Lord Krishna Quotes Motivational Quotes in Hindi | Bhagavad Gita Quotes Here we have shared Lord Krishna’s Best Motivational Quotes in Hindi. If you are searching then this is the correct place for you. Here a lot of collection of the Mahabharat Quotes in Hindi and Bhagavad Gita Quotes in Hindi. We have designed all the images published here in a very beautiful way for you. We hope you will like it all. Shared with you with Krishna Quotes Images. Hope you will like all the inspiring ideas sent here.

वक्त से हारा या जीता नहीं जाता केवल सीखा जाता है 

बदन मेरा मिट्टी का, साँसे मेरी उधार घमंड करू तो किस बात का ! हम सब आपके ही तो किराएदार 

मेहनत सीढ़ियों की तरह होती है, और “भाग्य” लिफ्ट की तरह, “लिफ्ट” तो बन्द हो सकती है, लेकिन “सीढीया” हमेशा ऊँचाई की तरफ ले जाती हैं 

भगवान के लिए हम जो कुछ भी करते है, वह भक्ति है। हमे सारी भौतिक इश्चाओ को खत्म करना है, हमारी बस एक ही इच्छा होनी चाहिए कि हम भगवान के दास कैसे बने। 

विचारों को पढ़कर बदलाव नहीं आता, विचारों पर चलकर ही बदलाव आता है 

काम तो राम ही आएँगे  

दूसरों को दुःख दे कर, धर्म का उल्लंघन करके और अपना अपमान करा कर पाया हुआ धन व्यक्ति को सुखी नहीं कर सकता। 

अपने मन को इस तरह से प्रशिक्षण दें कि वो भौतिक दुखों से खुद को मुक्त कर सके जो कि सांसारिक आकर्षण से उत्पन्न होते है 

कुछ पा लेना जीत नहीं, और कुछ खो देना हार नहीं, केवल समय का प्रभाव है और परिवर्तन तो संसार का नियम है। 

शंका का कोई इलाज़ नहीं, चरित्र का कोई प्रमाण नहीं, मौन से अच्छा कोई साधन नहीं, और शब्द से तीखा कोई बाण नहीं 

यदि तुम्हारे अन्दर खुद को बदलने की ताकत नहीं है, तो तुम्हारा कोई अधिकार नहीं है कि तुम भगवान या भाग्य को दोष दो 

 

मन को इतना मजबूत बनाओ कि किसी के भी, किसी भी व्यवहार से मन की शांति भंग ना होने पाए। 

वक़्त हमेशा किसी एक का नहीं रहता, यदि आज तुम किसी को रुलाओगे, यक़ीनन वक़्त एक दिन आपको रुलाएगा 

परिवर्तन संसार का नियम है। 

इसीलिए जो पीछे छुट गया, उसका शोक मनाने की जगह जो आपके पास है उसका आनंद उठाना सीखिए 

अपने पापों के दंड से तो गंगा पुत्र भीष्म भी नहीं बच पाए थे, और मनुष्य सोचता है कि गंगा नहाने से उसके पाप धुल जायेंगे 

जो दान कर्तव्य समझकर, बिना किसी संकोच के, किसी जरूरतमंद व्यक्ति को दिया जाए, वह सात्विक माना जाता है। 

Must Read Motivation Quotes: Best 100+ Bhagwat Gita motivation Quotes in English

जो व्यक्ति संकल्प के साथ नियमों का पालन करते हुए अपनी सहायता खुद करते है, भगवान भी उनकी ही सहायता करते है 

इस संसार में आध्यात्मिक ज्ञान जैसा, हृदय और कर्म को पवित्र करने वाला और कुछ भी नहीं है इसे पाते ही मनुष्य सफलता और आनंद का असली रस ले पाता है । 

अपने मन को इस तरह से प्रशिक्षण दें कि वो भौतिक दुखों से खुद को मुक्त कर सके जो कि सांसारिक आकर्षण से उत्पन्न होते है 

धन्य है मनुष्य जन्म, स्वर्गवासी भी इस जन्म की कामना करते हैं, क्योंकि सच्चा ज्ञान और शुद्ध प्रेम मनुष्य को ही मिल सकता है। 

