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मान और सम्मान पैसो से नहीं संस्कारों से मिलता है 

घड़ी सुधारने वाले मिल जाते हैं लेकिन समय खुद ही सुधारना पड़ता है 

हमेशा शांत रहे जीवन में खुद को बहुत मजबूत पायेंगे क्योंकि लोहा ठंडा रहने पर ही मजबूत होता है। गर्म होने पर तो उसे किसी भी आकर मे डाल दिया जाता है। 

दौलत से खुशी से खरीदी जा सकती है लेकिन सुकून नहीं

कुछ खो कर लौटे या न लौटे पर आपका ‘कर्म’ अवश्य लौटता है फिर चाहे वह अच्छा हो या बुरा.

रिश्ते हमेशा एक-दूसरे का ख्याल रखने के लिए बनाए जाते हैं एक-दूसरे का इस्तेमाल करने के लिए नहीं 

तूफान भी आना जरूरी है जिदगी में, तब जाकर पता चलता है। कौन हाथ छुड़ाकर भागता है और कौन हाथ पकड़कर। 

चाहे सारी दुनिया आपको अपनी नजरों से गिरा दे,

लेकिन, आपकी माँ की नजरों में आप हमेशा कोहिनूर हो और रहोगे 

किसी और की गलती से प्रभावित होकर जो दंड तुम खुद को देते हो वही क्रोध है 

समय और जिन्दगी दुनिया के दो सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है। जिन्दगी समय का सदुपयोग सिखाती है और समय हमें ज़िन्दगी की कीमत सिखाता है। 

कर्मों से ही होती है पहचान इंसानों की। महंगे तो पुतले भी पहनते हैं दुकानों में। 

शेर और हिरन के बीच दौड़ में कई बार हिरन जीत जाता है, क्योंकि शेर भोजन के लिए दौड़ता है और हिरन जीवन के लिए 

खुशनसीब है वो हाथ जो किसी के मुश्किल के वक़्त सहारा बन जाये। 

इंसान की इंसानियत उसी समय खत्म हो जाती है जब उसे दूसरों के दुख में हँसी आने लगती है 

भरोसा सब पर कीजिये लेकिन सावधानी के साथ, क्योकि कभी कभी खुद के दांत, भी जीभ को काट लेते है 

नियत साफ हो तो एक लोटा जल भी कबूल है, वरना दिखावे का तो छप्पन भोग भी फिजूल है.. 

हमारे संस्कार हमें झुकना सिखाते हैं मगर किसी की अकड़ के आगे नही। 

जीवन में सबसे बड़ी खुशी उस काम को करने में है जिसे लोग कहते है कि तुम नहीं कर सकते हो.. 

आत्मा भी अंदर है परमात्मा भी अंदर है और उस परमात्मा से मिलने का रास्ता भी अन्दर है। 

हर दुःख एक सबक देता है और हर सबक इंसान को बदल देता है। 

कृष्ण प्रेम 

अपने आप को श्री कृष्ण का श्रेष्ठ भक्त समझना और दूसरे भक्तों में दोष दृष्टि होना, इससे हम अमानी नहीं बन सकते । दूसरों से प्रतिष्ठा प्राप्ति की आशा से, भक्ति राज्य से पतन होकर नरक प्राप्ति हो सकती है। इसलिए अपने को वैष्णव मानना बड़ा दोष है । जो एक क्षण के लिए भी श्री कृष्ण एवं उनके भक्तों की सेवा से विमुख नहीं होता, वही वैष्णव है। ऐसे वैष्णव या श्रीकृष्ण सेवक अपने आप को ना वैष्णव कहते है और न समझते हैं। 

ईश्वर की शरण में निस्वार्थ जाइए, वो सब जानतें हैं आपको क्या चाहिए। 

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हर इंसान के जीवन में एक समय ऐसा जरूर आता है जब उसे सच्चे दिल से ये महसूस होता है कि इस दुनिया में इश्वर के अलावा कोई अपना नही 

वास्तविकता यदि आप गर्म चाय का कप हाथ में लिए खड़े हैं और कोई आपको धक्का दे देता है तो क्या होता है ? आपके कप से चाय छलक जाती है। अब आपसे कोई पूछे कि आपके कप से चाय क्यों छलकी? आप का उत्तर होगा कि अमुक ने मुझे धक्का दिया- इसलिये। जबकि वास्तविकता यह है कि आपके कप में चाय थी इसलिए छलकी। आपके कप से वही छलकेगा जो उसमें होगा।

