क्यों हैं भगवान शिव की तीन आंखें ?
भगवद चिंतन (संतसंग) ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।
धर्म ग्रंथों के अनुसार सभी देवताओं की दो आंखें हैं, लेकिन एकमात्र शिव ही ऐसे देवता हैं जिनकी तीन आंखें हैं। तीन आंखों वाला होने के कारण इन्हें त्रिनेत्रधारी भी कहते हैं। लाइफ मैनेजमेंट की दृष्टि से देखा जाए तो शिव का तीसरा नेत्र प्रतीकात्मक है। आंखों का काम होता है रास्ता दिखाना और रास्ते में आने वाली मुसीबतों से सावधान करना । जीवन में कई बार ऐसे संकट भी आ जाते हैं, जिन्हें हम समझ नहीं पाते।
ऐसे समय में विवेक और धैर्य ही एक सच्चे मार्गदर्शक के रूप में हमें सही-गलत की पहचान कराता है। यह विवेक अत:प्रेरणा के रूप में हमारे अंदर ही रहता है। बस ज़रुरत है उसे जगाने की। भगवान शिव का तीसरा नेत्र आज्ञा चक्र का स्थान है। यह आज्ञा चक्र ही विवेक बुद्धि का स्रोत है। यही हमें विपरीत परिस्थिति में सही निर्णय लेने की क्षमता रखता है
वैदिक धर्म ग्रंथों के अनुसार सभी देवताओं (सभी दिव्य शक्ति से पूर्ण दैहिक दिव्य शरीरधारी दिव्य आत्माएं) की दो आंखें हैं जो धरती लोक के अलावा अखिल ब्रमांड के विभिन्न दिव्य लोको में उपस्थित है, लेकिन एकमात्र भगवान जी ही ऐसे हैं जिनकी तीन आंखें हैं। तीन आंखों वाला होने के कारण इन्हें त्रिनेत्रधारी भी कहते हैं। लाइफ मैनेजमेंट की दृष्टि से देखा जाए तो प्रभु जी का तीसरा नेत्र (ज्ञान का) प्रतीकात्मक है। आंखों का काम होता है रास्ता दिखाना और रास्ते में आने वाली मुसीबतों से सावधान करना। जीवन में कई बार ऐसे संकट भी आ जाते हैं, जिन्हें हम समझ नहीं पाते। ऐसे समय में विवेक और धैर्य ही एक सच्चे मार्गदर्शक के रूप में हमें सही-गलत की पहचान कराता है। यह विवेक अत:प्रेरणा के रूप में हमारे अंदर ही रहता है। बस ज़रुरत है उसे जगाने की।क्योंकि पर्त्येक जीव आत्मशिव (आत्म अंश ज्योति) है ना की शव (पंचमहाभूतों से बना दैहिक शरीर)है। हर प्राणी परमपिता परमेश्वर का दैहिक रूप में सेवक रूप,जीव रूप से शास्वत अंश आत्मा और तत्व रूप(दृष्टि)से श्रीमान कोई नहीं (प्रतिभिब) है।। क्योंकि भगवान जी (ॐ) दैहिक रूप में मूल रूप से सदाशिवशक्ति (श्रीमन लक्ष्मीनारायण) है।। इसलिए भगवान जी का तीसरा नेत्र आज्ञा चक्र का स्थान है। यह आज्ञा चक्र ही विवेक बुद्धि का स्रोत है। यह सभी के भीतर है।।क्योंकि हम सब भगवान जी के सनातन अंश है।। बस यह जाग्रत भगवान जी की निष्काम भाव की भक्ति के दारा सक्रिय होता है। यही हमें विपरीत परिस्थिति में सही निर्णय लेने की क्षमता प्रदान करता है और इस त्रिनेत्र के द्वारा जीव अपना आत्म परिचय एव आत्म कल्याण करता है।
हरे रामा, हरे कृष्णा।। हरीबोल
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