🕉️ श्री कालभैरव अष्टमी 2025: पूजा विधि, कथा, अष्ट भैरव, कवच व आरती

शास्त्रों के अनुसार भगवान कालभैरव का प्राकट्य मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर हुआ है। श्री कालभैरव के नाम जप मात्र से मनुष्य को कई रोगों से मुक्ति मिलती है, श्री कालभैरव की पूजा-अर्चना करने से परिवार में सुख-शांति, समृद्धि के साथ-साथ स्वास्थ्य की रक्षा भी होती है। इस दिन पूजा में अक्षत, वंदन, काले तिल, काली उड़द, काले कपड़े काले धतुरे के फूल से विधिवत पूजन किया जाता है। इस दिन बाबा काल भैरव को नीले फूलों की माला भी अर्पित करनी चाहिये।

भय और संकट से मुक्ति दिलाने वाले भगवान शिव के रौद्र रूप — श्री कालभैरव।

कालभैरवाष्टमी के दिन उनकी पूजा से शनि, राहु, तंत्र-बाधा और भूत-प्रेत के दोष नष्ट हो जाते हैं।

इस लेख में जानिए कालभैरवाष्टमी 2025 पूजा विधि, कथा, मंत्र, कवच, आरती और उपाय।

🙏 कालभैरव कौन हैं ?

भैरव भगवान शिव का रौद्र रूप हैं।

शिवपुराण के अनुसार, जब ब्रह्मा जी का अहंकार बढ़ा, तब शिव ने भैरव रूप में जन्म लिया और उनका अहंकार नष्ट किया।

भैरव को काशी का कोतवाल कहा गया है।

वे अपने भक्तों की रक्षा करते हैं और पापों का नाश करते हैं।

🔱 अष्ट भैरव — आठ रूपों की शक्ति

1. असितांग भैरव: पापों का नाश करने वाले।

2. चण्ड भैरव: शत्रु विनाशक।

3. रूरु भैरव: ज्ञान और बल देने वाले।

4. क्रोध भैरव: दुष्टों का नाश करते हैं।

5. उन्मत्त भैरव: तांत्रिक सिद्धि देने वाले।

6. कपाल भैरव: भय और मृत्यु से रक्षा करते हैं।

7. भीषण भैरव: रोगों का नाश करते हैं।

8. संहार भैरव: समस्त बुराई का अंत करते हैं।

भैरव की सवारी कुत्ता है, इसलिए पूजा के बाद कुत्ते को भोजन कराना शुभ माना जाता है।

कालभैरवाष्टमी का महत्व

भैरव पूजा से भय और कष्ट दूर होते हैं।

शनि, राहु, मंगल दोष शांत होते हैं।

घर में समृद्धि और सुरक्षा बनी रहती है।

तंत्र-बाधा, जादू-टोना और अशुभ शक्तियों से रक्षा होती है।

41 दिन तक नियमित जप करने से स्थायी सफलता मिलती है।

🪔 श्री कालभैरव पूजा विधि

1. प्रातः स्नान कर दक्षिण दिशा की ओर मुख करें।

2. कालभैरव की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।

3. चमेली के पुष्प, काले तिल, और तेल का दीपक अर्पित करें।

4. “ॐ कालभैरवाय नमः” मंत्र का 108 बार जाप करें।

5. प्रसाद में हलवा या पूरी का भोग लगाएँ।

6. पूजा के बाद कुत्ते को भोजन कराना न भूलें।

!! तांत्रोक्त भैरव कवच !! कालभैरव कवच (संक्षेप)

> ॐ सहस्त्रारे महाचक्रे कर्पूरधवले गुरुः !

पातु मां बटुको देवो भैरवः सर्वकर्मसु !!

पूर्वस्यामसितांगो मां दिशि रक्षतु सर्वदा !

आग्नेयां च रुरुः पातु दक्षिणे चण्ड भैरवः !!

नैॠत्यां क्रोधनः पातु उन्मत्तः पातु पश्चिमे !