इसी तरह जब जीवन में हमें लोगों के व्यवहार से जब धक्के लगते हैं तो उस समय के हमारी वास्तविकता ही छलकती है। आपका सच उस समय तक सामने नहीं आता जब तक आपको धक्का न लगे। देखना ये है कि जब आपको धक्का लगा तो क्या छलकेगा-धैर्य, मौन, कृतज्ञता, स्वाभिमान, निश्चिंतता, मानवता, गरिमा या क्रोध, कड़वाहट, पागलपन, ईर्ष्या, द्वेष, या घृणा-यह निर्णय आपको करना है। 

मनुष्य जन्म बड़ी मुश्किल से मिला है। यह जो गलियों में आवारा जानवर घूम रहे हैं। इन्हें भी कभी मनुष्य जन्म मिला था। इनमें से कोई डॉक्टर था कोई इंजीनियर कोई और इनके गुरु भी इन्हें भगवान का भजन, सत्संग, शास्त्र अध्ययन व धन्यवाद करने को कहते थे तब यह हँस कर जवाब देते थे कि हमारे पास टाइम (समय) नहीं है। और वो मनुष्य जन्म हार गए । भगवान का भजन नहीं किया, सत्संग नहीं किया, धर्म अनुसार आचरण नहीं किया न ही धन्यवाद ।

पशु योनि में आ गए अब देखो समय ही समय है। बेचारे गली गली आवारा घूमते हैं। कोई दुत्कारता है। कोई फटकारता है। कर्म बहुत रूला डालते हैं किसी को नहीं छोड़ते अब नहीं समझेंगे तो कब समझेंगे। कुछ समय का भजन, सत्संग व भगवान का धन्यवाद कर्मों को भी धो डालते है। पर कर्म बहुत ज्यादा हैं समय कम हमें चाहिए कि विचार कर चिंतन करें। परिवार सहित भगवान का भजन, सत्संग व धन्यवाद जरूर करें। 

किसी भी कार्य का वास्तविक मूल्य आपके उद्देश्य से आता है। उद्देश्य शुद्ध है और किसी समय कर्म करने की कृति अच्छा न होने पर भी वह भगवान के घर तक पहुंच जाती है, लेकिन अगर उद्देश्य अच्छा न हो और कर्म करने की कृति बहुत अच्छा हो, तो भी भगवान उससे दूर रहते हैं। 

जब बच्चा रोता है तो माँ उसे प्रेम से गोद में लेकर उसकी इच्छा पूर्ण कर देती है पर जो बच्चा हरदम रोता ही रहता है वह मिलने वाली वस्तु से भी वंचित रह जाता है। अतः प्रभु से भी उतना और तभी माँगना चाहिये जब बहुत आवश्यक हो। 

आस्था का मतलब यह मानना नहीं है कि कृष्ण आपके लिए सही करेंगे, बल्कि यह है की कृष्ण है जो करेंगे वह सही होगा। 

यदि कोई मुझसे पूछे कि मैंने जीवन में क्या पाया और क्या खोया, तो अवश्य बताइये कि मैंने जो खोया वह मेरा अज्ञान था और जो पाया वह ईश्वर की कृपा थी। मेरे और भगवान के बीच एक खूबसूरत रिश्ता है। मैं ज्यादा नहीं मांगता और भगवान कम नहीं देता। इसे “भाग्य” कहा जाता है। 

हमारे शास्त्रों में लोभ को समस्त पाप वृत्तियों का कारण गया है। अति लोभी व्यक्ति के संग से सदैव बचना चाहिए । अति लोभी व्यक्ति का संग सदैव अनिष्टकारी ही होता है। अति लोभ से रावण ने लंका का सर्वनाश करवाया तो अति लोभ से ही दुर्योधन ने कुरुवंश का सर्वनाश करवाया।

लोभ अहंकार से भी बुरी वस्तु है क्योंकि अहंकार आने पर तो व्यक्ति रिश्तों को तोड़ता है मगर लोभ के वशीभूत होने पर व्यक्ति द्वारा रिश्तों को लहुलुहान तक कर दिया जाता है। महापुरुषों ने भी गाया है कि “कामी तरे क्रोधी तरे, लोभी की गति नाहिं” कामी व्यक्ति की मुक्ति संभव है, क्रोधी व्यक्ति की भी मुक्ति संभव है मगर लोभी व्यक्ति की कोई गति नहीं अर्थात् वो सदैव भटकता ही रहेगा।

