हिन्दू धर्म में सभी कष्टों के निवारण एवं ईश्वर प्राप्ति के लिए नित्य पुजा का मार्ग श्रेष्ट माना गया है। नित्य पूजन और नित्य पूजा मंत्र जपने से श्रद्धा और विश्वास का ही जन्म नही होता है अपितु मन में एकाग्रता और दृढ इच्छाशक्ति का संचार होता है और दृढ संकल्प से हम किसी भी तरह के कार्य को कर पाने में सक्षम हो पाते है। दुनिया में खुश रहने के लिए भगवान में आस्था होना बेहद जरूरी है. ऐसे में यदि आप घर परिवार की सुख समृद्धि बनाये रखना चाहते हैं तो आपका ईश्वर पर अटूट विश्वास होना चाहिए. कहते हैं सच्चे मन से यदि भगवान को याद किया जाए और उनकी पूजा की जाए तो हमारी मनोकामनाएं आवश्य पूरी होती हैं.

वहीँ हिंदू धर्म में नित्य पूजा को ईश्वर के हृदय के सबसे करीब माना गया है. ऐसी मान्यता है कि नियमित रूप से नित्य पूजा करने से ईश्वर की प्राप्ति हो जाती है. आज हम आपको नित्य पूजा विधि, नित्य पूजा के मंत्र और नित्य कर्म पूजा विधि के कुछ जरूरी नियमों के बारे में बताने जा रहे हैं. नित्य पूजा को करने से मन में एकाग्रता बनी रहती है और इच्छा शक्ति में वृद्धि होती है. इसके इलावा यह हमे हर कठिन से कठिन कार्य करने के भी सक्षम बनाती है.

नित्य पूजा की आवश्यकता क्यों ? 

ऋग्वेद में कहा गया है 

ईयुष्टे ये पूर्वतरामपश्यन्व्युच्छन्तीमुषसं मत्यासः। 

अस्माभिरू नु प्रतिचक्ष्याभूदो ते यन्ति ये अपरीषु पश्यान् ॥

ऋग्वेद 1/I13/11

अर्थात जो मनुष्य उषाकाल से पहले उठकर नित्य कर्म करके ईश्वर की उपासना करते हैं, वे बुद्धिमान और धर्माचरण करने वाले होते हैं, जो स्त्री-पुरुष ईश्वर का ध्यान करके परस्पर प्रीतिपूर्वक बोलते हैं, वे अनेक प्रकार के सुख प्राप्त करते हैं।

परमात्मा की नित्य स्तुति के महत्त्व को भगवान वेदव्यास ने यूं बताया है।

तमेव चार्चयन् नित्यं भक्त्या पुरुषमव्ययम् । 

ध्यायन् स्तुवन्नमस्यंश्च यजमान स्तमेव च ॥ 

अनादि निधनं विष्णुं सर्वलोकमहेश्वरम् ।

लोकाध्यक्षं स्तुवन् नित्यं सर्वदुःखातिगो भवेत् ॥

महाभारत अनुशासनपर्व 149/5-6

अर्थात जो मनुष्य उस अविनाशी परम पुरुष का सदा भक्ति पूर्वक पूजन और ध्यान करता है तथा स्तवन और नमस्कार पूर्वक उसी की उपासना करता है, वह साधक उस अनादि, अनंत, सर्वव्यापी, सर्वलोक महेश्वर, अखिलाधिपति परमात्मा की नित्य स्तुति करता हुआ संपूर्ण दुखों से पार हो जाता है।

भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं 

पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति।

तदहं भक्त्युपढतमश्नामि प्रयतात्मनः ॥

श्रीमद्भगवद्गीता 9/26

अर्थात जो कोई भक्त मेरे लिए प्रेम से पत्र, पुष्य, फल, जल आदि अर्पण करता है, उस शुद्ध बुद्धि निष्काम प्रेमी भक्त का प्रेमपूर्वक अर्पण किया हुआ वह पत्र- पुष्पादि में सगुणरुप से प्रकट होकर प्रीति पूर्वक खाता हूं।

