्टि हो तो शुभ फल में वृद्धि होती है. राहु यदि चंद्र से 6,8 अथवा बारहवें स्थान पर हो तो अधिक अशुभ फल मिलते हैं. जिसमें संतान से कष्ट, जीवनसाथी को कष्ट, स्थान परिवर्तन, किसी भी प्रकार की अचानक हानि अथवा बीमारी भोजन विषाक्तता आधी फल होते हैं। चंद्र से राहु के केंद्र में होने पर भी शुभ फल प्राप्त होते हैं।

चंद्र में गुरु की अंतर्दशा 

लग्न से गुरु 1,4,5,7,9 अथवा दसवें भाव में होने पर अथवा उच्च राशि में हो तो राज्य से मान सम्मान, आर्थिक लाभ, संतान प्राप्ति के साथ समस्त प्रकार के लाभ होते हैं। जातक का स्वभाव धार्मिक व दान पुण्य की ओर अधिक होता है। यदि गुरु चंद्र से 6,8 अथवा बारहवें भाव में अथवा नीच शत्रु क्षेत्री हो तो अशुभ फल अधिक मिलते हैं। संतान अथवा गुरु समान किसी बुजुर्ग की हानि, स्थान परिवर्तन, दुख व नित्य नए क्लेश का सामना करना पड़ता है।

चंद्र में शनि की अंतर्दशा

इस अंतर दशा के फल में मतांतर है। कुछ के अनुसार यह दशा कष्टकारी होती है। जिसमें जातक को रोग बहुत होते हैं। संतान व जीवन साथी के साथ मित्र भी कष्ट में आते हैं। कोई बहुत ही बड़ी विपत्ति आती है। ऐसा शनि यदि मारक प्रभाव रखता हो तो मृत्यु भी हो सकती है। दूसरे मत में शनि यदि 1,4,5,7,9,10 अथवा ग्यारहवें भाव, उच्च, स्वक्षेत्री अथवा शुभ ग्रह से युत अथवा दृष्ट हो तो संतान व धन प्राप्ति होती है। नए मित्र बनते हैं। व्यापार में लाभ होते हैं।

यदि शनि चंद्र अथवा पत्रिका में 2,6,8 या बारहवें भाव में हो अथवा नीच शत्रु क्षेत्री अथवा अन्य पापी ग्रह से युत या दृष्ट हो तो किसी हथियार से चोट अथवा अन्य कष्ट जैसे फल मिलते हैं। किसी तीर्थ स्थल पर स्नान का योग भी बनता है। यह किसी शुभ अथवा अशुभ कारण से भी हो सकता है

चंद्र में बुध की अंतर्दशा 

इस दशा में बुध के अशुभ स्थान पर होने पर ही अशुभ फल प्राप्त होते हैं। वैसे शुभ फल ही प्राप्त होते हैं। शुभ फलों में आर्थिक लाभ के साथ वाहन सुख प्राप्त होता है श्लोक में तो हाथी घोड़े आदि की चर्चा है पहले यह सब वाहन के रूप में प्रयुक्त होते थे इसलिए हमने वाहन शब्द का प्रयोग किया है। आभूषण प्राप्ति, सुख प्राप्ति तथा व्यक्ति का ध्यान ज्ञान प्राप्ति व धर्म में लगता है। यदि बुध 1,4,5,7,9, 10 अथवा ग्यारहवें भाव में हो तो राज्य से सम्मान, ज्ञान वृद्धि, संतान प्राप्ति, व्यवसाय में अत्यधिक लाभ व विवाह होता है। चंद्र से बुध यदि दो अथवा 11 वे स्थान में हो तो अविवाहित होने पर निश्चित ही विवाह होता है। शरीर पूर्णता निरोगी रहता है।

किसी सभा की सदस्यता भी मिलती है। बुध यदि चंद्र से 6,8 अथवा बारहवें भाव में हो व नीच अथवा शत्रुक्षेत्री हो तो उसके परिवार के सदस्य कष्ट में रहते हैं। भवन अथवा भूमि की हानि होती है। कारावास का योग निर्मित होता है। बुध यदि मारकेश भी हो अर्थात द्वितीय व सप्तम भाव का स्वामी हो तो मृत्यु या मृत्यु तुल्य कष्ट प्राप्त होते हैं।