लोभ हमें केवल जीते जी ही नहीं भटकाता है अपितु मृत्यु के बाद 84 के चक्करों में भी भटकाता है। ये जीवन का एक शाश्वत नियम है कि जो व्यक्ति लोभ से बच जाता है, फिर वह पाप कर्म से भी अवश्य बच ही जाता है।

एक दिन श्यामसुन्दर राधाजी के बालों को संवारने लगे। कंघी करते जाएँ पर बाल उलझते जाएँ, कंघी करते-करते सब बाल आपस में उलझते चले गए उम्मीद नहीं थी की रात तक भी सुलझ जायेंगे। राधाजी की सखियाँ दूर बैठकर हंस रही थीं। काफी देर के बाद श्यामसुन्दर पसीने से तरबतर हो गए व परेशान दिखने लगे। राधाजी मस्त आँखें बंद किये इस सारे प्रसंग का आनंद ले रही थीं। सखियाँ पास आई और बोली- किशोरी जी तुमको पता नहीं चला तुम्हारे बाल उलझ चुके हैं श्यामसुन्दर से सुलझ नहीं रहे उठो उनसे कंघी वापिस लो और अपने बाल सुलझाओ। ये सुनते ही राधाजी के मुख पर अश्रुबिंदु प्रवाहित होने लगे। 

राधाजी बोली-अगर श्यामसुन्दर इसी तरह चुपचाप प्रेम से मेरे बाल सुलझाते रहे तो मै चाहती हूँ कि- ये मेरे केश सारी उम्र उलझे ही रहे व श्यामसुन्दर प्रेम से इन्हें सारी उम्र सुलझाते ही रहें। ये और उलझ जाएँ ये ही मेरी तमन्ना है।

काया और माया के मोती तो बिखर जाएगे. पर तन मन लगा हरि भक्ति में तो हर जनम निखर जाएगे। 

गोपी भाव

गोपी का अर्थ कोई स्त्री नहीं है। किसी स्त्री का नाम गोपी नहीं है। गोपी कोई साधारण जीव नहीं है। जिसकी आँखों का काजल बन कर भगवान कृष्ण बसे रहते हो वो जीव गोपी है। चाहे स्त्री हो, पुरुष हो, या कोई भी हो, जो कृष्ण प्रेम में डूब गया वो गो हैं, जिसे आठों याम हर अवस्था में कृष्ण ही कृष्ण दिखाई देते हैं वो गोपी है। 

केवल श्रृंगार करके या जोगन बन कर ऐसे वृन्दावन की गलियों में घूमना या कहीं भी घूमना ये दिखावा करना गोपी नही है। यह गोपी भेष हो सकता हैं पर वास्तव में जब हमें न कहना पड़े कि हम गोपी हैं और साक्षात परमात्मा आ जाये कहने के लिए की हाँ ये मुझसे प्रेम करता हैं और ये मेरी गोपी है तभी भक्ति सार्थक हैं। 

सभी सफलता की अंतिम स्वीकृति सर्वोच्च भगवान के हाथों में है। 

अब तो तेरे शरण बिन

मेरी गति नहीं है

सुध हर लिया है तुमने

अब न मेरी मति है….

ब्रज की गली गली में

गूंजे है नाम तेरा

अपना बना लो मुझको

तुम्ही तो मेरे प्राण …..

हे कान्हा, तुम संग बीते वक़्त का मैं कोई हिसाब नहीं रखती

मैं बस लम्हे जीती हूँ, इसके आगे कोई ख्वाब नहीं रखती.. 

लगता है टूटने का, बिखरने का, मिटने का वक्त आ गया है किसी छलिया के छल में सिसकने का वक्त आ गया है 

वो जो कहता था तू मेरी हैं मेरी और एक कदम बढा कर तो देख मैं सौ कदम आगे आ जाऊंगा उसी के भरमा के ,आँख चुरा के, कतरा के निकल जाने का वक्त आ गया है लगता बिखरने का वक़्त आ गया….😭😭

जवाब के इंतज़ार में तुम्हारी ओर निहार रही हूँ 

क्योंकि सिर्फ़ यहीं तक तो वश है मेरा गोविंद 

हर घड़ी याद तेरी आये सौतन बनके,

मैं फिरू श्याम तेरे नाम की जोगन बनके.. 

