जाने शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा कब करें शिवलिंग स्थापना प्राण प्रतिष्ठा विधि 

शास्त्रो में तो शिवलिंग के प्रतिष्ठा की कोई आवश्यकता नहीं है ऐसा बताया गया है। 

किन्तु प्रकृति में मानव हस्तक्षेप की बढ़ती मात्रा से आज ज्यादातर चीजें अपना प्राकृतिक स्वरूप और गुणों से कृत्रिम सौंदर्य के तरफ परिवर्तित किए जा चुके हैं। इसलिए ऐसे में प्रतिष्ठा आवश्यक हो जाती है। यह कार्य शुभ शिववास में ही किया जाना चाहिए। श्रावण भी हो तो भी शिववास की शुभता का आंकलन कर ही लेना उचित है।

शिवलिंग या किसी भी देवी-देवता की मूर्ति घर में स्थापित करने से पहले ये हमेशा याद रखें कि मूर्ति या शिवलिंग का माप ( अंगुष्ठ प्रमाण ) यानी अपने अंगूठे से ज्यादा बड़ा का नही होना चाहिए। मूर्ति जितनी छोटी होगी गृहस्थ को पुजा की तुरन्त सिद्धि की प्राप्ति होती है। शिव लिंग को घर में नही रखना चाहिए अपितु घर से पृथक ईशान कोण में अलग से एक छोटा सा शिवालय बनाकर उसमें प्रतिष्ठित कर नित्य पूजा अर्चना करने पर अनन्त पुण्य का भागी हो जाता है।

घर के अंदर शिवलिंग रखने पर गृहस्थ को उद्वेग का सामना और अमंगलकारी होता है। शिवलिंग को ईशान में स्थापित तो करें परन्तु प्राण-प्रतिष्ठा और चक्षु दान आदि कभी नही करना चाहिए। शिवलिंग पर प्राण-प्रतिष्ठा करना हमेशा से ही वर्जित माना गया है। शिव स्थापना में नंदी जी की मूर्ति शिव की और मुख किये हुए स्थापित करना अत्यावश्यक है तथा शिव के दाहनी और त्रिशूल का स्थापित करें। उसके साथ साथ अन्य शिवप्रिय वस्तुओं का समावेश अवश्य करें।

कब करें देव प्रतिष्ठा ? 

स्थाप्यों हिरिर्दिन करो मिथुने महैर्शो।

नारायणश्च युवतौ घटके विधाता।।

देव्यो द्विमृत्तं भवनेषु नि वेशंनीयाः।

क्षुद्राश्चरे स्थिरगृहै निलिखलाश्चः देवाः।।

कन्या लग्न में कृष्ण की, कुंभ लग्न में ब्रह्मा की, द्विस्वभाव लग्नों में देवियों की स्थापना करनी चाहिए। चार लग्नों में योगिनियों की और स्थिर लग्नों में सर्व देवताओं की स्थापना करना शुभ है। मिथुन लग्न में विष्णु, महादेव तथा सूर्य की स्थापना करनी चाहिए।

लिंग स्थापन तु कत्र्तव्यं शिशिरादावृतुत्रये।

प्रावृषि स्थापित लिंग भवेद् वरयोगदम्।

हैमंते ज्ञानदं चैव शिशिरे सर्वभूतिदम्।

लक्ष्मीप्रदं वसंते च ग्रीष्मे च लिंगसयारोपणंमतम्।।

यतीनां सर्वकाले च लिंगसयारोपणंमतम्।।

श्रेष्ठोत्तरे प्रतिष्ठा स्याउयनेमुक्ति मिच्छताम्।।

दक्षिणे तु मुमुक्षूणां मलमासे न सा द्वयोः।।

माघ, फाल्गुन-वैशाख-ज्येष्ठाषाढेषु पंचसु।

प्रतिष्ठा शुभदाप्रोक्ता सर्वसिद्धिः प्रजायते।।

श्रावणे च नभस्ये च लिंग स्थापनमुत्तमम्।

देव्याः माघाश्विने मासेअव्युत्तमा सर्वकामदा।।

वैशाख, ज्येष्ठ तथा आषाढ़, श्रावण, माघ, फाल्गुन महीनों में महादेव जी की प्रतिष्ठा हर प्रकार से सिद्धि देने वाला माना जाता है। ऋतुओं की दृष्टि से हेमंत ऋतु में महादेव यानी शिव लिंग की प्रतिष्ठा से यजमान और भक्तों को विशेष ज्ञान की प्राप्ति होती है। शिशिर में शुभ, किंतु बसंत ऋतु में शिव मंदिर की प्रतिष्ठा विशेष धनदायक साबित होती है, जबकि ग्रीष्म ऋतु में यह प्रतिष्ठा शांति, शीतलता और विजयप्रदाता कही गयी है। इस प्रकार भगवती जगदम्बा की प्रतिष्ठा माघ एवं अश्विन में सर्वश्रेष्ठ फल देने वाली उत्तम कही गयी है।

