भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अजा एकादशी कहते हैं, इस दिवस को जया या अन्नदा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। भाद्रपद मास में आने वाली इस एकादशी का व्रत रखने से भगवान श्रीहरि विष्णु के साथ माता लक्ष्मी का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस व्रत में भगवान विष्णु जी के उपेन्द्र रुप की विधिवत पूजा की जाती है। अजा एकादशी का महत्व सबसे पहले श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया था, इस संबंध में श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि जो मनुष्य कृष्ण पक्ष की एकादशी को व्रत रखकर भगवान विष्णु सहित माँ लक्ष्मी की पूजा करता है उसके समस्त पाप कट जाते हैं, साथ ही उसे मनवांछित फल की प्राप्ति होती है।

मान्यता है कि इस व्रत को श्रद्धापूर्वक रखने से घर में धन-धान्य आदि की कमी नहीं रहती। परिवार के सारे संकट दूर होते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि राजा हरिश्चंद्र के परिवार पर संकट आया था और उनसे उनका परिवार व साम्राज्य छिन गया था, तब उन्होंने Aja Ekadashi व्रत किया था और उसी दिन उन्हें परिवार व साम्राज्य पुन: वापस मिल गया था। इस व्रत को रहने से परिवार में समृद्धि बनी रहती है इसीलिए इस व्रत को अन्नदा एकादशी भी कहा जाता है। इसके अलावा व्यक्ति की मनचाही मुराद पूरी होती है। इस व्रत में भगवान विष्णु जी के उपेन्द्र रुप की विधिवत पूजा की जाती है। 

अजा एकादशी व्रत पारण विधि (Aja Ekadashi Paran Vidhi)

एकादशी व्रत धारण करने वाले श्रद्धालु अगले दिन सुबह व्रत का शुभ मुहूर्त में पारण करते हैं। श्रद्धालु शुभ मुहूर्त में अपने एकादशी व्रत का पारण करें। 

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जो भी श्रद्धालु अजा एकादशी व्रत को धारण करते हैं उन्हें व्रत सात्विक भोजन के साथ पारण करना चाहिए। पहले अगर संभव हो तो ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए तथा श्रद्धा अनुसार भेंट करनी चाहिए। इसके साथ ही गायों को हरा चारा खिलाना चाहिए। तत्पश्चात सात्विक भोजन के साथ अपना व्रत पारण कर सकते हैं। ऐसा करने से जातक अतिशय श्रेष्ठ फलों के हितकर बनते हैं।

अजा एकादशी का महत्व  मान्यता है कि अजा एकादशी व्रत करने से अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है। माना जाता है कि एकादशी का व्रत अनेकों पुण्यों को देने वाला होता है। सभी वैष्णव या श्री कृष्ण के भक्त उनकी प्रसन्नता के लिए यह व्रत इसलिए करते हैं ताकि मृत्यु से पहले उन्हें भगवद्दर्शन हों। साथ ही यह भी कहा जाता है कि एकादशी का व्रत मोक्षदायक होता है। इस दिन व्रत करने से जीवात्मा मृत्यु के बाद भगवान विष्णु के धाम यानी बैकुंठ धाम में वास करती है।

अजा एकादशी व्रत की विधि 

एकादशी के दिन सूर्य के निकलने से पहले उठें और जल्दी उठकर घर की साफ-सफाई करें। फिर पूरे घर में झाड़ू-पोछा लगाने के बाद घर में गौमूत्र का छिड़काव करें। इसके बाद शरीर पर तिल और मिट्टी का लेप लगाकर कुशा से स्नान करें। नहाने के बाद एकादशी व्रत और पूजा का संकल्प लें। संकल्प लेने के बाद दिनभर व्रत रखें, भगवान विष्णु की पूजा करें और श्रद्धा के मुताबकि दान करें। इस बात का ध्यान रखें कि व्रत में अन्न ग्रहण नहीं कर सकते हैं। लेकिन एक बार फल का सेवन जरूर कर सकते हैं।

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अजा एकादशी पूजा करने की विधि 

1. घर में पूजा की जगह पर या पूर्व दिशा में किसी साफ जगह पर गौमूत्र छिड़ककर वहां गेहूं रखें।

2. फिर उस पर तांबे का लोटा यानी कि कलश रखें। लोटे को जल से भरें और उस पर अशोक के पत्ते या डंठल वाले पान रखें और उस पर नारियल रख दें।

