शनि साढेसाती में प्राप्त होने वाले अशुभ फलों से बचने के लिये अपने धैर्य व सहनशक्ति में वृधि करने के लिये शनि के उपाय करने चाहिए जिनमें शनि स्तोत्र पाठ व शनि स्तोत्रम को विशेष महत्व दिया जाता है. शनि के शुभ फल पाने के लिये इस पाठ का जाप नियमित रुप से प्रतिदिन (रविवार को छोड़कर) करना लाभकारी रहता है. शनि स्तोत्र का पाठ करते समय व्यक्ति में शनि के प्रति पूर्ण श्रद्धा व विश्वास होना अनिवार्य है.
शनि स्तोत्र पाठ
नीलांजन समाभासम रविपुत्रं यमाग्रजम
छाया मार्तण्ड सम्भूतं तम नमामि शनैश्चरम
सूर्यपुत्रो दीर्घदेही विशालाक्षा श्विप्रियाः
मंदचारा प्रसन्नात्मा पीडाम हरतु में शनि
कोणस्थ, पिंगलो, बभ्रु, कृष्णो, रौद्रान्तको,
यम: सौरि: शनिश्चरो मंद: पिंपलादेन संस्तुत:
शनि स्तोत्रम
नमस्ते कोण संस्थाय पिंगलाय च नमोस्तुते
नमस्ते बभ्रु रुपाय कृष्णाय च नमोस्तुते
नमस्ते रौद्रदेहाय नमस्ते चांतकाय च
नमस्ते यम संज्ञाय नमस्ते सौरये विभो
नमस्ते मंद संज्ञाय शनेश्वर नमोस्तुते
प्रसाद कुरु देवेश दीनस्य प्रणतस्य च
कोणस्थ पिंगलों, बभ्रु, कूष्णों, रौद्रान्तक यम:
सौरि:, शनिश्चरो मंद: पिपलादेन संस्तुत:
एतानि दश नमानि प्रात: उत्थाय य: पठेत
शनेश्वचर कूता पीडा न कदाचित भविष्यति
जिन व्यक्तियों की जन्म राशि पर शनि की साढ़ेसाती का प्रभाव चल रहा है, उन व्यक्तियों को इस पाठ का जाप प्रतिदिन करना चाहिए. इसके अतिरिक्त जिन व्यक्तियों की शनि की ढैय्या या लघु कल्याणी की अवधि चल रही हों, उनके लिये भी यह पाठ लाभकारी सिद्ध हो सकता है. इसके अलावा शनि महादशा के शुभ फल प्राप्त करने में भी शनि स्तोत्र सहयोगी रहता है. तथा जिन व्यक्तियों की कुण्डली में शनि निर्बल या पाप प्रभाव में होकर स्थित हो, उन व्यक्तियों को भी इस पाठ जाप से लाभ प्राप्त हो सकते है.
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