जानें महालक्ष्मी व्रत पूजा विधि कथा और महत्व 

महालक्ष्मी व्रत भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से प्रारंभ होता है और अश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तक किया जाता है। यह व्रत सोलह दिनों तक किया जाता है और इस व्रत में सोलह दिनों तक ही शाम के समय चंद्रमा को अर्ध्य भी दिया जाता है। वैसे तो यह व्रत 16 दिनों तक किया जाता है। लेकिन अगर कोई भी व्यक्ति इस व्रत को सोलह दिनों तक नहीं कर पाता तो वह इस व्रत को अपने सामर्थ्य के अनुसार कम दिनों तक भी कर सकता है। महालक्ष्मी व्रत में अन्न ग्रहण नहीं किया जाता और सोलह दिनों का व्रत पूर्ण होने के बाद इस व्रत का उद्यापन कर दिया जाता है।

मां लक्ष्मी का व्रत करने से मनुष्य को जीवन के सभी सुखों की प्राप्ति होती है। महालक्ष्मी व्रत करने वाले व्यक्ति के पास धन और धान्य की कभी भी कोई कमीं नही रहती है। यह व्रत मनुष्य को उसके जीवन की सभी परेशानियों से मुक्ति दिलाता है। अगर कोई महिला इस व्रत को करती है तो उसे माता लक्ष्मी के आर्शीवाद से संतान सुख, पारिवारिक सुख, धन और धान्य सभी चीजें प्राप्त होती है और अगर कोई पुरुष इस व्रत को रखता है तो उसे उसकी नौकरी, व्यापार सभी में लाभ प्राप्त होता है।

महालक्ष्मी व्रत पूजन सामग्री 

हल्दी, कुमकुम, बैठने के लिये आसऩ, अक्षत, सोना या चाँदी या रुपया, धूप, दीपक, लाल फूल, श्री गज लक्ष्मी का चित्र, लाल कपड़ा, ताँबे का कलश, शुद्ध देसी घी, कटोरी (कलश को ढ़कने के लिये), नैवेद्य, फल, फूल, पूजन सामग्री में चन्दन, ताल, पत्र, पुष्प माला, अक्षत, दूर्वा, लाल सूत, सुपारी, नारियल आदि

महालक्ष्मी व्रत पूजा विधि 

1. सबसे पहले प्रात: काल स्नान करने के बाद साफ वस्त्र धारण करें। इसके बाद घर के आंगन में चावल के घोल का अल्पना बनाएं। अल्पना में मां लक्ष्मी के पैर अवश्य बनाएं।

2. इसके बाद करिष्य हं महालक्ष्मि व्रतमें त्वत्परायणा ।तदविध्नेन में यातु समप्तिं स्वत्प्रसादत: ।। मंत्र का जाप करके व्रत का संकल्प लें।

3. इसके बाद हाथ की कलाई पर 16 गांठों वाला धागा बांधना चाहिए। इसके बाद माता लक्ष्मी का आसन आम के पत्तों से सजाएं। इसके लिए आंवले का पत्ता और धान की बालियों भी अवश्य लें।

4. इसके बाद कलश स्थापित करें और भगवान गणेश और गज लक्ष्मी का चित्र स्थापति करें। भगवान गणेश के साथ कलश की भी पूजा करें। भगवान गणेश के बाद कलश की पूजा भी अवश्य करें।

5. इसके बाद मां लक्ष्मी को पुष्प माला, नैवेध, अक्षत,सोना या चाँदी आदि सभी चीजें अर्पित करें और उनकी विधिवत पूजा करें।

6. पूजा के बाद माता लक्ष्मी की कथा पढ़ें और उनके मंत्रों का जाप करें।

7. इसके बाद माता लक्ष्मी की धूप व दीप से आरती उतारें।

8. सुबह पूजा करने के बाद शाम के समय भी मां लक्ष्मी की इसी विधि से पूजा करें और दीप जलाएं।

9. एक दीप मां लक्ष्मी के आगमन के लिए अपने घर के बाहर भी अवश्य जलाएं।

10. इसके बाद चंद्रमा को अर्ध्य भी अवश्य दें और घर की बहु बेटियों और पड़ोस की सुहागन महिलाओं को भी अवश्य भोजन कराएं।