पद्मपुराण 5/84 में भगवान के पुष्पों के संबंध में बताया गया है कि अहिंसा प्रथम पुष्प, इंद्रिय निग्रह दूसरा पुष्प, प्राणियों पर दया तीसरा पुष्प, क्षमा चौथा पुष्प, शांति पांचवां पुष्प, मन का निग्रह छठा पुष्प, च्यान सातवां पुष्प, सत्य आठवां पुष्प है। बाहरी गुलाबादि के और भी पुष्प हैं, लेकिन भगवान् तो भीतरी अहिंसा आदि पुष्पों से ही अधिक प्रसन्न होते हैं।

परमपिता परमेश्वर की पूजा-अर्चना करने से मन को शांति मिलती है, जाने-अनजाने हुए पापों से मुक्ति मिलती है, देवत्व का भाव मन में पैदा होता है, आत्मविश्वास बढ़ता है, सद्का्ों में मन लगता है, जीवन को एक नई रोशनी मिलती है, झुकने, समर्पण करने और अहंकार रहित होने की प्रेरणा मिलती है, बुराई से बचने में सहायता मिलती है, चिंता और तनाव से मन मुक्त होकर प्रसन्न रहता है। पर इन सबकी प्राप्ति तभी हो सकती है, जब सच्चे मन, श्रद्धा एवं भावना से पूजा की जाए।

जैसे जमीन की गहराई में जाने से बहुमूल्य पदार्थों की प्राप्ति होती है, ठीक वैसे ही अंतर मन में उतरने से देव विभूतियां प्राप्त होती हैं। यूं तो देवी-देवताओं के पूजन की मूल भावना यही है कि जल की तरह निमंलता, विनम्रता, शीतलता, फूल की तरह हंसता-हंसाता जीवन, अक्षत की तरह अटूट निष्ठा, नैवेद्य की तरह मिठास-मधुरता से युक्त व्यक्तित्व, दीपक की तरह स्वयं जलकर दूसरों को प्रकाश देने वाला आचरण अपनाया जाए। भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं।

स्वकर्मणा तमभ्यर्च्य सिद्धिं विन्दति मानवः ।

श्रीमद्भगवद्गीता 18/16

अर्थात अपने अच्छे काम से भगवान की पूजा करके मनुष्य मुक्ति या परम आनंद को पाता है। स्वामी विवेकानंद ने कहा है-‘सौंपे गए कार्य को उत्तम तरीके से निर्वाह करना ही परमात्मा की सच्ची पूजा है। एक बार चैतन्य महाप्रभु से पूजा से संतुष्ट एक श्रद्धालु ने पूछा- गुरुदेव भगवान संपन्न लोगों की पूजा से संतुष्ट नहीं हुए। गोपियों की छाछ और विदुर के शाक उन्हें पसंद आए। लगता है पूजा के पदार्थों से ही उनकी प्रसन्नता का संबंध नहीं है। चैतन्य बोले-‘ठीक समझे वत्स! प्रभु के ही बनाए हुए सभी पदार्थ हैं, फिर उसे किस बात की कमी? वास्तव में पूजा तो साधक के भाव जागरण की एक मनोवैज्ञानिक पद्धति है। जो-जो वस्तुएं भगवान् को पूजा के समय चढ़ाई जाती हैं, वे इस बात की प्रतीक हैं कि भगवान् किस प्रकार के भावसंपन्न व्यक्तियों के भावों को अंगीकार करते हैं।

जानिए प्रात:काल का मंत्र : Know the morning mantra: 

प्रात​: उठकर अपने दोनों हाथों को सामने फैलाकर निम्न श्लोक पढ़ते हुए अपने हथेलियों का दर्शन करें

