विषधर कालसर्प योग व्याख्या और उपाय Vishdhar KaalSarp Yoga Explanation and Remedy 

कालसर्प दोष का ग्यारहवां प्रकार है विषधर का अर्थ होता है विष धारण करने वाला आमतौर पर यह शब्द जहरीले नागों के लिए प्रयोग किया जाता है लेकिन नवग्रहों में राहु एक ऐसा ग्रह है जो विष धारण करता है अत: इसे भी विषैला ग्रह या विषधर कहा जाता है

यह ग्रह जब जन्म कुण्डली में केतु के साथ एक विशेष योग बनता है तो उसे विषधर कालसर्प दोष के नाम से जाना जाता है. यह कालसर्प दोष जिस व्यक्ति की कुण्डली में बनता है उसे राहु की दशा/महादशा के समय बहुत सी कठिनाईयों का सामना करना होता है।

विषधर कालसर्प दोष का निर्माण Formation of poisonous Kaal Sarp Dosh 

कालसर्प दोष जन्म कुण्डली में होने के कई कारण माने जाते है. इन कारणों में से एक कारण यह माना जाता है कि अगर किसी व्यक्ति की पूर्व जन्म में अकालमृत्यु हुई हो और उसकी कुछ आकांक्षाएं मन में रह गयी हों तो व्यक्ति अपनी इच्छा पूरी करने के लिए जीवन प्राप्त करता है. ऐसे व्यक्तियों की कुण्डली में कालसर्प दोष होता है।

जन्मपत्री में जब विष कारक ग्रह राहु आय स्थान यानी ग्यारहवें घर में होता है तथा संतान एवं शिक्षा के घर पंचम भाव में केतु होता है तब इन दोनों ग्रहों के बीच शेष सातों ग्रह एकादश भाव से पंचम भाव में होने पर विषधर कालसर्प दोष बनता है।

विषधर कालसर्प का प्रभाव Effect of poisonous Kaalsarp 

विषधर कालसर्प दोष से जिनकी कुण्डली प्रभावित होती है उनकी शिक्षा में बाधा आने की गुंजाईश रहती है खासतौर, पर उच्च शिक्षा में यह दोष बाधक बनता है इस दोष में राहु आय स्थान में होता है अत: धनार्जन हेतु काफी मेहनत करनी होती है. आय में उतार-चढ़ाव बना रहता है. इस दोष के प्रभाव से व्यक्ति कभी-कभी ऐसे कार्य कर बैठता है जिसके कारण मान-सम्मान एवं प्रतिष्ठा की हानि होती है।

संतान सुख के लिए यह दोष कष्टकारी माना जाता है संतान से अच्छे सम्बन्ध नहीं रहते अथवा संतान की प्राप्ति देर से होती है. बड़े भाई-बहनों से अनबन भी इस दोष का फल माना जाता है इस दोष से प्रभावित स्त्री-पुरूष को नेत्र रोग, हृदय रोग, अनिद्रा एवं स्मरण शक्ति की कमी हो सकती है।

शांति के उपाय Measures of peace 

विषधर कालसर्प दोष की शांति के लिए कालसर्प यंत्र घर में स्थापित करके नियमित उसकी पूजा करनी चाहिए. भगवान भोले नाथ अपने कण्ठ में विष एवं गले में नाग की माला धारण करते हैं जो व्यक्ति उनकी नियमित पूजा करता है उनके सभी प्रकार के सर्प दोष निष्प्रभावी हो जाते हैं।

सावन मास को शिव भक्ति का मास कहा गया है. इस समय भगवान विष्णु शेषनाग की शैय्या पर शयन करते हैं. इसलिए सृष्टि की देख-रेख का जिम्मा भोलेनाथ पर होता है. इस मास में शिव की पूजा अधिक फलदायी मानी जाती है.

सावन मास में शिव का अभिषेक करके कालसर्प शांति यज्ञ कराने से विषधर कालसर्प दोष के कष्ट से मुक्ति मिलती है. राहु मंत्र ओम ‍’रां राहवे नमः‘ मंत्र का जप करके पंक्षियों को जौ एवं बाजरे के दाने खिलाने चाहिए, इससे भी कालसर्प दोष का अशुभ प्रभाव कम होता है।

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