पवित्र एकादशी व्रत किस प्रकार करना चाहिए 

एकादशी व्रत इस व्रत के पालन के लिए कौन सी चीजें खाई जा सकती हैं, सम्बन्धी कई नियम है, वैष्णव पंचांग के परामर्श के अनुसार ही व्रत करना चाहिये ताकि सही दिन व्रत किया जा सके।

एकादशी तिथि …. माधव तिथि

जिस प्रकार माधव को वनस्पतियों में तुलसी सबसे प्रिय हैं….

उसी प्रकार सभी तिथियों में एकादशी व्रत तिथि प्रिय है और हमारा कर्तव्य तो ये ही है कि जो माधव को प्रिय हो हमको सिर्फ वो ही मानना और करना चाहिए…..

उसमें ही हमारा कल्याण होगा ….

हम सभी को नियम पूर्वक दोनों एकदशी व्रत का पालन करना चाहिए….

जय जय एकादशी व्रत 🙏

हरि बोल

एकादशी व्रत धारण करने के नियम

पूर्ण उपवास अपनी इन्द्रियों को नियंत्रित करने की बहुत ही उचित क्रिया है, परन्तु व्रत धारण करने का मुख्य कारण परम भगवान कृष्ण का स्मरण/ ध्यान करना है।

उस दिन शरीर की जरूरतों को सरल कर दिया जाता है, और उस दिन कम सोकर भक्तिमयी सेवा, पवित्र गीता, अध्ययन और हरि नाम जप आदि पर ध्यान केन्द्रित करने की अनुशंसा की गई हैं।

व्रत का आरंभ सूर्योदय से होता है और अगले दिन के सूर्योदय तक चलता है, इसलिए अगर कोई इस बीच अन्न ग्रहण कर लेता है तो व्रत टूट जाता है। वैदिक शिक्षाओं में सूर्योदय के पूर्व खाने की अनुशंषा नहीं की गयी हैं खासकर एकादशी के दिन तो बिलकुल नहीं। एकादशी व्रत का पालन उस दिन जागने के बाद से ही मानना चाहिये। अगर व्रत गलती से टूट जाए तो उसे बाकि के दिन अथवा अगले दिन तक पूरा करना चाहिये।

वे जन जो बहुत ही सख्ती से एकादशी व्रत का पालन करते हैं उन्हें पिछली रात्रि के सूर्यास्त के बाद से कुछ भी नहीं खाना चाहिये ताकि वे आश्वस्त हो सके कि पेट में एकादशी के दिन कुछ भी बिना पचा हुआ भोजन शेष न बचा हो। बहुत लोग वैसा कोई प्रसाद भी नहीं ग्रहण करते जिनमें अन्न डला हो। वैदिक शास्त्र शिक्षा देते हैं कि एकादशी के दिन साक्षात् पाप (पाप पुरुष) अन्न में वास करता है, और इसलिए किसी भी तरह से उनका प्रयोंग नहीं किया जाना चाहिये ( चाहे भगवान कृष्ण को अर्पित ही क्यों न हो) । एकादशी के दिन का अन्न के प्रसाद को अगले दिन तक संग्रह कर के रखना चाहिये या फिर उन लोगों में वितरित कर देना चाहिये जो इसका नियम सख्ती से नहीं मानते या फिर पशुओं को दे देना चाहिये।

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एकादशी व्रत को कैसे तोड़े…

अगर व्रत निर्जल ( पूर्ण उपवास बिना जल ग्रहण किये) किया गया है तो व्रत को अगले दिन अन्न से तोड़ना आवश्यक नहीं है। व्रत को चरणामृत ( वैसा जल जिससे कृष्ण के चरणों को धोया गया हो), दूध या फल से वैष्णव पंचांग में दिए नियत समय पर तोड़ा जा सकता है। यह समय आप किस स्थान पर हैं उसके अनुसार बदलता रहता है। अगर पूर्ण एकादशी के स्थान पर फल, सब्जियों और मेवों के प्रयोग से एकादशी की गयी हैं तो उसे तोड़ने के लिए अन्न ग्रहण करना अनिवार्य हैं।

खाद्य पदार्थ जो एकादशी व्रत में खाए जा सकते हैं

जगद्गुरु श्रीला प्रभुपाद ने पूर्ण एकादशी करने के लिए कभी बाध्य नहीं किया, उन्होंने सरल रूप से एकादशी फलाहार करके हरिनाम जप एवं भक्तिमयी सेवा पर पूरा ध्यान केन्द्रित करने को कहा।

निम्नलिखित वस्तुएं और मसालें व्रत के भोजन में उपयोग किये जा सकते हैं:

सभी फल (ताजा एवं सूखें);