॥ महालक्ष्मी लघु पूजन विधि ॥

सरल हिन्दी भाषा में लक्ष्मी का लघु पूजन स्वयं करें

पूजन शुरू करने के पूर्व पूजन पद्धति को एक बार शुरू से आखिरी तक पढ़कर दोहरा लेना चाहिए उससे आप पूजन में आनंद का अनुभव करेंगे। श्री महालक्ष्मी पूजनकर्ता स्नान करके कोरे वस्त्र अथवा धुले हुए शुद्ध वस्त्र पहनें। अपने मस्तक पर (कुल परंपरा के अनुसार) तिलक लगाएँ। तिलक निम्न मंत्र बोलकर लगाएँ-

चंदन धारण करने से नित्य पाप नाश होते हैं, पवित्रता प्राप्त होती है, आपदाएँ समाप्त होती हैं एवं लक्ष्मी का वास बना रहता है।

( स्वयं के मस्तक पर चंदन या कुंकु से तिलक लगाएँ)।

पूजन हेतु वांछनीय जानकारियाँ

शुभ समय में, शुभ लग्न में पूजन प्रारंभ करें। (दीपावली पूजन की मुहूर्त तालिका पृथक से दी गई है, वहाँ देखें।)

पूजन सामग्री को व्यवस्थित रूप से (पूजन शुरू करने के पूर्व) पूजा स्थल पर जमा कर रख लें, जिससे पूजन में अनावश्यक व्यवधान न हो।

( पूजन सामग्री की सूची भी पृथक से दी गई है, वहाँ देखें।)

सूर्य के रहते हुए अर्थात दिन में पूर्व की तरफ मुँह करके एवं सूर्यास्त के पश्चात उत्तर की तरफ मुँह करके पूजन करना चाहिए।

महालक्ष्मी पूजन लाल ऊनी आसन अथवा कुशा के आसन पर बैठकर करना चाहिए।

पूजन सामग्री में जो वस्तु विद्यमान न हो उसके लिए उस वस्तु का नाम बोलकर ‘मनसा परिकल्प समर्पयामि’ बोलें।

गणेश पूजन यदि गणेश की मूर्ति न हो तो पृथक सुपारी पर नाड़ा लपेटकर कुंकु लगाकर एक कोरे लाल वस्त्र पर अक्षत बिछाकर, उस पर स्थापित कर गणेश पूजन करें।

पूजन प्रारंभ 

पवित्रकरण :-

पवित्रकरण हेतु बाएँ हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ की अनामिका से स्वयं पर एवं समस्त पूजन सामग्री पर निम्न मंत्र बोलते हुए जल छिड़कें

भगवान पुण्डरीकाक्ष का नाम उच्चारण करने से पवित्र अथवा अपवित्र व्यक्ति, बाहर एवं भीतर से पवित्र हो जाता है। भगवान पुण्डरीकाक्ष मुझे पवित्र करें।

( स्वयं पर व पूजन सामग्री पर जल छिड़कें)

आचमन :-

दाहिने हाथ में जल लेकर प्रत्येक मंत्र के साथ एक-एक बार आचमन करें-

पश्चात

ओम्‌ केशवाय नम-ह स्वाहा (आचमन करें) ओम्‌ माधवाय नम-ह स्वाहा (आचमन करें) ओम्‌ गोविन्दाय नम-ह स्वाहा (आचमन करें)

निम्न मंत्र बोलकर हाथ धो लें-

ओम्‌ हृषिकेशाय्‌ नम-ह हस्त-म्‌ प्रक्षाल्‌-यामि।

दीपक :-

शुद्ध घृत युक्त दीपक जलाएँ (हाथ धो लें)। निम्न मंत्र बोलते हुए कुंकु, अक्षत व पुष्प से दीप-देवता की पूजा करें-

हे दीप ! तुम देवरूप हो, हमारे कर्मों के साक्षी हो, विघ्नों के निवारक हो, हमारी इस पूजा के साक्षीभूत दीप देव, पूजन कर्म के समापन तक सुस्थिर भाव से आप हमारे निकट प्रकाशित होते रहें।

( गंध, पुष्प से पूजन कर प्रणाम कर लें)

स्वस्ति-वाचन :-

( निम्न मंगल मंत्रों का पाठ करें)

ॐ! हे पूजनीय परब्रह्म परमेश्वर! हम अपने कानों से शुभ सुनें। अपनी आँखों से शुभ ही देखें, आपके द्वारा प्रदत्त हमारी आयु में हमारे समस्त अंग स्वस्थ व कार्यशील रहें। हम लोकहित का कार्य करते रहें।