जो कोई भी आध्यात्मिक प्राप्ति के उन्नत चरण के लिए अपने दृढ़ संकल्प में स्थिर है और दुःख और सुख के हमलों को समान रूप से सहन कर सकता है, वह निश्चित रूप से मुक्ति के योग्य व्यक्ति है। 

भगवद गीता हमें चेतावनी देती है कि इच्छाएं आग की लपटों की तरह हैं, जिन्हें कभी भी शांत नहीं किया जा सकता है। इसके बजाय, जितना अधिक आप उन्हें प्रशंसक करते हैं, उतना ही वे बढ़ती हैं। इसलिए अत्यधिक इच्छा का त्याग करें। 

प्रेम सिर्फ शारीरिक नहीं होता, प्रेम किसी व्यक्ति से नहीं होता बल्कि प्रेम व्यक्तित्व से होता है, उस व्यक्ति की अच्छाई से होता है, उसकी बातों से जिससे मन प्रसन्न होता है और उसकी परवाह जो आपको ख़ुशी देती है । असल प्रेम वही हैं। 

शरीर में कोई सुंदरता नहीं होती, अच्छे कर्म, विचार, वाणी, व्यवहार, चरित्र और कर्म, जिसके जीवन में यह सब है, वही सबसे सुंदर इन्सान है 

जीवन में कुछ भी हमेशा के लिए नहीं होता, इसीलिए अधिक समय तक चिंतित न रहे, क्योंकि हालात चाहे जो भी हो, एक दिन बदलेंगे जरुर परिवर्तन ही संसार का नियम है 

जिसके साथ सत्य हो, उसके साथ धर्म है, और जिसके साथ धर्म हो, उसके साथ परमेश्वर है, और जिसके साथ स्वयं परमेश्वर हो उसके पास सब कुछ है 

किसी भी नेक उद्देश्य की प्राप्ति के लिए निम्नलिखित गुणों का होना आवश्यक हैं: उदास व दुखी न होना, अपने कर्तव्य पालन की क्षमता, अथवा कठिनाइयों का बल पूर्वक सामना करने की क्षमता 

श्रेष्ठ पुरूष को सदैव अपने पद और गरिमा के अनुसार कार्य करने चाहिए, क्योकि श्रेष्ठ पुरुष जैसा व्यवहार करेंगे, सामान्य पुरुष भी वैसा ही व्यवहार करेंगे 

जो व्यक्ति क्रोध में हैं वह इसमें अंतर नहीं कर सकता कि क्या बोला जा सकता है और क्या बोलने के योग्य नहीं है। ऐसा कोई अपराध नहीं है जो क्रोधित व्यक्ति नहीं कर सकता। ऐसा कुछ भी नहीं है जो वो नहीं बोल सकता। यानि क्रोध में व्यक्ति हर सीमा को लांघ सकता है। 

किसी भी नेक उद्देश्य की प्राप्ति के लिए निम्नलिखित गुणों का होना आवश्यक हैं: उदास व दुखी न होना, अपने कर्तव्य पालन की क्षमता, अथवा कठिनाइयों का बल पूर्वक सामना करने की क्षमता 

जो व्यक्ति हमेशा अच्छा, मीठा बोलता हो, हर समय अपनी भाषा का ध्यान रखता हो, और किसी भी परिस्थिति में बुरे शब्दों का उपयोग नहीं करता, वह व्यक्ति जीवन में हमेशा प्रगति करता है। 

अगर किसी व्यक्ति से भूतकाल में कोई भूल हो तो उसे अपने वर्तमान को सुधारकर अपने भविष्य को अच्छा बनाना चाहिए। 

मन ख़राब हो तो भी ख़राब शब्द ना बोलें, बाद में मन सही हो सकता है, परन्तु बोले गये शब्द नहीं 

केवल डरपोक और कमजोर व्यक्ति ही चीजों को भाग्य पर छोड़ते हैं, लेकिन जो व्यक्ति मजबूत और खुद पर भरोसा करने वाले होते हैं वे कभी भी नियति या भाग्य पर निर्भर नही रहते 

बिना पछतावे के अपना अतीत स्वीकार करें आत्मविश्वास के साथ अपना वर्तमान संवारें और बिना कोई डर अपने भविष्य का सामना करें 

