श्री दुर्गाष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र | Durga 108 Names | दुर्गा 108 नाम | दुर्गा स्तोत्र, पाठ विधि और लाभ
श्री दुर्गाष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम, माँ दुर्गा का एक अत्यंत पवित्र स्तोत्र है जिसमें 108 नामों के माध्यम से उनकी महिमा का वर्णन किया गया है।
यह स्तोत्र भक्त को मानसिक शांति, आध्यात्मिक शक्ति, समृद्धि और सुरक्षा प्रदान करता है।
सत्कर्म और भक्ति से इसका पाठ करने से माँ दुर्गा की कृपा हमेशा बनी रहती है।
श्री दुर्गाष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र कथा और महत्व
शास्त्रों के अनुसार, भगवान शंकर ने पार्वती से कहा:
“शत नाम प्रवक्ष्यामि, श्रवण मात्र से दुर्गा प्रीता भवेत्।”
यानी, जो व्यक्ति इन 108 नामों का पाठ श्रद्धा और भक्ति से करता है, उसके जीवन में संकटों का नाश और समृद्धि आती है।
श्री दुर्गाष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम पाठ विधि
शुभ समय और स्थान
नवरात्रि, शुक्रवार, अष्टमी या पूर्णिमा
स्वच्छ मंदिर / पूजा स्थल
दीपक और लाल/पीले पुष्प
पाठ का संकल्प
“मम सर्वसंकटनिवारणार्थे श्रीदुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्र पाठं करिष्ये।”
श्री दुर्गाष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र लाभ
मानसिक शांति और संतुलन
संकट और बाधाओं का नाश
स्वास्थ्य, समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति
आध्यात्मिक शक्ति का विकास
Shri Durgashtottara Shatnam Stotram pdf
॥ ॐ श्रीदुर्गायै नमः ॥
श्री दुर्गाष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम्
ईश्वर उवाच: शंकरजी पार्वती से कहते हैं।
१. शतनाम प्रवक्ष्यामि श्रृणुष्व कमलानने।
यस्य प्रसादमात्रेण दुर्गा प्रीता भवेत् सती॥
“मैं 108 नामों का उच्चारण करूँगा, सुनो हे कमल के समान मुखवाली, जिसके प्रसाद (पाठ या श्रवण) मात्र से भगवती दुर्गा प्रसन्न होती हैं।”
२. ॐ सती साध्वी भवप्रीता भवानी भवमोचनी।
आर्या दुर्गा जया चाद्या त्रिनेत्रा शूलधारिणी॥
“ॐ सती, साध्वी (धर्मनिष्ठा), भगवान् शिव पर प्रीती रखनेवाली, भवानी, संसार से मुक्ति देने वाली, आर्या, दुर्गा, विजयी, आदि रूप, तीन नेत्रों वाली, त्रिशूल धारण करने वाली।”
३. पिनाकधारिणी चित्रा चण्डघण्टा महातपाः।
मनो बुद्धिरहंकारा चित्तरूपा चिता चितिः॥
“पिनाक (शिव का धनुष) धारण करने वाली, चित्रा (अद्भुत), चंद्रघंटा, महान तपस्विनी, मन, बुद्धि, अहंकारा (अहंता का आश्रय), चेतना की प्रकृति और जागरूकता।”
४. सर्वमन्त्रमयी सत्ता सत्यानन्दस्वरूपिणी।
अनन्ता भाविनी भाव्या भव्याभव्या सदागतिः॥
“सभी मंत्रों में समाहित, सत्ता (सत-स्वरूपा), सच्चिदानंद की स्वरूपिणी, अनंत, सबको उत्पन्न करने वाली, भाव्या (भावना एवं ध्यान करने योग्य), भव्या (कल्याणरूपा), अभव्या (जिससे बढ़कर भव्य कहीं है नहीं), सदागतिः (सदैव शरण)।”