चंद्र में केतु की अंतर्दशा 

इस दशा में विभिन्न मत है प्रथम मत में यह अकारण कष्टकारी होता है। जिसमें जातक को अचानक रोग प्राप्त होते हैं। समस्याएं आती हैं जलाघात का योग होता है। भाइयों को भी कष्ट अथवा मतभेद होता है। व्यक्ति को उसके नौकर भी हानि देते हैं। दूसरे मत में केतु के 1,3,4,5,7, 9, 10 एवं 11 वे भाव में होने पर आर्थिक लाभ सुख में वृद्धि तथा जीवन साथी व संतान से सुख प्राप्त होता है। चंद्र से केतु यदि 5,9 अथवा ग्यारहवें भाव में हो तो सुख की मात्रा में कमी होती है। परंतु धन प्राप्ति अवश्य होती है। केतु यदि किसी पाप ग्रह से युत अथवा दृष्ट हो अथवा चंद्र से त्रिक भाव में हो तो परिवार में कलह रहती है।

चंद्र में शुक्र की अंतर्दशा

इस दशा में जातक को सभी सुख प्राप्त होते हैं। यदि शुक्र केंद्र त्रिकोण अथवा एकादश भाव में स्थित उच्च अथवा स्वक्षेत्री हो तो व्यक्ति को बड़े से बड़े सुख की प्राप्ति होती है। व्यक्ति राज्य शासन में उच्च पद प्राप्त करने के साथ स्त्री वर्ग में भी लोकप्रिय होता है। अधिकार संपन्न होता है स्त्री व संतान सुख भी प्राप्त होता है। नए निवास की प्राप्ति होती है। शरीर निरोगी रहता है। इसमें भी यदि शुक्र के साथ चंद्र की युति हो तो सोने में सुहागा वाली बात होती है। अर्थात दिए हुए मानसिक सुख के साथ शारीरिक सुख भी प्राप्त होता है।

सुख संपत्ति में वृद्धि जलयान के माध्यम से विदेश यात्रा आभूषण प्राप्ति होती है। मंगल की दृष्टि होने पर भूमि से लाभ व बुध की दृष्टि होने पर व्यापार से लाभ होता है। इसके साथ ही शुक्र या चंद्र के नीच अस्तगत, शत्रु क्षेत्री होने की स्थिति में विपरीत प्रभाव होता है। फिर भी ऐसी स्थिति में भी केवल अशुभ फल ही नही मिलते हैं। अपितु पूर्ण शुभ फल मिलने के स्थान पर 40% शुभ फल प्राप्त होते हैं परंतु शुभ फल मिलते अवश्य है। चंद्र से शुक्र के आठवें भाव में होने पर तथा किसी पापी ग्रह से दृष्ट होने पर जातक के परदेश में रहने से कष्ट होता है। इस स्थिति में शुक्र यदि दूसरे अथवा सातवे घर का स्वामी हो तो मृत्यु तुल्य कष्ट होता है।

लग्न अनुसार अशुभ चंद्र 

गतांक में हमने राशि अनुसार चंद्रकृत रोग की चर्चा की थी आज विभिन्न लग्न अनुसार चंद्र के अशुभ फलों के बारे में बताएंगे। इसे आप स्वयं ही अपनी पत्रिका में देख सकते हैं इसमें भी आप केवल इस योग के आधार पर ही बिल्कुल अशुभ ना समझ ले अपितु अन्य योग भी देखें चंद्र के साथ बैठे ग्रह को देखें, चंद्र पर कौन सा ग्रह दृष्टि डाल रहा है। वह मित्र है अथवा शत्रु है। इसके बाद ही निष्कर्ष निकाले कि चंद्र कितना अशुभ अथवा शुभ है।

मेष लग्न इस लग्न में चंद्र छठे, आठवें और बारहवें भाव में अशुभ फल देता है जिसमें सबसे अधिक अशुभ फल आठवें भाव में रहता है।

