सावन मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली कामिका एकादशी को पवित्रा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के उपेन्द्र स्वरूप की पूजा की जाती है, महाभारत काल में स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने पांडवों को एकादशी के महात्मय के बारे में बताया थ। कामिका एकादशी के व्रत में विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ विशेष फलदायी माना गया है, यह एकादशी जीवन में समृद्धि और खुशियां लाने वाली मानी गयी है। अपने पापों से डरने वाले व्यक्ति को कामिका एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए, श्रावण मास में भगवान विष्णु की पूजा करने से, सभी गन्धर्वों और नागों की भी पूजा हो जाती है। इस एकादशी में भगवान विष्णु की पूजा पीले रंग के फल-फूल से की जाती है।

कामिका एकादशी

कामिका एकादशी श्रावण माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन मनाई जाती है। कामिका एकादशी विष्णु भगवान की आराधना एवं पूजा का सर्वश्रेष्ठ समय होता है। इस व्रत के पुण्य से जीवात्मा को पाप से मुक्ति मिलती है। यह एकादशी कष्टों का निवारण करने वाली और मनोवांछित फल प्रदान करने वाली होती है। कामिका एकादशी को श्री विष्णु का उत्तम व्रत कहा गया है कहा जाता है कि इस एकादशी की कथा श्री कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को सुनाई थी। इससे पूर्व राजा दिलीप को वशिष्ठ मुनि ने सुनायी थी जिसे सुनकर उन्हें पापों से मुक्ति एवं मोक्ष प्राप्त हुआ।

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Kamika Ekadashi Vrat Puja Method कामिका एकादशी व्रत पूजा विधि 

कामिका एकादशी का व्रत दशमी की तिथि से ही आरंभ हो जाता है. एकादशी की तिथि को स्नान करने के बाद पूजा आरंभ करने से पहले व्रत का संकल्प लिया जाता है. इसके बाद भगवान विष्णु के उपेंद्र अवतार की पूजा आरंभ करें व्रत के दौरान भगवान विष्णु की प्रिय वस्तुओं का प्रयोग करें. पूजा में पीले वस्त्र और फल प्रयोग में लाएं. इसके अतिरिक्त दूध पंचामृत आदि अर्पित करें.

विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें 

कामिका एकादशी के व्रत में विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ विशेष फलदायी माना गया है. इस दिन सुबह और शाम दोनों समय पूजा करनी चाहिए. व्रत का पारण भी विधि पूर्वक करना चाहिए. नहीं तो पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता है. व्रत के बाद दान कराना चाहिए. कामिका एकादशी के अवसर पर तीर्थ स्थानों पर नदी, कुंड, सरोवर में स्नान करने का भी विधान है.

तुलसी पत्र का प्रयोग जरूर करें

कामिका एकादशी के व्रत में तुलसी पत्र का विशेष महत्व है. इस दिन तुलसी पत्र पूजा करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं.

Kamika Ekadashi importance कामिका एकादशी महत्व 

कामिका एकादशी उत्तम फलों को प्रदान करने वाली होती है. इस एकादशी के दिन भगवान श्री कृष्ण की पूजा करने से अमोघ फलों की प्राप्ति होती है. इस दिन तीर्थ स्थलों में विशिष स्नान दान करने की प्रथा भी रही है इस एकादशी का फल अश्वमेघ यज्ञ के समान होता है. इस एकादशी का व्रत करने के लिये प्रात: स्नान करके भगवान श्री विष्णु को भोग लगाना चाहिए. आचमन के पश्चात धूप, दीप, चन्दन आदि पदार्थों से आरती करनी चाहिए।

एकादशी व्रत के दिन श्री हरि का पूजन करने से व्यक्ति के पितरों के भी कष्ट दूर होते है. व्यक्ति पाप रूपी संसार से उभर कर, मोक्ष की प्राप्ति करने में समर्थ हो पाता है. इस एकादशी के विषय में यह मान्यता है कि जो मनुष्य सावन माह में भगवान विष्णु की पूजा करता है, उसके द्वारा गंधर्वों और नागों की सभी की पूजा हो जाती है. लालमणी मोती, दूर्वा आदि से पूजा होने के बाद भी भगवान श्री विष्णु उतने संतुष्ट नहीं होते, जितने की तुलसी पत्र से पूजा होने के बाद होते है. जो व्यक्ति तुलसी पत्र से श्री केशव का पूजन करता है. उसके जन्म भर का पाप नष्ट होते है।