५. शाम्भवी देवमाता च चिन्ता रत्नप्रिया सदा।
सर्वविद्या दक्षकन्या दक्षयज्ञविनाशिनी॥
“शाम्भवी (शिवप्रिया), देवताओं की माता, चिंता, सदैव रत्नों से प्रिय, सभी विद्याओं की ज्ञाता, दक्ष की कन्या, दक्ष यज्ञ की विनाशक।”
६. अपर्णानेकवर्णा च पाटला पाटलावती।
पट्टाम्बरपरीधाना कलमञ्जीररञ्जिनी॥
“अपर्णा (तपस्या के समय पत्ते को भी न खानेवाली), अनेक रंगों वाली, पाटला (लाल रंग वाली), पाटलावती (लाल फूल धारण करने वाली), पट्टाम्बरपरीधाना (रेशमी वस्त्रों से सुशोभित), मधुर ध्वनि करने वाले मञ्जीर को धारण करके प्रसन्न रहने वाली।”
७. अमेयविक्रमा क्रूरा सुन्दरी सुरसुन्दरी।
वनदुर्गा च मातङ्गी मतङ्गमुनिपूजिता॥
“असीम पराक्रमवाली, दैत्यों के प्रति कठोर, सुंदरी, दिव्य सुंदरी, वन दुर्गा, मातंगी, मतंग ऋषि द्वारा पूजित।”
८. ब्राह्मी माहेश्वरी चैन्द्री कौमारी वैष्णवी तथा।
चामुण्डा चैव वाराही लक्ष्मीश्च पुरुषाकृतिः॥
“ब्राह्मी, माहेश्वरी, ऐन्द्री, कौमारी, वैष्णवी, चामुण्डा, वाराही, लक्ष्मी, साकार मनुष्य रूप में।”
९. विमलोत्कर्षिणी ज्ञाना क्रिया नित्या च बुद्धिदा।
बहुला बहुलप्रेमा सर्ववाहनवाहना॥
“विशुद्ध, ज्ञानी, क्रिया, नित्या (सदा), बुद्धि देने वाली, प्रचुर, अत्यधिक प्रेमी, सभी वाहनों की सवार।”
१०. निशुम्भशुम्भहननी महिषासुरमर्दिनी।
मधुकैटभहन्त्री च चण्डमुण्डविनाशिनी॥
“निशुम्भ और शुम्भ का वधकर्ता, महिषासुर की नाशक, मधु और कैटभ की वधकर्ता, चंड और मुंड की विनाशिनी।”
११. सर्वासुरविनाशा च सर्वदानवघातिनी।
सर्वशास्त्रमयी सत्या सर्वास्त्रधारिणी तथा॥
“सभी असुरों की नाशक, सभी दानवों की नाशक, सभी शास्त्रों की स्वरूपिणी, सत्य, सभी अस्त्रों की धारिणी।”
१२. अनेकशस्त्रहस्ता च अनेकास्त्रस्य धारिणी।
कुमारी चैककन्या च कैशोरी युवती यतिः॥
“अनेक शस्त्रों से सज्जित, अनेक अस्त्रों की धारक, कुमारी, एकमात्र कन्या, कैशोरी, युवती, और संन्यासिनी (विरक्त)।”
१३. अप्रौढा चैव प्रौढा च वृद्धमाता बलप्रदा।
महोदरी मुक्तकेशी घोररूपा महाबला॥13॥
“न वृद्ध, यथार्थ विकसित, वृद्ध माता, बल की दात्री, बड़ी उदर वाली, खुले केश वाली, भयानक रूप वाली, अत्यंत बलशाली।”
१४. अग्निज्वाला रौद्रमुखी कालरात्रिस्तपस्विनी।
नारायणी भद्रकाली विष्णुमाया जलोदरी॥
“अग्नि की ज्वाला, क्रूर मुख वाली, कालरात्रि, तपस्विनी, नारायणी, भद्रकाली, विष्णुमाया, जल के गर्भ में उत्पन्न होनेवाली।”
१५. शिवदूती कराली च अनन्ता परमेश्वरी।
कात्यायनी च सावित्री प्रत्यक्षा ब्रह्मवादिनी॥
“शिव की दूत, भयानक, अनंत, सर्वोच्च देवी, कात्यायनी, सावित्री, प्रत्यक्ष, वेद की वाणी बोलने वाली।”
१६. य इदं प्रपठेन्नित्यं दुर्गानामशताष्टकम्।
नासाध्यं विद्यते देवि त्रिषु लोकेषु पार्वति॥
“जो कोई नियमित रूप से दुर्गा के इस अष्टक का पाठ करता है, हे देवी पार्वती, तीनों लोकों में उसके लिए कुछ भी असाध्य नहीं होता।”