ॐ ! हे परब्रह्म परमेश्वर ! गगन मंडल व अंतरिक्ष हमारे लिए शांति प्रदाता हो। भू-मंडल शांति प्रदाता हो। जल शांति प्रदाता हो, औषधियाँ आरोग्य प्रदाता हों, अन्न पुष्टि प्रदाता हो। हे विश्व को शक्ति प्रदान करने वाले परमेश्वर ! प्रत्येक स्रोत से जो शांति प्रवाहित होती है। हे विश्व नियंत्रा ! आप वही शांति मुझे प्रदान करें।

श्री महागणपति को नमस्कार, लक्ष्मी-नारायण को नमस्कार, उमा-महेश्वर को नमस्कार, माता-पिता के चरण कमलों को नमस्कार, इष्ट देवताओं को नमस्कार, कुल देवता को नमस्कार, सब देवों को नमस्कार।

संकल्प :-

दाहिने हाथ में जल, अक्षत और द्रव्य लेकर निम्न वाक्यांश संकल्प हेतु पढ़ें-

( शास्त्रोक्त संकल्प के अभाव में निम्न संकल्प बोलें)

आज दीपावली महोत्सव- शुभ पर्व की इस शुभ बेला में हे, धन वैभव प्रदाता महालक्ष्मी, आपकी प्रसन्नतार्थ यथा उपलब्ध वस्तुओं से आपका पूजन करने का संकल्प करता हूँ। इस पूजन कर्म में महासरस्वती, महाकाली, कुबेर आदि देवों का पूजन करने का भी संकल्प लेता हूँ। इस कर्म की निर्विघ्नता हेतु श्री गणेश का पूजन करता हूँ।’

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श्री गणेश पूजन श्री गणेश का ध्यान व आवाहन

श्री गणेशजी आपको नमस्कार है। आप संपूर्ण विघ्नों की शांति करने वाले हैं। अपने गणों में गणपति, क्रांतदर्शियों में श्रेष्ठ कवि, शिवा-शिव के प्रिय ज्येष्ठ पुत्र, अतिशय भोग और सुख आदि के प्रदाता, हम आपका इस पूजन कर्म में आवाहन करते हैं। हमारी स्तुतियों को सुनते हुए पालनकर्ता के रूप में आप इस सदन में आसीन हों क्योंकि आपकी आराधना के बिना कोई भी कार्य प्रारंभ नहीं किया जा सकता है। आप यहाँ पधारकर पूजा ग्रहण करें और हमारे इस याग (पूजन कर्म) की रक्षा भी करें।

( पुष्प, अक्षत अर्पित करें)

स्थापना- (अक्षत)

ॐ भूर्भुवः स्वः निधि बुद्धि सहित भगवान गणेश पूजन हेतु आपका आवाहन करता हूँ, यहाँ स्थापित कर आपका पूजन करता हूँ।

( अक्षत अर्पित करें)

पाद्य, आचमन, स्नान पुनः आचमन-

ॐ भूर्भुवः स्वः श्री गणेश आपकी सेवा में पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, पुनः आचमन हेतु सुवासित जल समर्पित है। आप इसे ग्रहण करें।

( यह बोलकर आचमनी से जल एक तासक (तसली) में छोड़ दें)

पूजन-

लं पृथ्व्यात्मकम्‌ गंधम्‌ समर्पयामि ।

( कुंकु-चंदन अर्पित करें)

हं आकाशत्मकम्‌ पुष्पं समर्पयामि ।

( पुष्प अर्पित करें)

यं वायव्यात्मकं धूपं आघ्रापयामि ।

( धूप आघ्र्रापित करें)

रं तेजसात्मकं दीपं दर्शयामि ।

( दीपक प्रदर्शित करें)

वं अमृतात्मकं नैवेद्यम्‌ निवेदयामि ।

( नैवेद्य निवेदित करें)

सं सर्वात्मकं सर्वोपचारं समर्पयामि ।

( तांबूलादि अर्पित करें)

प्रार्थना-

हे गणेश ! यथाशक्ति आपका पूजन किया, मेरी त्रुटियों को क्षमा कर आप इसे स्वीकार करें।

श्री लक्ष्मी पूजन-प्रारंभ

1 . ध्यान एवं आवाहन- 

( ध्यान एवं आवाहन हेतु अक्षत, पुष्प प्रदान करें)