प्रात: कर-दर्शनम् Morning hand-seeing 

कराग्रे वसते लक्ष्मी करमध्ये सरस्वती।

करमूले तू गोविन्द: प्रभाते करदर्शनम्।।

भूमि पर चरण रखते समय जरूर स्मरण करें 

पृथ्वी क्षमा प्रार्थना Pray for earth forgiveness

समुद्र वसने देवी पर्वत स्तन मंडिते।

विष्णु पत्नी नमस्तुभ्यं पाद स्पर्शं क्षमश्वमेव

त्रिदेवों के साथ नवग्रह स्मरण Navagraha remembrance with trinity 

ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानु: शशी भूमिसुतो बुधश्च।

गुरुश्च शुक्र: शनिराहुकेतव: कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्।।

नित्यकर्म से निवृत्त हो स्नान करते समय इस मंत्र का स्मरण करें 

स्नान मंत्र Bath spell

गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती।

नर्मदे सिन्धु कावेरी जले अस्मिन् सन्निधिम् कुरु।।

पूजन के समय सूर्य आराधना के लिए : For worshiping the sun at the time of worship:

सूर्य नमस्कार

ॐ सूर्य आत्मा जगतस्तस्युषश्च

आदित्यस्य नमस्कारं ये कुर्वन्ति दिने दिने।

दीर्घमायुर्बलं वीर्यं व्याधि शोक विनाशनम्

सूर्य पादोदकं तीर्थ जठरे धारयाम्यहम्।।

ॐ मित्राय नम:

ॐ रवये नम:

ॐ सूर्याय नम:

ॐ भानवे नम:

ॐ खगाय नम:

ॐ पूष्णे नम:

ॐ हिरण्यगर्भाय नम:

ॐ मरीचये नम:

ॐ आदित्याय नम:

ॐ सवित्रे नम:

ॐ अर्काय नम:

ॐ भास्कराय नम:

ॐ श्री सवितृ सूर्यनारायणाय नम:

आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीदमम् भास्कर।

दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तु ते।।

जानें नित्य पूजा विधि: Daily worship method:

किसी भी पूजा या हवन के लिए कुछ जरूरी नियम बनाये गए हैं ऐसे में यदि सामग्री सही हो तो पूजा का फल अवश्य मिलता ही है. वहीँ बात अगर नित्य पूजा की करें तो इस पूजा में हम सूर्य, गणेश, दुर्गा माँ, शिव जी और विष्णु का पूजन करते हैं. इन भगवानो को पंचदेव भी कहा जाता है. रोज़ाना पंचदेव की पूजा करने से लक्ष्मी माँ की कृपा हम पर सदैव बनी रहती है धन की प्राप्ति होती है.

नित्य कर्म पूजा विधि पूजा का सही तरीका Nitya Karma Puja Vidhi Right Way of Worship 

1. सुबह स्नान के बाद मंदिर में घी और तेल का दीपक जलाएं

2. अब अगरबत्ती या धूपबत्ती से मंदिर को सुगंधित करें.

3. सबसे पहले गणेश जी की पूजा करें और उन्हें स्नान करवा कर वस्त्र अर्पित करें. अब धुप, रोली, अक्षत और पुष्प से उनकी प्रतिमा की पूजा करें.

4. इसके बाद विष्णु भगवान का ध्यान करें और उन्हें धूप, दीप, चंदन, जौ और पुष्प अर्पित करें.

5. अब भगवान शिव का ध्यान करके उन्हें पुष्प, अक्षत, चंदन आदि अर्पित करें.

6. इसके बाद दुर्गा माँ और सूर्य देव का ध्यान करके उन्हें पुष्प, दीप आदि चढ़ाएं.

7. अब पंचदेव को मिठाई एवं फल अर्पित करें और स्वच्छ जल चढ़ाएं.

8. पंच देव की आरती करके जल अर्पित करें.

9. आरती के पश्चात पंचदेव की परिक्रमा करें.

10. अंत में पुष्पांजली समर्पित करके पूजा दौर हुई गलतियों की क्षमा मांगे और नीचे दिए गए नित्य पूजा मंत्र का जाप करें.