१७. धनं धान्यं सुतं जायां हयं हस्तिनमेव च।
चतुर्वर्गं तथा चान्ते लभेन्मुक्तिं च शाश्वतीम्॥
“धन, अनाज, पुत्र, जीवनसाथी, घोड़े, हाथी भी, और इस प्रकार जीवन के चार लक्ष्य, और अंत में, शाश्वत मुक्ति।”
१८. कुमारीं पूजयित्वा तु ध्यात्वा देवीं सुरेश्वरीम्।
पूजयेत् परया भक्त्या पठेन्नामशताष्टकम्॥
“कुमारी की पूजा करके और देवी सुरेश्वरी का ध्यान करके, कोई भी उत्कृष्ट भक्ति के साथ पूजा करे और इस अष्टक का पाठ करे।”
१९. तस्य सिद्धिर्भवेद् देवि सर्वैः सुरवरैरपि।
राजानो दासतां यान्ति राज्यश्रियमवाप्नुयात्॥
“ऐसे व्यक्ति के लिए, हे देवी, सर्वश्रेष्ठ देवताओं द्वारा भी सिद्धि प्रदान की जाती है। राजा भी अधीन हो जाते हैं, और व्यक्ति राजसी वैभव प्राप्त करता है।”
२०. गोरोचनालक्तककुङ्कुमेन सिन्दूरकर्पूरमधुत्रयेण।
विलिख्य यन्त्रं विधिना विधिज्ञो भवेत् सदा धारयते पुरारिः॥
“गोरोचना, लाख और कुमकुम से, सिंदूर, कपूर और मधु के साथ, यंत्र को लिखकर, जानकार व्यक्ति को चाहिए कि वह इसे सदा शिव की तरह धारण करे।”
२१. भौमावास्यानिशामग्रे चन्द्रे शतभिषां गते।
विलिख्य प्रपठेत् स्तोत्रं स भवेत् सम्पदां पदम्॥
“अमावस्या की रात को, जब चंद्रमा शतभिषा में हो, इस स्तोत्र को लिखकर और पढ़कर, व्यक्ति समृद्धि की स्थिति प्राप्त करता है।”
॥ इति श्रीविश्वसारतन्त्रे दुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं समाप्तम् ॥
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FAQ (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)
Q1: श्रीदुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्र का पाठ कब करना चाहिए ?
A1: नवरात्रि, शुक्रवार या अष्टमी का दिन सबसे शुभ है।
Q2: क्या रोज़ाना पढ़ना चाहिए ?
A2: यदि संभव हो, तो रोज़ाना 108 नामों का पाठ किया जा सकता है।
Q3: पाठ करते समय ध्यान क्या रखें ?
A3: स्वच्छ स्थान, दीप और पुष्प। शांति और भक्ति बनाए रखें।
Q4: पाठ करने के लाभ क्या हैं ?
A4: मानसिक शांति, संकटों से मुक्ति, समृद्धि और आध्यात्मिक शक्ति।
निष्कर्ष
श्री दुर्गाष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र का नियमित पाठ भक्त को सुरक्षा, समृद्धि और आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करता है।
भक्ति, श्रद्धा और निष्ठा के साथ इसका पाठ करने से माँ दुर्गा की कृपा हमेशा बनी रहती है।
जय माता दी! 🔱🌸
डिसक्लेमर इस लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों जैसे ज्योतिषियों, पंचांग, मान्यताओं या फिर धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है। इसके सही और सिद्ध होने की प्रामाणिकता नहीं दे सकते हैं। इसके किसी भी तरह के उपयोग करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें।
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