सभी मेवें बादाम आदि और उनका तेल;

हर प्रकार की चीनी;

कुट्टू

आलू, साबूदाना, शकरकंद;

नारियल;

जैतून;

दूध;

ताज़ी अदरख;

काली मिर्च और

सेंधा नमक ।

एकादशी पर वर्जित खाद्य:

अगर अन्न का एक भी कण गलती से भी ग्रहण कर लिया गया हो तो एकादशी व्रत विफल हो जाता है। इसलिए उस दिन भोजन पकाते समय काफी सावधानी बरतनी चाहिये और मसालों को केवल नए पेकिंग से, जो अन्न से अनछुए हो, से ही लेना चाहिये।

निम्नलिखित खाद्यों का प्रयोग एकादशी के दिन निषेध बताया गया है :

सभी प्रकार के अनाज (जैसे बाजरा, जौ, मैदा, चावल और उरद दाल आटा) और उनसे बनी कोई भी वस्तु;

मटर, छोला, दाल और सभी प्रकार की सेम, उनसे बनी अन्य वस्तुएं जैसे टोफू;

नमक, बेकिंग सोडा, बेकिंग पावडर, कस्टर्ड और अन्य कई मिठाईयों का प्रयोग नहीं किया जाता क्योंकि उनमें कई बार चावल का आटा मिला होता है;

तिल (सत-तिल एकादशी अपवाद है, उस दिन तिल को भगवान् को अर्पित भी किया जाता है और उसको ग्रहण भी किया जा सकता है)

और मसालें जैसे कि हींग, लौंग, मेथी, सरसों, इमली, सौंफ़ इलायची, और जायफल।

एकादशी के दिन व्रत धारण करना कृष्ण भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण तप है।

और यह आध्यात्मिक प्रगति को बढ़ाने के लिए किया जाता है। बिलकुल निराहार व्रत करके कमजोर होकर अपनी कार्यों एवं भक्तिमयी सेवाओं में अक्षम हो जाने से बेहतर है थोड़ा उन चीजों को खाकर व्रत करना जो व्रत में खायी जा सकती हैं।

एकादशी व्रतः कुछ खास बातें

एकादशी व्रत विशेष कर वैष्णव मतावलम्बियों के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। शास्त्रों में इसे विशद रुप से महिमा-मण्डित किया गया है। कहते हैं कि विधिवत इस व्रत को करने से इहलौकिक सुख-शान्ति के साथ-साथ, सर्वविध पाप-क्षय होकर, परमशान्ति यानी कि विष्णुलोक की प्राप्ति होती है। अन्यान्य पुराणों में तो इसकी चर्चा यत्रतत्र है ही, विशेषकर पद्मपुराण में विशद रुप से एकादशी-महात्म्य वर्णित है। यह व्रत प्रत्येक महीने के दोनों पक्षों (कृष्ण-शुक्ल) में एकादशी तिथि को होता है। शास्त्रादेश है कि पूर्वविद्धा यानी दशमी-मिश्रित एकादशी व्रत नहीं करना चाहिए। परविद्धा यानी द्वादशी-मिश्रित पूर्णरुप से भी हो तो ग्राह्य है। यहां यह आशंका हो सकती है कि विद्ध यानी मिश्रण की सीमा क्या है? क्यों कि कहीं न कहीं तिथियों की सन्धि तो होगी ही।इस सम्बन्ध में ऋषियों का मत भिन्न-भिन्न है। शुद्धा और विद्धा में कई मत हैं,जिनमें दो- स्मार्त और वैष्णव अधिक चर्चित हैं।पुनः काल-मतान्तर भी है। यथा- अर्धरात्रि से पूर्व समाप्त होजाने वाली दशमी,रात्रि के अन्तिम प्रहर में समाप्त होने वाली दशमी,अरुणोदय-काल व्यापिनी दशमी,सूर्योदय पूर्व समाप्त होने वाली दशमी …इत्यादि। कहीं-कहीं सूर्योदय से चार-पांच घटी पूर्व तक की भी बात कही गयी है। एकादशी के दिन सूर्योदय-काल में दशमी हो तो स्मार्तमत से विद्धा है।सूर्योदय से चार घटी पहले यानी अरुणोदय-काल तक दशमी हो तो वैष्णव मत से विद्धा है। ऋषि आगे कहते हैं कि विद्धा का सर्वदा त्याग कर, शुद्धा ही ग्रहण करे। हेमाद्रिमत से विचार करें तो कह सकते हैं कि द्वादशी तिथि जिस दिन समाप्त हो रही हो, उसके पूर्वदिन वाली एकादशी ही ग्राह्य है। द्वादशी यदि दूसरे दिन भी हो तो सूर्योदयीवेधरहित एकादशी ही ग्रहण करे। कुछ आचार्यों के मत से सूर्योदयीवेध वाली एकादशी के दिन,तथा अगले दिन भी अथवा दो एकादशी होतो(तिथिवृद्धि)दूसरी एकादशी ही ग्राह्य है। परमवैष्णवों का मत है कि एकादशी या द्वादशी तिथि की वृद्धि हो तो एकादशी को छोड़कर सीधे द्वादशी को ही एकादशीव्रत करे। लौकिक चर्चा में इसे साधु और गृहस्थ की अलग-अलग एकादशी कहते हैं। इस सम्बन्ध में कहा गया है- दशम्योर्कोदये चेत् स्यात् स्मार्तानां वेध इष्यते। वैष्णवानां तु पूर्वं स्यात् घटिकानां चतुष्टये।। बल्लभाः पञ्चनाडीषु केचिद्यामद्वयं जगुः। पूर्वं सूर्योदयाद्वेधं निर्णये वैष्णवैः समाः।। यो द्वादशी विरामाहः स्मार्तैस्तत्प्रथमं दिनम्। उपोष्यमिति हेमाद्रिर्माधवस्य मतं शृणु।। द्वादश्यां वृद्धिगामिन्यां अविद्धैकादशी यदि। लभ्यते सा व्रते ग्राह्याऽन्यत्र हेमाद्रिनिर्णयः।। केचिदाहुर्विष्णुभक्तैः स्मार्तैः कार्यं व्रत द्वयम्। विद्धायां वा विविद्धायां एकादश्यां परेह्नि च।। समाप्येत परेह्न्यस्मिन् द्वादशी यदि नान्यथा। माधवीय व्रतस्यैव प्रचारो व्रतनिर्णये।। एकादशी द्वादशी वा वृद्धिगा चेत् तदा व्रते। शुद्धाप्येकादशीत्याज्या सदा विद्धापि वैष्णवैः।। एकादशी व्रतं कार्यं परेह्नि त्याज्य वासरान्। असूयानुमगें नात्र कार्य विद्वद्भिरर्थये।।

