हरतालिका तीज (गौरी व्रत) व्रत हरतालिका तीज शुभ मुहूर्त व्रत कथा पूजा विधि पूजा सामग्री 

हरतालिका तीज का व्रत हिन्दू धर्म में सबसे बड़ा व्रत माना जाता हैं। हरतालिका तीज व्रत भाद्रपद शुक्ल पक्ष तृतीया को माता गौरी एवं भगवान भोले नाथ की पूजा-आराधना के साथ रखा जाता है। सौभाग्यवती स्त्रियां अपने सुहाग को अखण्ड बनाए रखने और अविवाहित युवतियां इच्छित वर पाने के लिए हरतालिका तीज का व्रत करती हैं। मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल और बिहार में मनाया जाने वाला यह त्योहार करवाचौथ से भी कठिन माना जाता है। इस व्रत में पूरे दिन निर्जल व्रत किया जाता है, और अगले दिन पूजन के पश्चात ही व्रत पूरा किया जाता है। इस व्रत को करने से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है शास्त्रों के अनुसार हरतालिका तीज की पूजा प्रदोष काल में करना श्रेष्ठ माना जाता है,

क्यों कहते हैं हर तालिका 

यह दो शब्दों के मेल से बना माना जाता है हरत एवं आलिका। हरत का तात्पर्य हरण से लिया जाता है और आलिका सखियों को संबोंधित करता है। मान्यता है कि इस दिन सखियां माता पार्वती की सहेलियां उनका हरण कर उन्हें जंगल में ले गई थीं। जहां माता पार्वती ने भगवान शिव को वर रूप में पाने के लिये कठोर तप किया था। तृतीया तिथि को तीज भी कहा जाता है। हरतालिका तीज के पिछे एक मान्यता यह भी है कि जंगल में स्थित गुफा में जब माता भगवान शिव की कठोर आराधना कर रही थी तो उन्होंने रेत के शिवलिंग को स्थापित किया था। मान्यता है कि यह शिवलिंग माता पार्वती द्वारा हस्त नक्षत्र में भाद्रपद शुक्ल तृतीया तिथि को स्थापित किया था इसी कारण इस दिन को हरियाली तीज के रूप में मनाया जाता है।

क्यों किया गया था माता पार्वती का हरण 

दरअसल माता पार्वती के कठोर तप से उनकी दशा बहुत खराब रहने लगी थी उनके पिता उनकी इस दशा से काफी परेशान थे। एक दिन नारद जी ने उन्हें आकर कहा कि पार्वती के कठोर तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु आपकी पुत्री से विवाह करना चाहते हैं। नारद मुनि की बात सुनकर गिरीराज बहुत प्रसन्न हुए। उधर भगवान विष्णु के सामने जाकर नारद मुनि बोले कि गिरीराज पार्वती से आपका विवाह करवाना चाहते हैं। भगवान विष्णु ने भी इसकी अनुमति दे दी। फिर माता पार्वती के पास जाकर नारद जी ने सूचना दी कि आपके पिता ने आपका विवाह भगवान विष्णु से तय कर दिया है। यह सुनकर पार्वती बहुत निराश हुई उन्होंने अपनी सखियों से अनुरोध कर उसे किसी एकांत गुप्त स्थान पर ले जाने को कहा।

माता पार्वती की इच्छानुसार उनके पिता गिरीराज की नज़रों से बचाकर उनकी सखियां माता पार्वती को घने सुनसान जंगल में स्थित एक गुफा में छोड़ आयीं। यहीं रहकर उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिये कठोर तप शुरु किया जिसके लिये उन्होंने रेत के शिवलिंग की स्थापना की। संयोग से हस्त नक्षत्र में भाद्रपद शुक्ल तृतीया का वह दिन था जब माता पार्वती ने शिवलिंग की स्थापना की। इस दिन निर्जला उपवास रखते हुए उन्होंने रात्रि में जागरण भी किया। उनके कठोर तप से भगवान शिव प्रसन्न हुए माता पार्वति को उनकी मनोकामना पूर्ण होने का वरदान दिया। अगले दिन अपनी सखी के साथ माता पार्वती ने व्रत का पारण किया और समस्त पूजा सामग्री को गंगा नदी में प्रवाहित कर दिया।

