श्री सत्यनारायण भगवान व्रत कथा – तृतीय अध्याय (आरती सहित)
सनातन धर्म में श्री सत्यनारायण भगवान की कथा सुनने का विशेष महत्व है। यह व्रत जीवन में सुख, समृद्धि और शांति लाता है। जो भक्त श्रद्धा से इस व्रत को करते हैं, उनके सभी दुःख हरि स्वयं हर लेते हैं।
पूर्णिमा के दिन इस कथा का श्रवण विशेष रूप से शुभ माना गया है।
📖 श्री सत्यनारायण भगवान व्रत कथा – तृतीय अध्याय
श्री सूतजी बोले:
हे श्रेष्ठ मुनियो! अब मैं आगे की कथा कहता हूँ। प्राचीन समय में उल्कामुख नाम का एक ज्ञानी राजा था। वह जितेन्द्रिय और सत्यवक्ता था। प्रतिदिन मंदिर जाकर गरीबों की सहायता करता था।
एक दिन वह और उसकी पत्नी भद्रशीला नदी के तट पर श्री सत्यनारायण व्रत कर रहे थे। उसी समय साधु नामक एक वैश्य वहाँ आया। उसने राजा से पूछा, “हे राजन! यह आप कौन-सा व्रत कर रहे हैं ?”
राजा बोले, “हे वैश्य! मैं पुत्र प्राप्ति के लिए श्री सत्यनारायण भगवान का व्रत कर रहा हूँ।”
यह सुनकर वैश्य बोला, “मुझे भी यह व्रत विधि से बताइए। मेरी भी सन्तान नहीं है।”
राजा ने पूरी विधि समझाई।
व्यापार से निवृत्त होकर वैश्य अपने घर लौटा। उसने अपनी पत्नी लीलावती से व्रत की बात कही और संकल्प किया कि संतान होने पर व्रत अवश्य करूँगा।
भगवान की कृपा से उसकी पत्नी गर्भवती हुई और एक सुंदर कन्या कलावती को जन्म दिया।
समय बीता और कन्या बड़ी हुई। लीलावती ने अपने पति से कहा,
“अब व्रत का संकल्प पूरा करें।”
परंतु वैश्य ने कहा, “मैं विवाह के समय यह व्रत करूँगा।”
समय आया, कन्या का विवाह हुआ। लेकिन वह सत्यनारायण व्रत करना भूल गया।
भगवान सत्यनारायण इससे रुष्ट हुए और उसे दारुण दुःख प्राप्त हुआ।
व्यापार हेतु वह अपने दामाद के साथ सागर तट के रत्नसारपुर नगर पहुँचा। वहाँ राजा चन्द्रकेतु राज करता था।
एक दिन एक चोर राजा का धन चुराकर वैश्य की नाव में रख भाग गया।
राजा के सैनिकों ने वह धन वैश्य की नाव में पाया और उन्हें चोर समझकर बंदी बना लिया।
भगवान के कोप से घर में लीलावती और कलावती भी दुःख से व्याकुल हुईं।
एक दिन कलावती एक ब्राह्मण के घर गई, जहाँ सत्यनारायण व्रत हो रहा था। उसने कथा सुनी और श्रद्धा से प्रसाद ग्रहण किया।
वह घर लौटी और माता से बोली, “हे माता! मैंने सत्यनारायण व्रत देखा है। हम भी यह व्रत करें।”
दोनों ने मिलकर व्रत किया और भगवान से प्रार्थना की —
“हे प्रभु! हमारे पति और दामाद को शीघ्र घर लौटाइए।”
भगवान सत्यनारायण व्रत से प्रसन्न हुए।
उन्होंने राजा चन्द्रकेतु को स्वप्न में आदेश दिया,
“जिन वैश्यों को तुमने कैद किया है वे निर्दोष हैं। उन्हें मुक्त करो और उनका धन लौटाओ।”
प्रातः काल राजा ने स्वप्न सुनाया और दोनों वैश्य को मुक्त कर दिया।
राजा ने उनका सम्मान किया और दुगुना धन देकर विदा किया।
वे दोनों प्रसन्न होकर घर लौटे।
॥ इति श्री सत्यनारायण व्रत कथा तृतीय अध्याय सम्पूर्ण ॥
Must Read श्री सत्यनारायण भगवान व्रत कथा चतुर्थ अध्याय | Satyanarayan Katha in Hindi
🌺 श्री सत्यनारायण भगवान की आरती
॥ श्री सत्यनारायण भगवान की आरती ॥
जय जय सत्यनारायण स्वामी,
जय जय लक्ष्मीपति भगवान।
भक्तजनों के संकट हरते,
तुम हो दीनदयाल भगवान॥
जय जय सत्यनारायण स्वामी…॥
जो जन शरण तुम्हारी आते,
उनके कष्ट मिटाते प्रभु।
जो कोई नाम तुम्हारा गावे,
सुख-शांति घर पाते प्रभु॥
जय जय सत्यनारायण स्वामी…॥
भक्ति भाव से जो व्रत करता,
सत्यकथा जो सुनता प्रभु।
अन्न-धन-लक्ष्मी सब पाता,
दूर हो जाता संकट प्रभु॥
जय जय सत्यनारायण स्वामी…॥
🌼 निष्कर्ष
श्री सत्यनारायण भगवान व्रत कथा सुनने से जीवन के सभी संकट दूर होते हैं।
जो भक्त सच्चे मन से पूजा करते हैं, उनके घर में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है।
भगवान सत्यनारायण का नाम लेने मात्र से मन को शांति और आस्था की शक्ति मिलती है।
Must Read जानें श्री सत्यनारायण व्रत कथा पूजन विधि आरती जानें पूर्णिमा पर क्यों सुनी जाती है सत्यनारायण व्रत कथा ?
🙏 अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
Q1. श्री सत्यनारायण व्रत कब करें ?
पूर्णिमा और बृहस्पतिवार को यह व्रत करना सबसे शुभ होता है।
Q2. कथा में क्या भोग चढ़ाना चाहिए ?
पंजीरी, पंचामृत, केला और तुलसी दल का भोग विशेष माना गया है।
Q3. क्या व्रत बिना ब्राह्मण के किया जा सकता है ?
हाँ, यदि श्रद्धा हो तो परिवार का कोई भी सदस्य कर सकता है।
Q4. इस कथा का क्या फल मिलता है ?
कथा सुनने से धन, संतान, वैवाहिक सुख और सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।

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