एकादशी श्राद्ध उन मृतक परिवार के सदस्यों के लिए किया जाता है जिनकी मृत्यु एकादशी तिथि को हुई थी, जिसमें शुक्ल और कृष्ण पक्ष एकादशी दोनों शामिल हैं।एकादशी श्राद्ध को ग्यारस श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है। इंदिरा एकादशी का महत्व ब्रह्म वैवर्त पुराण में वर्णित है और भगवान कृष्ण द्वारा युधिष्ठिर को वर्णित किया गया था। ऐसा माना जाता है कि इस एकादशी को करने से अपने और अपने पूर्वजों द्वारा किए गए पापों को दूर करने में मदद मिलती है। एकादशी उत्तर भारत में पितृ पक्ष श्राद्ध अवधि के दौरान आती है। एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है।
इन्दिरा एकादशी व्रत का महत्त्व (Importance of Indira Ekadashi Vrat in Hindi)
इंदिरा एकादशी का त्यौहार बहुत महत्व रखता है क्योंकि भक्त जो इंदिरा एकादशी उपवास का पालन करते हैं उन्हें समृद्धि व उनके पिछले पापों से राहत का आशीर्वाद मिलता है। भक्त पूर्वजों को शांति प्रदान करने के लिए इंदिरा एकादशी उपवास करते हैं। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह उपवास अश्वमेध यज्ञ के समान महत्व रखता है।
इंदिरा एकादशी व्रत विधि
1. व्रत पिछले दिन से ही शुरू हो जाता है यानि दशमी से ही
2. दशमी के दिन सुबह जल्दी उठ कर स्नान करें
3. पूरा दिन व्रत रखें
4. सुबह पूजा पाठ करें
5. दोपहर को नदी में जाएं और स्नान कर के तर्पण करें
6. ब्राह्मणों को भोजन कराएं और खुद भी करें
7. दूसरे दिन फिर से व्रत रखें
8. गाय, कुत्ता और कौए को भोजन दें
9. ब्राह्मणों को खाना खिलाएं और दान करें
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इंदिरा एकादशी व्रत कथा
भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति से भाव विह्वल होकर अर्जुन ने कहा- “हे प्रभु! अब आप कृपा कर आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी की कथा को कहिए। इस एकादशी का क्या नाम है तथा इसका व्रत करने से कौन-सा फल मिलता है। कृपा कर विधानपूर्वक कहिए।”
भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा- “हे धनुर्धर! आश्विन माह के कृष्ण (श्राद्ध) पक्ष की एकादशी का नाम इन्दिरा है। इस एकादशी का व्रत करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। नरक में गए हुए पितरों का उद्धार हो जाता है। हे अर्जुन! इस एकादशी की कथा के श्रवण मात्र से ही मनुष्य को अनंत फल की प्राप्ति होती है। मैं यह कथा सुनाता हूँ, तुम ध्यानपूर्वक श्रवण करो इसके सुनने मात्र से ही वायपेय यज्ञ का फल मिलता है
प्राचीनकाल में सतयुग के समय में महिष्मति नाम की एक नगरी में इंद्रसेन नाम का एक प्रतापी राजा धर्मपूर्वक अपनी प्रजा का पालन करते हुए शासन करता था। वह राजा पुत्र, पौत्र और धन आदि से संपन्न और विष्णु का परम भक्त था। एक दिन जब राजा सुखपूर्वक अपनी सभा में बैठा था तो आकाश मार्ग से महर्षि नारद उतरकर उसकी सभा में आए। राजा उन्हें देखते ही हाथ जोड़कर खड़ा हो गया और विधिपूर्वक आसन व अर्घ्य दिया।
सुख से बैठकर मुनि ने राजा से पूछा कि हे राजन! आपके सातों अंग कुशलपूर्वक तो हैं? तुम्हारी बुद्धि धर्म में और तुम्हारा मन विष्णु भक्ति में तो रहता है? देवर्षि नारद की ऐसी बातें सुनकर राजा ने कहा- हे महर्षि! आपकी कृपा से मेरे राज्य में सब कुशल है तथा मेरे यहाँ यज्ञ कर्मादि सुकृत हो रहे हैं। आप कृपा करके अपने आगमन का कारण कहिए। तब ऋषि कहने लगे कि हे राजन! आप आश्चर्य देने वाले मेरे वचनों को सुनो।
मैं एक समय ब्रह्मलोक से यमलोक को गया, वहाँ श्रद्धापूर्वक यमराज से पूजित होकर मैंने धर्मशील और सत्यवान धर्मराज की प्रशंसा की। उसी यमराज की सभा में महान ज्ञानी और धर्मात्मा तुम्हारे पिता को एकादशी का व्रत भंग होने के कारण देखा। उन्होंने संदेशा दिया सो मैं तुम्हें कहता हूँ। उन्होंने कहा कि पूर्व जन्म में कोई विघ्न हो जाने के कारण मैं यमराज के निकट रह रहा हूँ, सो हे पुत्र यदि तुम आश्विन कृष्णा. इंदिरा एकादशी का व्रत मेरे निमित्त करो तो मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती है।
इतना सुनकर राजा कहने लगा कि हे महर्षि आप इस व्रत की विधि मुझसे कहिए। नारदजी कहने लगे- आश्विन माह की कृष्ण पक्ष की दशमी के दिन प्रात:काल श्रद्धापूर्वक स्नानादि से निवृत्त होकर पुन: दोपहर को नदी आदि में जाकर स्नान करें। फिर श्रद्धापूर्व पितरों का श्राद्ध करें और एक बार भोजन करें। प्रात:काल होने पर एकादशी के दिन दातून आदि करके स्नान करें, फिर व्रत के नियमों को भक्तिपूर्वक ग्रहण करता हुआ प्रतिज्ञा करें कि ‘मैं आज संपूर्ण भोगों को त्याग कर निराहार एकादशी का व्रत करूँगा।
हे अच्युत! हे पुंडरीकाक्ष! मैं आपकी शरण हूँ, आप मेरी रक्षा कीजिए, इस प्रकार नियमपूर्वक शालिग्राम की मूर्ति के आगे विधिपूर्वक श्राद्ध करके योग्य ब्राह्मणों को फलाहार का भोजन कराएँ और दक्षिणा दें। पितरों के श्राद्ध से जो बच जाए उसको सूँघकर गौ को दें तथा ध़ूप, दीप, गंध, पुष्प, नैवेद्य आदि सब सामग्री से ऋषिकेश भगवान का पूजन करें।
रात में भगवान के निकट जागरण करें। इसके पश्चात द्वादशी के दिन प्रात:काल होने पर भगवान का पूजन करके ब्राह्मणों को भोजन कराएँ। भाई-बंधुओं, स्त्री और पुत्र सहित आप भी मौन होकर भोजन करें। नारदजी कहने लगे कि हे राजन! इस विधि से यदि तुम आलस्य रहित होकर इस एकादशी का व्रत करोगे तो तुम्हारे पिता अवश्य ही स्वर्गलोक को जाएँगे। इतना कहकर नारदजी अंतर्ध्यान हो गए।
हे युधिष्ठिर! यह इंदिरा एकादशी के व्रत का माहात्म्य मैंने तुमसे कहा। इसके पढ़ने और सुनने से मनुष्य सब पापों से छूट जाते हैं और सब प्रकार के भोगों को भोगकर बैकुंठ को प्राप्त होते हैं।
कथा-सार
मनुष्य जो भी प्रण करे, उसे चाहिए कि वह उसको तन-मन-धन से पूरा करें। किसी भी कार्य का प्रण करके उसे तोड़ना नहीं चाहिए।
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