वृष तृतीय, चतुर्थ, षष्ठ, अष्टम दशम व द्वादश भाव में अधिक अशुभ होता है।

मिथुन लग्न, तृतीय, षष्टम, अष्टम, नवम व द्वादश भाव में अशुभ फल देता है

कर्क द्वितीय, तृतीय, षष्टम, सप्तम, अष्टम, दशम, आय व व्यय भाव में अशुभ होता है।

सिंह इस लग्न में चंद्र पूर्णतया अशुभ ही रहता है चाहे वह किसी भी भाव में हो।

कन्या कन्या लग्न में भी चंद्र पूर्णत: अशुभ फल ही देता है।

तुला तृतीय, षष्ठम, सप्तम, अष्टम, एकादश तथा द्वादश भाव में विशेष अशुभ फल देता।

वृश्चिक तृतीय भाव, षष्ट भाव, अष्टम भाव व द्वादश भाव में चंद्र शुभ होता है।

धनु इस लग्न में भी चंद्र शुभ होता है परंतु तीसरे, छठे, सातवे, आठवे 11 व 12 घर में अत्यधिक अशुभ फल देता है।

मकर लग्न भाव, तृतीय, पंचम भाव, छठे भाव, आठवें भाव तथा व्यय भाव में अशुभ होता है।

कुम्भ इस लग्न में भी चंद्र पूर्णतः अशुभ फल ही देता है।

मीन इस लग्न में चंद्र तृतीय व त्रिक स्थान में सर्वदा अशुभ फल देता है।

राशि अनुसार चंद्रकृत रोग (Moon disease according to zodiac sign)

चंद्र एक अत्यधिक तेज गति का ग्रह है। इसलिए ऐसा नहीं है कि चंद्र के पापी होने की स्थिति में असाध्य रोग नहीं होते हैं। परंतु जब चंद्र गोचर में अर्थात स्वयं राशि से 1,3,6,7,10 व 11 वे भाव में भ्रमण करेगा तब अधिक शुभ फल देगा। उस समय पर यह रोगों को रोकने की विशेष शक्ति रखता है। इस गोचर के साथ चंद्र शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि तक बली होने के कारण अशुभ फल देगा।

ज्योतिष की भाषा में कहें तो चंद्र चाहे गोचर में अथवा पत्रिका में यदि 4,6,8 अथवा बारहवें भाव में हो तो अवश्य ही रोग देगा। इसके परिणाम स्वरुप फेफड़े के रोग, प्लूरिसी, मूर्छा, मंदागिनी, खांसी जुकाम, स्त्रियों में मासिक धर्म की अनियमितता, दमा, लकवा, पीलिया, गर्भ अथवा गर्भपात, गुप्त रोग, त्वचा रोग, पेट के रोग, रक्त विकार व मानसिक रोग चंद्र के पापी अथवा पीड़ित होने की स्थिति में हो ही जाते हैं।

प्रत्येक राशिस्थ चंद्र प्रदत्त रोग (Diseases given by moon in each zodiac sign) 

मेष राशि इस राशि में चंद्र होने से मानसिक कष्ट, वीर्य विकार व नेत्रों से संबंधित रोग अधिक होते हैं। यदि केतु की युति हो तो सिर में चोट लगने की संभावना रहती है। जिस कारण व्यक्ति को जीवन पर्यंत पीड़ा रहती है। राहु की युति होने पर व्यक्ति मद्यपान के कारण कष्ट में रहता है।

वृष राशि वृषभ राशि में चंद्र होने से मुखरोग, गले का विकार, घाव आधा सिर का दर्द जैसे रोग होते हैं। बुध यदि पीड़ित अथवा पापी स्थिति में हो तो वाणी विकार भी हो सकता है।

मिथुन राशि चंद्र के द्वारा इस राशि में होने पर फेफड़े के रोग, स्त्रियों में वक्ष कैंसर, दमा, टी.बी व वात विकार जैसे रोग उत्पन्न होते हैं। इस योग के साथ यदि द्वितीय भाव में कोई पापी ग्रह हो तो पड़ोसी से सदैव मानसिक कष्ट मिलता है।

कर्क राशि इस राशि में चंद्र हृदय रोग, पेट के रोग, जलोदर व कैंसर जैसे रोग देता है। यदि चतुर्थ भाव में सूर्य भी पीड़ित हो तो हृदय आघात से मृत्यु की अधिक संभावना होती है।

सिंह राशि सिंह राशि में चंद्र ह्रदय रोग, लीवर कैंसर अथवा हेपेटाइटिस, वीर्य विकार जैसे रोग देता है। यदि सूर्य कर्क राशि में हो तो जातक पहले दुबले पतले शरीर वाला सदैव रोग ग्रस्त रहने वाला तथा क्षय रोगी होता है।

