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जब तक पाप-कर्म हैं, कुछ समझ नहीं आता, और समय बीत जाता है 

एकादशी माता की कृपा से हमें भक्ति मिल सकती है| हमारे पाप-कर्म नष्ट हो सकते हैं

रोना भी दो प्रकार का है एक हम दुःखी होकर रोते हैं, दूसरा हम भगवान के सिमरन में रोते हैं भाग्यशाली जीव ही भगवान के सिमरन में रोते हैं

जब तक अंतरात्मा शुद्ध नहीं होती, हम माया की और ही आकर्षित रहते हैं, और यही रहना चाहते हैं| लेकिन यहां कोई नहीं रह सकता यह मृत्यु लोक है हम यहां से नहीं हैं

यदि कोई किसी भी परिस्थिति में भगवान को अपने जीवन का केंद्र बना लेता है, तो वह अपने जीवन को सफल बना सकता है

आत्मा ना तो ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र है यह तो भगवान का अंश है

भगवान की शरण में आकर ही हम सुखी हो सकते हैं, और अपने दुखों का अंत कर सकते हैं

भगवान के नियमों का हमें पालन करना है, उन्हें भूल कर हम जन्म-मृत्यु के चक्र में पड़ जाते हैं

भक्ति करने से अच्छे संस्कार बढ़ते जाते हैं| कुछ बच्चे जन्म से भक्त होते हैं, कोई कर्म से भक्त बनता है, कोई सत्संग से भक्त बनता है

हमारे अंदर कुसंस्कार बने हुए हैं यदि हम भक्ति करते हैं, तो कुसंस्कार समाप्त हो जाते हैं

गुरु के बिना बंधन नहीं कट सकते, अच्छे संस्कार जब बढ़ जाएंगे, तो कुसंस्कार समाप्त हो जाएंगे, और उनका प्रभाव भी समाप्त हो जाएगा कुसंस्कारों के कारण हम इन बातों को नहीं समझ सकते

इसलिए हमें भगवान की शरण में आना है, उनकी निष्काम सेवा करनी है, और अपने अच्छे संस्कार बढ़ाने हैं कुसंस्कारों से दुख होता है, और रोना आता है हमारे कई जन्मों के कुसंस्कार बढ़ चुके हैं उन्हें समाप्त करना है