मनुष्य अपने हृदय से जो दान कर सकता है वो अपने हाथों से नहीं कर सकता और मौन रहकर जो कुछ वो कह सकता है वो शब्दों से नहीं कह सकता 

मनुष्य को अपने कर्मों के संभावित परिणामों से प्राप्त होने वाली विजय या पराजय, लाभ या हानि, प्रसन्नता या दुःख इत्यादि के बारे में सोच कर चिंता से ग्रसित नहीं होना चाहिए। 

अगर किसी व्यक्ति से भूतकाल में कोई भूल हो तो उसे अपने वर्तमान को सुधारकर अपने भविष्य को अच्छा बनाना चाहिए। 

दूसरों की निंदा करने वालों से दूरी बनाए रखना बुद्धिमानी है 

आप अपने विचारों से अपना जीवन बनाते हैं

हर बदलाव की शुरुआत आपके साथ ही होती है 

आपको कद नहीं आपकी विनम्रता ही आपको बड़ा बनाती है

बोलने में समय नहीं लगता पर उन शब्दों को निभाने में जिंदगी लग जाती है 

खुद से खुश रहना सीखो दुखी करने को तो दुनिया ही काफी है

समय अनमोल होता है इसे व्यर्थ करना मूर्खता है 

जिंदगी का दूसरा नाम परिवर्तन है अब चाहे तो परिवर्तन आपमे हो और आपके रिश्ते तो में हो आप के काम में हो या संसार में हो उसे अपनाना सीखो

जो खो चुके उसे भूल जाओ और जो पाना चाहते हो उसे हासिल करने के लिए काम करो 

तुम से नहीं होगा बस इसी बात को पलटना है 

उड़ान हमेशा ऊंची रखो और नजरें हमेशा नीची रखो

हर फैसला अगर हम ही कर लेंगे तो फिर वक्त क्या करेगा

आपके इस्तेमाल किए गए शब्द यह दर्शाते हैं कि आप की परवरिश कैसे हुई

UN logon Ko sath kabhi mujhse chhodana jinhone aapka hath tab pakda tha jab aapko apni madad karne ke liye kabil nahin the

मजाक उसे कहते हैं जब सुनने वाला और बोलने वाला दोनों हाथ से जिस मजाक में एक हंसी और दूसरे को तकलीफ हो उसे मजाक नहीं कहते 

किसी को धोखा देकर अपनी बारी का इंतजार जरूर करना

सफलता प्राप्त करना बड़ी बात नहीं है पर सफलता को संभाले रखना बड़ी बात है

लोगों को खोने से मत डरो अगर डरना ही है तो इस बात से डरो कि कहीं लोगों का ध्यान रखते रखते खुद को ना खो दो 

कर्म और कृपा ईश्वर के दो हाथ है बिना कृपा के कर्म किसी का कर्म नहीं और बिना कर्म के कृपा होती नहीं

किसी की इज्जत करने के लिए किसी और की बेज्जती करना कतई स्वीकार्य नहीं होना चाहिए

उंगली उठाना आसान है जिम्मेदारी लेना कठिन है 

कौआ किसी का धन नहीं चुराता; फिर भी लोगों को वह प्रिय नहीं है.. कोयल किसी को धन नहीं देती; फिर भी लोगों को वह प्रिय है; फर्क सिर्फ मीठी बोली है; जिससे सब अपने बन जाते है। 

मनुष्य का जीवन केवल उसके कर्मों पर चलता है जैसे कर्म होता है वैसा उसका जीवन होता है

जो समय बर्बाद करते हैं वह स्वयं को भी बर्बाद करते हैं

समझदार इंसान जब रिश्ते निभाना बंद कर दे तो समझ लो उसके आत्मसम्मान को कोई ना कोई ठेस पहुंची है 

जिंदगी में कभी भी अपने किसी हुनर पर घमंड मत करना क्योंकि पत्थर जब पानी में गिरता है तो अपने ही वजन से डूब जाता है 