उधर माता पार्वती के पिता अपनी भगवान विष्णु से पार्वती के विवाह का वचन दिये जाने के पश्चात पुत्री के अक्समात घर छोड़ देने से व्याकुल थे। पार्वती को तलाशते तलाशते वे उस स्थान तक आ पंहुचे इसके पश्चात माता पार्वती ने उन्हें अपने घर छोड़ देने का कारण बताया और भगवान शिव से विवाह करने के अपने संकल्प और शिव द्वारा मिले वरदान के बारे में बताया। तब पिता गिरीराज भगवान विष्णु से क्षमा मांगते हुए भगवान शिव से अपनी पुत्री के विवाह को राजी हुए।

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महिलाओं में संकल्प शक्ति बढाता है हरितालिका तीज का व्रत 

हरितालिका तीज का व्रत महिला प्रधान है।इस दिन महिलायें बिना कुछ खायें पिये व्रत रखती है। यह व्रत संकल्प शक्ती का एक अनुपम उदाहरण है। संकल्प अर्थात किसी कर्म के लिये मन मे निश्चित करना कर्म का मूल संकल्प है। इस प्रकार संकल्प हमारी अन्तरीक शक्तियोंका सामोहिक निश्चय है।इसका अर्थ है-व्रत संकल्प से ही उत्पन्न होता है। व्रत का संदेश यह है कि हम जीवन मे लक्ष्य प्राप्ति का संकल्प लें संकल्प शक्ति के आगे असंम्भव दिखाई देता लक्ष्य संम्भव हो जाता है। माता पार्वती ने जगत को दिखाया की संकल्प शक्ति के सामने ईश्वर भी झुक जाता है।

अच्छे कर्मो का संकल्प सदा सुखद परिणाम देता है। इस व्रत का एक सामाजिक संदेश विषेशतः महिलाओं के संदर्भ मे यह है कि आज समाज मे महिलायें बिते समय की तुलना मे अधिक आत्मनिर्भर व स्वतंत्र है।महिलाओं की भूमिका मे भी बदलाव आये है ।घर से बाहर निकलकर पुरुषों की भाँति सभी कार्य क्षेत्रों मे सक्रिय है।ऎसी स्थिति मे परिवार व समाज इन महिलाओं की भावनाओ एवं इच्छाओं का सम्मान करें, उनका विश्वास बढाएं, ताकि स्त्री व समाज सशक्त बनें।

हरतालिका तीज व्रत विधि और नियम 

हरतालिका पूजन प्रदोष काल में किया जाता हैं। प्रदोष काल अर्थात दिन रात के मिलने का समय। सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्त को प्रदोषकाल कहा जाता है। हरतालिका पूजन के लिए शिव, पार्वती, गणेश एव रिद्धि सिद्धि जी की प्रतिमा बालू रेत अथवा काली मिट्टी से बनाई जाती हैं। विविध पुष्पों से सजाकर उसके भीतर रंगोली डालकर उस पर चौकी रखी जाती हैं। चौकी पर एक अष्टदल बनाकर उस पर थाल रखते हैं। उस थाल में केले के पत्ते को रखते हैं। सभी प्रतिमाओ को केले के पत्ते पर रखा जाता हैं। सर्वप्रथम शुद्ध घी का दीपक जलाएं। तत्पश्चात सीधे (दाहिने) हाथ में अक्षत रोली बेलपत्र, मूंग, फूल और पानी लेकर इस मंत्र से संकल्प करें –

“उमामहेश्वरसायुज्य सिद्धये हरितालिका व्रत महं करिष्ये”।

इसके बाद कलश के ऊपर नारियल रखकर लाल कलावा बाँध कर पूजन किया जाता हैं कुमकुम, हल्दी, चावल, पुष्प चढ़ाकर विधिवत पूजन होता हैं। कलश के बाद गणेश जी की पूजा की जाती हैं।

