कुण्‍डली मिलान में नाड़ी दोष का महत्त्व और नाड़ी दोष के उपाय 

विवाह के लिए कुण्डली और गुण मिलान करते समय नाड़ी दोष को नजर अंदाज नहीं करना चाहिए। 

ज्योतिष शास्त्र में 27 नक्षत्रों को 3 नाड़ियों में बांटा गया है आदि, मध्य तथा अंत्य। कुंडली मिलान करते हुए अगर वर-वधू दोनों ही आदि-आदि, मध्य-मध्य अथवा अंत्य-अंत्य में आएं, तो उनके साथ को नाड़ी दोष युक्त माना जाता है। गुण मिलान की प्रक्रिया में बनने वाले दोषों में से एक है ‘नाड़ी दोष’ जिसे सबसे अधिक अशुभ दोष माना जाता है तथा अनेक वैदिक ज्योतिषी यह मानते हैं कि कुंडली मिलान में नाड़ी दोष बनने से निर्धनता आना, संतान न होना और वर अथवा वधू दोनों में से एक अथवा दोनों की मृत्यु हो जाना जैसी भारी विपत्तियों का सामना करना पड़ सकता है। अगर आपकी कुंडली में नाड़ी दोष है और आप इसे छुटकारा पाना चाहते हैं तो जाने ज्योतिषी महत्व और उपाय

विवाह में वर-वधू के गुण मिलान में नाड़ी का सर्वाधिक महत्त्व को दिया गया है। 36 गुणों में से नाड़ी के लिए सर्वाधिक 8 गुण निर्धारित हैं। ज्योतिष की दृष्टि में तीन नाडियां होती हैं आदि, मध्य और अन्त्य। इन नाडियों का संबंध मानव की शारीरिक धातुओं से है। वर-वधू की समान नाड़ी होने पर दोषपूर्ण माना जाता है तथा संतान पक्ष के लिए यह दोष हानिकारक हो सकता है।

शास्त्रों में यह भी उल्लेख मिलता है कि नाड़ी दोष केवलब्रह्मण वर्ग में ही मान्य है। समान नाड़ी होने पर पारस्परिक विकर्षण तथा असमान नाड़ी होने पर आकर्षण पैदा होता है। आयुर्वेद के सिद्धांतों में भी तीन नाड़ियाँ वात (आदि), पित्त (मध्य) तथा कफ (अन्त्य) होती हैं। शरीर में इन तीनों नाडियों के समन्वय के बिगड़ने से व्यक्ति रूग्ण हो सकता है।

भारतीय ज्योतिष में नाड़ी का निर्धारण जन्म नक्षत्र से होता है। प्रत्येक नक्षत्र में चार चरण होते हैं।

नौ नक्षत्रों की एक नाड़ी होती है। जो इस प्रकार है।

आदि नाड़ी अश्विनी, आर्द्रा, पुनर्वसु, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, ज्येष्ठा, मूल, शतभिषा, पूर्व भाद्रपद ।

मध्य नाड़ी भरणी, मृगशिरा, पुष्य, पूर्वाफाल्गुनी, चित्रा, अनुराधा, पूर्वाषाढ़ा, धनिष्ठा और उत्तराभाद्रपद

अन्त्य नाड़ी कृतिका, रोहिणी, आश्लेषा, मघा, स्वाति, विशाखा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण तथा रेवती।

नाड़ी के तीनों स्वरूपों आदि, मध्य और अन्त्य आदि नाड़ी ब्रह्मा विष्णु और महेश का प्रतिनिधित्व करती हैं। यही नाड़ी मानव शरीर की संचरना की जीवन गति को आगे बढ़ाने का भी आधार है।

सूर्य नाड़ी, चंद्र नाड़ी और ब्रह्म नाड़ी जिसे इड़ा, पिंगला, सुषुम्णा के नाम से भी जानते हैं। कालपुरुष की कुंडली की संरचना बारह राशियों, सत्ताईस नक्षत्रों तथा योगो करणों आदि के द्वारा निर्मित इस शरीर में नाड़ी का स्थान सहस्रार चक्र के मार्ग पर होता है। यह विज्ञान के लिए अब भी पहेली बना हुआ है कि नाड़ी दोष वालों का ब्लड प्राय: ग्रुप एक ही होता है। और ब्लड ग्रुप एक होने से रोगों के निदान चिकित्सा उपचार आदि में समस्या आती हैं।

