अहोई अष्टमी व्रत कथा, विधि, पूजा मुहूर्त और आरती
Ahoi Ashtami जिसे अहोई आठें के नाम से भी जाना जाता है, संतान की लंबी उम्र, स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि के लिए रखा जाने वाला एक महत्वपूर्ण व्रत है। इस व्रत को मुख्य रूप से संतानवती स्त्रियाँ कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि को करती हैं। मान्यता है कि माता अहोई की सच्ची भक्ति और व्रत के नियमों का पालन करने से संतान की रक्षा होती है और जीवन में खुशहाली आती है।इस दिन माता अहोई की पूजा, कथा श्रवण, आरती और तारों को अर्घ्य देने का विशेष महत्व है। आइए इस लेख में जानें अहोई अष्टमी व्रत की पूरी विधि, कथा, आरती, शुभ मुहूर्त और उद्यापन की संपूर्ण जानकारी।
अहोई अष्टमी व्रत की तिथि और शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 13 अक्टूबर 2025 को दोपहर 12:24 बजे शुरू होकर 14 अक्टूबर 2025 को सुबह 11:09 बजे तक रहेगी।
अहोई माता की पूजा का श्रेष्ठ मुहूर्त शाम 5:33 से 7:08 बजे तक रहेगा।
तारों को देखने और अर्घ्य देने का समय सायंकाल 6:17 बजे रहेगा।
अहोई अष्टमी व्रत का महत्व
यह व्रत मुख्य रूप से संतान की लंबी आयु, स्वास्थ्य, सुखमय जीवन और उन्नति की कामना से किया जाता है। इस दिन माता अहोई और माता पार्वती की आराधना की जाती है क्योंकि माता पार्वती को भी संतान रक्षा की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है।

अहोई अष्टमी व्रत विधि
सुबह स्नान कर व्रत का संकल्प लें और अपनी संतान की दीर्घायु की प्रार्थना करें। व्रत के दौरान क्रोध, नकारात्मक विचार और दिन में सोने से बचना चाहिए। संध्या के समय दीवार या कपड़े पर गेरूवे रंग से अहोई माता, सेह (साही) और उसके सात पुत्रों का चित्र बनाया जाता है।
सायंकाल पूजा कर कथा श्रवण किया जाता है। पूजा के बाद सास-ससुर या घर के बड़ों के पैर छूकर आशीर्वाद लिया जाता है। तारों को करवे से अर्घ्य देकर आरती की जाती है और संतान के हाथ से जल ग्रहण कर व्रत पूरा किया जाता है।
अहोई अष्टमी की प्राचीन व्रत कथा
प्राचीन समय में एक साहुकार था। उसके सात बेटे और सात बहुएँ थीं।
साहुकार की एक बेटी भी थी, जो दीपावली पर मायके आई थी।
दीपावली पर घर की सफाई के लिए बहुएँ जंगल में मिट्टी लेने गईं।
साहुकार की बेटी भी ननद के साथ गई।
जहाँ वह मिट्टी काट रही थी, वहाँ स्याहू माता अपने बच्चों के साथ रहती थीं।
गलती से साहुकार की बेटी की खुरपी से स्याहू माता का बच्चा मर गया।
स्याहू माता क्रोधित हुईं और बोलीं, “मैं तुम्हारी कोख बांध दूँगी।”
साहुकार की बेटी ने अपनी सातों भाभियों से विनती की।
उसने कहा कि कोई उसकी जगह कोख बांध ले।
सबसे छोटी बहु ने अपनी कोख बांधने के लिए हामी भर दी।
छोटी बहु के बच्चे जन्म लेने के सात दिन बाद मर जाते।
सात पुत्रों की मृत्यु के बाद पंडित को बुलाया गया।
पंडित ने कहा कि सुरही गाय की सेवा करनी होगी।
सुरही गाय सेवा से स्याहू माता उसकी कोख खोलेंगी।
छोटी बहु ने रोज़ सुबह गाय की सेवा शुरू की।
गाय ने देखा कि यह कार्य कौन कर रहा है।
उसने बहु से पूछा और बहु ने अपनी समस्या बताई।
गाय ने उसकी बात मान ली और उसे स्याहू माता के पास ले गई।
रास्ते में एक गरुड़ का बच्चा सांप से खतरे में था।
बहु ने सांप मारकर गरुड़ के बच्चे को बचाया।
गरुड़ माता ने उसे स्याहू माता तक पहुँचाया।
स्योंहू माता ने बहु से कहा कि उसके सिर में जूँ है।
बहु ने जूँ निकाल दी।
स्याहू माता प्रसन्न हुईं और उसकी कोख खोल दी।
छोटी बहु के सात बेटे और सात बहुएँ जीवित हो गए।
बहु ने सात कड़ाही और सात अहोई बनाकर उद्यापन किया।
सभी ने अहोई माता की जय-जयकार की।
अहोई माता की आरती
जय अहोई माता, जय अहोई माता!