परमपूज्या भगवती महालक्ष्मी सहस्र दलवाले कमल की कर्णिकाओं पर विराजमान हैं। इनकी कांति शरद पूर्णिमा के करोड़ों चंद्रमाओं की शोभा को हरण कर लेती है। ये परम साध्वी देवी स्वयं अपने तेज से प्रकाशित हो रही हैं। इस परम मनोहर देवी का दर्शन पाकर मन आनंद से खिल उठता है। वे मूर्तमति होकर संतप्त सुवर्ण की शोभा को धारण किए हुए हैं। रत्नमय आभूषण इनकी शोभा बढ़ा रहे हैं। उन्होंने पीतांबर पहन रखा है। इस प्रसन्न वदनवाली भगवती महालक्ष्मी के मुख पर मुस्कान छा रही है। ये सदा युवावस्था से संपन्न रहती हैं। इनकी कृपा से संपूर्ण संपत्तियाँ सुलभ हो जाती हैं। ऐसी कल्याणस्वरूपिणी भगवती महालक्ष्मी की हम उपासना करते हैं।

( अक्षत एवं पुष्प अर्पित कर प्रणाम करें) पुनः अक्षत व पुष्प लेकर आवाहन करें-

हे माता! महालक्ष्मी पूजन हेतु मैं आपका आवाहन करता हूँ। आप यहाँ पधारकर पूजन स्वीकार करें।

( अक्षत, पुष्प अर्पित करें)

2. आसन :- (अक्षत) 

भगवती महालक्ष्मी ! जो अमूल्य रत्नों का सार है तथा विश्वकर्मा जिसके निर्माता हैं, ऐसा यह विचित्र आसन स्वीकार कीजिए।

( आसन हेतु अक्षत अर्पित करें)

3. पादय एवं अर्घ्य :- 

ॐ महालक्ष्मी ! आपको नमस्कार है। आपके चरणों में यह पाद्य जल अर्पित है। आपके हस्त में यह अर्घ्य जल अर्पित है।

4. स्नान :- 

(हल्दी, केशर, अक्षतयुक्त जल)

श्री हरिप्रिये ! यह उत्तम गंधवाले पुष्पों से सुवासित जल तथा सुगंधपूर्ण आमलकी चूर्ण शरीर की सुंदरता बढ़ाने का परम साधन है। आप इस स्नानोपयोगी वस्तु को स्वीकार करें।

ॐ श्री महालक्ष्मी ! आपको नमस्कार है। आपके समस्त अंगों में स्नान हेतु यह सुवासित जल अर्पित है।

( श्रीदेवी को स्नान कराएँ)

5. वस्त्र एवं उपवस्त्र :- (वस्त्र)

देवी ! इन कपास तथा रेशम के सूत्र से बने हुए वस्त्रों को आप ग्रहण कीजिए।

ॐ श्री महालक्ष्मी ! आपको नमस्कार है। आपकी प्रसन्नतार्थ विभिन्न वस्त्र एवं उपवस्त्र अर्पित करता हूँ।

( श्रीदेवी को वस्त्र व उपवस्त्र अर्पित है)

6. चंदन :- (घिसा हुआ चंदन)

देवी ! सुखदायी एवं सुगंधियुक्त यह चंदन सेवा में समर्पित है, स्वीकार करें।

ॐ श्री महालक्ष्मी ! आपको नमस्कार है। आपकी प्रसन्नतार्थ चंदन अर्पित है।

( चंदन अर्पित करें)

7. पुष्पमाला :- (पुष्पों की माला)

विविध ऋतुओं के पुष्पों से गूँथी गई, असीम शोभा की आश्रय तथा देवराज के लिए भी परम प्रिय इस मनोरम माला को स्वीकार करें।

ॐ श्री महालक्ष्मी ! आपको नमस्कार है। आपकी प्रसन्नतार्थ विभिन्न पुष्पों की माला अर्पित करता हूँ।

( कमल, लाल गुलाब के पुष्पों की माला अर्पित करें)

8. नाना परिमल द्रव्य :- (अबीर-गुलाल आदि)

देवी ! यही नहीं, किंतु पृथ्वी पर जितने भी अपूर्व द्रव्य शरीर को सजाने के लिए परम उपयोगी हैं, वे दुर्लभ वस्तुएँ भी आपकी सेवा में उपस्थित हैं, स्वीकार करें।

ॐ श्री महालक्ष्मी ! आपको नमस्कार है। आपकी प्रसन्नतार्थ विभिन्न नाना परिमल द्रव्य अर्पित करता हूँ।