दीप प्रज्वलन के समय इस मंत्र का स्मरण करें: 

दीप दर्शन मंत्र Deep Darshan Mantra

शुभं करोति कल्याणम् आरोग्यम् धनसंपदा।

शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपकाय नमोऽस्तु ते।।

दीपो ज्योति परं ब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्दन:।

दीपो हरतु मे पापं संध्यादीप नमोऽस्तु ते।।

गुरु मंत्र Magic mantra

गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः ।

गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥

भगवान श्री गणेश की स्तुति के लिए पवित्र पावन मंत्र… 

गणपति स्तोत्र Ganpati stotra

गणपति: विघ्नराजो लम्बतुन्ड़ो गजानन:।

द्वै मातुरश्च हेरम्ब एकदंतो गणाधिप:।।

विनायक: चारूकर्ण: पशुपालो भवात्मज:।

द्वादश एतानि नामानि प्रात: उत्थाय य: पठेत्।।

विश्वम तस्य भवेद् वश्यम् न च विघ्नम् भवेत् क्वचित्।

विघ्नेश्वराय वरदाय शुभप्रियाय।

लम्बोदराय विकटाय गजाननाय।।

नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय।

गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते।।

शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजं।

प्रसन्नवदनं ध्यायेतसर्वविघ्नोपशान्तये।।

गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बूफलचारु भक्षणम्ं।

उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम्॥

वक्र तुंड महाकाय, सूर्य कोटि समप्रभ:।

निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्व कार्येषु सर्वदा ॥

मां आदिशक्ति की आराधना के लिए स्मरण करें :

आदिशक्ति वंदना Adishakti Vandana

सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।

शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते।।

ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी

दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु‍ते ।

या देवी सर्वभूतेशु, शक्तिरूपेण संस्थिता ।

नमस्तसयै, नमस्तसयै, नमस्तसयै नमो नम: ॥

या देवी स्तुयते नित्यं विबुधैर्वेदपरागै: ।

सा मे वसतु जिह्रारो ब्रह्मरूपा सरस्वती ॥

नमस्तेस्तु महामायें श्रीपीठे सुरपूजिते ।

शंख्चक्ररादाह्स्ते महालक्ष्मी नमस्तु ते ॥

भगवान भोलेनाथ की आराधना के लिए सरल मंत्र का स्मरण करें : 

शिव स्तुति Shiva stuti

कर्पूर गौरम करुणावतारं, संसार सारं भुजगेन्द्र हारं।

सदा वसंतं हृदयार विन्दे, भवं भवानी सहितं नमामि।।

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्

उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥

विष्णु स्तुति Vishnu Stuti

शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं

विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम्।

लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्

वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्।।

श्रीकृष्ण स्तुति Shri krishna praise

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय॥

कस्तुरी तिलकम ललाटपटले, वक्षस्थले कौस्तुभम।

नासाग्रे वरमौक्तिकम करतले, वेणु करे कंकणम।।

सर्वांगे हरिचन्दनम सुललितम, कंठे च मुक्तावलि।

गोपस्त्री परिवेश्तिथो विजयते, गोपाल चूडामणी।।

मूकं करोति वाचालं पंगुं लंघयते गिरिम्‌।

यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्द माधवम्‌।।

त्वमादिदेवः पुरुषः पुराण स्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्।

वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप।।

वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः शशाङ्कः, प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च।

नमो नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्वः, पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते।।

