Janmashtami : धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथी और रोहिणी नक्षत्र में हुआ है। सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्णु के 8वें अवतार श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव को जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है। जन्माष्टमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करने से संतान प्राप्ति, दीर्घ आयु तथा समृद्धि की प्राप्ति होती है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाकर व्यक्ति अपनी हर मनोकामना पूरी कर सकता है, जिन लोगों का चंद्रमा कमजोर हो वो आज पूजा करके विशेष लाभ पा सकते हैं। इस दिन श्री लडडू गोपाल की पूजा-अर्चना की जाती है। 

हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक जन्माष्टमी को बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। महीनों पहले से भक्त अपने भगवान के जन्मोत्सव को मनाने की तैयारियां शुरू कर देते हैं। अधर्म का नाश करने और मानवता के कल्याण के लिए भगवान विष्णु ने कृष्ण के रूप में भाद्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को देवकी की कोख से जन्म लिया था। इस उपलक्ष्य में भक्त उपवास रखकर और मंगल गीत गाकर भगवान कृष्ण का लडडू गोपाल के रूप में जन्म करवाते है

हर साल जन्माष्टमी का त्योहार दो दिन मनाया जाता है. एक दिन गृहस्थ जीवन वाले और दूसरे दिन वैष्णव संप्रदाय वाले जन्माष्टमी मनाते हैं. ऐसे में आपको बता दें कि 6 और 7 सितंबर दोनों दिन श्री कृष्ण जन्मोत्सव मनाया जाएगा. गृहस्थ जीवन जीवन वाले 6 सितंबर और वैष्णव संप्रदाय 7 सितंबर को जन्माष्टमी मनाएंगे.

6 सितंबर को भगवान श्री कृष्ण का 5250 वां जन्मोत्सव मनाया जाएगा. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में मध्यरात्रि यानी 12 बजे रात को मथुरा में हुआ था. भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में यह त्योहार हर साल पूरे देश में पूर्ण हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. इस दिन भक्त व्रती रहकर पूरे नियम और संयम से भगवान की पूजा-अर्चना करते हैं.हिंदू ग्रथों के अनुसार, कंस के बढ़ रहे अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान विष्णु ने जन्माष्टमी के दिन कृष्ण के रूप में आठवां अवतार लिया था.

जन्माष्टमी 2023 तिथि (Janmashtami 2023 Tithi)

भाद्रपद कृष्ण जन्माष्टमी तिथि शुरू – 06 सितंबर 2023, दोपहर 03.37

भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि समाप्त – 07 सितंबर 2023, शाम 04.14

जन्माष्टमी 6 या 7 सितंबर 2023 कब ? (Janmashtami 2023 Date) 

6 सितंबर 2023 – गृहस्थ जीवन वालों को इस दिन जन्माष्टमी मनाना शुभ रहेगा. इस दिन रोहिणी नक्षत्र और रात्रि पूजा में पूजा का शुभ मुहूर्त भी बन रहा है. भगवान कृष्ण का जन्म रात में ही हुआ था.

7 सितंबर 2023 – पंचांग के अनुसार इस दिन वैष्णव संप्रदाय के लोग जन्माष्टमी मनाएंगे. साधू, संत और सन्यासियों में कृष्ण की पूजा का अलग विधान है और इस दिन दही हांडी उत्सव भी मनाया जाएगा.

जन्माष्टमी 2023 पर रोहिणी नक्षत्र (Janmashtami 2023 Rohini Nakshatra Time)

रोहिणी नक्षत्र शुरू- 06 सितंबर 2023, सुबह 09:20

रोहिणी नक्षत्र समाप्त – 07 सितंबर 2023, सुबह 10:25

जन्माष्टमी 2023 शुभ मुहूर्त (Janmashtami 2023 Shubh Muhurat)

श्रीकृष्ण पूजा का समय – 6 सितंबर 2023,रात्रि 11.57 – 07 सितंबर 2023, प्रात: 12:42

पूजा अवधि – 46 मिनट

मध्यरात्रि का क्षण – प्रात: 12.02

जन्माष्टमी 2023 व्रत पारण समय (Janmashtami 2023 Vrat Parana Time)