उसके बाद शिव जी की पूजा जी जाती हैं। तत्पश्चात माता गौरी की पूजा की जाती हैं। उन्हें सम्पूर्ण श्रृंगार चढ़ाया जाता हैं। इसके बाद अन्य देवताओं का आह्वान कर षोडशोपचार पूजन किया जाता है।

इसके बाद हरतालिका व्रत की कथा पढ़ी जाती हैं। इसके पश्चात आरती की जाती हैं जिसमे सर्वप्रथम गणेश जी की पुनः शिव जी की फिर माता गौरी की आरती की जाती हैं। इस दिन महिलाएं रात्रि जागरण भी करती हैं और कथा-पूजन के साथ कीर्तन करती हैं। प्रत्येक प्रहर में भगवान शिव को सभी प्रकार की वनस्पतियां जैसे बिल्व-पत्र, आम के पत्ते, चंपक के पत्ते एवं केवड़ा अर्पण किया जाता है। आरती और स्तोत्र द्वारा आराधना की जाती है। हरतालिका व्रत का नियम हैं कि इसे एक बार प्रारंभ करने के बाद छोड़ा नहीं जा सकता।

प्रातः अन्तिम पूजा के बाद माता गौरी को जो सिंदूर चढ़ाया जाता हैं उस सिंदूर से सुहागन स्त्री सुहाग लेती हैं। ककड़ी एवं हलवे का भोग लगाया जाता हैं। उसी ककड़ी को खाकर उपवास तोडा जाता हैं। अंत में सभी सामग्री को एकत्र कर पवित्र नदी एवं कुण्ड में विसर्जित किया जाता हैं।

भगवती उमा की पूजा के लिए ये मंत्र बोलना चाहिए 

ऊं उमायै नम: ऊं पार्वत्यै नम: ऊं जगद्धात्र्यै नम: ऊं जगत्प्रतिष्ठयै नम: ऊं शांतिरूपिण्यै नम: ऊं शिवायै नम:

भगवान शिव की आराधना इन मंत्रों से करनी चाहिए 

ऊं हराय नम: ऊं महेश्वराय नम: ऊं शम्भवे नम: ऊं शूलपाणये नम: ऊं पिनाकवृषे नम: ऊं शिवाय नम: ऊं पशुपतये नम: ऊं महादेवाय नम:

निम्न नामो का उच्चारण कर बाद में पंचोपचार या सामर्थ्य हो तो षोडशोपचार विधि से पूजन किया जाता है। पूजा दूसरे दिन सुबह समाप्त होती है, तब महिलाएं द्वारा अपना व्रत तोडा जाता है और अन्न ग्रहण किया जाता है।

हरतालिका व्रत पूजन की सामग्री 

1- फुलेरा विशेष प्रकार से फूलों से सजा होता है।

2- गीली काली मिट्टी अथवा बालू रेत।

3- केले का पत्ता।

4- विविध प्रकार के फल एवं फूल पत्ते।

5- बेल पत्र, शमी पत्र, धतूरे का फल एवं फूल, तुलसी मंजरी।

6- जनेऊ , नाडा, वस्त्र,।

7- माता गौरी के लिए पूरा सुहाग का सामग्री, जिसमे चूड़ी, बिछिया, काजल, बिंदी, कुमकुम, सिंदूर, कंघी, महावर, मेहँदी आदि एकत्र की जाती हैं। इसके अलावा बाजारों में सुहाग पूड़ा मिलता हैं जिसमे सभी सामग्री होती हैं।

