अहोई अष्टमी व्रत कथा और उपाय | Ahoi Ashtami Vrat Katha & Upay in Hindi
अहोई अष्टमी हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण व्रत है, जिसे माताएँ अपने बच्चों की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि और खुशहाली के लिए करती हैं। यह व्रत कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रखा जाता है। अहोई माता की पूजा करने से संतान की रक्षा होती है और घर में सुख-शांति बनी रहती है।
इस व्रत में केवल पूजा और कथा सुनना ही नहीं, बल्कि सही उपाय और नियमों का पालन करना भी आवश्यक माना जाता है। इस लेख में आप पढ़ेंगे:
- अहोई अष्टमी की पहली कथा
- अहोई अष्टमी की पहली कथा
- संतान सुख और समृद्धि के लिए आवश्यक उपाय
- अक्सर पूछे जाने वाले FAQ
यदि आप इस व्रत को श्रद्धा और विश्वास के साथ करेंगे, तो माता अहोई की कृपा से आपकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होंगी।
अहोई अष्टमी व्रत कथा | Ahoi Ashtami Vrat Katha in Hindi (पहली और दूसरी कथा)
पहली कथा – साहूकार की बेटी और स्याहू माता
बहुत समय पहले एक साहूकार रहता था। उसके सात बेटे और सात बहुएं थीं। उसकी एक बेटी भी थी, जो दीपावली के समय मायके आई थी।
सातों बहुएं घर लीपने के लिए मिट्टी लेने जंगल गईं। ननद भी उनके साथ चली गई। जहां वे मिट्टी खोद रही थीं, वहां स्याहू (साही) अपने बच्चों के साथ रहती थी।
गलती से साहूकार की बेटी की खुरपी से स्याहू का एक बच्चा मर गया। स्याहू क्रोधित हुई और बोली, “मैं तुम्हारी कोख बांध दूंगी।”
बेटी रोने लगी। उसने अपनी सातों भाभियों से विनती की कि कोई उसके बदले अपनी कोख बंधवा ले। सबसे छोटी भाभी तैयार हो गई।
समय बीतने पर छोटी बहू के बच्चे सात दिन में मर जाते थे। दुखी होकर उसने पंडित को बुलाया और उपाय पूछा।
पंडित ने कहा, “तुम सुरही गाय की सेवा करो। वह स्याहू की भायली है। अगर वह चाह ले, तो तेरी कोख खुल सकती है।”
छोटी बहू ने दूसरे दिन से गाय की सेवा शुरू की। वह रोज सुबह उठकर गोबर साफ करती और पूजा करती।
गाय माता ने सोचा, “यह सेवा कौन करता है ?”
एक दिन वह तड़के उठी और देखा कि छोटी बहू सफाई कर रही है। उसने पूछा, “तू मेरी सेवा क्यों करती है? क्या चाहती है ?”
बहू ने कहा, “स्याहू माता ने मेरी कोख बांध दी है। कृपा करके इसे खुलवा दो।”
गाय माता प्रसन्न हुई और बोली, “चलो, मैं तुम्हें स्याहू माता के पास ले चलती हूं।”
दोनों सात समुद्र पार चल दीं। रास्ते में धूप से थककर वे एक पेड़ के नीचे बैठीं। उस पेड़ पर गरुड़ पक्षी का बच्चा था। तभी एक सांप उसे डसने आया।
बहू ने साहस दिखाया। उसने सांप को मारकर गरुड़ के बच्चे को बचा लिया।
कुछ देर बाद गरुड़ की माता आई और प्रसन्न हुई। उसने कहा, “बोलो, क्या चाहती हो?”
बहू ने कहा, “हमें स्याहू माता के पास पहुंचा दो।”
गरुड़ माता ने उन्हें अपनी पीठ पर बैठाया और समुद्र पार ले गई।
स्याहू माता ने कहा, “बहन, बहुत दिन बाद आई हो। मेरे सिर में जूं हैं, निकाल दो।”
बहू ने सावधानी से जूं निकाल दी।
स्याहू माता प्रसन्न हुईं और बोलीं, “तेरे सात बेटे और सात बहुएं होंगी।”
बेटी ने कहा, “मुझे तो एक भी बेटा नहीं है। सात कैसे होंगे?”