कन्या राशि कन्या राशि में चंद्र के होने पर कोष्ठबद्धता, वीर्य विकार, आंतों का कैंसर अथवा प्लीहा रोग होते हैं। यदि बुध पीड़ित हो तो जातक शीघ्रपतन, गुप्त रोग तथा नपुंसक तक हो सकता है।

तुला राशि इस राशि का चंद्र त्वचारोग के साथ मूत्र संस्थान के रोग देता है अथवा मूत्राशय कष्ट रहता है। शुक्र भी पीड़ित अथवा पापी हो तो मूत्र के साथ वीर्य जाता है।

वृश्चिक राशि वृश्चिक राशि में चंद्र गुदा संबंधित रोग, मल-मूत्र निष्काशन में कष्ट, भगंदर, क्षय रोग व स्नायु विकार देता है।

धनु राशि धनु राशि में चंद्र हो तो वक्षस्थल के रोग, रक्त विकार, कमर के निचले हिस्से में सदैव दर्द रहता है। यदि शनि भी पीड़ित हो तो लकवा तक हो सकता है।

मकर राशि इस राशि का चंद्र अस्थिरोग अवश्य देता है। विशेषकर जोड़ों के रोग होते हैं। सूर्य के पीड़ित होने पर कुष्ठ रोग तथा जल्दी-जल्दी अस्थि भंग होती है।

कुम्भ राशि कुंभ राशि का चंद्र स्नायु विकार, सांस में अवरोध, देर से घाव भरना रक्त विकार देता है। इस चंद्र पर मंगल की दृष्टि होने पर कान की शल्यक्रिया का योग होता है। विशेषकर बाए कान का ऑपरेशन हो सकता है।

मीन राशि किस राशि में चंद्र रक्त विकार अधिक देता है चाहे धमनी की समस्या हो अथवा अन्य यदि द्वादश भाव भी दूषित हो तो अनिद्रा रोग होता है।

चंद्र कृत कुछ अन्य विशेष रोग (Some other special diseases caused by the moon) 

चंद्र को मन का कारक कहा गया है। यह स्वयं तो अधिकतर मानसिक रोग ही देता है परंतु यदि किसी अन्य ग्रह की युति हो तो रोग भी बदल जाता है। इसलिए हम यहां कुछ विशेष रोगों की चर्चा कर रहे हैं। यह रोग तभी होंगे जब चंद्र पापी अथवा पीड़ित हो।

नेत्र रोग

चंद्र व सूर्य दोनों के पीड़ित होने की स्थिति में दोनों नेत्र का तथा केवल चंद्र के पीड़ित होने के कारण एक नेत्र में कष्ट होता है। कमजोर चंद्र के साथ बुध अथवा शनि द्वादश भाव में हो तो बाय नेत्र में कष्ट होता है। यदि मंगल देख रहा हो तो नेत्र का ऑपरेशन होता है।

छठे घर में चंद्र तथा 8 एवं 12 में सूर्य मंगल हो तो जातक वात व कफ के कारण नेत्र ज्योति गवा सकता है।

1,2,6,8 अथवा बारहवें भाव में चंद्र के साथ मंगल व शनि हो तो केवल वात रोग से अंधापन आता है।

किसी भी भाव में चंद्र एवं राहु हो तथा किसी अन्य भाव में 3 पाप ग्रह हो तो जातक अंधा होता है।

चंद्र व शुक्र के साथ कोई पाप ग्रह द्वितीय भाव में हो तो जातक अंधा होता है।

क्षय रोग 

किसी भी भाव अथवा राशि में चंद्र के साथ सूर्य की युति हो तो क्षय रोग होता है।

चंद्रमा व शनि सातवें घर में पाप मध्यस्थ हो तो क्षय के साथ पीलिया भी हो सकता है।

चंद्र व सूर्य में राशि परिवर्तन हो तो रक्त अथवा पित्त विकार के साथ क्षय रोग होता है।