8- घी, तेल, दीपक, कपूर, कुमकुम, सिंदूर, अबीर, चन्दन, नारियल, कलश।

9- पञ्चामृत – घी, दही, शक्कर, दूध, शहद।

हरतालिका तीज व्रत कथा 

भगवान शिव ने पार्वतीजी को उनके पूर्व जन्म का स्मरण कराने के उद्देश्य से इस व्रत के माहात्म्य की कथा कही थी। श्री भोलेशंकर बोले- हे गौरी पर्वतराज हिमालय पर स्थित गंगा के तट पर तुमने अपनी बाल्यावस्था में बारह वर्षों तक अधोमुखी होकर घोर तप किया था। इतनी अवधि तुमने अन्न न खाकर पेड़ों के सूखे पत्ते चबा कर व्यतीत किए। माघ की विक्राल शीतलता में तुमने निरंतर जल में प्रवेश करके तप किया। वैशाख की जला देने वाली गर्मी में तुमने पंचाग्नि से शरीर को तपाया। श्रावण की मूसलधार वर्षा में खुले आसमान के नीचे बिना अन्न-जल ग्रहण किए समय व्यतीत किया।

तुम्हारे पिता तुम्हारी कष्ट साध्य तपस्या को देखकर बड़े दुखी होते थे। उन्हें बड़ा क्लेश होता था। तब एक दिन तुम्हारी तपस्या तथा पिता के क्लेश को देखकर नारदजी तुम्हारे घर पधारे। तुम्हारे पिता ने हृदय से अतिथि सत्कार करके उनके आने का कारण पूछा।

नारदजी ने कहा- गिरिराज मैं भगवान विष्णु के भेजने पर यहां उपस्थित हुआ हूं। आपकी कन्या ने बड़ा कठोर तप किया है। इससे प्रसन्न होकर वे आपकी सुपुत्री से विवाह करना चाहते हैं। इस संदर्भ में आपकी राय जानना चाहता हूं।

नारदजी की बात सुनकर गिरिराज गद्‍गद हो उठे। उनके तो जैसे सारे क्लेश ही दूर हो गए। प्रसन्नचित होकर वे बोले- श्रीमान्‌! यदि स्वयं विष्णु मेरी कन्या का वरण करना चाहते हैं तो भला मुझे क्या आपत्ति हो सकती है। वे तो साक्षात ब्रह्म हैं। हे महर्षि! यह तो हर पिता की इच्छा होती है कि उसकी पुत्री सुख-सम्पदा से युक्त पति के घर की लक्ष्मी बने। पिता की सार्थकता इसी में है कि पति के घर जाकर उसकी पुत्री पिता के घर से अधिक सुखी रहे।

तुम्हारे पिता की स्वीकृति पाकर नारदजी विष्णु के पास गए और उनसे तुम्हारे ब्याह के निश्चित होने का समाचार सुनाया। मगर इस विवाह संबंध की बात जब तुम्हारे कान में पड़ी तो तुम्हारे दुख का ठिकाना न रहा।

तुम्हारी एक सखी ने तुम्हारी इस मानसिक दशा को समझ लिया और उसने तुमसे उस विक्षिप्तता का कारण जानना चाहा। तब तुमने बताया मैंने सच्चे हृदय से भगवान शिवशंकर का वरण किया है, किंतु मेरे पिता ने मेरा विवाह विष्णुजी से निश्चित कर दिया। मैं विचित्र धर्म-संकट में हूं। अब क्या करूं ? प्राण छोड़ देने के अतिरिक्त अब कोई भी उपाय शेष नहीं बचा है। तुम्हारी सखी बड़ी ही समझदार और सूझबूझ वाली थी।

उसने कहा- सखी प्राण त्यागने का इसमें कारण ही क्या है ? संकट के मौके पर धैर्य से काम लेना चाहिए। नारी के जीवन की सार्थकता इसी में है कि पति-रूप में हृदय से जिसे एक बार स्वीकार कर लिया, जीवनपर्यंत उसी से निर्वाह करें। सच्ची आस्था और एकनिष्ठा के समक्ष तो ईश्वर को भी समर्पण करना पड़ता है। मैं तुम्हें घनघोर जंगल में ले चलती हूं, जो साधना स्थली भी हो और जहां तुम्हारे पिता तुम्हें खोज भी न पाएं। वहां तुम साधना में लीन हो जाना। मुझे विश्वास है कि ईश्वर अवश्य ही तुम्हारी सहायता करेंगे।