स्याहू माता ने कहा, “तेरी कोख मेरे पास बंधी है। अब इसे खोलना ही पड़ेगा।”
साहूकार की बहू घर लौट गई। उसने देखा कि उसके सात बेटे और सात बहुएं हो गए हैं।
उसने सात अहोई बनाकर सात कड़ाही दान दी और उद्यापन किया।
तब से यह व्रत संतान सुख और दीर्घायु के लिए मनाया जाता है।
🌼 दूसरी कथा — साहूकारनी और साही का बच्चा
एक गांव में एक साहूकार रहता था। उसके सात बेटे थे।
दीपावली से पहले उसकी पत्नी मिट्टी लेने खदान गई।
वह कुदाल से मिट्टी खोद रही थी। अचानक कुदाल स्याहू (साही) के बच्चे को लग गई। वह बच्चा मर गया। साहूकारनी को बहुत दुख हुआ।
कुछ समय बाद उसके सातों बेटे मर गए। वह बहुत दुखी रहने लगी।
एक दिन उसने पड़ोसी को सारी बात बताई। उसने कहा, “मैंने जानबूझकर कोई पाप नहीं किया। गलती से साही का बच्चा मर गया। शायद इस वजह से मेरे बेटे मर गए।”
गांव की वृद्ध महिलाएं बोलीं, “अब तुमने गलती स्वीकार कर ली है। इससे आधा पाप खत्म हो गया। कार्तिक मास की कृष्ण अष्टमी को अहोई माता की पूजा करो।”
साहूकारनी ने उनकी बात मानी।
उसने स्याहू और उसके बच्चों का चित्र बनाकर पूजा की और क्षमा मांगी।
इस व्रत के प्रभाव से उसे फिर से सात पुत्र प्राप्त हुए।
तभी से अहोई अष्टमी व्रत की परंपरा शुरू हुई।
अहोई अष्टमी पर बच्चों को पास बिठाने की परंपरा
बच्चों को पास बिठाएं:
पूजा करते समय अपने बच्चों को पास में बिठाएं ताकि वे भी पूजन प्रक्रिया का हिस्सा बन सकें।
अहोई माता को भोग लगाएं:
पूजा के बाद अहोई माता को भोग लगाएं, जैसे कि गुलगुले, खीर, या जो भी आपकी परंपरा में हो।
बच्चों को प्रसाद खिलाएं:
सबसे पहले यह प्रसाद अपने बच्चों को खिलाएं। मान्यता है कि इससे अहोई माता की कृपा उन पर बनी रहती है।
दीर्घायु और सफलता की कामना करें:
ऐसा माना जाता है कि ऐसा करने से बच्चों को लंबी उम्र और जीवन में सफलता मिलती है।
कथा सुनें:
पूजा के दौरान अहोई अष्टमी की कथा सुनना भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो संतान संबंधी मनोकामनाओं को पूरा करने में मदद करता है।
अहोई अष्टमी के प्रभावी उपाय (Ahoi Ashtami Upay)
✨ 1. संतान की दीर्घायु के लिए उपाय
अहोई माता के सामने “ॐ अहोयै नमः” मंत्र का 108 बार जप करें।
इससे संतान की आयु और स्वास्थ्य में वृद्धि होती है।
✨ 2. संतान प्राप्ति के लिए उपाय
जो महिलाएँ संतान की इच्छा रखती हैं, वे इस दिन चाँदी की अहोई माता बनवाकर पूजा करें और व्रत का पालन करें।
कहते हैं कि अहोई माता की कृपा से शीघ्र ही संतान प्राप्ति होती है।
✨ 3. संतान के कष्ट निवारण हेतु उपाय
शाम को सात बच्चों को भोजन करवाएँ और उन्हें वस्त्र या मिठाई उपहार में दें।
यह उपाय संतान से संबंधित सभी दुखों को दूर करता है।
✨ 4. पारिवारिक सुख-शांति के लिए उपाय
अहोई माता को हलवा, पूरी और खीर का भोग लगाकर पूरे परिवार को प्रसाद दें।
इससे घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
✨ 5. आर्थिक समृद्धि के लिए उपाय
अहोई अष्टमी की रात तांबे के पात्र में जल भरकर घर के मुख्य द्वार पर रखें और सुबह तुलसी में चढ़ा दें।
यह उपाय धन-सौभाग्य को आकर्षित करता है।
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🌺 अहोई अष्टमी व्रत के प्रमुख उपाय और FAQ
प्रश्न 1: इस दिन क्या किया जाता है ?
👉 महिलाएं अहोई माता का चित्र बनाकर पूजा करती हैं। संतान की दीर्घायु की कामना करती हैं।
प्रश्न 2: व्रत का लाभ क्या है ?
👉 संतान सुख, परिवार में समृद्धि और मानसिक शांति मिलती है।
प्रश्न 3: अहोई अष्टमी व्रत कब रखा जाता है ?
👉 अहोई अष्टमी व्रत कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। यह करवा चौथ के चार दिन बाद और दीपावली से लगभग आठ दिन पहले आता है।
प्रश्न 4: अहोई अष्टमी व्रत कौन रखता है ?
👉 यह व्रत मुख्यतः माताएँ अपने पुत्रों की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए रखती हैं।
हालाँकि, संतान प्राप्ति की कामना करने वाली महिलाएँ भी यह व्रत रखती हैं।
प्रश्न 5: अहोई अष्टमी की पूजा कैसे की जाती है ?
👉 शाम के समय अहोई माता, स्याहू माता और सात पुत्रों का चित्र बनाकर या टाँगकर पूजा की जाती है।
दीपक जलाकर कथा सुनी जाती है, और तारों के दर्शन के बाद व्रत खोला जाता है।
प्रश्न 6: अहोई अष्टमी व्रत का पारण (व्रत खोलना) कैसे किया जाता है ?
👉 रात में तारों या सप्तर्षि के दर्शन करने के बाद संतान के हाथ से जल या फल ग्रहण कर व्रत खोला जाता है।
प्रश्न 7: अहोई अष्टमी पर क्या दान देना चाहिए ?
👉 इस दिन कपड़ा, भोजन, मिठाई, और कड़ाही (भोजन पात्र) का दान करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
कई स्थानों पर सात ब्राह्मणों या सात बच्चों को भोजन कराने की परंपरा भी है।
⚠️ डिसक्लेमर
इस लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है।
विभिन्न माध्यमों जैसे ज्योतिषियों, पंचांग, मान्यताओं या धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं।
हमारा उद्देश्य केवल सूचना पहुंचाना है। इसके सही और सिद्ध होने की प्रामाणिकता नहीं दी जा सकती।
कृपया किसी भी प्रकार के उपयोग से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह अवश्य लें।



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