राधा राधा बोल ये कभी ना छोड़ो जाप राधा राधा रटते जाओ कट जाए सब पाप 

बहुत प्रकार के देवी देवताओं की उपासना ठीक नहीं है। यद्यपि सभी देवी देवता भगवान के निर्देशन में कार्य करते हैं किंतु उन्हें स्वतंत्र ईश्वर मानना सही नहीं है। में जिस प्रकार एक वृक्ष में एक एक फूल, टहनी, पत्ते को अलग से जल नहीं देना पड़ता। केवल जड़ को सींचने से पूरा वृक्ष लहराता है। उसी प्रकार भगवान कृष्ण की पूजा करने से सभी देवी देवता स्वतः संतुष्ट एवं प्रसन्न हो जाते हैं। 

कुछ भी असंभव नहीं कसम के लिए अपने आप को उसके हाथों में सौंप दो 

कितने ही पुराण पढ़ें जाएं शास्त्र कंठस्थ हो प्रवचन सुने जाएं मन तृप्त नहीं होगा उन शास्त्रों के अनुसार थोड़े तो भी आचरण करना चाहिए

जिनसे हम जीवन मे कुछ भी सीखते है बड़े जनो से गुरुजनो से सन्त जनो से वरिष्ठ साधक जनो से उनके प्रति सदा सम्मान रखना चाहिए और मन से उन्हे आदर देना चाहिए क्योंकि जिनसे सीख कर हमने जीवन को सुधारने का यदि किंचित भी प्रयास किया है अतः वे सदा आदर सम्मान के पात्र है भूल से भी कभी उनके आगे बड़ा बनने का प्रयास नही करना चाहिए उसका परिणाम स्वयं के लिए ही अहितकर होता है। 

हरि का नाम उन लोगों की भी दवा है जिसका इलाज सांसारिक चिकित्सकों के पास नहीं है 

ऐसे नही रीझते हैं संसार मे अनेकों लोग कष्टों से जूझते हैं। सभी को लगता है कि इस संसार का सबसे दुःखी प्राणी मैं ही हूँ और वे फिर पूजा-पाठ का सहारा लेते हैं। परमात्मा पूजा-पाठ से इतना नहीं रीझते जितना वे भक्त की भावना से रीझते हैं फिर वो चाहे कहीं भी, किसी भी अवस्था में हो। कोई भी भक्त शुद्ध-अशुद्ध, टूटे-फूटे शब्दों से अथवा क्रोध मे भी, कैसे भी ? भगवान का नाम लेता है तब भी भगवान का हृदय उससे मिलने को लालायित हो उठता है। 

किसी अन्य व्यक्ति के द्वारा किए हुए पाप और स्वयं के द्वारा किए हुए पुण्यों की चर्चा कभी भी किसी के भी आगे नहीं करनी चाहिए 

जब भी कोई भक्त भगवान के नाम को गाता है या याद करता है, तो उसी क्षण भगवान उस भक्त के ऋणी हो जाते है। 

भगवान को आँख से नहीं देखा जा सकता वरन भगवान को कान से देखा जाता है। कान से तो सुनते हैं तो फिर देखेंगे कैसे ? जब हम भगवान के बारे में सुनेंगे तभी हमारी आँखें खुलेंगी। दुनिया की विद्या के लिए भी बच्चा जब पाठशाला में जाता है, तो पहले सुनता है, फिर समझता है कि बोर्ड पर मास्टर जी ने क्या लिखा है। बिना श्रवण किए मात्र देखने से हम किसी भी वस्तु के बारे में ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकते। इसी प्रकार भगवान को समझने के लिए भी हमें पहले श्रवण करना होगा। इसलिए श्रवण पर विशेष बल देना चाहिए। 

हमें सब इंद्रियों को भगवान की सेवा में लगाना चाहिए। आँख से भगवान के दर्शन करना, कान से भगवान की कथा श्रवण करना, हाथ से भगवान की सेवा करना, जिह्वा से ठाकुर जी की कथा कीर्तन करना एवं प्रसाद पाना, पैरों से मंदिर आदि धाम में जाना। अगर हमारी इन्द्रियाँ भगवान की सेवा में नहीं लगेंगी तो संसार में लगेंगी और हमारे पतन का कारण बनेगी। 