तुमने ऐसा ही किया। तुम्हारे पिता तुम्हें घर पर न पाकर बड़े दुखी तथा चिंतित हुए। वे सोचने लगे कि तुम जाने कहां चली गई। मैं विष्णुजी से उसका विवाह करने का प्रण कर चुका हूं। यदि भगवान विष्णु बारात लेकर आ गए और कन्या घर पर न हुई तो बड़ा अपमान होगा। मैं तो कहीं मुंह दिखाने के योग्य भी नहीं रहूंगा। यही सब सोचकर गिरिराज ने जोर-शोर से तुम्हारी खोज शुरू करवा दी।

इधर तुम्हारी खोज होती रही और उधर तुम अपनी सखी के साथ नदी के तट पर एक गुफा में मेरी आराधना में लीन थीं। भाद्रपद शुक्ल तृतीया को हस्त नक्षत्र था। उस दिन तुमने रेत के शिवलिंग का निर्माण करके व्रत किया। रात भर मेरी स्तुति के गीत गाकर जागीं। तुम्हारी इस कष्ट साध्य तपस्या के प्रभाव से मेरा आसन डोलने लगा। मेरी समाधि टूट गई। मैं तुरंत तुम्हारे समक्ष जा पहुंचा और तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न होकर तुमसे वर मांगने के लिए कहा।

तब अपनी तपस्या के फलस्वरूप मुझे अपने समक्ष पाकर तुमने कहा- मैं हृदय से आपको पति के रूप में वरण कर चुकी हूं। यदि आप सचमुच मेरी तपस्या से प्रसन्न होकर आप यहां पधारे हैं तो मुझे अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लीजिए।

तब मैं ‘तथास्तु’ कह कर कैलाश पर्वत पर लौट आया। प्रातः होते ही तुमने पूजा की समस्त सामग्री को नदी में प्रवाहित करके अपनी सहेली सहित व्रत का पारणा किया। उसी समय अपने मित्र-बंधु व दरबारियों सहित गिरिराज तुम्हें खोजते-खोजते वहां आ पहुंचे और तुम्हारी इस कष्ट साध्य तपस्या का कारण तथा उद्देश्य पूछा। उस समय तुम्हारी दशा को देखकर गिरिराज अत्यधिक दुखी हुए और पीड़ा के कारण उनकी आंखों में आंसू उमड़ आए थे।

तुमने उनके आंसू पोंछते हुए विनम्र स्वर में कहा- पिताजी मैंने अपने जीवन का अधिकांश समय कठोर तपस्या में बिताया है। मेरी इस तपस्या का उद्देश्य केवल यही था कि मैं महादेव को पति के रूप में पाना चाहती थी। आज मैं अपनी तपस्या की कसौटी पर खरी उतर चुकी हूं। आप क्योंकि विष्णुजी से मेरा विवाह करने का निर्णय ले चुके थे, इसलिए मैं अपने आराध्य की खोज में घर छोड़कर चली आई। अब मैं आपके साथ इसी शर्त पर घर जाऊंगी कि आप मेरा विवाह विष्णुजी से न करके महादेवजी से करेंगे। गिरिराज मान गए और तुम्हें घर ले गए। कुछ समय के पश्चात शास्त्रोक्त विधि-विधानपूर्वक उन्होंने हम दोनों को विवाह सूत्र में बांध दिया।

हे पार्वती भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को तुमने मेरी आराधना करके जो व्रत किया था, उसी के फलस्वरूप मेरा तुमसे विवाह हो सका। इसका महत्व यह है कि मैं इस व्रत को करने वाली कुंआरियों को मनोवांछित फल देता हूं। इसलिए सौभाग्य की इच्छा करने वाली प्रत्येक युवती को यह व्रत पूरी एकनिष्ठा तथा आस्था से करना चाहिए।

