चातुर्मास क्या होता है चार महीनों में ये 4 काम करने से मिलेंगे अद्भुत फायदे 

आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी से शुरु होकर चातुर्मास कार्तिक शुक्ल की शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन पूर्ण होता है। पुराणों के अनुसार इस वक्त भगवान विष्णु क्षीर सागर की अनन्त शैय्या पर योगनिद्रा के लिए चल जाते हैं। इसलिए चातुर्मास के प्रारम्भ की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहते हैं। इस चौमासे के अंत में जो एकादशी आती है। उसे देव उठनी एकादशी कहते हैं क्योंकि यह समय भगवान के उठने का समय होता है। चूंकि इन चार महीनों में श्री विष्णु शयन करते हैं इसलिए इन महीनों में कोई भी धार्मिक व मांगलिक कार्य नहीं किया जाता।

धर्म शास्त्रों के अनुसार सृष्टि के संचालन का कार्य भगवान विष्णु के हाथ में रहता है, लेकिन उनके शयनकाल में चले जाने के कारण सृष्टि के संचालन का कार्यभार भगवान शिव और उनके परिवार पर आ जाता है। इसलिए चातुर्मास में भगवान शिव और उनके परिवार से जुड़े व्रत-त्यौहार आदि मनाए जाते हैं। श्रावण माह पूरा भगवान शिव को समर्पित रहता है। इसमें श्रद्धालु एक माह उपवास रखते हैं। बाल-दाढ़ी नहीं कटवाते हैं। शिव मंदिरों में विशेष अभिषेक पूजन आदि संपन्न किए जाते हैं। इसके बाद भाद्रपद माह में दस दिनों तक भगवान श्रीगणेश का जन्मोत्सव मनाया जाता है। इसके बाद आश्विन माह में देवी दुर्गा की आराधना शारदीय नवरात्रि के जरिए की जाती है।

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चातुर्मास का महत्व केवल धार्मिक ही नहीं है, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी ये चार माह खानपान में अत्यंत सावधानी बरतने के होते हैं। ये चार माह बारिश के होते हैं। इस समय हवा में नमी काफी बढ़ जाती है जिसके कारण बैक्टीरिया, कीड़े, जीव जंतु आदि बड़ी संख्या में पनपते हैं। सब्जियों में जल में बैक्टीरिया पनपने लगते हैं। खासकर पत्तेदार सब्जियों में कीड़े आदि ज्यादा लग जाते हैं। इस लिहाज से इन चार माह में पत्तेदार सब्जियाँ आदि खाने की मनाही रहती है। इस दौरान शरीर की पाचनशक्ति भी कमजोर हो जाती है। इसलिए संतुलित और हल्का, सुपाच्य भोजन करने की सलाह दी जाती है।

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चातुर्मास में जरुर करें ये 4 कार्य: 

1. व्रत

शास्त्रों के अनुसार इन चार महीनों में व्रत और पूजा पाठ का बहुत महत्व है.सावन में भगवान भोलेनाथ की विधि विधान से पूजा की जाती है. सोमवार का व्रत रख शिव जी विशेष कृपा पा सकते हैं. भाद्रपद में भगवान गणपति और कृष्ण जन्माष्टमी पर पूजा औऱ् व्रत किए जाते हैं. अश्विन में मां दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए नवरात्रि के व्रत रखे जाते हैं. कार्तक में मां लक्ष्मी की पूजा कर धन में वृद्धि की कामना की जाती है. इन चार माह में पाचन शक्ति भी कमजोरी होती है ऐसे में व्रत करने से व्यक्ति सौभाग्य के साथ सेहत में भी लाभ होता है.

2. तप

चातुर्मास से वर्षा ऋतु का आरंभ हो जाता है. ऐसे में बदलते मौसम से शरीर में रोग-प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है. इसलिए एक ही स्थान पर रहकर तप करना फलदायी होता है. साधुजन भी इस अवधि में यात्रा का त्याग कर अपने स्थान पर ही तप और साधना करते हैं.

3. संयम 

चातुर्मास के दौरान मौन रहने की सलाह दी जाती है. इन चार महीनों में देव सोने के बाद तामसिक शक्तियों का प्रभाव बढ़ जाता है माना जाता है कि इससे व्यक्ति गलत रास्ते पर जाने की संभावनाएं बढ़ जाती है. मौन रहने से व्यक्ति ऊर्जावान बनता है और मानसिक शक्तियों में भी बढ़ोत्तरी होती है. चातुर्मास में भूमि पर सोना उत्तम माना जाता है.

4. दान 

चातुर्मास में दान विशेष रूप से फलदायी होता है. इस दौरान अन्न, फल, वस्त्र,दीप तिल, जूते, छाता आदि का यथाशक्ति दान करने वाले की अक्षय सुख की प्राप्ती होती है

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