श्रीराम वंदना Shriram Vandana

लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्।

कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये।।

श्रीरामाष्टक  Shri ramashtak

हे रामा पुरुषोत्तमा नरहरे नारायणा केशवा।

गोविन्दा गरूड़ध्वजा गुणनिधे दामोदरा माधवा।।

हे कृष्ण कमलापते यदुपते सीतापते श्रीपते।

बैकुण्ठाधिपते चराचरपते लक्ष्मीपते पाहिमाम्।।

एक श्लोकी रामायण A verse Ramayana

आदौ रामतपोवनादि गमनं हत्वा मृगं कांचनम्।

वैदेही हरणं जटायु मरणं सुग्रीवसम्भाषणम्।।

बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं लंकापुरीदाहनम्।

पश्चाद्रावण कुम्भकर्णहननं एतद्घि श्री रामायणम्।।

सरस्वती वंदना Saraswati Vandana

सरस्वती नमस्तुभ्यं, वरदे कामरूपिणी ।

विद्यारम्भं करिष्यामि सिद्धिर्भवतु मे सदा ॥

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।

या वींणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपदमासना।।

या ब्रह्माच्युतशङ्करप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।

सा माम पातु सरस्वती भगवती, निःशेषजाड्याऽपहा।।

शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमामाद्यां जगद्व्यापिनीं ।

वीणापुस्तकधारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम् ।

हस्ते स्फाटिकमालिकां च दधतीं पद्मासने संस्थितां

वन्दे ताम् परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम् ॥

हनुमान वंदना Hanuman Vandana

अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहम्‌।

दनुजवनकृषानुम् ज्ञानिनांग्रगणयम्‌।।

सकलगुणनिधानं वानराणामधीशम्‌।

रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।।

मनोजवं मारुततुल्यवेगम जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं।

वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणम् प्रपद्ये।।

गायत्री मंत्र 

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यम् भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ॥ 

स्वस्ति-वाचन  

ॐ स्वस्ति न इंद्रो वृद्धश्रवा: स्वस्ति न: पूषा विश्ववेदा:। 

स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्ट्टनेमि:स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु।। 

शांति पाठ 

प्रत्येक पूर्ण है। चाहे वह व्यक्ति हो, जगत हो, पत्थर, वृक्ष या अन्य कोई ब्रह्मांड हो, क्योंकि उस पूर्ण से ही सभी की उत्पत्ति हुई है। स्वयं की पूर्णता को प्राप्त करने के लिए ध्यान जरूरी है। जिस तरह एक बीज खिलकर वृक्ष बनकर हजारों बीजों में बदल जाता है, वैसी ही मनुष्य की भी गति है। यह संसार उल्टे वृक्ष के समान है। व्यक्ति के मस्तिष्क में उसकी पूर्णता की जड़ें हैं। ऐसा उपनिषदों में लिखा है।

ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते। 

पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥

वृहदारण्यक उपनिषद 

अर्थ : अर्थात वह सच्चिदानंदघन परब्रह्म पुरुषोत्तम परमात्मा सभी प्रकार से सदा सर्वदा परिपूर्ण है। यह जगत भी उस परब्रह्म से पूर्ण ही है, क्योंकि यह पूर्ण उस पूर्ण पुरुषोत्तम से ही उत्पन्न हुआ है। इस प्रकार परब्रह्म की पूर्णता से जगत पूर्ण होने पर भी वह परब्रह्म परिपूर्ण है। उस पूर्ण में से पूर्ण को निकाल देने पर भी वह पूर्ण ही शेष रहता है।

शांति पाठ Serenity Prayer

ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्ष (गुं) शान्ति:,

पृथिवी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:।

वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:,

सर्व (गुं) शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि।।

।।ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:।।

क्षमा याचना मंत्र 

पूजा में हुई जानी-अनजानी भूल के लिए क्षमायाचना मंत्र-

सभी देवी-देवताओं की पूजा में मंत्रों का जाप विशेष रूप से किया जाता है। पूजा से जुड़ी सभी क्रियाओं के लिए मंत्र बताए गए हैं। प्रार्थना, स्नान, ध्यान, भोग के मंत्रों की तरह ही क्षमायाचना मंत्र भी हैं। पूजा करते समय जाने-अनजाने हमसे कई तरह की भूल चूक हो जाती हैं। पूजा से जुड़ी इन भूलों के लिए क्षमायाचना मंत्र बोला जाता है। जब हम अपनी गलतियों के लिए भगवान से क्षमा मांगते हैं, तभी पूजा पूरी होती है।