हर‍तालिका व्रत के विशेष सरल उपाय 

1. देवी भागवत के अनुसार माता पार्वती का अभिषेक आम अथवा गन्ने के रस से किया जाए तो लक्ष्मी और सरस्वती ऐसे भक्त का घर छोड़कर कभी नहीं जातीं। वहां नित्य ही संपत्ति और विद्या का वास रहता है।

2. शिवपुराण के अनुसार लाल व सफेद आंकड़े के फूल से शिव का पूजन करने पर भोग व मोक्ष की प्राप्ति होती है।

3. माता पार्वती को घी का भोग लगाएं तथा उसका दान करें। इससे रोगी को कष्टों से मुक्ति मिलती है तथा वह निरोगी होता है।

4. माता पार्वती को शक्कर का भोग लगाकर उसका दान करने से भक्त को दीर्घायु प्राप्त होती है। दूध चढ़ाकर दान करने से सभी प्रकार के दु:खों से मुक्ति मिलती है। मालपूआ चढ़ाकर दान करने से सभी प्रकार की समस्याएं स्वत: ही समाप्त हो जाती है।

5. हरतालिका व्रत के दिन शिवपुराण के अनुसार भगवान शिव को चमेली के फूल चढ़ाने से वाहन सुख मिलता है। अलसी के फूलों से शिव का पूजन करने से मनुष्य भगवान विष्णु को प्रिय होता है।

6. भगवान शिव की शमी पत्रों से पूजन करने पर मोक्ष प्राप्त होता है। बेला के फूल से पूजन करने पर शुभ लक्षणों से युक्त पत्नी मिलती है। धतूरे के पुष्प के पूजन करने पर भगवान शंकर सुयोग्य पुत्र प्रदान करते हैं, जो कुल का नाम रोशन करता है। लाल डंठलवाला धतूरा पूजन में शुभ माना गया है।

7. भगवान शिव पर ईख (गन्ना) के रस की धारा चढ़ाई जाए तो सभी आनन्दों की प्राप्ति होती है। शिव को गंगाजल चढ़ाने से भोग व मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है।

8. देवी भागवत के अनुसार वेद पाठ के साथ यदि कर्पूर, अगरु (सुगंधित वनस्पति), केसर, कस्तूरी व कमल के जल से माता पार्वती का अभिषेक करने से सभी प्रकार के पापों का नाश हो जाता है तथा साधक को थोड़े प्रयासों से ही सफलता मिलती है।

9. जूही के फूल से भगवान शिव का पूजन करने से घर में कभी अन्न की कमी नहीं होती। दूर्वा से पूजन करने पर आयु बढ़ती है। कनेर के फूलों से शिव पूजन करने से नवीन वस्त्रों की प्राप्ति होती है। हरसिंगार के पुष्पों से पूजन करने पर सुख-सम्पत्ति में वृद्धि होती है।

10. देवी भागवत के अनुसार माता पार्वती को केले का भोग लगाकर दान करने से परिवार में सुख-शांति रहती है। शहद का भोग लगाकर दान करने से साधक को धन प्राप्ति के योग बनते हैं। गुड़ की वस्तुओं का भोग लगाकर दान करने से दरिद्रता का नाश होता है।

11. भगवान शिव को चावल चढ़ाने से धन की प्राप्ति होती है। तिल चढ़ाने से पापों का नाश हो जाता है।

12. द्राक्षा (दाख) के रस से यदि माता पार्वती का अभिषेक किया जाए तो भक्तों पर देवी की कृपा बनी रहती है।

13. शिवपुराण के अनुसार जौ अर्पित करने से सुख में वृद्धि होती है। भगवान शिव को गेंहू चढ़ाने से संतान वृद्धि होती है।

14. देवी भागवत के अनुसार माता पार्वती को नारियल का भोग लगाकर उसका दान करने से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। माता को विभिन्न प्रकार के अनाजों का भोग लगाकर गरीबों को दान करने से लोक-परलोक में आनंद व वैभव मिलता है।

15. माता पार्वती का अभिषेक दूध से किया जाए तो व्यक्ति सभी प्रकार की सुख-समृद्धि का स्वामी बनता है।

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