इड़ा, पिंगला, और सुसुम्णा हमारे मन मस्तिष्क और सोच का प्रतिनिधित्व करती है। यही सोच और वंशवृद्धि का द्योतक नाड़ी हमारे दांपत्य जीवन का आधार स्तंभ है। अत: नाड़ी दोष को आप गंभीरता से देखें। यदि एक नक्षत्र के एक ही चरण में वर कन्या का जन्म हुआ हो तो नाड़ी दोष का परिहार संभव नहीं है। और यदि परिहार है भी तो जन मानस के लिए असंभव है। ऐसा देवर्षि नारदने भी कहा है।

एक नाड़ी विवाहश्च गुणे: सर्वें: समन्वित:

वर्जनीभ: प्रयत्नेन दंपत्योर्निधनं। 

अर्थात वर कन्या की नाड़ी एक ही हो तो उस विवाह वर्जनीय है। भले ही उसमें सारे गुण हों, क्योंकि ऐसा करने से पति -पत्नी के स्वास्थ्य और जीवन के लिए संकट की आशंका उत्पन्न हो जाती है।

पुत्री का विवाह करना हो या पुत्र का, विवाह की सोचते ही कुण्‍डली मिलान की सोचते हैं जिससे सब कुछ ठीक रहे और विवाहोपरान्‍त सुखमय गृहस्‍थ जीवन व्‍यतीत हो. कुंडली मिलान के समय आठ कूट मिलाए जाते हैं, इन आठ कूटों के कुल अंक 36 होते हैं. इन में से एक कूट नाड़ी होता है जिसके सर्वाधिक अंक 8 होते हैं. लगभग 23 प्रतिशत इसी कूट के हिस्‍से में आते हैं, इसीलिए नाड़ी दोष प्रमुख है।

ऐसी लोक चर्चा है कि वर कन्या की नाड़ी एक हो तो पारि‍वारिक जीवन में अनेक बाधाएं आती हैं और संबंधों के टूटने की आशंका या भय मन में व्‍याप्‍त रहता है. कहते हैं कि यह दोष हो तो संतान प्राप्ति में विलंब या कष्‍ट होता है, पति-पत्नी में परस्‍पर ईर्ष्या रहती है और दोनों में परस्‍पर वैचारिक मतभेद रहता है. नब्‍बे प्रतिशत लोगों का एकनाड़ी होने पर ब्लड ग्रुप समान और आर एच फैक्‍टर अलग होता है यानि एक का पॉजिटिव तो दूसरे का ऋण होता है. हो सकता है इसलिए भी संतान प्राप्ति में विलंब या कष्‍ट होता है।

चिकित्सा विज्ञान की आधुनिक शोधों में भी समान ब्लड ग्रुप वाले युवक युवतियों के संबंध को स्वास्थ्य की दृष्टि से अनपयुक्त पाया गया है। चिकित्सकों का मानना है कि यदि लड़के का आरएच फैक्टर पॉजिटिव हो व लड़की का आरएच फैक्टर निगेटिव हो तो विवाह उपरांत पैदा होने वाले बच्चों में अनेक विकृतियाँ सामने आती हैं, जिसके चलते वे मंदबुद्धि व अपंग तक पैदा हो सकते हैं। वहीं रिवर्स केस में इस प्रकार की समस्याएँ नहीं आतीं,

इसलिए युवा अपना रक्तपरीक्षण अवश्य कराएँ, ताकि पता लग सके कि वर-कन्या का रक्त समूह क्या है। चिकित्सा विज्ञान अपनी तरहसे इस दोष का परिहार करता है, लेकिन ज्योतिष ने इस समस्या से बचने और उत्पन्न होने पर नाड़ी दोष के उपाय निश्चित किए हैं। इन उपायों में जप-तप, दान पुण्य व्रत अनुष्ठान आदि साधनात्मक उपचारों को अपनाने पर जोर दिया गया है।

शास्त्र वचन यह है कि एक ही नाड़ी होने पर गुरु और शिष्य मंत्र और साधक, देवता और पूजक में भी क्रमश: ईर्ष्या अरिष्ट और मृत्यु जैसे कष्टों का भय रहता है।

देवर्षि नारद ने भी कहा है वर कन्या की नाड़ी एक ही हो तो वह विवाह वर्जनीय है. भले ही उसमें सारे गुण हों, क्योंकि ऐसा करने से तो पति-पत्नी के स्वास्थ्य और जीवनके लिए संकट की आशंका उत्पन्न हो जाती है।