वायव्यां मां कपाली च नित्यं पायात् सुरेश्वरः !!

भीषणो भैरवः पातु उत्तरास्यां तु सर्वदा !

संहार भैरवः पायादीशान्यां च महेश्वरः !!

ऊर्ध्वं पातु विधाता च पाताले नन्दको विभुः !

सद्योजातस्तु मां पायात् सर्वतो देवसेवितः !!

रामदेवो वनान्ते च वने घोरस्तथावतु !

जले तत्पुरुषः पातु स्थले ईशान एव च !!

डाकिनी पुत्रकः पातु पुत्रान् में सर्वतः प्रभुः !

हाकिनी पुत्रकः पातु दारास्तु लाकिनी सुतः !!

पातु शाकिनिका पुत्रः सैन्यं वै कालभैरवः !

मालिनी पुत्रकः पातु पशूनश्वान् गंजास्तथा !!

महाकालोऽवतु क्षेत्रं श्रियं मे सर्वतो गिरा !

वाद्यम् वाद्यप्रियः पातु भैरवो नित्यसम्पदा !!

इस कवच के पाठ से भय, रोग और शत्रुजनित कष्ट नष्ट होते हैं।

नित्य पाठ करने से हर प्रकार के संकट से रक्षा होती है।

स्वर्णाकर्षण भैरव साधना

यह साधना धन, समृद्धि और प्रतिष्ठा के लिए की जाती है।

🪔 मंत्र:

> “ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं स्वर्णाकर्षण भैरवाय नमः॥”

इस मंत्र का प्रतिदिन 108 बार जाप करें।

भैरवाष्टमी या शनिवार से शुरुआत करना अत्यंत शुभ माना जाता है।

🧘 कालभैरव ध्यान मंत्र

> “दिगम्बरं भूषणरहितं विशालवक्त्रं त्रिनेत्रयुक्तं,

कालभैरवं भजाम्यहम्॥”

इस ध्यान से मन शांत होता है और भय समाप्त होता है।

!! श्री स्वर्णाकर्षण भैरव स्त्रोत् !!

!! श्री मार्कण्डेय उवाच !!

भगवन् ! प्रमथाधीश ! शिव-तुल्य-पराक्रम !

पूर्वमुक्तस्त्वया मन्त्रं, भैरवस्य महात्मनः !!

इदानीं श्रोतुमिच्छामि, तस्य स्तोत्रमनुत्तमं !

तत् केनोक्तं पुरा स्तोत्रं, पठनात्तस्य किं फलम् !!

तत् सर्वं श्रोतुमिच्छामि, ब्रूहि मे नन्दिकेश्वर !!

!! श्री नन्दिकेश्वर उवाच !!

इदं ब्रह्मन् ! महा-भाग, लोकानामुपकारक !

स्तोत्रं वटुक-नाथस्य, दुर्लभं भुवन-त्रये !!

सर्व-पाप-प्रशमनं, सर्व-सम्पत्ति-दायकम् !

दारिद्र्य-शमनं पुंसामापदा-भय-हारकम् !!

अष्टैश्वर्य-प्रदं नृणां, पराजय-विनाशनम् !

महा-कान्ति-प्रदं चैव, सोम-सौन्दर्य-दायकम् !!

महा-कीर्ति-प्रदं स्तोत्रं, भैरवस्य महात्मनः !

न वक्तव्यं निराचारे, हि पुत्राय च सर्वथा !!

शुचये गुरु-भक्ताय, शुचयेऽपि तपस्विने !

महा-भैरव-भक्ताय, सेविते निर्धनाय च !!

निज-भक्ताय वक्तव्यमन्यथा शापमाप्नुयात् !

स्तोत्रमेतत् भैरवस्य, ब्रह्म-विष्णु-शिवात्मनः !!

श्रृणुष्व ब्रूहितो ब्रह्मन् ! सर्व-काम-प्रदायकम् !!

!! विनियोग !!