( अबीर, गुलाल आदि वस्तुएँ अर्पित करें)

9. दशांग धूप :- (सुगंधित धूप बत्ती जलाएँ)

श्रीकृष्णकांते ! वृक्ष का रस सूखकर इस रूप में परिणत हो गया है। इसमें सुगंधित द्रव्य मिला दिए गए हैं। ऐसा यह पवित्र धूप स्वीकार कीजिए।

ॐ श्री महालक्ष्मी ! आपको नमस्कार है। आपकी प्रसन्नतार्थ सुगंधित धूप अर्पित करता हूँ।

( सुगंधित धूप बत्ती के धुएँ को आध्रार्पित करें)

10. दीपक :- 

(घी का दीपक जलाकर हाथ धो लें)

सुरेश्वरी ! जो जगत्‌ के लिए चक्षुस्वरूप है, जिसके सामने अंधकार टिक नहीं सकता तथा जो सुखस्वरूप है, ऐसे इस प्रज्वलित दीप को स्वीकार कीजिए।

ॐ श्री महालक्ष्मी ! आपको नमस्कार है। आपकी प्रसन्नतार्थ यह दीप प्रदर्शित है।

11. नैवेद्य :- 

(विभिन्न मिष्ठान, ऋतुफल व सूखे मेवे आदि)

देवी ! यह नाना प्रकार के उपहार स्वरूप नैवेद्य अत्यंत स्वादिष्ट एवं विविध प्रकार के रसों से परिपूर्ण हैं। कृपया इसे स्वीकार कीजिए। देवी! अन्न को ब्रह्मस्वरूप माना गया है। प्राण की रक्षा इसी पर निर्भर है। तुष्टि और पुष्टि प्रदान करना इसका सहज गुण है। आप इसे ग्रहण कीजिए। महालक्ष्मी! यह उत्तम पकवान चीनी और घृत से युक्त एवं अगहनी चावल से तैयार हैं। इसे आप स्वीकार कीजिए। देवी! शर्करा और घृत में किया हुआ परम मनोहर एवं स्वादिष्ट स्वस्तिक नामक नैवेद्य है। इसे आपकी सेवा में समर्पित किया है। स्वीकार करें।

ॐ श्री महालक्ष्मी आपको नमस्कार है। आपकी प्रसन्नार्थ नैवेद्य एवं सूखे मेवे आदि अर्पित हैं।

( नैवेद्य अर्पित कर, बीच-बीच में जल छोड़ते हुए निम्न मंत्र बोलें) :-

1. ओम प्राणाय स्वाहा।

2. ओम अपानाय स्वाहा।

3. ओम समानाय स्वाहा।

4. ओम उदानाय स्वाहा।

5. ओम व्यानाय स्वाहा।

इसके पश्चात पुनः आचमन हेतु जल छोड़ें

‘ हे माता! नैवेद्य के उपरांत आचमन ग्रहण करें।’

निम्न बोलकर चंदन अर्पित करें

ॐ हे माता! करोदवर्तन हेतु चंदन अर्पित है।

12. ताम्बूल :- (पान का बीड़ा)

हे माता ! यह उत्तम ताम्बूल कर्पूर आदि सुगंधित वस्तुओं से सुवासित है। यह जिह्वा को स्फूर्ति प्रदान करने वाला है, इसे आप स्वीकार कीजिए।

ॐ श्री महालक्ष्मी ! आपको नमस्कार है। आपकी प्रसन्नार्थ ताम्बूल अर्पित करता हूँ।

( पान का बीड़ा अर्पित करें)

13. दक्षिणा व नारियल :- (द्रव्य व नारियल)

‘ हे जगजननी ! फलों में श्रेष्ठ यह नारियल एवं हिरण्यगर्भ ब्रह्मा के गर्भ स्थित अग्नि का बीज यह स्वर्ण आपकी सेवा में अर्पित है। आप इन्हें स्वीकार करें। मुझे शांति व प्रसन्नता प्रदान करें।’

श्री महालक्ष्मी देवी ! आपको नमस्कार है। द्रव्य दक्षिणा एवं श्रीफल आपको अर्पित करता हूँ।

( श्रीफल दक्षिणा सहित अर्पित करें।)

14. आरती :- (कपूर की आरती)

‘ हे माता ! केले के गर्भ से उत्पन्न यह कपूर आपकी आरती हेतु जलाया गया है। आप इस आरती को देखकर मुझे वर प्रदान करें।’