बारह महीनों के दोनों पक्षों में यानी कुल चौबीस एकादशियां हुयी।इनके अलग-अलग नाम कहे गये हैं। यथानामगुण वैभिन्य भी है। इसे नीचे की सारणी में स्पष्ट किया जा रहा है—

१. चैत्र कृष्ण पापमोचनी

२. चैत्र शुक्ल कामदा

३. वैशाख कृष्ण वरुथिनी

४. वैशाख शुक्ल श्रीमोहिनी

५. ज्येष्ठ कृष्ण अचला

६. ज्येष्ठ शुक्ल निर्जला(भीमसेनी)

७. आषाढ़ कृष्ण योगिनी

८. आषाढ़ शुक्ल विष्णशयनी

९. श्रावण कृष्ण कामदा

१०. श्रावण शुक्ल पुत्रदा

११. भाद्र कृष्ण जया

१२. भाद्र शुक्ल पद्मा

१३. आश्विन कृष्ण इन्दिरा

१४. आश्विनशुक्ल पापांकुशा

१५. कार्तिक कृष्ण रम्भा

१६. कार्तिक शुक्ल प्रबोधिनी(देवोत्थान)

१७. अगहन कृष्ण उत्पन्ना

१८. अगहन शुक्ल मोक्षदा

१९. पौष कृष्ण सफला

२०. पौष शुक्ल पुत्रदा

२१. माध कृष्ण षटतिला

२२. माघ शुक्ल जया

२३. फाल्गुन कृष्ण विजया

२४. फाल्गुन शुक्ल आमलकी

नोट- 1. अधिकमास वाले वर्षों में पुरुषोत्तमी नामक दो एकादशी और हो जाती है। यूंतो सभी एकाशियां महत्त्वपूर्ण है ही,फिर भी वरीयता क्रम में किंचित भेद भी कहा गया है।तद्नुसार 24+2=26 में 6 को अधिक महत्त्व दिया जाता है-पुरुषोत्तमी, भीमसेनी, अचला, षटतिला, मोक्षदा, आमलकी।

2.एकादशी व्रत चौबीस घंटों के उपवास का व्रत है। फलाहार,दुग्धाहार आदि पूर्णग्राह्य है। ध्यातव्य है कि विष्णु के व्रतों में सेन्धा नमक ग्राह्य है,हाँ तेल के स्थान पर घी का प्रयोग करना चाहिए। तेल तो लगाना भी वर्जित है।