3. इसके बाद कलश पर या उसके पास भगवान विष्णु की मूर्ति रखें और भगवान विष्णु की पूजा करें। और दीपक लगाएं लेकिन कलश अगले दिन हटाएं कलश को हटाने के बाद उसमें रखा हुआ पानी को पूरे घर में छिड़क दें और बचा हुआ पानी तुलसी में डाल दें।

4. एकादशी पर जो कोई भगवान विष्णु की पूजा और व्रत करता है। उसके पाप खत्म हो जाते हैं। व्रत और पूजा के प्रभाव से स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है।

5. इस व्रत के दौरान एकादशी की कथा सुनने से ही अश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता है।

6. इस व्रत को करने से ही राजा हरिशचंद्र को अपना खोया हुआ राज्य वापस मिल गया था और मृत पुत्र फिर से जीवित हो गया था।

7. एकादशी व्रत करने से व्यक्ति को हजार गौदान करने के समान फल प्राप्त होते हैं।

विशेष:- 

         योऽयं तवागतो देव समीपं देवतागणः ।

         स त्वमेव जगत्स्रष्टा यतः सर्वगतो भवान् । 

भावार्थ:-

आपके समक्ष जो भी आता है, चाहे वह देवता ही क्यों न हो, अथवा व्रह्मा, विष्णु, महेश, सहित सभी देवतागण, हे भगवान् वे आपके द्वारा ही उत्पन्न है ।

(विष्णुपुराण में ( १.९.६९) मे कहा गया है)

भगवान् विष्णु जी का बीज मंत्र 

(“दं”)

यह भगवान विष्णु का बीज मंत्र है। धन, संपत्ति, सुरक्षा, दांपत्य सुख, मोक्ष व विजय की कामना हेतु पीले रंग के आसन पर पूर्वाभिमुख बैठकर तुलसी की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है।

इसके अतिरिक्त यथा सामर्थ “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मन्त्र का जप त्रिविध ताप से रक्षा करता है।

अजा एकादशी व्रत पूजा नियम 

अजा एकादशी का व्रत करने के लिए उपरोक्त बातों का ध्यान रखने के बाद व्यक्ति को एकाद्शी तिथि के दिन शीघ्र उठना चाहिए। उठने के बाद नित्यक्रिया से मुक्त होने के बाद, सारे घर की सफाई करनी चाहिए और इसके बाद तिल और मिट्टी के लेप का प्रयोग करते हुए, कुशा से स्नान करना चाहिए। स्नान आदि कार्य करने के बाद, भगवान श्री विष्णु जी की पूजा करनी चाहिए।

भगवान श्री विष्णु जी का पूजन करने के लिये एक शुद्ध स्थान पर धान्य रखने चाहिए. धान्यों के ऊपर कुम्भ स्थापित किया जाता है। कुम्भ को लाल रंग के वस्त्र से सजाया जाता है। और स्थापना करने के बाद कुम्भ की पूजा की जाती है. इसके पश्चात कुम्भ के ऊपर श्री विष्णु जी की प्रतिमा स्थापित कि जाती है प्रतिमा के समक्ष व्रत का संकल्प लिया जाता है। संकल्प लेने के पश्चात धूप, दीप और पुष्प से भगवान श्री विष्णु जी की जाती है।

अजा एकादशी कथा प्रारम्भ 

कुंतीपुत्र युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवान भाद्रपद कृष्ण एकादशी का क्या नाम है ? व्रत करने की विधि तथा इसका माहात्म्य कृपा करके कहिए। मधुसूदन कहने लगे कि इस एकादशी का नाम अजा है। यह सब प्रकार के समस्त पापों का नाश करने वाली है। जो मनुष्य इस दिन भगवान ऋषिकेश की पूजा करता है उसको वैकुंठ की प्राप्ति अवश्य होती है। अब आप इसकी कथा सुनिए।

प्राचीनकाल में हरिशचंद्र नामक एक चक्रवर्ती राजा राज्य करता था। उसने किसी कर्म के वशीभूत होकर अपना सारा राज्य व धन त्याग दिया, साथ ही अपनी स्त्री, पुत्र तथा स्वयं को बेच दिया। वह राजा चांडाल का दास बनकर सत्य को धारण करता हुआ मृतकों का वस्त्र ग्रहण करता रहा। मगर किसी प्रकार से सत्य से विचलित नहीं हुआ। कई बार राजा चिंता के समुद्र में डूबकर अपने मन में विचार करने लगता कि मैं कहाँ जाऊँ, क्या करूँ, जिससे मेरा उद्धार हो।