इस एकादशी की कथा सुनने मात्र से ही यज्ञ करने समान फल प्राप्त होते है. कामिका एकादशी के व्रत में शंख, चक्र, गदाधारी श्री विष्णु जी की पूजा होती है. जो मनुष्य इस एकादशी को धूप, दीप, नैवेद्ध आदि से भगवान श्री विष्णु जी कि पूजा करता है उस शुभ फलों की प्राप्ति होती है ।

कामिका एकादशी पवित्रा एकादशी 

सावन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को कामिका एकादशी कहा जाता है। यह तिथि भगवान श्री हरि यानि विष्णु जी को समर्पित होती है। कामिका एकादशी के दिन शंख, चक्र गदा धारण करने वाले भगवान विष्णु की श्रीधर, हरि, विष्णु, माधव और मधुसूदन आदि नामों से भक्तिपूर्वक पूजा करनी चाहिए। भगवान कृष्ण ने कहा है कि कामिका एकादशी के दिन जो व्यक्ति भगवान के सामने घी अथवा तिल के तेल का दीपक जलाता है, उसके पुण्यों की गिनती चित्रगुप्त भी नहीं कर पाते हैं।

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कामिका एकादशी व्रत कथा 

युधिष्ठिर ने पूछा : गोविन्द वासुदेव ! आपको मेरा नमस्कार है श्रावण (गुजरात महाराष्ट्र के अनुसार आषाढ़) के कृष्णपक्ष में कौन सी एकादशी होती है ? कृपया उसका वर्णन कीजिये ।

भगवान श्रीकृष्ण बोले राजन सुनो। मैं तुम्हें एक पापनाशक उपाख्यान सुनाता हूँ, जिसे पूर्वकाल में ब्रह्माजी ने नारदजी के पूछने पर कहा था।

नारदजी ने प्रशन किया: हे भगवन हे कमलासन मैं आपसे यह सुनना चाहता हूँ कि श्रवण के कृष्णपक्ष में जो एकादशी होती है, उसका क्या नाम है ? उसके देवता कौन हैं तथा उससे कौन सा पुण्य होता है ? प्रभो यह सब बताइये ।

ब्रह्माजी ने कहा : नारद ! सुनो मैं सम्पूर्ण लोकों के हित की इच्छा से तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दे रहा हूँ। श्रावण मास में जो कृष्णपक्ष की एकादशी होती है, उसका नाम ‘कामिका’ है  उसके स्मरणमात्र से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। उस दिन श्रीधर, हरि, विष्णु, माधव और मधुसूदन आदि नामों से भगवान का पूजन करना चाहिए।

भगवान श्रीकृष्ण के पूजन से जो फल मिलता है, वह गंगा, काशी, नैमिषारण्य तथा पुष्कर क्षेत्र में भी सुलभ नहीं है। । सिंह राशि के बृहस्पति होने पर तथा व्यतीपात और दण्डयोग में गोदावरी स्नान से जिस फल की प्राप्ति होती है, वही फल भगवान श्रीकृष्ण के पूजन से भी मिलता है।

जो समुद्र और वनसहित समूची पृथ्वी का दान करता है। तथा जो कामिका एकादशी का व्रत करता है, वे दोनों समान फल के भागी माने गये हैं।

जो ब्यायी हुई गाय को अन्यान्य सामग्रियों सहित दान करता है, उस मनुष्य को जिस फल की प्राप्ति होती है, वही कामिका एकादशी का व्रत करनेवाले को मिलता है। जो नरश्रेष्ठ श्रावण मास में भगवान श्रीधर का पूजन करता है, उसके द्वारा गन्धर्वों और नागोंसहित सम्पूर्ण देवताओं की पूजा हो जाती है ।

अत: पापभीरु मनुष्यों को यथाशक्ति पूरा प्रयत्न कर कामिका एकादशी के दिन श्रीहरि का पूजन करना चाहिए जो पापरुपी पंक से भरे हुए संसार समुद्र में डूब रहे हैं, उनका उद्धार करने के लिए कामिका एकादशी का व्रत सबसे उत्तम है । अध्यात्म विधापरायण पुरुषों को जिस फल की प्राप्ति होती है, उससे बहुत अधिक फल कामिका एकादशी व्रत का सेवन करने वालों को मिलता है ।

कामिका एकादशी का व्रत करनेवाला मनुष्य रात्रि में जागरण करके न तो कभी भयंकर यमदूत का दर्शन करता है। और न कभी दुर्गति में ही पड़ता है।

लालमणि, मोती, वैदूर्य और मूँगे आदि से पूजित होकर भी भगवान विष्णु वैसे संतुष्ट नहीं होते, जैसे तुलसीदल से पूजित होने पर होते हैं। जिसने तुलसी की मंजरियों से श्रीकेशव का । पूजन कर लिया है, उसके जन्मभर का पाप निश्चय ही नष्ट हो जाता है ।