श्री महाकाली देवी आपको नमस्कार है। कपूर निराजन आरती आपको अर्पित है।

( आरती उतारें, आरती लें व हाथ धो लें।)

लक्ष्मीजी की आरती 

ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता ।

तुमको निसिदिन सेवत, हर-विष्णु विधाता ॥ॐ जय…॥

उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग माता ।

सूर्य-चंद्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता ॥ॐ जय…॥

दुर्गारूप निरंजनि, सुख-संपत्ति दाता ।

जो कोई तुमको ध्याता, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता ॥ॐ जय…॥

तुम पाताल निवासिनि तुम ही शुभदाता ।

कर्मप्रभाव प्रकाशिनी भवनिधि की त्राता ॥ॐ जय…॥

जिस घर तुम रहती तहं, सब सद्गुण आता ।

सब संभव हो जाता, मन नहिं घबराता ॥ॐ जय…॥

तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न हो पाता ।

खान-पान का वैभव, सब तुमसे आता ॥ॐ जय…॥

शुभ-गुण मंदिर सुंदर, क्षिरोदधि जाता ।

रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहिं पाता ॥ॐ जय…॥

महालक्ष्मी की आरती, जो कोई नर गाता ।

उर आनंद समाता, पाप उतर जाता ॥ॐ जय…॥

आरती करके शीतलीकरण हेतु जल छोड़ें।

( स्वयं व परिवार के सदस्य आरती लेकर हाथ धो लें।)

16. पुष्पांजलि :- (सुगंधित पुष्प हाथों में लेकर बोलें)

हे माता ! नाना प्रकार के सुगंधित पुष्प मैंने आपको पुष्पांजलि के रूप में अर्पित किए हैं। आप इन्हें स्वीकार करें व मुझे आशीर्वाद प्रदान करें।

ॐ! श्री महालक्ष्मी आपको नमस्कार है। पुष्पांजलि आपको अर्पित है।

( चरणों में पुष्प अर्पित करें)

17. प्रदक्षिणा :- (परिक्रमा करें)

‘ जाने-अनजाने में जो कोई पाप मनुष्य द्वारा किए गए हैं वे परिक्रमा करते समय पग-पग पर नष्ट होते हैं।’

ॐ श्री महालक्ष्मी ! आपको नमस्कार है। प्रदक्षिणा आपको अर्पित है।

( प्रदक्षिणा करें, दंडवत करें)

18. क्षमा प्रार्थना :-

सबको संपत्ति प्रदान करने वाली माता ! मैं पूजा की विधि नहीं जानता। माँ ! मैं न मंत्र जानता हूँ न यंत्र। अहो! मुझे न स्तुति का ज्ञान है, न आवाहन एवं ध्यान की विधि का पता। मैं स्वभाव से आलसी तुम्हारा बालक हूँ। शिवे ! संसार में कुपुत्र का होना संभव है किंतु कहीं भी कुमाता नहीं होती।

माँ ! नाना प्रकार की पूजन सामग्रियों से कभी विधिपूर्वक तुम्हारी आराधना मुझसे न हो सकी। महादेवी ! मेरे समान कोई पातकी नहीं और तुम्हारे समान कोई पापहारिणी नहीं है। किन्हीं कारणों से तुम्हारी सेवा में जो त्रुटि हो गई हो उसे क्षमा करना। हे माता ! ज्ञान अथवा अज्ञान से जो यथाशक्ति तुम्हारा पूजन किया है उसे परिपूर्ण मानना। सजल नेत्रों से यही मेरी विनती है।’

19. समर्पण :-

हे देवी ! सुरेश्वरी ! तुम गोपनीय से भी गोपनीय वस्तु की रक्षा करने वाली हो। मेरे निवेदन किए हुए इस पूजन को ग्रहण करो। तुम्हारी कृपा से मुझे अभीष्ट की प्राप्ति हो।

महालक्ष्मी व्रत कथा

हिंदू धर्म में गजलक्ष्मी व्रत यानि महालक्ष्मी व्रत का विशेष महत्व है। भाद्रपद शुक्ल अष्टमी के दिन से यह व्रत शुरू होता है और 16 दिन तक यह व्रत किया जाता है। इस व्रत में मां लक्ष्मी का पूजन किया जाता है। इस व्रत को करने से सुख – समृद्धि और धन की प्राप्ति होती है। इस व्रत से जुड़ी कई तरह की लोककथाएं हैं लेकिन कुछ कथाएं काफी प्रचलित हैं।