ॐ अस्य श्रीस्वर्णाकर्षण-भैरव-स्तोत्रस्य ब्रह्मा ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीस्वर्णाकर्षण-भैरव-देवता, ह्रीं बीजं, क्लीं शक्ति, सः कीलकम्, मम-सर्व-काम-सिद्धयर्थे पाठे विनियोगः !!

!! ध्यान !!

मन्दार-द्रुम-मूल-भाजि विजिते रत्नासने संस्थिते !

दिव्यं चारुण-चञ्चुकाधर-रुचा देव्या कृतालिंगनः !!

भक्तेभ्यः कर-रत्न-पात्र-भरितं स्वर्ण दधानो भृशम् !

स्वर्णाकर्षण-भैरवो भवतु मे स्वर्गापवर्ग-प्रदः !!

!! स्त्रोत् -पाठ !!

ॐ नमस्तेऽस्तु भैरवाय, ब्रह्म-विष्णु-शिवात्मने !

नमः त्रैलोक्य-वन्द्याय, वरदाय परात्मने !!

रत्न-सिंहासनस्थाय, दिव्याभरण-शोभिने !

नमस्तेऽनेक-हस्ताय, ह्यनेक-शिरसे नमः !

नमस्तेऽनेक-नेत्राय, ह्यनेक-विभवे नमः !!

नमस्तेऽनेक-कण्ठाय, ह्यनेकान्ताय ते नमः !

नमोस्त्वनेकैश्वर्याय, ह्यनेक-दिव्य-तेजसे !!

अनेकायुध-युक्ताय, ह्यनेक-सुर-सेविने !

अनेक-गुण-युक्ताय, महा-देवाय ते नमः !!

नमो दारिद्रय-कालाय, महा-सम्पत्-प्रदायिने !

श्रीभैरवी-प्रयुक्ताय, त्रिलोकेशाय ते नमः !!

दिगम्बर ! नमस्तुभ्यं, दिगीशाय नमो नमः !

नमोऽस्तु दैत्य-कालाय, पाप-कालाय ते नमः !!

सर्वज्ञाय नमस्तुभ्यं, नमस्ते दिव्य-चक्षुषे !

अजिताय नमस्तुभ्यं, जितामित्राय ते नमः !

नमस्ते रुद्र-पुत्राय, गण-नाथाय ते नमः !

नमस्ते वीर-वीराय, महा-वीराय ते नमः !!

नमोऽस्त्वनन्त-वीर्याय, महा-घोराय ते नमः !

नमस्ते घोर-घोराय, विश्व-घोराय ते नमः !!

नमः उग्राय शान्ताय, भक्तेभ्यः शान्ति-दायिने !

गुरवे सर्व-लोकानां, नमः प्रणव-रुपिणे !!

नमस्ते वाग्-भवाख्याय, दीर्घ-कामाय ते नमः !

नमस्ते काम-राजाय, योषित्कामाय ते नमः !!

दीर्घ-माया-स्वरुपाय, महा-माया-पते नमः !

सृष्टि-माया-स्वरुपाय, विसर्गाय सम्यायिने !!

रुद्र- लोकेश- पूज्याय, ह्यापदुद्धारणाय च !

नमोऽजामल- बद्धाय, सुवर्णाकर्षणाय ते !!

नमो नमो भैरवाय, महा-दारिद्रय-नाशिने !

उन्मूलन-कर्मठाय, ह्यलक्ष्म्या सर्वदा नमः !!

नमो लोक-त्रेशाय, स्वानन्द-निहिताय ते !

नमः श्रीबीज-रुपाय, सर्व-काम-प्रदायिने !!

नमो महा-भैरवाय, श्रीरुपाय नमो नमः !

धनाध्यक्ष ! नमस्तुभ्यं, शरण्याय नमो नमः !!

नमः प्रसन्न-रुपाय, ह्यादि-देवाय ते नमः !

नमस्ते मन्त्र-रुपाय, नमस्ते रत्न-रुपिणे !!

नमस्ते स्वर्ण-रुपाय, सुवर्णाय नमो नमः !

नमः सुवर्ण-वर्णाय, महा-पुण्याय ते नमः !!

