तुलसी नामाष्टक और श्री तुलसी अष्टोत्तर शतनामावली Tulsi Namashtaka and Sri Tulsi Ashtottara Shatanamvali
तुलसी की प्रतिदिन पूजन करने से घर में धन-वैभव, सुख समृद्धि और निरोग रहने के साथ-साथ मोक्ष की प्राप्ति होती हैं तथा तुलसी नामाष्टक मंत्र का पाठ करने से जीवन में पुण्यकर्म का उदय होता है तथा जीवन की सभी व्याधियों का नाश होता है।
श्री तुलसी नामाष्टक के लाभ Benefits of Shri Tulsi Namashtak
1. श्री तुलसी नामाष्टक मंत्र का जाप करने से धन में वृद्धि होती है
2. श्री तुलसी नामाष्टक मंत्र का जाप करने से सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है
3. इस मंत्र का जाप करने से हर बीमारी से निजात मिलता है
4. इस मंत्र का जाप करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है
5. तुलसी किसी पूजा या श्राद्ध दोनों में इस्तेमाल की जाती है
6. मंत्र का जाप तुलसी माता के सामने बैठकर करना चाहिए
श्री तुलसी नामाष्टक मंत्र जाप की विधि Method of Chanting Tulsi Namashtak Mantra
1. एकादशी या शुक्रवार के दिन सुबह स्नान करके तुलसी की पूजा करे और परिक्रमा करे
2. तुलसी जी के सामने घी का दीपक जलाये
3. तुलसी की माला से 108 बार श्री तुलसी नामाष्टक मंत्र का जाप करे
4. रविवार के दिन तुलसी की पूजा और तुलसी नहीं तोड़नी चाहिए
तुलसी नामाष्टक व श्री तुलसी अष्टोत्तर शतनामावली मंत्र का जाप करने के लिए ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान करना चाहिए। इसके बाद तुलसी के पौधे की पूजा, ध्यान और परिक्रमा करना चाहिए। तुलसी पौधे के नीचे गाय के शुद्ध घी का दीप लगाएं। इसके बाद पूर्व की दिशा की ओर मुंह कर शांत वातावरण में तुलसी की माला पर इस तुलसी नामाष्टक व श्री तुलसी अष्टोत्तर शतनामावली मंत्र का जाप करें। इस मंत्र जा जाप जितना अधिक कर सकते हैं करना चाहिए।
तुलसी ध्यान
तुलसीं पुष्पसारां च सतीं पूज्यां मनोहराम्
कृत्स्नपापेधमदाहाय ज्वलदग्निशिखोपमाम् ।।
परम साध्वी तुलसी पुष्पों में सार हैं। ये पूजनीया तथा मनोहारिणी हैं। सम्पूर्ण पापरूपी ईंधन को भस्म करने के लिये ये प्रज्वलित अग्नि की लपट के समान हैं।
पुष्पेषु तुलनाप्यस्या नासीद्देवीषु वा मुने ।
पवित्ररूपा सर्वासु तुलसी सा च कीर्त्तिता ।।
पुष्पों में अथवा देवियों में किसी से भी इनकी तुलना नहीं हो सकी। इसीलिये उन सबमें पवित्ररूपा इन देवी को तुलसी कहा गया।
शिरोधार्य्या च सर्वेषामीप्सितां विश्वपावनीम् ।
जीवन्मुक्तां मुक्तिदां च भज तां हरिभक्तिदाम् ।।
ये सबके द्वारा अपने मस्तक पर धारण करने योग्य हैं। सभी को इन्हें पाने की इच्छा रहती है। विश्व को पवित्र करने वाली ये देवी जीवन्मुक्त हैं। मुक्ति और भगवान श्रीहरि की भक्ति प्रदान करना इनका स्वभाव है। ऐसी भगवती तुलसी की मैं उपासना करता हूँ।
ध्यान करने के पश्चात् तुलसी नामाष्टक व श्री तुलसी अष्टोत्तर शतनामावली मंत्र का जाप करना चाहिए।
तुलसी नामाष्टक Tulsi Namashtaka
कार्तिक की पूर्णिमा तिथि को देवी तुलसी का मंगलमय प्राकट्य हुआ और सर्वप्रथम भगवान श्रीहरि ने उसकी पूजा सम्पन्न की। जो इस कार्तिकी पूर्णिमा के अवसर पर विश्वपावनी तुलसी की भक्तिभाव से पूजा करता है, वह सम्पूर्ण पापों से मुक्त होकर भगवान विष्णु के लोक में चला जाता है। जो कार्तिक महीने में भगवान विष्णु को तुलसी पत्र अर्पण करता है, वह दस हजार गोदान का फल निश्चित रूप से पा जाता है।
