जानें स्वर्णाकर्षण भैरव साधना खत्म हो जाएगी हर तरह की दरिद्रता
स्वर्णाकर्षण भैरव की साधना से दरिद्रता का नाश होता है और लक्ष्मी जी स्थिर होती हैें। आप सब जानते हैं कि, लक्ष्मी अस्थिर होती हेैं, इसलिए इनकी स्थिरता के लिए किसी पुरूष देवता की उपासना अति आवश्यक है। स्वर्णाकर्षण भैरव की उपासना साधना करने से व्यक्ति की आय के साधनों में वृद्धि होती है और लक्ष्मी की स्थिरता होती हेै।
वास्तव में दरिद्रता व्यक्ति के लिए एक अभिशाप है। चाहे ऐसा व्यक्ति कितना भी योग्य क्यों न हो, समाज में उसका कोई स्थान नहीं होता, कोई सम्मान नहीं होता। इस अभिशाप से पीड़ित व्यक्ति उसकी पीडा़ स्वयं ही समझ सकता है, अन्य कोई नहीं । समाज उसे हिकारत की दृष्टि से देखता है। यह कोई नहीं समझता कि, उसका व्यक्तित्व कैसा है, उसके विचार कैसे हैं, अथवा उसका आचरण कैसा हैं। ऐसा व्यक्ति पल-पल जीता मरता है।
ऐसे दरिद्र व्यक्तियों को दृष्टिगत रखते हुए हमारे प्रबुद्ध अनुसंधान कर्ताओं ने अनेकों ऐसी साधनाएं हमारे लिए उपलब्ध करायीं, जिनके साधन करने पर हमारा दरिद्रता का कलंक हमारे सिर से हट जाएं ।
ऐसे ही प्रयोगों में एक साधना स्वर्णाकर्षण भैरव की साधना भी है, जिसका उल्लेख मैं यंहा कर रहा हॅू। दरिद्रता के नाश के लिए एवं धन प्राप्ति के लिए और बगलामुखी साधना में इस भैरव का विशेष महत्व भी है और इस साधना के साधन से दरिद्र व्यक्ति अत्यधिक लाभ प्राप्त कर सकता है।
प्राथमिक कृत्यों से निवृत होकर सर्वप्रथम हाथ में जल लेकर विनियोग करें यथा
विनियोग : ओम अस्य श्री स्वर्णाकर्षण भैरव मंत्रस्य ब्रह्मा ऋषिः, पंक्ति छन्दः, हरिहर ब्रह्मात्मक स्वर्णाकर्षण भैरवो देवता, ह्रीं बीजं, सः शक्ति, ओम कीलकं, मम-दारिद्रय-नाशार्थे, स्वर्ण राशि प्राप्तयर्थे स्वर्णाकर्षण भैरव प्रसन्नार्थे जपे विनियोगः।
ऋष्यादि न्यास:-
ब्रह्मा ऋषये नमः शिरसि ।
पंक्ति छन्दसे नमः मुखे।
स्वर्णाकर्षण देवताय नमः हृदि।
ह्रीं बीजाय नमः गुह्ये ।
सः शक्तिः नमः पादयो।
ओम कीलकाय नमः नाभौ।
विनियोगााय नमः सर्वांगे ।
इसके बाद करांगन्यास करें, यथा –
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं आपद् उद्धारणाय अंगुष्ठाभ्यां नमः । ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं अजामिल-बद्धाय तर्जनीभ्यां नमः। ॐ लोकेश्वराय मध्यमाभ्यां नमः। ॐ स्वर्णाकर्षण भैरवाय अनामिकाभ्यां नमः । ॐ ममदारिद्रय विद्वेषणाय कनिष्ठिकाभ्यां नमः । ॐ महा-भैरवाय नमः। श्रीं ह्रीं ऐं करतल-कर-पृष्ठाभ्यां नमः।
मंत्र के इन्हीं पक्षों का प्रयोग करते हुए अंग न्यास करें, यथा-
हृदयाय नमः, शिरसि स्वाहा, शिखायै वषट्, कवचाय हुम, नेत्र त्रयाय वौषट, अस्त्राय फट् ,
न्यास करने के उपरान्त भगवान स्वर्णाकर्षण भैरव का ध्यान करें, यथा –
पीतवर्णं चतुर्बाहुं त्रिनेत्रं पीतवाससम् ।
अक्ष्यं स्वर्ण-माणिक्यं तडित-पूरित पात्रकम् ।।
अभिलषितं महाशूलं चामरं तोमरो-द्वहम।
मदोन्मत्तं सुखासीनं भक्तानां च वर प्रदम ।
सततं चिन्तयेद्-देवं भैरवं सर्व-सिद्धि दम्।
मंत्र :- ओम ऐं ह्रीं श्रीं आपद्-उद्धारणाय ह्रां ह्रीं ह्रूं अजामिल-बद्धाय लोकेश्वराय स्वर्णाकर्षण भैरवाय ममदारिद्रय
विद्वेषणाय महा-भैरवाय नमः श्रीं ह्रीं ऐं ।
मंत्र : ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय, धन धन्याधिपतये धन धान्य समृद्धि मे देहि दापय स्वाहा।
सावधानी: उपरोक्त साधना को योग्य गुरु के निर्देशन में ही संपन्न करें, इससे आपको ज्यादा लाभ होगा
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