जानें पापमोचनी एकादशी व्रत कथा महत्व व्रत विधि 

पापमोचनी एकादशी चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। पाप का अर्थ है अधर्म या बुरे कार्य और मोचनी का अर्थ है मुक्ति पाना। तो पापमोचनी एकादशी पापों को नष्ट करने वाली एकादशी है। यह व्रत व्यक्ति को उसके सभी पापों से मुक्त कर उसके लिये मोक्ष के मार्ग दिखता है। इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु जी का पूजन करने से अतिशुभ फलों की प्राप्ति होती है।

पापमोचनी एकादशी का महत्व

जैसा कि इस एकादशी तिथि के नाम से ही पता चलता है कि यह एकादशी तिथि पापों का नाश करने वाली है। मान्यता है कि इस एकादशी का जो भी भक्त श्रद्धा पूर्वक व्रत करता है उसका कल्याण होता है। जो भी व्यक्ति भक्ति भाव से पापमोचनी एकादशी का व्रत करता है और जीवन में अच्छे कार्यों को करने का संकल्प लेता है उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और सभी दुखों से छुटकारा मिलता है। पाप मोचनी एकादशी का व्रत करने वाला व्यक्ति धन धान्य से पूर्ण होकर ख़ुशी से जीवन व्यतीत करता है।

पापमोचनी एकादशी व्रत कथा

भविष्य पुराण की कथा के अनुसार भगवान अर्जुन से कहते हैं, राजा मान्धाता ने एक समय में लोमश ऋषि से जब पूछा। हे प्रभु! यह बताएं कि मनुष्य जो जाने अनजाने में पाप कर्म करता है वह उससे कैसे मुक्त हो सकता है।

राजा मान्धाता के इस प्रश्न के जवाब में लोमश ऋषि ने राजा को एक कहानी सुनाई कि चैत्ररथ नामक सुन्दर वन में च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी ऋषि तपस्या पूरे लीन थे। इस वन में एक दिन मंजुघोषा नाम की अप्सरा की नजर ऋषि पर पड़ी तो वह उनपर मोहित हो गयी और उन्हें अपनी ओर आकर्षित करने हेतु प्रयत्न करने लगी। कामदेव भी उस समय उस वन से गुजर रहे थे। इसी क्रम में उनकी नजर अप्सरा पड़ी। वह उसकी मनोभावना को समझते हुए उसकी सहायता करने लगे। अप्सरा अपने प्रयत्न में सफल हुई और ऋषि वासना के प्रति आकर्षित हो गए।

काम के वश में होकर ऋषि शिव की तपस्या का व्रत भूल गए और अप्सरा के साथ रमण-गमन करने लगे। कई वर्षों के बाद जब उनकी चेतना जगी तो उन्हें एहसास हुआ कि वह शिव की तपस्या से विरक्त हो चुके हैं। तब उन्हें उस अप्सरा पर बहुत क्रोध हुआ और तपस्या भंग करने का दोषी जानकर ऋषि ने अप्सरा को श्राप दे दिया कि तुम पिशाचिनी बन जाओ। श्राप से दु:खी होकर वह ऋषि के पैरों पर गिर पड़ी और श्राप से मुक्ति के लिए अनुनय-विनय करने लगी।

मेधावी ऋषि ने तब उस अप्सरा को विधि-पूर्वक चैत्र कृष्ण एकादशी का व्रत करने के लिए कहा। भोग में निमग्न रहने के कारण ऋषि का तेज भी लोप हो गया था अत: ऋषि ने भी इस एकादशी का व्रत किया जिससे उनके पाप नष्ट हो गए। उधर अप्सरा भी इस व्रत के प्रभाव से पिशाच योनि से मुक्त हो गयी और उसे सुन्दर रूप प्राप्त हुआ। जिसके बाद वह अप्सरा स्वर्ग के लिए प्रस्थान कर गई।

पापमोचनी एकादशी दो शब्दों से मिलकर बनी हैं। पाप यानी की दुष्ट कर्म, गलती और मोचनी यानी की मुक्ती, छुड़ाने वाली अर्थात पापमोचनी एकादशी का मूल अर्थ हुआ हर तरह के पापों से मुक्ति दिलाने वाली। इस दिन जो भी जातक पूरी श्रद्धा से व्रत करता हैं, उसे जीवन में सुख-समृद्धि के साथ साथ मोक्ष की प्राप्ति होती हैं। इस व्रत में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है।

पापमोचनी एकादशी व्रत विधि

01. पापमोचनी एकादशी व्रत में भगवान विष्णु के चतुर्भुज रूप की पूजा की जाती है।

02. व्रत के दिन सूर्योदय काल में उठें, स्नान कर व्रत का संकल्प लें।

03. संकल्प लेने के बाद भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए।

04. उनकी प्रतिमा के सामने बैठकर श्रीमद भागवत कथा का पाठ करें

05. एकादशी व्रत की अवधि 24 घंटों की होती है।

06. एकादशी व्रत में दिन के समय में श्री विष्णु जी का स्मरण करना चाहिए।

07. दिन व्रत करने के बाद जागरण करने से कई गुणा फल प्राप्त होता है।

08. इसलिए रात्रि में श्री विष्णु का पाठ करते हुए जागरण करना चाहिए।

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