हिंदू धर्म हमेशा से ही त्यौहारों, व्रत और विभिन्न प्रकार के पर्वों के लिये जाना जाता है। एक ऐसी ही महत्वपूर्ण तिथि को भडली नवमी के नाम से जाना जाता है। इस तिथि को आमतौर पर हिंदू समुदाय में विवाह के लिये शुभ दिनों के अंतिम दिन को माना जाता है। 

आषाढ़ माह में शुक्ल पक्ष नवमी तिथि को गुप्त नवरात्रि के समापन पर भड़ली नवमी का त्यौहार मनाया जाता है। नवमी तिथि होने के कारण इस दिन गुप्त नवरात्र का समापन होता है, भड़ली नवमी की तिथि अक्षय तृतीया के समान ही महत्व रखती है। इस तिथि को अबूझ मुहूर्त माना जाता है, शादी विवाह को लेकर इस तिथि का विशेष महत्व है, इस दिन बिना मुहूर्त देखे विवाह किया जा सकता है। भड़ली नवमी का त्यौहार श्रीहरि भगवान विष्णु को समर्पित है। भगवान विष्णु योगनिद्रा में जाने से पहले भड़ली नवमी का दिन भक्तों को देते हैं ताकि वह अपने बचे हुए शुभ कार्य इस दिन कर लें। भड़ली नवमी के बाद देवशयनी एकादशी है, इस समय भगवान श्रीहरि विष्णु चार माह के लिए शयन को चले जाते हैं।

क्या है भड़ली नवमी What is Bhadli Navami

आषाढ़ शुक्ल नवमी तिथि भडली नवमी जिसे आम बोलचाल की भाषा में भडल्या नवमी के नाम से जाना जाता हैं। सरल शब्दों में कहे तो इस दिन के बाद भगवान निंद्रा की अवस्था में चले जाते हैं। भडली नवमी भगवान विष्णु जी के निंद्रा की अवस्था ग्रहण करने से पहले का दिन मानी जाती है। और फिर इसके बाद विवाह की तिथि नहीं रखी जाती हैं क्योंकि भगवान का आशीर्वाद नहीं मिल पाता है। और इसलिए सभी भक्त इस विशेष दिन को बहुत ही अनोखे तरीके से मनाते है और ईश्वर का आशीर्वीद लेते है।

भडली नवमी को अन्य नामों से भी जाना जाता है जैसे आश्रम शुक्ल पक्ष, भटली नवमी, कंदर्प नवमी, भदरिया नवमी एवं बदरिया नवमी नामो से भी जाना जाता है।। भडली नवमी को आषाढ महीने के दौरान मानाया जाता है। यह त्योहार भगवान विष्णु से सीधे तौर पर जुड़ा हुआ है और उन्हीं के सम्मान में बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। भडली नवमी के उपरांत किसी भी प्रकार की धार्मिक त्यौहार या गतिविधि को संपन्न नहीं किया जाता है।

भडली नवमी तिथि अक्षय तृतीया और बसंत पंचमी की ही तरह अबूझ मुहूर्त वाली तिथि मानी जाती हैं। भडली नवमी को शुभ कार्य किये जाते हैं। आज गुप्त नवरात्रे समाप्त हो रहे हैं इसलिए यह दिन अत्यंत शुभ हैं। ऐसी मान्यता हैं की भडली नवमी को विवाह के मुहूर्त के लिए मुहूर्त निकलवाने की आवश्यकता नहीं होती। जिन लोगो के विवाह के मुहूर्त में बाधा आ रही हैं उनका विवाह भडली नवमी को करना शुभ माना गया हैं।

देवशयनी एकादशी के दिन से भगवान श्री हरी विष्णु क्षीर सागर में शयन करते हैं इसके बाद चार मास शुभ कार्य वर्जित रहेंगे अत: शुभ कार्य करने का अंतिम दिन भडली नवमी को माना गया हैं। विवाह आदि शुभ कार्य वर्जित हैं।

चातुर्मास के चार माह विवाह और अन्य शुभ कार्य नहीं किये जाते देव उठनी एकादशी पर देवताओ के उठने पर चातुर्मास समाप्त होगा देवउठनी एकादशी से शुभ कार्य प्रारम्भ हो जाते हैं शास्त्रों के अनुसार भडली नवमी को किये गये कार्य सिद्ध हो जाते हैं।

भडल्या नवमी तिथि का महत्व Importance of Bhadli Navami date

भडल्या नवमी तिथि के दिन शादी और विवाह के लिये काफी शुभ माना जाता है। कई लोग ऐसे भी होते है जिनके विवाह के लिये किसी भी प्रकार का कोई मुहुर्त नहीं निकलता है। उन लोगों के लिये यह मूहुर्त काफी शुभ होता है। ऐसा करने से उनके जीवन में किसी भी प्रकार का व्यवधान नहीं होता है। वहीं ऐसा भी माना जाता है कि इस दिन गुप्त नवरात्र का भी विश्राम होता है तो यह दिन और भी अधिक शुभ होता है।

भड़ली नवमी के दिन भगवान लक्ष्मी नारायण जी की पूजा की जाती है। भड़ली नवमी की पूजा करने के लिए सुबह घर की साफ सफाई करने के बाग स्नान करके पूरे धुले कपड़े पहनकर मौन रहकर पूजा-अर्चना करनी चाहिए। पूजा के दौरान भगवान को फूल, धूप, दीप और नैवेद्य चढ़ाना चाहिए। पूजा में बिल्व पत्र, हल्दी, कुमकुम या केसर से रंगे हुए चावल, पिस्ता, बादाम, काजू, लौंग, इलाइची, गुलाब या मोगरे का फूल, किशमिश, सिक्का आदि भगवान के सामने समर्पित करना चाहिए। पूजा में प्रयोग हुई सामग्री को किसी ब्राह्मण या मंदिर में दान कर देना चाहिए। ऐसा करने से भगवान लक्ष्मी नारायण प्रसन्न होते हैं और भक्त की इच्छा पूरी करते हैं।

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