नमः शुद्धाय बुद्धाय, नमः संसार-तारिणे !

नमो देवाय गुह्याय, प्रबलाय नमो नमः !!

नमस्ते बल-रुपाय, परेषां बल-नाशिने !

नमस्ते स्वर्ग-संस्थाय, नमो भूर्लोक-वासिने !!

नमः पाताल-वासाय, निराधाराय ते नमः !

नमो नमः स्वतन्त्राय, ह्यनन्ताय नमो नमः !!

द्वि-भुजाय नमस्तुभ्यं, भुज-त्रय-सुशोभिने !

नमोऽणिमादि-सिद्धाय, स्वर्ण-हस्ताय ते नमः !!

पूर्ण-चन्द्र-प्रतीकाश-वदनाम्भोज-शोभिने !

नमस्ते स्वर्ण-रुपाय, स्वर्णालंकार-शोभिने !!

नमः स्वर्णाकर्षणाय, स्वर्णाभाय च ते नमः !

नमस्ते स्वर्ण-कण्ठाय, स्वर्णालंकार-धारिणे !!

स्वर्ण-सिंहासनस्थाय, स्वर्ण-पादाय ते नमः !

नमः स्वर्णाभ-पाराय, स्वर्ण-काञ्ची-सुशोभिने !!

नमस्ते स्वर्ण-जंघाय, भक्त-काम-दुघात्मने !

नमस्ते स्वर्ण-भक्तानां, कल्प-वृक्ष-स्वरुपिणे !!

चिन्तामणि-स्वरुपाय, नमो ब्रह्मादि-सेविने !

कल्पद्रुमाधः-संस्थाय, बहु-स्वर्ण-प्रदायिने !!

भय-कालाय भक्तेभ्यः, सर्वाभीष्ट-प्रदायिने !

नमो हेमादि-कर्षाय, भैरवाय नमो नमः !!

स्तवेनानेन सन्तुष्टो, भव लोकेश-भैरव !

पश्य मां करुणाविष्ट, शरणागत-वत्सल !

श्रीभैरव धनाध्यक्ष, शरणं त्वां भजाम्यहम् !

प्रसीद सकलान् कामान्, प्रयच्छ मम सर्वदा !!

!! फल-श्रुति !!

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श्रीमहा-भैरवस्येदं, स्तोत्र सूक्तं सु-दुर्लभम् !

मन्त्रात्मकं महा-पुण्यं, सर्वैश्वर्य-प्रदायकम् !!

यः पठेन्नित्यमेकाग्रं, पातकैः स विमुच्यते !

लभते चामला-लक्ष्मीमष्टैश्वर्यमवाप्नुयात् !!

चिन्तामणिमवाप्नोति, धेनुं कल्पतरुं ध्रुवम् !

स्वर्ण-राशिमवाप्नोति, सिद्धिमेव स मानवः !!

संध्याय यः पठेत्स्तोत्र, दशावृत्त्या नरोत्तमैः !

स्वप्ने श्रीभैरवस्तस्य, साक्षाद् भूतो जगद्-गुरुः !

स्वर्ण-राशि ददात्येव, तत्क्षणान्नास्ति संशयः !

सर्वदा यः पठेत् स्तोत्रं, भैरवस्य महात्मनः !!

लोक-त्रयं वशी कुर्यात्, अचलां श्रियं चाप्नुयात् !

न भयं लभते क्वापि, विघ्न-भूतादि-सम्भव !!

म्रियन्ते शत्रवोऽवश्यम लक्ष्मी-नाशमाप्नुयात् !

अक्षयं लभते सौख्यं, सर्वदा मानवोत्तमः !!

अष्ट-पञ्चाशताणढ्यो, मन्त्र-राजः प्रकीर्तितः !

दारिद्र्य-दुःख-शमनं, स्वर्णाकर्षण- कारकः !!

य येन संजपेत् धीमान्, स्तोत्र वा प्रपठेत् सदा !