इस प्रकार राजा को कई वर्ष बीत गए। एक दिन राजा इसी चिंता में बैठा हुआ था कि गौतम ऋषि आ गए। राजा ने उन्हें देखकर प्रणाम किया और अपनी सारी दु:खभरी कहानी कह सुनाई। यह बात सुनकर गौतम ऋषि कहने लगे कि राजन तुम्हारे भाग्य से आज से सात दिन बाद भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अजा नाम की एकादशी आएगी, तुम विधिपूर्वक उसका व्रत करो।

गौतम ऋषि ने कहा कि इस व्रत के पुण्य प्रभाव से तुम्हारे समस्त पाप नष्ट हो जाएँगे। इस प्रकार राजा से कहकर गौतम ऋषि उसी समय अंतर्ध्यान हो गए। राजा ने उनके कथनानुसार एकादशी आने पर विधिपूर्वक व्रत व जागरण किया। उस व्रत के प्रभाव से राजा के समस्त पाप नष्ट हो गए। स्वर्ग से बाजे बजने लगे और पुष्पों की वर्षा होने लगी। उसने अपने मृतक पुत्र को जीवित और अपनी स्त्री को वस्त्र तथा आभूषणों से युक्त देखा। व्रत के प्रभाव से राजा को पुन: राज्य मिल गया। अंत में वह अपने परिवार सहित स्वर्ग को गया।

विष्णु भगवान् की आरती 

जय जगदीश हरे, प्रभु! जय जगदीश हरे।

भक्तजनों के संकट, छन में दूर करे॥ \ जय ..

जो ध्यावै फल पावै, दु:ख बिनसै मनका।

सुख सम्पत्ति घर आवै, कष्ट मिटै तनका॥ \ जय ..

मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूँ किसकी।

तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी॥ \ जय ..

तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतर्यामी।

पार ब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी॥ \ जय ..

तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता।

मैं मुरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ \ जय ..

तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।

किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमती॥ \ जय ..

दीनबन्धु, दु:खहर्ता तुम ठाकुर मेरे।

अपने हाथ उठाओ, द्वार पडा तेरे॥ \ जय ..

विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।

श्रद्धा-भक्ति बढाओ, संतन की सेवा॥ \ जय ..

जय जगदीश हरे, प्रभु! जय जगदीश हरे।

मायातीत, महेश्वर मन-वच-बुद्धि परे॥ जय..

आदि, अनादि, अगोचर, अविचल, अविनाशी।

अतुल, अनन्त, अनामय, अमित, शक्ति-राशि॥ जय..

अमल, अकल, अज, अक्षय, अव्यय, अविकारी।

सत-चित-सुखमय, सुन्दर शिव सत्ताधारी॥ जय..

विधि-हरि-शंकर-गणपति-सूर्य-शक्तिरूपा।

विश्व चराचर तुम ही, तुम ही विश्वभूपा॥ जय..

माता-पिता-पितामह-स्वामि-सुहृद्-भर्ता।

विश्वोत्पादक पालक रक्षक संहर्ता॥ जय..

साक्षी, शरण, सखा, प्रिय प्रियतम, पूर्ण प्रभो।

केवल-काल कलानिधि, कालातीत, विभो॥ जय..

राम-कृष्ण करुणामय, प्रेमामृत-सागर।

मन-मोहन मुरलीधर नित-नव नटनागर॥ जय..

सब विधि-हीन, मलिन-मति, हम अति पातकि-जन।

प्रभुपद-विमुख अभागी, कलि-कलुषित तन मन॥ जय..

आश्रय-दान दयार्णव! हम सबको दीजै।

पाप-ताप हर हरि! सब, निज-जन कर लीजै॥ जय..

भक्तियोग, श्रीकृष्णभावनाभावित व्यक्ति पहले ही समस्त योगियों में श्रेष्ठ होता है, हरक्षण में कृष्ण हर कण में कृष्ण

हरीबोल हरीबोल हरीबोल हरीबोल

भज, निताई गौर राधेश्याम जपो हरे कृष्ण हरे राम

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।

हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥

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