चैत्रे वा फाल्गुने मासे ज्येष्ठे वा माधवे तथा।

माघे वा सर्वदेवानां प्रतिष्ठा शुभदा सिते।।

रिक्तान्य तिथिषु स्यात्सवारे भौमान्यके तथा।।

हेमाद्रिधृत पुराण के अनुसार

विष्णु प्रतिष्ठा माघे न भवति।।

माघे कर्तुः विनाशः स्यात।।

फाल्गुने शुभदा सिता।।

देव प्रतिष्ठा मुहूर्तः 

सर्व देवताओं की प्रतिष्ठा चैत्र, फाल्गुन, ज्येष्ठ, वैशाख और माघ मास में करना शुभ है।

श्राविणे स्थापयेल्लिंग आश्विनै जगदंबिकाम।

मार्गशीर्ष हरि चैव, सर्वान् पौषेअपि केचन्।।

मुहूर्त चिंतामणि के अनुसार 

अश्विनी, पुनर्वसु, पुष्य, तीनों उत्तरा, रोहिणी, हस्त्र, चित्रा, स्वाति, अनुराधा, ज्येष्ठ, मूल, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, रेवती एवं मार्गशीर्ष में सभी देवताओं की, खास कर देवी की, प्रतिष्ठा शुभ है।

वशिष्ठ संहिता के अनुसार

जिस देव की जो तिथि हो, उस दिन उस देव की प्रतिष्ठा करनी चाहिए। शुक्ल पक्ष की तृतीया, पंचमी, चतुर्थी, षष्ठी, सप्तमी, नवमी, दशमी, द्वादशी, त्रयोदशी एवं पूर्णिमा तथा कृष्ण पक्ष की अष्टमी एवं चतुर्दशी दैवी कार्य के लिए शुभ माना है। शुक्ल पक्ष में और कृष्ण पक्ष की दसवीं तक प्रतिष्ठा शुभ रहती है। इसी प्रकार रवि और मंगल, शनिवार को छोड़ कर, अन्य दिनों में देव प्रतिष्ठा शुभ माने गये है।

शिवलिंग प्राण प्रतिष्ठा विधि 

पहले नित्य पूजन क्रम को विधिवत सम्पन्न करें गणपति गुरु शिव शक्ति भैरव नवग्रह पंच लोकपाल दस दिक्पाल हनुमान आदि देवताओं को स्मरण नमन करने के पश्चात सर्व प्रथम शिवलिंग को पंचामृत स्नान आदि करवाकर यथा उपलब्ध उपचारो से पूजन कर लें। फिर प्रतिष्ठा क्रिया करें

प्राण प्रतिष्ठा 

अब पुनः कुमकुम अक्षत लेकर प्राण प्रतिष्ठा क्रम सम्पन्न करें

विनियोग

ॐ अस्य श्री प्राणप्रतिष्ठा मंत्रस्य ब्रम्हा विष्णु महेश्वरा: ऋषयः।

ऋग्यजु: सामानि छंदांसि।

क्रियामय वपु: प्राण शक्ति देवता।

आं बीजम्‌। ह्रीं शक्ति:।

क्रौं कीलम्‌।

श्री शिव ज्योतिर्लिंगे प्राण प्रतिष्ठापने विनियोगः।

ऋष्यादि न्यास 

ॐ ब्रम्हा विष्णु महेश्वरा: ऋषिभ्यो नमः शिरसि।

ऋग्यजुः सामच्छन्देभ्यो नमः मुखे।

प्राणशक्त्यै नमः ह्रदये।

आं बीजाय नमः लिँगे।

ह्रीं शक्तये नमः पादयोः।

क्रौं कीलकाय नमः सर्वाँगेषु।

कर न्यास

ॐ अं कं खं गं घं ङं आं पृथिव्यप्तेजो वाय्वाकाशात्मने अंगुष्ठाभ्यां नमः।

ॐ इं चं छं जं झं ञं ईं शब्दस्पर्श रुप-रस-गंधात्मने तर्जनीभ्यां नमः।

ॐ उं टं ठं डं ढं णं ऊं त्वक्‌ चक्षुः श्रोत्र जिह्वाघ्राणात्मने मध्यमाभ्यां नमः।

ॐ एं तं थं दं धं नं ऐं वाक्‌ पाणि पाद पायूपस्थात्मने अनामिकाभ्यां नमः।

ॐ ओं पं फं बं भं मं औं वचनादान गति विसर्गा नंदात्मने कनिष्ठिकाभ्यां नमः।

ॐ अं यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं अः मनो बुद्धयहंकार चित्त विज्ञानात्मने करतलकर पृष्ठाभ्यां नमः।