महा-भैरव-सायुज्यं, स्वान्त-काले भवेद् ध्रुवं !!

!! श्री भैरव चालीसा !!

!! दोहा !!

श्री गणपति, गुरु गौरि पद, प्रेम सहित धरि माथ !

चालीसा वन्दन करों, श्री शिव भैरवनाथ !!

श्री भैरव संकट हरण, मंगल करण कृपाल !

श्याम वरण विकराल वपु, लोचन लाल विशाल !!

जय जय श्री काली के लाला !

जयति जयति काशी- कुतवाला !! जयति बटुक भैरव जय हारी !जयति काल भैरव बलकारी !! जयति सर्व भैरव विख्याता ! जयति नाथ भैरव सुखदाता !!

भैरव रुप कियो शिव धारण !

भव के भार उतारण कारण !!

भैरव रव सुन है भय दूरी !

सब विधि होय कामना पूरी !!

शेष महेश आदि गुण गायो ! काशी-कोतवाल कहलायो !!

जटाजूट सिर चन्द्र विराजत !

बाला, मुकुट, बिजायठ साजत !!

कटि करधनी घुंघरु बाजत !

दर्शन करत सकल भय भाजत !!

जीवन दान दास को दीन्हो !

कीन्हो कृपा नाथ तब चीन्हो !!

वसि रसना बनि सारद-काली !

दीन्यो वर राख्यो मम लाली !!

धन्य धन्य भैरव भय भंजन !

जय मनरंजन खल दल भंजन !!

कर त्रिशूल डमरु शुचि कोड़ा !

कृपा कटाक्ष सुयश नहिं थोड़ा !!

जो भैरव निर्भय गुण गावत !

अष्टसिद्घि नवनिधि फल पावत !!

रुप विशाल कठिन दुख मोचन !

क्रोध कराल लाल दुहुं लोचन !!

अगणित भूत प्रेत संग डोलत !

बं बं बं शिव बं बं बोतल !!

रुद्रकाय काली के लाला !

महा कालहू के हो काला !!

बटुक नाथ हो काल गंभीरा !

श्वेत, रक्त अरु श्याम शरीरा !!

करत तीनहू रुप प्रकाशा !

भरत सुभक्तन कहं शुभ आशा !!

रत्न जड़ित कंचन सिंहासन !

व्याघ्र चर्म शुचि नर्म सुआनन !!

तुमहि जाई काशिहिं जन ध्यावहिं !

विश्वनाथ कहं दर्शन पावहिं !!

जय प्रभु संहारक सुनन्द जय !

जय उन्नत हर उमानन्द जय !!

भीम त्रिलोकन स्वान साथ जय !

बैजनाथ श्री जगतनाथ जय !!

महाभीम भीषण शरीर जय !

रुद्र त्र्यम्बक धीर वीर जय !!

अश्वनाथ जय प्रेतनाथ जय !

श्वानारुढ़ सयचन्द्र नाथ जय !!

निमिष दिगम्बर चक्रनाथ जय !

गहत अनाथन नाथ हाथ जय !!

त्रेशलेश भूतेश चन्द्र जय !

क्रोध वत्स अमरेश नन्द जय !!

श्री वामन नकुलेश चण्ड जय !

कृत्याऊ कीरति प्रचण्ड जय !!

रुद्र बटुक क्रोधेश काल धर !

चक्र तुण्ड दश पाणिव्याल धर !!

करि मद पान शम्भु गुणगावत !

चौंसठ योगिन संग नचावत !!

करत कृपा जन पर बहु ढंगा !

काशी कोतवाल अड़बंगा !!

देयं काल भैरव जब सोटा !

नसै पाप मोटा से मोटा !!

जाकर निर्मल होय शरीरा !

मिटै सकल संकट भव पीरा !!

श्री भैरव भूतों के राजा !

बाधा हरत करत शुभ काजा !!

ऐलादी के दुःख निवारयो !

सदा कृपा करि काज सम्हारयो !!

सुन्दरदास सहित अनुरागा !

श्री दुर्वासा निकट प्रयागा !!

