Parshuram Dwadashi: पौराणिक कथाओं के अनुसार, कार्तिक शुक्ल द्वादशी और वैशाख शुक्ल द्वादशी ऐसी तिथियां है जो भगवान विष्णु की पूजा के लिए सर्वोत्तम मानी गई हैं। मान्यता है कि हजारों ब्राह्मणों को दान देने का जो फल प्राप्त होता है, वह इस वैशाख मास की द्वादशी में दान देने से प्राप्त हो जाता है। कार्तिक शुक्ल द्वादशी को नारायण निद्रा से उठते हं जबकि वैशाख शुक्ल द्वादशी को सर्वशक्ति संपन्न हो जाते हैं। वैशाख शुक्ल एकादशी को निकलने वाले अमृत की रक्षा करते हैं जिससे कि त्रयोदशी को देवताओं को इसका पान करा सकें।

वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को परशुराम द्वादशी भी कहते हैं। मान्यता है कि भगवान परशुराम भगवान विष्णु के छठवें अवतार हैं। जिनका प्राकट्य अक्षय तृतीया को हुआ था। लेकिन परशुराम जी के रूप में इनका जीवन आरंभ वैशाख शुक्ल द्वादशी को हुआ था। शास्त्रों में इस तिथि को अत्यंत शुभ बताया गया है। यह तिथि निसंतान दंपत्ति के लिए अति शुभ मानी गई हैं।

वैशाख द्वादशी को करें ये काम 

मान्यता है कि इस दिन भगवान नारायण को चंदन, फूल, धूप और तुलसीपत्र तांबे के पत्र में रखकर अर्पित करने चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से मां लक्ष्मी के साथ भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

वैशाख शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को रखा जाता है. शास्त्रों में इस व्रत को बहुत ही शुभ फलदायी माना जाता है. मान्यता है कि इस दिन निसंतान दंपत्ति पूरे विधि विधान से पूजा और व्रत करते हैं उनकी सूनी गोद जल्द भर जाती है. परशुराम जी को भगवान विष्णु के दस अवतारों में से छठे अवतार हैं, इन्हें अजर-अमर माना गया है पुराणों के अनुसार शास्त्र और शस्त्र विद्या में परांगत भगवान परशुराम का एक मात्र उद्देश्य था प्राणियों का कल्याण करना. परशुराम जी की को लेकर पुराणों में कहा गया है कि यह चिरंजीवी हैं और जब तक सृष्टि रहेगी तब तक इस धरती पर रहेंगे. इनकी उपासना से दुखियों, शोषितों और पीड़ितों को हर दुख से मुक्ति मिलती है.

परशुराम द्वादशी महत्व (Parshuram Dwadashi Importance) 

धार्मिक मान्यता है कि इस व्रत को करने से धार्मिक और बुद्धिजीवी संतान की प्राप्ति होती है. पौराणिक कथा के अनुसार परशुराम द्वादशी का व्रत निःसंतान दंपत्ति के लिए उत्तम है. प्राचीन काल में ऋषि याज्ञवल्क्य ने एक राजा को संतान प्राप्ति के लिए इस व्रत को करने की सलाह दी थी. कहते हैं कि इस व्रत के पुण्य से उसे पराक्रमी पुत्र की प्राप्ति हुई थी जो इतिहास में नल नामक राजा के नाम से जाना गया

परशुराम द्वादशी पूजा विधि (Parshuram Dwadashi Puja vidhi) 

परशुराम द्वादशी के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान कर निराहार व्रत का संकल्प लें. इसके बाद चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु की तस्वीर स्थापित करें. परशुराम जी का स्मरण करते हुए श्रीहरि को पीले फूल, पीले वस्त्र, मिठाई, भोग में तुलसी डालकर अर्पित करें. परशुराम जी की कथा का श्रवण करें

1. इस दिन व्रत करने के लिए, स्नान ध्यान से निवृत होकर व्रत का संकल्प लें।

2. इसके बाद भगवान परशुराम की मूर्ति स्थापित करें।

3. भगवान परशुराम की पूरी भक्ति भावना से पूजा-अर्चना करें।

4. इस दौरान मन में लाभ, क्रोध, ईर्ष्या जैसे विकारों को नहीं लाना चाहिए।

5. इस दिन व्रत करने वाले को निराहार रहना चाहिए।

6. शाम को आरती अर्चना करने के बाद फलाहार ग्रहण करें।

7. इसके बाद अगले दिन फिर से पूजा करने के उपरांत भोजन ग्रहण करें।

8. यह व्रत द्वादशी की प्रातः से शुरु होता है और दूसरे दिन त्रयोदशी तक चलता है।

ॐ जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि तन्नो परशुराम: प्रचोदयात्।। 

इस मंत्र का 108 बार जाप करें. आरती कर दान दें. संतान प्राप्ति की कामना करें. शाम को फिर से फूल अर्पित कर आरती करने के बाद फलाहार ग्रहण करें

 

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