महाभारत काल के दौरान एक बार महर्षि वेदव्यास जी ने हस्तिनापुर का भ्रमण किया। महाराज धृतराष्ट्र ने उन्हें अपने राजमहल में पधारने का आमंत्रण दिया। रानी गांधारी और रानी कुंती ने मुनि वेद व्यास से पूछा कि हे मुनि आप बताएं कि हमारे राज्य में धन की देवी मां लक्ष्मी और सुख-समृद्धि कैसे बनी रहे। यह सुनकर वेदव्यास जी ने कहा कि यदि आप अपने राज्य में सुख-समृद्धि चाहते हैं तो प्रतिवर्ष अश्विनी कृष्ण अष्टमी को विधिवत श्री महालक्ष्मी का व्रत करें।

मुनि की बात सुनकर कुंती और गांधारी दोनों ने महालक्ष्मी व्रत करने का संकल्प लिया। रानी गांधारी ने अपने राजमहल के आंगन में 100 पुत्रों की मदद से विशालकाय गज का निर्माण करवाया और नगर की सभी स्त्रियों को पूजन के लिए आमंत्रित किया, परंतु रानी कुंती को निमंत्रण नहीं भेजा। जब सभी महिलाएं गांधारी के राजमहल पूजन के लिए जाने लगी तो, कुंती उदास हो गई। माता को दुखी देखकर पांचों पांडवों ने पूछा कि माता आप उदास क्यों हैं? तब कुंती ने सारी बात बता दी।

इस पर अर्जुन ने कहा कि माता आप महालक्ष्मी पूजन की तैयारी कीजिए, मैं आपके लिए हाथी लेकर आता हूं। ऐसा कहकर अर्जुन इंद्र के पास गए और इंद्रलोक से अपनी माता के लिए ऐरावत हाथी लेकर आए। जब नगर की महिलाओं को पता चला कि रानी कुंती के महल में स्वर्ग से ऐरावत हाथी आया है तो सारे नगर में शोर मच गया। हाथी को देखने के लिए पूरा नगर एकत्र हो गया और सभी विवाहित महिलाओं ने विधि विधान से महालक्ष्मी का पूजन किया। पौराणिक मान्यता है कि इस व्रत की कहानी को 16 बार कहा जाता है और हर चीज या पूजन सामग्री 16 बार चढ़ाई जाती है।

महालक्ष्मी दूसरी पौराणिक कथा

पौराणिक कथानुसार, प्राचीन काल में एक बार एक गांव में गरीब ब्राह्मण रहता था। वह भगवान विष्णु का परमभक्त था। एक दिन उसकी भक्ति से खुश होकर भगवान विष्णु ने उसे दर्शन दिए और मनचाहा वरदान मांगने को कहा। ब्राह्मण ने कहा कि उसके घर में हमेशा लक्ष्मी का वास हो। इस इच्छा को जानने के बाद विष्णुजी ने कहा कि उसे लक्ष्मी तो प्राप्त हो सकती है लेकिन उसके लिए उसे थोड़ा प्रयत्न करना होगा। भगवान विष्णु ने कहा कि मंदिर के सामने एक स्त्री रोज आती है और यहां आकर उपले पाथती है, तुम बस अपने घर उन्हें आने का निमंत्रण देना। वह स्त्री ही देवी मां लक्ष्मी हैं। अगर वह स्त्री तुम्हारे घर आती है तो तुम्हारा घर धन-धान्य से भर जाएगा। इतना कहकर भगवान विष्णु अदृश्य हो गए।

अगले दिन सुबह 4 बजे ब्राह्मण मंदिर के सामने बैठ गया और जब धन की देवी मां लक्ष्मी उपले पाथने आईं तो ब्राह्मण ने उन्हें अपने घर में आने का निवेदन किया। ब्राह्मण के व्यक्तव को सुनकर लक्ष्मी जी समझ गईं कि ये सब विष्णु जी का किया धराया है। माता लक्ष्मी (Mahalaxmi) ने कहा कि तुम 16 दिन तक महालक्ष्मी व्रत को विधि पूर्वक करों और रात-दिन चंद्रमा को अर्घ्य दो तो मैं तुम्हारे घर आऊंगी। देवी के कहे अनुसार ब्राह्मण ने देवी का व्रत एवं पूजन किया और उत्तर की दिशा की ओर मुख करके लक्ष्मीजी को पुकारा। अपने वचन को पूरा करने के लिए धन की देवी प्रकट हुईं और उन्होंने गरीब ब्राह्मण के हर कष्ट को दूर किया और उसके घर को सुख-संपत्ति से भर दिया।