पीड़ित लग्नेश के साथ यदि चंद्र छठे भाव में हो तो क्षय व हृदय रोग होता है

सफेद कुष्ठ 

प्रथम भाव में चंद्र के साथ पाप ग्रह हो तो यह रोग होता है।

मेष अथवा वृषभ राशि में शनि और मंगल चंद्र के साथ होने पर भी श्वेत कुष्ठ होता है।

मिर्गी

बलहीन चंद्र के साथ राहु की युति होने पर मिर्गी रोग हो सकता है। मेष राशि लग्न व लग्नेश के भी पीड़ित होने पर संभावना अधिक हो जाती है।

प्रथम भाव में शुक्र तथा छठे भाव में चंद्र होने पर मिर्गी हो सकती है

शुक्र व चंद्र केंद्र में तथा अन्य पापी ग्रह आठवें घर में हो तो भी यह रोग होता है।

चंद्र के पाप ग्रह की राशि में होने अथवा युति होने पर जातक मानसिक रोग से कष्ट पर पाता है।

चंद्र ग्रह पीड़ा से शांति के उपाय एवं टोटके (Remedies and tricks for peace from Moon planet pain) 

1. सोमवार का व्रत रखें।

2. किसी भी शुक्ल पक्ष के सोमवार से आरंभ कर लगातार तीन सोमवार तक किसी शिव मंदिर में खीर का दान करें।

3. दूषित चंद्र के प्रभाव से माता को कष्ट होता है अथवा स्वयं को मानसिक कष्ट के साथ फेफड़े आदि के रोग होते हैं। ऐसी स्थिति में किसी स्टील के बर्तन में कच्चा दूध भरकर उसमें कोई चांदी का सिक्का अथवा अंगूठी डालकर रक्त में सराहने रख कर सो जाएं सुबह उठकर बर्तन में से चांदी का सिक्का अथवा अंगूठी जो भी आपने डाली है निकालने पर इस पानी को सबसे पहले बिना किसी से बोले बबूल के पेड़ में डाल दे।

3. रात में दूध ना पियें।

4. घर में किसी भी स्थान पर जल एकत्रित ना होने दें शिव उपासना अवश्य करें चंद्र कवच स्तोत्र अथवा 108 नामों का नियमित अथवा सोमवार को अवश्य पाठ करें।

5. पत्रिका के अनुसार यदि आवश्यकता हो तो मोती धारण करें।

6. सोमवार को शिव उपासना के साथ शिवलिंग पर जल अर्पित करें तथा पांच श्वेत पुष्प अर्पित करें।

7. 11 सोमवार नियमित रूप से नौ कन्याओं को खीर का प्रसाद सिद्धो दक्षिणावर्ती शंख की सेवा करें।

8. सोमवार को सफेद गाय को गुड़ व चावल खिलाएं।

9. बाए हाथ में (स्त्री दाएं हाथ में) चांदी की चूड़ी अथवा कडा धारण करें।

10. सफेद रुमाल में सवा सौ ग्राम मिश्री बांध कर बहते जल में प्रवाहित करें ऐसा तीन सोमवार को करें।

11. सफेद रंग की कोई भी वस्तु किसी से मुफ्त में ना लें।

12. घर में पानी की टंकी का निर्माण न कराएं विशेषकर छत पर तो कदापि ना करें।

13. किसी भी तीर्थ पर बहते जल में अवश्य स्नान करें।

14. प्रातः उठते ही मन द्वादश ज्योतिर्लिंगों के नाम ले।

आशा करते है बताये गए उपायों को कर आप अवश्य ही लाभान्वित होंगे।

जन्म कुंडली मे अरिष्ट चंद्र शांति हेतु विशिष्ट उपाय 

जन्म कुंडली मे यदि चंद्रमा अशुभ भावो 2, 6, 8, या 12 में नीच राशिस्थ हो अथवा शत्रु राशि ग्रह से युत या दृष्ट हो तो चंद्रमा जातक/जातिका को धन, परिवार, माता आदि के संबंद में अशुभ फल प्रदान करता है। इस स्थिति में जातको को बुध, शनि, राहु, केतु की महादशा/अंतर्दशा में मध्य अनिष्ट फल प्राप्त होते है। नीचे दिए शास्त्रोक्त उपाय करने से चंद्र अरिष्ट की शांति कर शुभ फल प्रदान करता है।

चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, श्रावण, कार्तिक, मार्गशीर्ष के शुक्ल पक्ष प्रथम सोमवार से आरम्भ कर 16 अथवा 54 सोमवार विधि पूर्वक व्रत कर शिव-पार्वती का पूजन कर समाप्ति के दिन पांच छोटी कन्याओं को भोजन कराने से अरिष्ट शांति होती है।