इस तुलसी नामाष्टक के स्मरण मात्र से संतानहीन पुरुष पुत्रवान बन जाता है। जिसे पत्नी न हो, उसे पत्नी मिल जाती है तथा बन्धुहीन व्यक्ति बहुत-से बान्धवों को प्राप्त कर लेता है। इसके स्मरण से रोगी रोगमुक्त हो जाता है, बन्धन में पड़ा हुआ व्यक्ति छुटकारा पा जाता है, भयभीत पुरुष निर्भय हो जाता है और पापी पापों से मुक्त हो जाता है।
वृन्दां वृन्दावनीं विश्वपावनींविश्वपूजिताम् ।।
पुष्पसारां नन्दिनीं च तुलसीं कृष्णजीवनीम् ।।
वृन्दा, वृन्दावनी, विश्वपूजिता, विश्वपावनी, पुष्पसारा, नन्दिनी तुलसी और कृष्णजीवनी ये देवी तुलसी के आठ नाम हैं।
एतन्नामाष्टकं चैव स्तोत्रं नामार्थसंयुतम् ।।
यः पठेत्तां च संपूज्य सोऽश्वमेधफलं लभेत् ।।
यह सार्थक नामावली स्तोत्र के रूप में परिणत है। जो पुरुष तुलसी की पूजा करके इस ‘नामाष्टक’ का पाठ करता है, उसे अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त हो जाता है।
तुलसी नामाष्टक मंत्र समाप्त
श्री तुलसी अष्टोत्तर शतनामावली Sri Tulsi Ashtottara Shatanaamavali
ॐ तुलस्यै नमः
ॐ पावन्यै नमः
ॐ पूज्यायै नमः
ॐ वृन्दावननिवासिन्यै नमः
ॐ ज्ञानदात्र्यै नमः
ॐ ज्ञानमय्य नमः
ॐ निर्मलायै नमः
ॐ सर्वपूजितायै नमः
ॐ सत्यै नमः
ॐ पतिव्रतायै नमः
ॐ वृन्दायै नमः
ॐ क्षीराब्धिमथनोद्भवायै नमः
ॐ कृष्णवर्णाय नमः
ॐ रोगहन्त्र्यै नमः
ॐ त्रिवर्णायै नमः
ॐ सर्वकामदाय नमः
ॐ लक्ष्मीसख्यै नमः
ॐ नित्यशुद्धाय नमः
ॐ सुदत्यै नमः
ॐ भूमिपावन्यै नमः
ॐ हरिध्यानैकनिरताय नमः
ॐ हरिपादकृतालयायै नमः
ॐ पवित्ररूपिण्य नमः
ॐ धन्यायै नमः
ॐ सुगन्धिन्यै नमः
ॐ अमृतोद्भवायै नमः
ॐ सुरूपारोग्यदायै नमः
ॐ तुष्टायै नमः
ॐ शक्तित्रितयरूपिण्यै नमः
ॐ देव्यै नमः
ॐ देवर्षिसंस्तुत्यायै नमः
ॐ कान्तायै नमः
ॐ विष्णुमनःप्रियायै नमः
ॐ भूतवेतालभीतिघ्न्यै नमः
ॐ महापातकनाशिन्यै नमः
ॐ मनोरथप्रदायै नमः
ॐ मेधायै नमः
ॐ कान्त्यै नमः
ॐ विजयदायिन्यै नमः
ॐ शंखचक्रगदा पद्मधारिण्यै नमः
ॐ कामरूपिण्यै नमः
ॐ अपवर्गप्रदायै नमः
ॐ श्यामायै नमः
ॐ कृशमध्यायै नमः
ॐ सुकेशिन्यै नमः
ॐ वैकुण्ठवासिन्यै नमः
ॐ नन्दायै नमः
ॐ बिंबोष्ठ्यै नमः
ॐ कोकिलस्वनायै नमः
ॐ कपिलायै नमः
ॐ निम्नगाजन्मभूम्य नमः
ॐ आयुष्यदायिन्यै नमः
ॐ वनरूपायै नमः
ॐ दुःखनाशिन्यै नमः
ॐ अविकारायै नमः
ॐ चतुर्भुजायै नमः
ॐ गरुत्मद्वाहनायै नमः
ॐ शान्तायै नमः
ॐ दान्तायै नमः
ॐ विघ्ननिवारिण्यै नमः
ॐ विष्णुमूलिकायै नमः
ॐ पुष्टायै नमः
ॐ त्रिवर्गफलदायिन्यै नमः
ॐ महाशक्त्यै नमः
ॐ र्महामायायै नमः
ॐ लक्ष्मीवाणीसुपूजितायै नमः
ॐ सुमंगल्यर्चनप्रीतायै नमः
ॐ सौमङ्गल्यविवर्धिन्यै नमः
ॐ चातुर्मासोत्सवाराध्यायै नमः
ॐ विष्णुसान्निध्यदायिन्यै नमः
ॐ उत्तानद्वादशीपूज्यायै नमः
ॐ सर्वदेवप्रपूजिताय नमः
ॐ गोपीरतिप्रदायै नमः
ॐ नित्यायै नमः
ॐ निर्गुणायै नमः
ॐ पार्वतीप्रियायै नमः
ॐ अपमृत्युहरायै नमः
ॐ राधाप्रियायै नमः
ॐ मृगविलोचनायै नमः
ॐ अम्लानायै नमः
ॐ हंसगमनायै नमः
ॐ कमलासनवन्दितायै नमः
ॐ भूलोकवासिन्यै नमः
ॐ शुद्धायै नमः
ॐ रामकृष्णादिपूजितायै नमः
ॐ सीतापूज्यायै नमः
ॐ राममनःप्रियायै नमः
ॐ नन्दनसंस्थितायै नमः
ॐ सर्वतीर्थमय्यै नमः
ॐ मुक्तायै नमः
ॐ लोकसृष्टिविधायिन्यै नमः
ॐ प्रातर्दृश्यायै नमः
ॐ ग्लानिहन्त्र्यै नमः
ॐ वैष्णव्यै नमः
ॐ सर्वसिद्धिदायै नमः
ॐ नारायण्यै नमः
ॐ सन्ततिदायै नमः
ॐ मूलमृद्धारिपावन्य नमः
ॐ अशोकवनिकासंस्थायै नमः
ॐ सीताध्यातायै नमः
ॐ निराश्रयायै नमः
ॐ गोमतीसरयूतीररोपितायै नमः
ॐ कुटिलालकायै नमः
ॐ अपात्रभक्ष्यपापघ्न्यै नमः
ॐ दानतोयविशुद्धिदायै नमः
ॐ श्रुतिधारणसुप्रीतायै नमः
ॐ शुभायै नमः
ॐ सर्वेष्टदायिन्यै नमः
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