वेदोक्त श्लोक Vedokta Shloka 

अश्विनी रौद्र आदित्यो, अयर्मे हस्त ज्येष्ठयो।

निरिति वारूणी पूर्वा आदि नाड़ी स्मृताः॥

भरणी सौम्य तिख्येभ्यो, भग चित्रा अनुराधयो।

आपो च वासवो धान्य मध्य नाड़ी स्मृताः॥

कृतिका रोहणी अश्लेषा, मघा स्वाती विशाखयो।

विश्वे श्रवण रेवत्यो, अंत्य नाड़ी स्मृताः॥ 

आदि नाड़ी के अंतर्गत 1, 6, 7, 12, 13,18,19,24,25 वें नक्षत्र आते हैं।

मध्य नाड़ी के अंतर्गत 2, 5, 8, 11, 14, 17, 20, 23, 26 नक्षत्र आते हैं।

अन्त्य नाड़ी के अंतर्गत 3, 4, 9, 10, 15, 16, 21, 22, 27 वें नक्षत्र आते हैं।

‌‌‌गण

अश्विनी मृग रेवत्यो, हस्त: पुष्य पुनर्वसुः।

अनुराधा श्रुति स्वाती, कथ्यते देवतागण॥

त्रिसः पूर्वाश्चोत्तराश्च, तिसोऽप्या च रोहणी।

भरणी च मनुष्याख्यो, गणश्च कथितो बुधे॥

कृतिका च मघाऽश्लेषा, विशाखा शततारका।

चित्रा ज्येष्ठा धनिष्ठा, च मूलं रक्षोगणः स्मृतः॥

देव गण- नक्षत्र 1, 5, 27, 13, 8, 7, 17, 22, 15,।

मनुष्य गण- नक्षत्र 11, 12, 20, 21, 25, 26, 6, 4।

राक्षस गण- नक्षत्र 3, 10, 9, 16, 24, 14, 18, 23, 19।

स्वगणे परमाप्रीतिर्मध्यमा देवमर्त्ययोः।

मर्त्यराक्षसयोर्मृत्युः कलहो देव रक्षसोः॥

संगोत्रीय विवाह को कराने के लिए कर्म कांडों में एक विधान है, जिसके चलते संगोत्रीय लड़के का दत्तक दान करके विवाह संभव हो सकता है।

इस विधान में जो माँ-बाप लड़के को गोद लेते हैं। विवाह में उन्हीं का नाम आता है। वहीं ज्योतिष के वैज्ञानिक पक्ष के अनुरूप यदि एक ही रक्त समूह वाले वर-कन्या का विवाह करा दिया जाता है तो उनकी होने वाली संतान विकलांग पैदा हो सकती है।

अत: नाड़ी दोष का विचार ही आवश्यक है. एक नक्षत्र में जन्मे वर कन्या के मध्य नाड़ी दोष समाप्त हो जाता है लेकिन नक्षत्रों में चरण भेद आवश्यक है.

ऐसे अनेक सूत्र हैं जिनसे नाड़ी दोष का परिहार हो जाता है। जैसे दोनों की राशि एक हो लेकिन नक्षत्र अलग-अलग हों. वर कन्या का नक्षत्र एक हो और चरण अलग-अलग हों. उदाहरण वर-ईश्वर (कृतिका द्वितीय), वधू उमा (कृतिका तृतीया) दोनों की अंत्य नाड़ी है। परंतु कृतिका नक्षत्र के चरण भिन्नता के कारण शुभ है।

एक ही नक्षत्र हो परंतु चरण भिन्न हों यह निम्न नक्षत्रों में होगा।

आदि नाड़ी वर- आर्द्रा, (मिथुन), वधू- पुनर्वसु, प्रथम, तृतीय चरण (मिथुन), वर उत्तरा फाल्गुनी (कन्या)- वधू- हस्त (कन्या राशि)

मध्य नाड़ी वर- शतभिषा (कुंभ)- वधू- पूर्वाभाद्रपद प्रथम, द्वितीय, तृतीय (कुंभ)

अन्त्य नाड़ी वर- कृतिका- प्रथम, तृतीय, चतुर्थ (वृष)- वधू- रोहिणी (वृष)

वर- स्वाति (तुला)- वधू-विशाखा- प्रथम, द्वितीय, तृतीय (तुला)

वर- उत्तराषाढ़ा- द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ (मकर)- वधू- श्रवण (मकर)

एक नक्षत्र हो परंतु राशि भिन्न हो same star but different zodiac sign 

जैसे वर अनिल- कृतिका- प्रथम (मेष) तथा वधू इमरती- कृतिका- द्वितीय (वृष राशि)। दोनों की अन्त्य नाड़ी है परंतु राशि भिन्नता के कारण शुभ पादवेध नहीं होना चाहिए. वर-कन्‍या के नक्षत्र चरण प्रथम और चतुर्थ या द्वितीय और तृतीय नहीं होने चाहिएं.