महालक्ष्मी तीसरी पौराणिक कथा

पौराणिक कथानुसार, एक बार भगवान विष्णु मृत्युलोक यानि भूलोक में गमन करने के लिये निकल पड़े। माता लक्ष्मी ने भी निवेदन किया कि वह भी उनके साथ आना चाहती हैं। भगवान विष्णु उनके स्वभाव से परिचित थे इसलिये पहले ही उन्हें आगाह किया कि मैं आपको एक ही शर्त पर साथ लेकर चल सकता हूं। माता लक्ष्मी मन ही मन बहुत खुश हुई कि चलो सशर्त ही सही भगवन साथ ले जाने के लिये तो माने।

माता फटाक से बोली मुझे सारी शर्तें मंजूर हैं। भगवान विष्णु ने कहा जो मैं कहूं जैसा मैं कहूं आपको वैसा ही करना होगा। माता बोली ठीक है आप जैसा कहेंगें मैं वैसा ही करूंगी। दोनों भू लोक पर आकर विचरण करने लगे। एक जगह रुककर श्री हरि ने माता से कहा कि मैं दक्षिण दिशा की तरफ जा रहा हूं। आपको यहीं पर मेरा इंतजार करना होगा। यह कहकर भगवान विष्णु दक्षिण दिशा की तरफ बढ़ गये। अब माता को जिज्ञासा हुई कि दक्षिण दिशा में ऐसा क्या है

जो भगवान मुझे वहां नहीं ले जाना चाहते। माता का स्वभाव तो वैसे भी चंचल ही माना जाता है। उनसे वहां पर ज्यादा देर नहीं रुका गया और वे भगवान विष्णु की तरफ ही बढ़ने लगी। आगे जाकर माता को सरसों का खेत दिखाई दिया। उसकी सुंदरता ने माता का मन मोह लिया। वे फूलों को तोड़कर अपना श्रृंगार करने लगीं।

इसके बाद वे कुछ ही दूर आगे बढ़ी थी कि गन्ने के खेत उन्हें दिखाई दिये। उन्हें गन्ना चूसने की इच्छा हुई तो गन्ने तोड़कर उन्हें चूसने लगी कि भगवान विष्णु वापस आ गए। सरसों के फूलों से सजी माता लक्ष्मी को गन्ना चूसते हुए देखकर भगवान विष्णु उन पर क्रोधित हो गये। भगवान ने कहा कि आपने शर्त का उल्लंघन किया है। मैनें आपको वहां रूकने के लिये कहा था लेकिन आप नहीं रूकी और यहां किसान के खेतों से फूल व गन्ने तोड़कर आपने अपराध किया है। इसकी आपको सजा मिलेगी। भगवान विष्णु ने माता लक्ष्मी को 12 वर्ष तक किसान की सेवा करने का शाप दे दिया और स्वंय क्षीरसागर गमन कर गये।

अब विवश माता लक्ष्मी को किसान के घर रहना पड़ा। एक दिन माता लक्ष्मी ने किसान की पत्नी को देवी लक्ष्मी की प्रतिमा की पूजा करने को कहा और बोला कि इससे तुम जो भी मांगोगी तुम्हें मिलेगा। कृषक की पत्नी ने वैसा ही किया। कुछ ही दिनों में उनका घर धन-धान्य से पूर्ण हो गया। हंसी खुशी समृद्धि में 12 साल का समय बीत गया। जब भगवान विष्णु माता लक्ष्मी को लेने के लिये आये तो किसान ने माता को न जाने देने का हठ किया। इस पर माता लक्ष्मी ने कहा कि कार्तिक कृष्ण पक्ष की तेरस की दिन यदि वह विधिपूर्वक मेरी पूजा करे तो वह उसके घर से नहीं जाएंगी।

लेकिन वह इस दौरान उन्हें दिखाई नहीं देंगी। वह एक कलश की स्थापना करे और उसमें कुछ धन रखे यानि धन ही लक्ष्मी का रूप होगा। इस प्रकार तेरस के दिन किसान ने माता के बताये अनुसार ही पूजा कर कलश स्थापना की और किसान का घर धन-धान्य से पूर्ण रहने लगा। तब से लेकर आज तक धनतेरस पर माता लक्ष्मी की पूजा करने की परंपरा भी चली आ रही है।

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