3.पूरे व्रतकाल में जितना हो सके विष्णु की पूजा-अर्चना, ध्यान-जप-संकीर्तन में समय व्यतीत करे।उपवास का अर्थ ही होता है आराध्य के समीप रहना,न कि भूखा रहना उपवास होता है।और यह कार्य तो भरपेट खाकर भी हो सकता है। हां,एकादशी का व्रत अन्न खाकर नहीं करना है।अस्तु।

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शास्त्रों के अनुसार एकादशी व्रत सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठानों में से एक है।

शब्द ‘एकादशी’ की जड़ें संस्कृत भाषा में हैं, जिसका अर्थ है ‘ग्यारह’ और यह शब्द चंद्र कैलेंडर में हर पखवाड़े के 11 वें दिन से मेल खाता है। हर महीने दो एकादशी तीथियां मनाई जाती हैं, प्रत्येक शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में।

जैसा कि शास्त्रों में वर्णित है, एकादशी व्रत लगभग 48 घंटों तक रहता है क्योंकि एकादशी के दिन संध्याकाल में व्रत शुरू होता है और एकादशी के अगले दिन सूर्य उदय होने तक जारी रहता है|

एकादशी व्रत Ekadashi/ Gyaras Vrat-Fasting 

एकादशी को ग्यारस (अग्यारस) भी कहते हैं। एक महीने में दो ग्यारस (अग्यारस) होती है। दो पक्ष एक महीने में होते हैं। शुक्लपक्ष (Brighter Days) एवं कृष्णपक्ष (Darker Days) एक एकादशी शुक्लपक्ष में आती है एवं दूसरी कृष्णपक्ष में । एकादशी स्मार्त एवं वैष्णव एक ही दिन में भी होती है तो कभी वैष्णव एकादशी दूसरे दिन समय (धड़ी व पल) के अनुसार भी, होती है। नीचे लिखी उक्ती का निर्देश धर्म सिन्धुकार द्वारा आता है:

स्मार्थनां ग्रहिणां पूर्वो पोध्या । यतिर्भि निष्काम गृहिभि वनस्यै विधवा भिवैष्णवैश्य परैवोपोध्या ॥

ये कण्ठलान तुलसी नलिनाक्षमालाः, ये बाहुमूल परिलक्षित शंखचक्राः ।

वेषां ललाट पटले लसदूर्ध्वपुण्ड्रं ते वैष्णवा भुवनमाशु पवित्रयन्ति ॥

एकादशी व्रत का निर्णय वेद, श्रुति, स्मृति आदि ग्रंथों का मनन करनेवाले धर्म परायण गृहस्थी स्मार्त कहलाते हैं । वैष्णवी वे लोग भक्त जिन्होंने गले में कण्ठी धारण की हो, मस्तक, गले पर गोपी चंदन का ऊर्ध्व पुण्ड तिलक लगाते हों एवं वैष्णव सम्प्रदाय के गुरु से दीक्षा लेते हों या ली हो, दर्शन मात्र से भी दूसरों को पवित्र कर देते हों । एकादशी, पूर्णिमा आदि व्रतों में स्मार्त एवं गृहस्थजनों को पूर्वा विद्वा में व्रतादि का निर्देश दिया है, जबकि वैष्णवों आदि को परिवर्ती तिथि में करना कहा है। आषाढ़ और कार्तिक शुक्लपक्ष में आनेवाली एकादशियों को महाएकादशी कहते हैं। कार्तिक शुक्लपक्ष की एकादशी के दिन (बीखम) तुलसी विवाह भी होता है। शुक्लपक्ष में आने वाली एकादशीयां व्रत के लिये एवं कृष्णपक्ष की कामनापूर्ति के लिए रख सकते हैं। उच्च व्रत है कि निष्काम होकर व्रत-भक्ति श्रद्धा से किया जाए। एकादशी व्रत रखने से शारीरिक और मानसिक उन्नति होती है। क्योंकि इनमें विष्णु एवं शिव शंकर की उपासना, वन्दना, पूजन अर्चन करते हैं। अगर किसी कारणवश सालभर एकादशी व्रत नहीं रख सकते हैं तो कम से कम आषाढ़, कार्तिक महीनों की एकादशी का व्रत रखें।

एकादशी मंत्र

एकादशी पूजा के दौरान भगवान विष्णु के मंत्र का जाप किया जाता है: ‘ओम नमो भगवते वासुदेवाय’

108 बार हरे कृष्ण महा-मंत्र का जाप करने की भी सलाह दी जाती है। मंत्र इस प्रकार है:

‘हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे,

हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।

भक्तों को सुबह और शाम जाप करते हुए करते हुए व्रत को पूर्ण करना चाहिए…..

इस कलियुग का महामंत्र नित्य जपें और खुश रहें ।

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।

 हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। 

 

डिसक्लेमर

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