उक्त परिहारों में यह ध्यान रखें कि वधू की जन्म राशि, नक्षत्र तथा नक्षत्र चरण, वर कीराशि, नक्षत्र व चरण से पहले नहींहोने चाहिए। अन्यथा नाड़ी दोष परिहार होते हुए भी शुभ नहीं होगा। उदाहरण देखें-

वर- कृतिका- प्रथम (मेष), वधू- कृतिका द्वितीय (वृष राशि)-

शुभ वर- कृतिका- द्वितीय (वृष), वधू-कृतिका- प्रथम

(मेष राशि)- अशुभ

1. वैसे तो वर कन्या के राशियों के स्वामी आपस में मित्र हो तो वर्ण दोष, वर्ग दोष, तारा दोष, योनि दोष, गण दोष भी नष्ट हो जाता है.

2. वर और कन्या की कुंडली में राशियों के स्वामी एक ही हो या मित्र हो अथवानवांश के स्वामी परस्पर मित्र हो या एक ही ही हो तो सभी कूट दोष समाप्त हो जातेहैं.

3. नाड़ी दोष हो तो महामृत्युञ्जय मंत्र का जाप अवश्य करना चाहिए. इससे दांपत्य जीवन में आ रहे सारे दोष समाप्त हो जाते हैं.

नाड़ी दोष का उपचार Treatment of Nadi  Dosha 

पीयूष धारा के अनुसार स्वर्ण दान, गऊ दान, वस्त्र दान, अन्न दान, स्वर्ण की सर्पाकृति बनाकर प्राण प्रतिष्ठा तथा महामृत्युञ्जय जप करवाने से नाड़ी दोष शान्त हो जाता है।

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार अगर वर और कन्या की राशि समान हो तो उनके बीच परस्पर मधुर सम्बन्ध रहता है.दोनों की राशियां एक दूसरे से चतुर्थ और दशम होने पर वर वधू का जीवन सुखमय होता है. तृतीय और एकादश राशि होने पर गृहस्थी में धन की कमी नहीं रहती है.ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि वर और कन्या की कुण्डली में षष्टम भाव,अष्टम भाव और द्वादश भाव में समान राशि नहीं हो.।

वर और कन्या की राशि अथवा लग्न समान होने पर गृहस्थी सुखमय रहती है परंतु गौर करने की बात यह है कि राशि अगर समान हो तो नक्षत्र भेद होना चाहिए अगर नक्षत्र भी समान हो तो चरण भेद आवश्यक है.अगर ऐसा नही है तो राशि लग्न समान होने पर भी वैवाहिक जीवन के सुख में कमी आती है।

नाड़ी दोष का उपाय Remedy for Nadi Dosha 

नाड़ी दोष की प्रचलित धारणा के अनुसार वर-वधू दोनों की नाड़ी आदि होने की स्थिति में तलाक या अलगाव की प्रबल संभावना बनती है तथा वर-वधू दोनों की नाड़ी मध्य या अंत होने से वर-वधू में से किसी एक या दोनों की मृत्यु की प्रबल संभावना बनती है। नाड़ी दोष को निम्नलिखित स्थितियों में निरस्त माना जाता है :

1. यदि वर-वधू दोनों का जन्म एक ही नक्षत्र के अलग-अलग चरणों में हुआ हो तो वर-वधू की नाड़ी एक होने के बावजूद भी नाड़ी दोष नहीं बनता।

2. यदि वर-वधू दोनों की जन्म राशि एक ही हो किन्तु नक्षत्र अलग-अलग हों तो वर-वधू की नाड़ी एक होने के बावजूद भी नाड़ी दोष नहीं बनता।

3. यदि वर-वधू दोनों का जन्म नक्षत्र एक ही हो किन्तु जन्म राशियां अलग-अलग हों तो वर-वधू की नाड़ी एक होने के बावजूद भी नाड़ी दोष नहीं बनता।

कुण्डली में दोष विचार defect in horoscope 

विवाहके लिए कुण्डली मिलान करते समय दोषों का भी विचार करना चाहिए. कन्या की कुण्डली में वैधव्य योग , व्यभिचार योग, नि:संतान योग, मृत्यु योग एवं दारिद्र योग हो तो ज्योतिष की दृष्टि से सुखी वैवाहिक जीवन के यह शुभ नहीं होता है.इसी प्रकार वर की कुण्डली में अल्पायु योग, नपुंसक योग,व्यभिचार योग, पागलपन योग एवं पत्नी नाश योग रहने पर गृहस्थ जीवन में सुख का अभाव होता है.

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कन्या की कुण्डली में विष कन्या योग होने पर जीवन में सुख का अभाव रहता है.पति पत्नी के सम्बन्धों में मधुरता नहीं रहती है.

हालाँकि कई स्थितियों में कुण्डली में यह दोष प्रभावशाली नहीं होता है अत: जन्म कुण्डली के अलावा नवमांश और चन्द्र कुण्डली से भी इसका विचार करके विवाह किया जा सकता है।

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