हृदयादि न्यास 

ॐ अं कं खं गं घं ङं आं पृथिव्यप्तेजो वाय्वाकाशात्मने हृदयाय नमः।

ॐ इं चं छं जं झं ञं ईं शब्दस्पर्श रुप-रस-गंधात्मने शिरसे स्वाहा।

ॐ उं टं ठं डं ढं णं ऊं त्वक्‌ चक्षुः श्रोत्र जिह्वाघ्राणात्मने शिखायै वषट्‌।

ॐ एं तं थं दं धं नं ऐं वाक्‌ पाणि पाद पायूपस्थात्मने कवचाय हुं।

ॐ ओं पं फं बं भं मं औं वचनादान गति विसर्गा नंदात्मने नेत्रत्रयाय वौषट्‌।

ॐ अं यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं अः मनो बुद्धयहंकार चित्त विज्ञानात्मने अस्त्राय फट्‌।

ॐ ऐं इति नाभिमारभ्य पादान्तं स्पृशेत्‌।

ॐ ह्रीं इति हृदयमारभ्य नाभ्यन्तम्‌ स्पृशेत।

ॐ क्रीं इति मस्तकमारभ्य हृदयांतं च स्पृशेत।

प्राण प्रतिष्ठा मंत्र 

(निम्न मंत्र 3 बार पढें-)

ॐ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं शं षं सं हं लं क्षं हंसः रुद्रस्य प्राणा इह प्राणाः।

ॐ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं शं षं सं हं लं क्षं हंसः रुद्रस्य जीव इह जीव स्थितः।

ॐ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं शं षं सं हं लं क्षं हंसः रुद्रस्य सर्वेंद्रियाणि इह स्थितः।

ॐ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं शं षं सं हं लं क्षं हंसः रुद्रस्य वाङ्‌मनस्त्वक्‌ चक्षुः श्रोत्र जिह्वा घ्राण वाक्प्राण पाद्‌पायूपस्थानि इहैवागत्य सुखं चिरं तिष्ठंतु स्वाहा।

अब निम्न मंत्र विग्रह पर अंगुष्ठ रखकर 1 बार पढें‌-

ॐ मनो जुतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तन्नोत्वरिष्टं।

यज्ञं समिमं दधातु विश्वे देवाश इह मादयंतामो अंप्रतिष्ठ॥

ॐ अस्यै प्राणा: प्रतिष्ठंतु अस्यै प्राणा: क्षरंतु च।

अस्यै देवत्व मर्चायै मामहेति च कश्चन॥

अस्मिन शिव ज्योतिर लिंगे आवाहिताः रुद्राह सशक्तिम सपरिवारान सगणानाम सुप्रतिष्ठिता वरदा भवन्तु।

ॐ (15 बार) मम देहस्य पंचदश संस्काराः सम्पद्यन्ताम्‌ इत्युक्त्वा।

इसके बाद शिवलिंग का अभिषेक रुद्रसूक्त अथवा नमकाध्याय से करना चाहिए।

अभिषेक के बाद शिव जी का यथा उपलब्ध उपचार से पूजन करना चाहिए।

शांति पाठ करें । समर्पण एवं क्षमा प्रार्थना सम्पन्न करें

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घर में है शिवलिंग ? तो जान लें यह बात 

यदि घर के मंदिर में शिवलिंग रखना चाहते हैं तो ध्यान रखें कि मंदिर में दो शिवलिंग नहीं होने चाहिए। इसके अलावा शिवलिंग का आकार अंघूठे के आकार जितना होना चाहिए।

कलेश समाप्त करने के उपाय 

पीपल के पेड़ के नीचे यदि कोई व्यक्ति शिवलिंग की स्थापना करता है, और नियमित रूप से उसकी पूजा व अर्चना करता है तो उसके सारे कलेश ख़तम हो जाते हैं, और वह व्यक्ति धन – धान्य से परिपूर्ण हो जाता है।

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