कुंडली मे चंद्र यदि कर्क या वृष राशि का हो तो भगवती गौरी का पूजन करना शुभ होता है।

स्वास्थ्य अथवा त्रिविध तापों की अरिष्ट शांति के लिए यथा सामर्थ्य महामृत्युंजय मंत्र का जाप एवं दशांश हवन और अमोघ शिवकवच का पाठ करना शुभ होता है।

यदि चंद्रमा केतु के साथ अथवा चंद्र शनि की युति हो तो श्री गणेश जी की पूजन व गणेश सहस्त्रनाम से उपासना करनी चाहिए।

चंद्रमा यदि बुध युक्त एवं स्त्री राशि मे हो तो श्री दुर्गा शप्तशती का पाठ कल्याणकारी रहता है।

विवाहादि कार्यो में चंद्र-राहु आदि ग्रहों का अशुभ प्रभाव हो तो शिव पार्वती पूजन एवं पूर्णिमा का व्रत करना चाहिए।

सोमवार और पूर्णिमा को प्रातः काल स्नानादि कर चांदी के बर्तन में कच्ची लस्सी दूध गंगाजल युक्त की धारा शिवलिंग पर मंत्र पूर्वक चढ़ाना चाहिए।

प्रत्येक सोमवार को बबूल वृक्ष को भी दूध से सींचना लाभदायक रहता है।

चंद्र यदि संतान संबंधित अरिष्ट कर रहा हो तो शिवजी की आराधना मंत्र जप हवन करना शुभ होता है।

पूर्णिमा के दिन चंद्रोदय के समय चांदी अथवा तांबे के बर्तन में मधुमिश्रित पकवान यदि चंद्र को अर्पित किए जाए तो इनकी तृप्ति होती है।

पूर्णमाशी के दिन चांदी का कड़ा चांदी की चैन प्रतिष्ठा के बाद धारण करनी लाभदायी रहती है।

स्त्रियों को मोती की माला सोमवार के दिन जब स्वाति नक्षत्र पड़े प्रतिष्ठा कर गले मे धारण करने से अरिष्ट फलो की शांति होती है।

बारह वर्ष तक कि आयु के बालको की स्वास्थ्य रक्षा के लिए चांदी के गोल सिक्के पर चंद्र बीज मंत्र “ॐ श्रां श्री श्रौ सः चन्द्रमसे नमः” लिखवाकर इसी मंत्र से अभिमंत्रित कर प्रतिष्ठा पूर्वक गले मे धारण करना शुभ रहता है।

मानसिक व शारीरिक व्याधियों की शान्ति के लिए शरद पूर्णिमा की रात बादाम मेवा युक्त खीर चाँद की रौशनी में रखे अगले दिन सुबह भगवान को भोग लाग कर तथा ब्राह्मण को खिलाने के बाद स्वयं सेवन करने से अनेक रोगों की शांति होती है।

चंद्र की महादशा में शुक्र अथवा सूर्य की अंतर्दशा में क्रमशः रूद्र्राभिषेक तथा शिव पूजन व श्वेत वस्त्र खीर आदि दान करने से लाभ होता है।

क्षीरणी (खिरनी) की जड़ सोमवार रोहिणी नक्षत्र में सफेद धागे में चंद्र मंत्र से अभिमंत्रित करके धारण करने से विशेष शांति होती है।

प्रतिदिन सफेद गौ को मीठी रोटी एवं हरा चारा खिलाये।

छोटे बच्चों को कुंडली मे चंद्र अशुभ होने पर उन्हें कैल्शियम का सेवन कराए शुभ रहेगा।

चंद्र अशुभ ग्रहों राहु-शनि आदि से आक्रांत होकर अशुभ स्थानों 6, 8, 12 वे में हो तो दूध, दही, खोया, पनीर एवं अन्य श्वेत वस्तुओं का व्यवसाय न करें।

स्वास्थ्य अथवा मानसिक परेशानी होने पर जातक/जातिका चांदी के पात्र में ही जल का सेवन करें।

यदि कुंडली मे चंद्र-केतु का अशुभ योग 6, 8, या 12 भाव मे हो तो जातको को हरा वस्त्र, केले, साबुत मूंग, हरा पेठा आदि का दान करना चाहिए।