मेरे गोविंद

मेरी हर रात तुमपे खत्म होती हैं

और हर सुबह तुझसे ही शुरू होती हैं 

दर्द की शाम है आँखो मे नमी है

हर साँस कह रही है

बस तेरी कमी है.. साँवरे

बस तेरी कमी है.. 😭 

हर पल आंखों में पानी हैं क्योंकि चाहत में रुहानी हैं

मैं हूँ तुझसे, तू हैं मुझसे, अपनी बस यही कहानी हैं.. 

मेरे प्यारे.. रहने दे मुझको.. 

यूँ उलझा हुआ सा तुझमे..

सुना है सुलझ जाने से.. 

धागे अलग अलग हो जाते है.. 

काले और गोरे दोनों रंगो पर कहर हो,

तुम सांवले से हो, मगर बड़े प्यारे हो.. 

मनमोहना, 

बहुत प्यारी है तुम्हारी दी हुई हर निशानी.. 

चाहें वों दिल का दर्द हो या आँखों का पानी.. 

जितनी महोब्बत थी सारी दे दी मैनें तुमको …

गोपाल …

लेकिन जब मैनें झोली फैलाई तो मुझे …

आंसु .. और दर्द.. के सिवा कुछ न मिला …

कान्हा पता नहीं हमारे दरमियान यह कौन सा रिश्ता है..

लगता है कि जैसे सदियों पुराना कोई अधूरा किस्सा है..

राधा नाम जहाज है ,जो जपे सो उतरे पार ।।

बिना राधा नाम जपे ,नईया पडी रहे मझधार।।

मेरी राधे श्याम मिलादे  

बिना पढ़े जब डिग्री नहीं मिलती

तो बिना भक्ति भगवान कैसे मिलें ?

संस्कार बता देते हैं परिवार कैसा है ?

बातचीत बता देती है इन्सान कैसा है ?

बहस बता देती है ज्ञान कैसा है ?

नजरें बता देती है है चरित्र कैसा है ?

ठोकर बता देती है है ध्यान कैसा है ? 

स्पर्श बता देता है नीयत कैसी है ?

विनय बता देता है शिक्षा कैसी है ?

मुश्किलें बता देती है हौसला कैसा है ?

वाणी बता देती है है स्वभाव कैसा है ?

मृत्यु बता देती है जिन्दगी क्या है ? 

श्री कृष्ण भक्ति पाने का सरल व श्रेष्ठ उपाय है- श्री कृष्ण के नामों का कीर्तन करना । श्री चैतन्य महाप्रभु जी ने चार प्रधान लक्षण कहे हैं- तृण से भी अधिक छोटा होना अर्थात् किसी भी प्रकार का अभिमान न होना, वृक्ष के समान सहनशील होना अर्थात् किसी अन्य व्यक्ति द्वारा अपमानित होने पर भी क्रोध न करना, किसी से भी सम्मान पाने की इच्छा न रखना और सभी को सम्मान देना। 

आहटों से कह दो कि ज़रा आहट न करें, 

मेरी पलकों में मेरे राधा रमण सो रहें हैं

श्री हरिः शरणम मम

मैं धूल हूं तेरे चरणों की, धूल ही बनाए रखना। मैं जैसा हं तेरा हूं, बस अपना बनाए रखना

एक उम्र बीत चली है तुझे चाहते हुए तू आज भी बेखबर है कल की तरह 

आत्मा के लिए किसी भी काल में न तो जन्म है न मृत्यु। वह न तो कभी जन्मा है, न जन्म लेता है और न जन्म लेगा। वह अजन्मा, नित्य, शाश्वत तथा पुरातन है। शरीर के मारे जाने पर वह मारा नहीं जाता।

जो लोग आपके सामने दूसरों की बुराई करते हैं, सच समझना निश्चित ही वो लोग दूसरों से आपकी बुराई भी करते होंगे। बुरा करना ही गलत नहीं है अपितु बुरा सुनना भी गलत है। अतः बुरा करना घातक है और बुरा सुनना पातक (पाप) है। प्रयास करो दोनों से बचने का।