जिन लोगों के घर श्रीकृष्ण जन्मोत्सव के समापन के बाद जन्माष्टमी व्रत का पारण होता है, वे देर रात 12:42 बजे के बाद पारण कर लेंगे. वहीं जो लोग अगले दिन सुबह पारण करते हैं, वे 7 सितंबर को सुबह 06:02 के बाद पारण करेंगे. जिनके यहां अष्टमी तिथि के समापन पर पारण होता है, वे 7 सितंबर को शाम 04:14 के बाद पारण करेंगे.

जन्माष्टमी पूजन सामग्री (Janmashtami puja material in Hindi) 

भगवान कृष्ण की पूजा सामग्री में एक खीरा, एक चौकी, पीला साफ कपड़ा, बाल कृष्ण की मूर्ति, एक सिंहासन, पंचामृत, गंगाजल, दही, शहद, दूध, दीपक, घी, बाती, धूपबत्ती, गोकुलाष्ट चंदन, अक्षत (साबुत चावल), तुलसी का पत्ता, माखन, मिश्री, भोग सामग्री

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जन्माष्टमी श्रृंगार सामग्री 

बाल गोपाल के जन्म के बाद उनके श्रृंगार के लिए इत्र, कान्हा के नए पीले वस्त्र, बांसुरी, मोरपंख, गले के लिए वैजयंती माता, सिर के लिए मुकुट, हाथों के लिए कंगन रखें।

जन्माष्टमी पूजा विधि (Janmashtami Puja Method in Hindi) 

बाल गोपाल का जन्म रात में 12 बजे के बाद होगा। सबसे पहले आप दूध से उसके बाद दही, फिर घी, फिर शहद से स्नान कराने के बाद गंगाजल से अभिषेक किया जाता है, ऐसा शास्त्रों में वर्णित है। स्नान कराने के बाद पूरे भक्ति भाव के साथ एक शिशु की तरह भगवान के लड्डूगोपाल स्वरूव को लगोंटी अवश्य पहनाएं। जिन चीजों से बाल गोपाल का स्नान हुआ है, उसे पंचामृत बोला जाता है। पंचामृत को प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। फिर भगवान कृष्ण को नए वस्त्र पहनाने चाहिए।

भगवान के जन्म के बाद के मंगल गीत भी गाएं। कृष्णजी को आसान पर बैठाकर उनका श्रृंगार करना चाहिए। उनके हाथों में कंगन, गले में वैजयंती माला पहनाएं। फिर उनके सिर पर मोरपंख लगा हुआ मुकुट पहनाएं और उनकी प्यारी बांसुरी उनके पास रख दें। अब उनको चंदन और अक्षत लगाएं और धूप-दीप से पूजा करनी चाहिए। फिर माखन मिश्री के साथ अन्य भोग की सामग्री अर्पण करें। ध्यान रहे, भोग में तुलसी का पत्ता जरूर होना चाहिए। भगवान को झूले पर बिठाकर झुला झुलाएं और नंद के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की गाएं। साथ ही रातभर भगवान की पूजा करनी चाहिए।

कृष्ण आरती (Krishna Aarti)

आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की।

गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला

श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला

गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली

लतन में ठाढ़े बनमाली, भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक

ललित छवि श्यामा प्यारी की।।

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की

आरती कुंजबिहारी की।।

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की

कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं।

गगन सों सुमन रासि बरसै

बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग, ग्वालिन संग

अतुल रति गोप कुमारी की

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की

आरती कुंजबिहारी की

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥

जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा

स्मरन ते होत मोह भंगा

बसी सिव सीस, जटा के बीच, हरै अघ कीच

चरन छवि श्रीबनवारी की

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की।।

आरती कुंजबिहारी की

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की।।

चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू।

चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू

हंसत मृदु मंद,चांदनी चंद, कटत भव फंद

टेर सुन दीन भिखारी की।

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की।।

आरती कुंजबिहारी की

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की।।

आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की।

आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की।।

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