यह संसार प्रभु श्रीकृष्ण का है। यहां की प्रत्येक वस्तु के स्वामी व भोक्ता श्रीकृष्ण ही हैं। जीव स्वयं को हर वस्तु का स्वामी व भोक्ता मान बैठा है, इसलिए दुःखी है। श्रीकृष्ण विमुखता ही दुःखों का मूल कारण है। जब तक जीव श्रीकृष्ण उन्मुख नहीं होगा, तब तक उसे दुःख ही प्राप्त होगा और सुखानुभूति होना असंभव है। 

माया इतनी बलवती है कि यदि कोई उस से प्रभावित न होने के प्रति दृढ़-प्रतिज्ञ नहीं है तो परम पुरुषोत्तम भगवान भी उसे संरक्षण नहीं दे पाएंगे । 

भोग की चाह रखने वाला सदा किसी न किसी ऋण से घिरा रहता है। साधना की चाह रखने वाला हर ऋण से उऋण रहता है। 

श्री कृष्ण की मुख्यतः जड़ एवं चेतन प्रकृति के संयोग से यह संसार गतिशील है। पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार जड़ तथा अनंत जीव समूह चेतन प्रकृति है। जड़ प्रकृति के संयोग से चेतन का जन्म, स्थिति, वृद्धि, परिणाम, एवं विनाश होना ही संसार का स्वरूप है। इसलिए संसार को दुःखालय कहा गया है। 

भगवान के भक्त भोले होते हैं, इसलिए भगवान स्वयं उनकी रक्षा करते हैं। अगर हम भी भगवान के शरणागत हो गए, तो भगवान हमारी भी रक्षा करेंगे 

यदि भगवान को नहीं जाना और बाकी सब भौतिक चीजें जान भी ली तो सब बेकार है और भगवान को जान लिया और बाकी कुछ नहीं भी जाना तो सब ठीक है। भगवान है पूर्ण अंक और पढ़ाई लिखाई रुपया पैसा सब है शून्य। यदि भगवान जीवन में है तो सब चीजों का मूल्य है अन्यथा सब व्यर्थ है। 

जब हम भगवान के भरोसे रहते हैं तो कोई कमी नहीं रहती, कमी हमारे “भरोसे” में है 

श्रीकृष्ण भक्तवत्सल, शरणागत रक्षक हैं श्री कृष्ण के उत्तम सेवक-भक्त श्री सद्गुरुदेव हैं। 

श्री कृष्ण कहते हैं मेरी भक्ति करने वाले से मैं उतना प्रसन्न नहीं होता, जितना मेरे भक्तों की भक्ति करने वाले से होता हूं । इसलिए जो श्री सदगुरुदेव के अंतरंग भक्त हैं, उनसे किसी भी प्रकार का द्वेष ईर्ष्या आदि रखेगा, वह श्री कृष्ण की कृपा से वंचित रहेगा। 

आयु, कर्म, वित्त, विद्या, निधन ये पाँच वस्तुएँ प्राणी के भाग्य में तभी लिख दी जाती हैं, जब वह गर्भ में आता है।

मुझे केवल परमात्मा की प्राप्ति ही करनी है। यह दृढ़ निश्चय साधना की सफलता के लिये साधक के मन में होना अति आवश्यक है। 

मैं नहीं गाऊंगा तो कौन गाएगा, मैं नहीं बजाऊंगा तो कौन बजाएगा जब इस प्रकार के विचारों से हमारी बुद्धि दूषित हो जाती है तो हमें अहंकार हो जाता है और परिणाम स्वरूप हम भजन साधन छोड़कर घर बैठ जाते हैं। बाहर से तो हम बहुत गाते हैं कि भगवान आपकी कृपा से सब काम हो रहा है और अंदर से सोचते हैं कि कर सब मैं रहा और बेकार में नाम तेरा हो रहा है। इसलिए भगवत सेवा को अपना सौभाग्य समझकर ही करना चाहिए 