श्री भैरव जी की जय

लेख्यो !

सकल कामना पूरण देख्यो !!

!! दोहा !!

जय जय जय भैरव बटुक, स्वामी संकट टार !

कृपा दास पर कीजिये, शंकर के अवतार !!

जो यह चालीसा पढ़े, प्रेम सहित सत बार !

उस घर सर्वानन्द हों, वैभव बड़े अपार !!

श्री भैरव आरती

जय भैरव देवा, प्रभु जय भैरव देवा !

जय काली और गौरा देवी कृत सेवा !! जय !!

तुम्हीं पाप उद्घारक दुःख सिन्धु तारक !

भक्तों के सुख कारक भीषण वपु धारक !! जय !!

वाहन श्वान विराजत कर त्रिशूल धारी !

महिमा अमित तुम्हारी जय जय भयहारी !! जय !!

तुम बिन देवा सेवा सफल नहीं होवे !

चौमुख दीपक दर्शन दुःख खोवे !! जय !!

तेल चटकि दधि मिश्रित भाषा वलि तेरी !

कृपा करिये भैरव करिए नहीं देरी !! जय !!

पांव घुंघरु बाजत अरु डमरु जमकावत !

बटुकनाथ बन बालकजन मन हरषावत !! जय !!

बटकुनाथ की आरती जो कोई नर गावे !

कहे धरणीधर नर मनवांछित फल पावे !! जय !!

आरती के बाद प्रसाद कुत्ते या गरीबों में बाँटें।

🔔 कालभैरवाष्टमी उपाय

काले कुत्ते को रोटी खिलाएँ।

घर के बाहर तेल का दीपक जलाएँ।

“ॐ कालभैरवाय नमः” मंत्र का जप करें।

शत्रु भय या कोर्ट केस में विजय हेतु भैरव कवच का पाठ करें।

शनिवार को भैरव मंदिर जाकर दर्शन अवश्य करें।

📖 कालभैरवाष्टमी कथा (संक्षेप)

एक बार ब्रह्मा जी ने अहंकार में शिव का अपमान किया।

शिव ने रौद्र रूप धारण कर भैरव के रूप में जन्म लिया और ब्रह्मा का सिर काट दिया।

इससे भैरव को ब्रह्महत्या का दोष लगा।

बाद में उन्होंने काशी जाकर प्रायश्चित किया और वहीं “काशी के कोतवाल” कहलाए।

तब से कालभैरवाष्टमी का पर्व मनाया जाता है।

❓FAQ – कालभैरवाष्टमी से जुड़े सामान्य प्रश्न

प्रश्न 1: कालभैरवाष्टमी पर क्या नहीं करना चाहिए ?
👉 नशा, झूठ, और किसी का अपमान करने से बचें।

प्रश्न 2: कालभैरव किसका रूप हैं ?
👉 भगवान शिव के रौद्र रूप “भैरव” को कालभैरव कहा जाता है।

प्रश्न 3: कालभैरव जी को क्या भोग लगता है ?
👉 सूखी रोटी, हलवा, तेल और मदिरा (केवल तांत्रिक पूजा में) अर्पित की जाती है।

प्रश्न 4: कालभैरवाष्टमी पर दीपदान का महत्व क्या है ?
👉 दीपदान से भय, रोग और दरिद्रता का नाश होता है।

🔔 निष्कर्ष

श्री कालभैरवाष्टमी का व्रत जीवन से भय, दुख और दुर्भाग्य को दूर कर सुरक्षा और समृद्धि प्रदान करता है।
भैरव जी की पूजा से व्यक्ति को न केवल भौतिक सुख बल्कि आत्मिक शांति भी प्राप्त होती है।

⚠️ डिसक्लेमर

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विभिन्न माध्यमों जैसे ज्योतिषियों, पंचांग, मान्यताओं या धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं।

हमारा उद्देश्य केवल सूचना पहुंचाना है। इसके सही और सिद्ध होने की प्रामाणिकता नहीं दी जा सकती।

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