विचारों का प्रदूषण वो प्रदूषण है जिसे मिटाना विज्ञान के लिए भी संभव नही है। इसका कारण हमारी वो आदतें हैं जिन्हें किसी की बुराई सुनने में रस आने लगता है। बुराई को सुनना, बुराई को चुनना जैसा ही है क्योंकि जब हम बुराई सुनना पसंद करते हैं तो बुराई का प्रवेश हमारे जीवन में स्वतः होने लगता है।

जो हम रोज सुनते हैं, देखते हैं, वही हम भी होने लग जाते हैं। अतः उन लोगों से अवश्य ही सावधान रहने की जरुरत है जिन्हें दूसरों की बुराई करने का शौक चढ़ गया हो। 

किसी भी चीज का बिना लोभ किए जो भी स्थिति प्राप्त हो, उसमें आनंदित रहना, इसे ईश्वर की इच्छा को मानना कहते हैं। और ऐसा ही रहा तो हम अपने आप भक्त बनते हैं। और ऐसा होने के लिए ईश्वर का नाम स्मरण ही राजमार्ग है। 

स्वयं के लिए किए गए कर्म दुःख का कारण बनते हैं। लेकिन अगर आप उसी कर्म को परोपकार में बदल दें तो आपको खुशी का अहसास होता है।

मेरे साथ मेरा साया नही मेरे कान्हा चलते है 

मेरे प्यारे….तुम मेरी वो कमी हो

जो कोई भी नही पूरी कर सकता.. 

मुझमे मेरा अंत हो गया

प्रेम मेरा तुमसे अनंत हो गया.. मेरे गोविंद 

प्रेम यज्ञ की समिधा

औऱ अश्को का अभिषेक.. 

ऐसे नही हम चाहने वाले

जो आज तुम्हे कल किसी औऱ को चाहें… 

साँवरिया.. रो लेते हैं कभी कभी..

ताकि आंसुओं को भी कोई शिकायत ना रहे..

मेरे श्याम.. मिलने की आस बंधाये रखना,

कृपा का खजाना लुटाए रखना..

मेरा शरीर कही भी रहे मेरे श्याम,

मेरा मन खाटूधाम में बसाये रखना..

सफलता का कोई मंत्र नहीं है यह तो सिर्फ परिश्रम का फल है। 

एक छोटी सी चींटी आपके पैर को काट सकती है, पर आप उसके पैर को नहीं काट सकते इसलिए जीवन में किसी को छोटा न समझे वह जो कर सकता है शायद आप न कर पाये…

ऐसे बनो कि लोग आपके आने का इंतज़ार करें, जाने का नहीं 

कहते हैं कि वक़्त सारे घाव भर देता है पर सच तो ये है कि हम दर्द के साथ जीना सीख लेते हैं. 

गुस्सा बहुत चतुर होता है, अक्सर कमजोर पर ही निकलता है।

 मुश्किलें वो चीजें होती हैं, जो हमे सिर्फ तब दिखती हैं, जब हमारा ध्यान अपने लक्ष्य पर नही होता 

 

जीवन में बहुत सी मुश्किलें आयेगी, लेकिन कभी शिकायत मत करना क्योंकि भगवान ऐसे डायरेक्टर है जो सबसे कठिन रोल ‘बेस्ट एक्टर’ को ही देते है। 

मेरा रथ आपके हाथों में है माधव मेरे जीवन में अंधेरा हो सकता है, अंधकार नही 

हर दुःख एक सबक देता है और हर सबक इंसान को बदल देता है। 

हे कान्हा और कोई माने या न माने मुझको ये विश्वास है। जबतक तुम साथ हो, सबकुछ मेरे पास है। 

खिचड़ी यदि बर्तन में पके तो बीमार को ठीक कर देती है और यदि दिमाग में पके तो इंसान को बीमार कर देती है..

रिश्तों में बढ़ती हुई नफ़रत का एक कारण यह भी है कि आजकल लोग गैरों को अपना बनाने में और अपनों को नजरअंदाज करने में लगे है। 

मन का झुकना बहुत जरूरी है। मात्र सिर झुकाने से भगवान नही मिलते।  

प्रतिक्षण कृष्ण को पाना हैं तो, अब एक क्षण भी नहीं गवाना 

बहुत सुकून मिलता है प्रभु के ध्यान में सारी दुनिया सिमट आती है श्री राधे नाम में 

जो भाव शब्दों से सज न पाए, वो बनकर आँसु श्रीचरनन को छूना चाहते है।

हे कृष्णा तेरे सिवा कहाँ मिलता है कोई समझने वाला । जो भी मिलता है बस समझा कर ही चला जाता है। 

एक मंदिर के दरवाजे पर बहुत अच्छी लाइन लिखी थी.. जूते के साथ-साथ अपनी गलत सोच भी बाहर उतार के आइए. 

