नीलकंठ महादेव मंदिर ऋषिकेश विषपान करने के बाद यहां शिव ने किया था विश्राम।
जरत सकल सुर बृंद बिषम गरल जेहिं पान किय।
तेहि न भजसि मन मंद को कृपाल संकर सरिस॥
जिस भीषण हलाहल विष से सब देवतागण जल रहे थे उसको जिन्होंने स्वयं पान कर लिया, रे मन्द मन! तू उन शंकरजी को क्यों नहीं भजता ? उनके समान कृपालु (और) कौन है ? वैसे तो शिव के मंदिरों में द्वादश ज्योतिर्लिंग की चर्चा की जाती है लेकिन शिव भक्तों के लिए नीलकंठ महादेव का महत्व भी बहुत खास है।
क्या आप जानते हैं ?
नीलकंठ महादेव मंदिर (ऋषिकेश) से जुड़े रोचक तथ्य Interesting facts related to Neelkanth Mahadev Temple (Rishikesh) in Hindi
गढ़वाल मंडल में हिमालय पर्वत के तल में बसा ऋषिकेश स्थित नीलकंठ महादेव मंदिर एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। नीलकंठ महादेव मंदिर ऋषिकेश से लगभग 5500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। नीलकंठ महादेव मंदिर ऋषिकेश के सबसे पूज्य मंदिरों में से एक है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने इसी स्थान पर समुद्र मंथन से निकला विष ग्रहण किया गया था।
उसी समय उनकी पत्नी, पार्वती ने उनका गला दबाया जिससे कि विष उनके पेट तक नहीं पहुंचे। इस तरह विष उनके गले में बना रहा। विषपान के प्रभाव से उनका गला नीला पड़ गया था। गला नीला पड़ने के कारण ही उन्हें नीलकंठ नाम से जाना गया। अत्यन्त प्रभावशाली यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है।
नीलकंठ महादेव मंदिर की नक्काशी देखते ही बनती है। अत्यन्त मनोहारी मंदिर के तल पर समुद्र मंथन के दृश्य को चित्रित किया गया है और गर्भ गृह के प्रवेश-द्वार पर एक विशाल पेंटिंग में भगवान शिव को विष पीते हुए भी दिखलाया गया है एवम् मंदिर के बाहर नक्काशियो में समुन्द्र मंथन की कथा बनायी गयी है। नीलकंठ महादेव मंदिर के मुख्य द्वार पर द्वारपालों की प्रतिमा बनी है।
अन्य शिव मंदिर की तुलना में नीलकंठ महादेव मंदिर में चांदी से बने शिवलिंग का काफी नजदीक से दर्शन किया जा सकता है। मंदिर प्रांगण में अखंड धुनी जलती रहती है और उस धुनी की भभूत को श्रद्धालु प्रसाद के तौर पर लेकर जाते हैं।
हालांकि नीलंकठ महादेव द्वादश ज्योतिर्लिंगों से अलग है लेकिन इसकी खास महत्ता है क्योंकि नीलकंठ महादेव वह स्थल है जहां शिव समुद्र मंथन का हलाहल पीने के बाद वर्षों तक आराम करते रहे।
बाद में देवताओं के आग्रह पर वे कैलाश पर्वत पर वापस गए। वास्तव में समुद्र मंथन का गरल पीने के बाद शिव का कंठ विष से नीला हो गया था। इसलिए उन्हें नीलकंठ भी कहा गया है।
कई सालों तक ऋषिकेश की एक चोटी पर आराम करने के बाद शिव अपने गले से विष को दूर कर पाए। विष से शिव का माथा गरम हो चुका था। देवताओं ने शीतलता प्रदान करने के लिए शिव के माथे पर जल अर्पित किया तभी से शिव को जल अर्पित करने की परंपरा चली आ रही है।
यह तो संक्षेप में नीलकंठ महादेव का वृतांत है। लेकिन आप जानना चाहेंगे कि ये नीलकंठ महादेव का मंदिर है कहां..तो ये मंदिर है उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले में ऋषिकेश के स्वर्गाश्रम ( राम झूला या शिवानंद झूला ) से 23 किलोमीटर दूर। कुल 1675 मीटर की ऊंचाई पर, पहाड़ों की हसीन वादियों में है।
नीलकंठ में बड़ा ही मनोरम शिव का मंदिर बना है मंदिर के बाहर नक्कासियों में समुद्र मंथन की कथा उकेरी गई है। मंदिर के मुख्य द्वार पर द्वारपालों की प्रतिमा बनी है। मंदिर परिसर में कपिल मुनि और गणेश जी की प्रतिमा स्थापित है।
खास तौर पर शिवरात्रि और सावन में यहां श्रद्धालुओं की काफी भीड़ होती है लेकिन बाकी के साल यहां नीलकंठ महादेव के दर्शन अपेक्षाकृत आसानी से किए जा सकते हैं।
बाकी जगह के शिव मंदिर की तुलना में यहां आप चांदी के बने शिव लिंग का काफी निकटता से दर्शन कर सकते हैं। मंदिर में अखंड धूनी जलती रहती है। धुनी की भभूत को लोग प्रसाद के तौर पर लेकर जाते हैं।
जो लोग समय की कमी के कारण बद्रीनाथ और केदारनाथ नहीं जा पाते उन्हें नीलकंठ महादेव जरूर जाना चाहिए। यह कुछ कुछ बद्रीनाथ और केदार नाथ जाने के मार्ग की झांकी की तरह है।
नीलकंठ कैसे पहुंचे How to reach Neelkanth in Hindi
अगर आप नीलकंठ महादेव जाना चाहते हैं तो ऋषिकेश से यहां जा सकते हैं। लक्ष्मण झूला के उस पार ( पौड़ी गढ़वाल) और स्वर्गाश्रम के टैक्सी स्टैंड से नीलकंठ के लिए जीप और एंबेस्डर मिलती हैं। कुल 23 किलोमीटर का सफर 45 मिनट का है। जिस टैक्सी से आप जाएंगे वही आपको लक्ष्मण झूला तक वापस भी छोड़ देगी।
अगर भीड़ नहीं हो तो नीलकंठ महादेव में पूजा में ज्यादा वक्त नहीं लगता। नीलंकठ का 23 किलोमीटर का रास्ता पहाड़ों को चीरता हुआ बड़ा ही मनोरम है। साथ-साथ दिखाई देती हैं अठखेलियां करती हुई गंगा की धारा।
नीलकंठ तक पदयात्रा – वैसे नीलकंठ जाने का रास्ता स्वर्गाश्रम से पैदल जाने का भी है। यह मार्ग 11 किलोमीटर का है लेकिन सीधा चढ़ाई वाला है। जो लोग पहाड़ों पर ट्रैकिंग के शौकीन है वे इस मार्ग से भी नीलकंठ जा सकते हैं।
यह मार्ग राम झूला से आरंभ होता है। परमार्थ निकेतन, गीता भवन नंबर 3 वानप्रस्थ आश्रम होते हुए पदयात्रा का मार्ग है। यह मार्ग सड़क मार्ग की तुलना में छोटा है।
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