या दृष्टा निखिलाघसंघशमनी स्पृष्टा वपुष्पावनी रोगाणामभिवन्दिता निरसनी सिक्तान्तकत्रासिनी । प्रत्यासत्तिविधायिनी भगवत: कृष्णस्य संरोपिता न्यस्ता तच्चरणे विमुक्तिफलदा तस्यै तुलस्यै नमः ॥ 

जो दर्शन करने पर सारे पापसमुदाय का नाश कर देती है, सार्श करने पर शरीर को पवित्र बनाती है, प्रणाम करने पर रोगों का निवारण करती है, जल से सींचने पर यमराज को भी भय पहुँचाती है, आरोपित करने पर भगवान श्रीकृष्ण के समीप ले जाती है और भगवान के चरणों में चढ़ाने पर मोक्षरुपी फल प्रदान करती है, उस तुलसी देवी को नमस्कार है

जो मनुष्य एकादशी को दिन रात दीपदान करता है, उसके पुण्य की संख्या चित्रगुप्त भी नहीं जानते। एकादशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण के सम्मुख जिसका दीपक जलता है, उसके पितर स्वर्गलोक में स्थित होकर अमृतपान से तृप्त होते हैं। घी या तिल के तेल से भगवान के सामने दीपक जलाकर मनुष्य देह त्याग के पश्चात् करोड़ो दीपकों से पूजित हो स्वर्गलोक में जाता है।

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं: युधिष्ठिर ! यह तुम्हारे सामने मैंने कामिका एकादशी की महिमा का वर्णन किया है। ‘कामिका’ सब पातकों को हरनेवाली है, अत: मानवों को इसका व्रत अवश्य करना चाहिए। यह स्वर्गलोक तथा महान पुण्यफल प्रदान करनेवाली है। जो मनुष्य श्रद्धा के साथ इसका माहात्म्य श्रवण करता है, वह सब पापों से मुक्त हो श्रीविष्णुलोक में जाता है।

कामिका एकादशी का व्रत प्रत्येक मनुष्य को करना चाहिये।

इस व्रत के करने से ब्रह्महत्या आदि के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और इहलोक में सुख भोगकर प्राणी अन्त में विष्णुलोक को जाते हैं। इस कामिका एकादशी के माहात्म्य के श्रवण व पठन से मनुष्य स्वर्गलोक को प्राप्त करते हैं।”

कामिनी एकादशी कथा-सार 

भगवान श्रीहरि सर्वोपरि हैं। वे अपने भक्तों की निश्चल भक्ति से सहज ही प्रसन्न हो जाते हैं। तुलसीजी भगवान विष्णु की प्रिया हैं। भगवान श्रीहरि हीरे-मोती, सोने-चाँदी से इतने प्रसन्न नहीं होते, जितनी प्रसन्नता उन्हें तुलसीदल के अर्पण करने पर होती है।

कामिक एकादशी आरती के बिना अधूरी होती है। भगवान विष्णु की पूजा

कामिका एकादशी इसे सावन महीने की कृष्ण एकादशी भी कहा जाता है. आज भक्त भगवान विष्णु के उपेन्द्र रूप की पूजा करेंगे. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जो भक्त कामिका एकादशी पर भगवान विष्णु के उपेन्द्र स्वरुप की पूजा करते हैं उनसे देवता, गंधर्व और सूर्य आदि सब पूजित हो जाते हैं. अतः पापों से डरने वाले मनुष्यों को कामिका एकादशी का व्रत और विष्णु भगवान का पूजन अवश्यमेव करना चाहिए. इससे बढ़कर पापों के नाशों का कोई उपाय नहीं है. पूजा के बाद भगवान विष्णु की आरती पढ़ी जाती है. यहां पढ़ें भगवान विष्णु की आरती…

भगवान विष्णु की आरती 

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे |

भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे ॥

जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का ॥ ॐ जय…॥

मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी। तुम बिनु और न दूजा, आस करूं जिसकी ॥ ॐ जय… ॥

तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी ॥ पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी ॥ ॐ जय…॥

तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता।

मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता ॥ ॐ जय… ॥

तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति । किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति ॥ ॐ जय… ॥

दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे। अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे ॥ ॐ जय…॥

विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा। श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा ॥ ॐ जय…॥

तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा। तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा ॥ ॐ जय… ॥

जगदीश्वरजी की आरती जो कोई नर गावे। कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय… ॥

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डिसक्लेमर

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