इम्तिहान समझकर सारे गम सहा करों, शख्सियत महक उठेंगी बस खुश रहा करों.. 

अच्छे लोगों की परीक्षा कभी न लीजिए, क्योंकि वे पारे की तरह होते हैं जब आप उन पर चोट करते हैं तो वे टूटते नहीं हैं, लेकिन फिसल कर चुपचाप आपकी जिंदगी से निकल जाते हैं। 

हजारों उलझनें राहों में, और कोशिशें बेहिसाब इसी का नाम है ज़िन्दगी, चलते रहिये जनाब 

कोई भी रिश्ता एकदूसरे के विश्वास के बजाय, एकदूसरे की समझ पर ज्यादा ढिका हुआ होता है। 

किसी पर हँसने से बेहतर किसी के साथ हँसें क्योंकि, छोटी छोटी खुशियाँ ही तो हैं जो जीने का सहारा बनती है 

लोगों को परवाह नहीं कि आप खुश हैं या उदास, उन्हें परवाह है कि आप उन्हें कितना खुश रख सकते हैं 

जिसने जीवन में प्रभु कृष्ण का आश्रय लिया है उसके जीवन में दुविधाएं, प्रश्न और संशय नहीं रहेंगे 

भक्ति का आरंभ जीवन में आप जहाँ से भी करेंगे वहीं से गोविन्द आपको स्वीकार कर लेंगे । 

हमेशा भगवान का नाम लो। चाहे श्रद्धा या अश्रद्धा से, प्रेम या उपेक्षा से, बैठकर या खड़े हो कर, सोते हुए या चलते हुए या खाते खाते भी। तनाव में चाहे प्रसन्नता में ,सुख में चाहे दुःख में कुछ इच्छा होने पर या सब कुछ तुम्हारे पास होने पर, अस्वस्थ होने पर या स्वस्थ होने पर , उदासी में या आनंद में , एकाग्र मन में या बैचैनी में ,भगवान का नाम लो। जब अकेले में हो या भीड़ में हो , प्रकाश में हो या अंधकार में हो , नाम लो। जब तुम शांत हो या परेशान हो और नाम लो। चाहे लय के साथ या बिना लय के भी। 

हमें यह सोचना चाहिए कि क्या हमने आध्यात्मिक संपत्ति कमाई है या केवल हम संसार की संपत्ति कमाने में ही अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं । 

संसारी माया-जाल में सुख नहीं है। संसार में जो सुखी दिखते हैं, वे वास्तव में दु:खी हैं। उनका सुख दिखावटी सुख है, सच्चा सुख नहीं। 

भगवान् का पवित्र नाम तथा स्वयं भगवान् एक ही हैं और जो कोई निरपराध भाव से भगवान् के पवित्र नाम का कीर्तन करता है, उसे तुरन्त अनुभूति होती है कि भगवान् उसके समक्ष उपस्थित हैं। यहाँ तक कि रेडियो-ध्वनि के स्पन्दन से हम ध्वनि की आंशिक अनुभूति प्राप्त कर सकते हैं और दिव्यता के ध्वनि को फिर से उच्चारित करके हम निश्चय ही भगवान् की उपस्थिति का अनुभव कर सकते हैं। इस युग में, जबकि प्रत्येक वस्तु कलि के कल्मष से दूषित है, शास्त्रों का आदेश है तथा भगवान् चैतन्य महाप्रभु ने भी यही उपदेश दिया है कि भगवान् के पवित्र नाम के कीर्तन से हम तत्काल कल्मष से रहित हो सकते हैं और क्रमशः दिव्य पद तक ऊपर उठकर भगवद्धाम वापस जा सकते हैं। 

श्रीमद भागवतम 1.16.32-33 तात्पर्य 

मन बच्चे की भाँति चंचल है। उसको समजा बुझा कर, कभी डाँट-फटकार कर और प्रायः प्यार से पुचकार कर भगवान् में लगाना चाहिए । बच्चों को जैसे शिक्षा संस्कार देते हैं हम, वैसे ही मन को सँभालें। यदि वह भगवन्नाम में रम जाय तो क्या कहना 

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