पूजा में क्षमा मांगने का संदेश ये है कि दैनिक जीवन में हमसे जब भी कोई गलती हो जाए तो हमें तुरंत ही क्षमा मांग लेनी चाहिए। क्षमा के इस भाव से अहंकार खत्म होता है और हमारे रिश्तों में प्रेम बना रहता है।

पूजा में क्षमा मांगने के लिए ये मंत्र बोला जाता है 

आवाहनं न जानामि न जानामि तवार्चनम्।

पूजां श्चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वर॥

मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरं।

यत्पूजितं मया देव परिपूर्ण तदस्मतु। 

अर्थ

इस मंत्र का अर्थ यह है कि हे प्रभु। न मैं आपको बुलाना जानता हूं और न विदा करना। पूजा करना भी नहीं जानता। कृपा करके मुझे क्षमा करें। मुझे न मंत्र याद है और न ही क्रिया। मैं भक्ति करना भी नहीं जानता। यथा संभव पूजा कर रहा हूं, कृपया मेरी भूलों को क्षमा कर इस पूजा को पूर्णता प्रदान करें।

इस परंपरा का आशय यह है कि भगवान हर जगह है, उन्हें न आमंत्रित करना होता है और न विदा करना। यह जरूरी नहीं कि पूजा पूरी तरह से शास्त्रों में बताए गए नियमों के अनुसार ही हो, मंत्र और क्रिया दोनों में चूक हो सकती है। इसके बावजूद चूंकि मैं भक्त हूं और पूजा करना चाहता हूं, मुझसे चूक हो सकती है, लेकिन भगवान मुझे क्षमा करें। मेरा अहंकार दूर करें, क्योंकि मैं आपकी शरण में हूं।

नित्य पूजा विधि नियम Daily worship rules

1. पूजा के समय साफ और धुले कपड़े पहनें! हो सके तो धोती, कुर्ते का उपयोग करें।

2. जल को लोटे में रखें ध्यान रहे कि लोटा प्लास्टिक का ना हो. इसके लिए तांबे का बर्तन सबसे उत्तम माना जाता है.

3. चन्दन तांबे की कटोरी में न रखें।

4. शालिग्राम को अच्छत नहीं चढ़ाना चाहिए।

5. सूर्यदेव को शंख से अर्घ्य नही दें.

6. तुलसी का पत्ता बिना स्नान किये नहीं तोड़ना चाहिए क्योकि शास्त्रों में बताया गया है की यदि कोई व्यक्ति बिना नहाए ही तुलसी के पत्तो को तोड़ता है तो पूजा के समय तुलसी के ऐसे पत्ते भगवान द्वारा स्वीकार नहीं किये जाते.

7. स्त्रियाँ हनुमान चालीसा न पड़ें ऐसा किसी शास्त्र का आदेश नहीं, अत: महिलाएं भी हनुमान चालीसा का पाठ कर सकती हैं ।

नित्य पूजा मंत्र सावधानियाँ  Nitya Puja Mantra Precautions 

1. फूल पानी में न रखें, फूल टूटे न हों।

2. पूजा के वर्तन तांबे या पीतल के हों।

3. पूजा के समय लाल आसन (चटाई) में बैठें।

4. पूर्वजों की तस्वीर हमेसा उत्तर की दिवार में लगाएं।

5. पूजा के लिए हमेसा पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके बैठे।

6. घर में दो शंख रखने से कलह होता है! अत: एक शंख ही रखें।

7. पूजा स्थान जहां देवी देवताओं के तस्वीर हैं वहां अपने पूर्वजों की तस्वीर न रखें।

8. पंचदेव को तुलसी नहीं अर्पित करनी चाहिए.

9. माता दुर्गा को दूब नहीं चढ़ाना चाहिए ।

10. गणपती जी को तुलसी पत्र का भोग वर्जित है ।

11. भगवान विष्णु को बिना तुलसी पत्र का भोग स्वीकार नहीं है

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