चंद्र यदि व्यवसाय में हानि कर रहा हो तो जातक/जातिका को चंद्रग्रहण के समय आटा, चांवल, चीनी, गुड़, सूखा नारियल, सफेद तिल एवं सतनाजा आदि का दान करना चाहिए तथा ग्रहण काल मे चंद्र के बीज मंत्र का यथा सामर्थ्य जप करना लाभकारी होता है।

चंद्र यदि संतान सुख में बाधक हो तो रात्रि काल के समय दूध एवं पानी मे सोने की सलाई गर्म कर बुझाकर पति/पत्नी दोनों को पीना शुभ होगा।

चन्द्र दान 

दान देने से जहां हमें कष्टों से मुक्ति प्राप्त होती है वही पुण्य लाभ प्राप्त होते हैं। दान देने का विधान प्राचीन काल से चला आ रहा है। देवो अथवा ग्रहों की कृपा प्राप्ति के लिए दान देने का महत्व विशेष माना गया है। क्योंकि दोनों का ही जीवन पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। यहां पर मैं आपको चंद्र ग्रह की पीड़ा से मुक्ति के लिए किए जाने वाले दान के बारे में जानकारी दे रहा हूं।

मोती अथवा कोई भी चंद्र का उपरत्न (यदि दान करना चाहे तो), 125 ग्राम से 11 किलो चावल जितना आप श्रद्धा अनुसार दान करना चाहे, चांदी का लोटा अथवा थाली अथवा कोई भी बर्तन चांदी का दीपक, शक्कर, मिश्री, शंख, सीपी, शुद्ध घी, दही, कपूर, सामर्थ्य हो तो चांदी, दक्षिणा, श्वेत वस्त्र, श्वेत कमल अथवा कोई भी पुष्प संभव हो तो चंद्र यंत्र, श्वेत बैल, या श्वेत बैल का खिलौना आदि यदि आप चंद्र देव की कृपा बनाए रखना चाहते हैं तो सप्ताह में एक बार सोमवार के दिन अथवा महीने में एक बार किसी भी सोमवार को उपरोक्त सामग्री में से किसी भी सामग्री का अपनी सामर्थ्य अनुसार दान कर सकते हैं। दान का सर्वोत्तम समय सूर्योदय से दो घड़ी तक का माना गया है। दान करने से पूर्व उपरोक्त वस्तु को सर से 11 बार अवश्य घुमाकर उतार लें।

यदि किसी भी जातक की जन्मकुंडली में चंद्र ग्रह कमजोर या अशुभ अवस्था में हो तो उन्हें प्रत्येक सोमवार के दिन सफेद चंदन से शिवलिंग पर त्रिपुंड अवश्य बनाना चाहिए इससे चंद्र ग्रह से सम्बंधित समस्या दूर होगी एवं मानसिक शांति बनी रहेगी।

कैसे होता चंद्रमा खराब ? 

पूर्वजों का अपमान करने और श्राद्ध कर्म नहीं करने से भी चन्द्र दूषित हो जाता है।

माता का अपमान करने या उनसे विवाद करने पर चन्द्र अशुभ प्रभाव देने लगता है।

उपाय:- सोमवार को सफेद वस्तु जैसे: दही, चीनी, चावल, सफेद वस्त्र, 1 जोड़ा जनेऊ, दक्षिणा के साथ दान करना और ‘ॐ सोम सोमाय नमः’ का 108 बार नित्य जाप करना श्रेयस्कर होता है। मोती को चांदी की अंगूठी में जड़वाकर आप सोमवार के दिन अपनी कनिष्ठिका अंगुली में धारण करें। इससे आपके कुंडली में चंद्रमा की स्थिति में सुधार आएगा ।

इन उपायों से मिलेगी चंद्र ग्रह की कृपा 

सोमवार के दिन चंद्र कृपा पाने के लिए चांदी के किसी पात्र में गंगाजल, दूध, चावल और बताशा या चीनी डालकर सूर्यास्त के बाद चंद्रमा को अर्घ्य दें।

• चंद्र को मजबूत करने के लिए हर सोमवार शिवलिंग पर दूध चढ़ाएं।

• चावल का दान भी आपके लिए उपयुक्त रहेगा।

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