तुमको निसदिन ध्यावत हर विष्णु विधाता। (टेक)
ब्राहमणी, रुद्राणी, कमला तू ही है जगमाता।
सूर्य-चंद्रमा ध्यावत नारद ऋषि गाता।।
माता रूप निरंजन सुख-सम्पत्ति दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत नित मंगल पाता।।
तू ही पाताल बसंती, तू ही है शुभदाता।
कर्म-प्रभाव प्रकाशक जगनिधि से त्राता।।
जिस घर थारो वासा वाहि में गुण आता।
कर न सके सोई कर ले मन नहीं धड़काता।।
तुम बिन सुख न होवे न कोई पुत्र पाता।
खान-पान का वैभव तुम बिन नहीं आता।।
शुभ गुण सुंदर युक्ता क्षीर निधि जाता।
रतन चतुर्दश तोकू कोई नहीं पाता।।
श्री अहोई माँ की आरती जो कोई गाता।
उर उमंग अति उपजे पाप उतर जाता।।
अहोई अष्टमी उद्यापन विधि
जिस स्त्री के पुत्र न हों या जिसके पुत्र का विवाह हो चुका हो, उसे उगापन अवश्य करना चाहिए। एक थाल में सात स्थान बनाकर चार-चार पूरी और हलवा रखा जाए। इसके साथ पीले रंग की साड़ी, ब्लाउज और रुपए रखकर श्रद्धा से सास को भेंट दें। सास वस्त्र अपने पास रखकर हलवा-पूरी पड़ोस या कन्या के घर भेज दे।
Must Read अहोई माता: जानें अहोई अष्टमी पूजन विधि अहोई अष्टमी उद्यापन विधि एवं व्रत कथा
निष्कर्ष
अहोई अष्टमी व्रत संतान की आयु, सुख और उन्नति के लिए अत्यंत प्रभावशाली माना जाता है। माता अहोई की पूजा, कथा श्रवण और संध्या के समय तारों को अर्घ्य देकर यह व्रत पूर्ण किया जाता है। मान्यता है कि जो स्त्रियाँ नियमपूर्वक श्रद्धा से यह व्रत करती हैं, उनके जीवन में संतान संबंधित कष्ट दूर होते हैं और परिवार में सुख-समृद्धि बढ़ती है।
अहोई अष्टमी FAQs
प्रश्न 1: अहोई अष्टमी व्रत कौन रखता है ?
यह व्रत संतानवती स्त्रियाँ अपनी संतान की लंबी उम्र, स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए रखती हैं।
प्रश्न 2: अहोई अष्टमी का व्रत कब खोला जाता है ?
सायंकाल तारों को देखने और करुए से अर्घ्य देने के बाद व्रत खोला जाता है। संतान के हाथ से जल ग्रहण कर व्रत पूर्ण किया जाता है।
प्रश्न 3: अहोई माता की पूजा में क्या बनाना जरूरी होता है ?
दीवार या कपड़े पर गेरूवे रंग से अहोई माता, सेह और उसके सात पुत्रों का चित्र बनाया जाता है।
प्रश्न 4: क्या अहोई व्रत बिना संतान वाली स्त्रियाँ भी रख सकती हैं ?
हाँ, संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाली स्त्रियाँ भी यह व्रत कर सकती हैं।
प्रश्न 5: अहोई अष्टमी उद्यापन कब किया जाता है ?
जिस स्त्री का पुत्र न हो या पुत्र का विवाह हो चुका हो, वह उद्यापन विधि अवश्य करे।
⚠️ डिसक्लेमर
इस लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों जैसे ज्योतिषियों, पंचांग, मान्यताओं या धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं।
हमारा उद्देश्य केवल सूचना पहुंचाना है। इसके सही और सिद्ध होने की प्रामाणिकता नहीं दी जा सकती। कृपया किसी भी प्रकार के उपयोग से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह अवश्य लें।

Leave A Comment