धर्म का अर्थ है स्वभाव पानी का स्वभाव है बहना और भिगोना, विद्यार्थी का धर्म है पढ़ना और अध्यापक का धर्म है पढ़ाना। अगर विद्यार्थी ठीक से पढ़ता नहीं है या अध्यापक पढ़ाते नहीं है तो वह अधार्मिक है। इसी प्रकार जीव मात्र का स्वभाव या धर्म है भगवान की सेवा करना क्यूंकि वह भगवान का नित्य दास है। अगर वह यह नहीं करता है तो वह अधार्मिक है। 

किसी भी सुख की ओर लालायित होना जीवमात्र की प्रवृति है, परन्तु उस सुख के परिणाम को पहचानना मनुष्यता है।

जिस मनुष्य की रुचि भगवान की तरफ हो गयी, उसी का जीवन सार्थक है। जो भगवान को नहीं पा सका, उस मनुष्य का जीवन व्यर्थ ही चला गया। 

हमारे मंदिर एक विद्यालय की तरह है। सत्संग कोचिंग क्लास है जहां हम भगवान, जीव इत्यादि विभिन्न विषयों के बारे में समझते हैं। दुनिया की पढ़ाई के लिए यह कोटा प्रसिद्ध है किंतु हमारा आचरण कैसा होना चाहिए, हमारे जीवन का लक्ष्य क्या है ? इन सब विषयों के बारे में तो धार्मिक क्लास में ही बताया जाता है। अतः हमें जब भी अवसर मिले इन कक्षाओं में सम्मिलित होना चाहिए और मौका नहीं चूकना चाहिए। 

आजकल लोगों को धर्म से चिढ़ है। लोग धर्म को मानना नहीं चाहते हैं। इसका भी कारण है। तथाकथित जो महात्मा बन जाते हैं, शिष्य बनाते हैं, भीड़ इकट्ठी करते हैं और लोग भी उनमें श्रद्धा करने लग जाते हैं, फिर जब उनके कारनामे बाहर आते हैं तो लोग बोलते हैं कि धर्म-कर्म सब बेकार है। धर्म बेकार नहीं है हम बेकार हैं। गाय का दूध तो शुद्ध होता है लेकिन हम उसमें मिलावट कर देते हैं। इसलिए हमें शास्त्र आज्ञा अनुसार वास्तविक संत को पहचान कर ही उनका अनुसरण करना चाहिए। इसी से ही हमारा कल्याण हो सकता है। 

इस जगत के सारे सम्बंध एक स्वप्न की भाँति अनित्य है । स्वप्न टूट जाने पर हम उसकी असत्यता का अनुभव करते हैं। हम कभी हँसते हैं तो कभी रोते हैं, किंतु जब हमारी चेतना जागृत होती है तब हम अनुभव करेंगे कि यह सभ तुच्छ या निरर्थक हैं । 

गृहस्थ में इस तरह रहें कि मैं भगवान का हूँ, भगवान ही मेरे हैं। यह परिवार भगवान का है और इसके पालन की जिम्मेवारी भगवान ने मुझे सौंपी है। 

परमार्थ पथ में उन्नति करने हेतु पथ प्रदर्शक होना नितांत आवश्यक है। जगत की किसी भी कला या विद्या को प्राप्त करने हेतु उस विद्या में पारंगत व्यक्ति की आवश्यकता होती है। फिर आत्म विद्या में पारंगत (श्री गुरुदेव) व्यक्ति के बिना कोई भी परमार्थ में आगे कैसे बढ़ सकता है। इसलिए आत्म कल्याण के इच्छुक को आत्मविद एवं परमात्मविद श्री सदगुरुदेव का चरणाश्रय ग्रहण करना नितांत आवश्यक है। 

इस संसार सागर में वही तरता है, जो संसार को कुछ देना चाहता है। जो केवल लेना ही चाहता है, वह हर पल डूबता जाता है। 

Must Read 100+ Best Good Morning Quotes in Hindi गुड मॉर्निंग कोट्स हिंदी में

Lord Krishna Mahabharata Motivational Quotes in Hindi# KrishnaQuotes, #Hindi Quotes, #Bhagavat_Gita, #GeetaQuotes, #HindiMotivation, #Hindi Thoughts, #Mahabharat Thoughts, #MahabharatShayari, #MahabharatSuvichar, #Bhagwatgeeta, #HindiSuvichar, #Lordkrishna, #MahabharatStatus, #RadheRadheje,