
माँ दुर्गाजी की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघंटा है। नवरात्रि में तीसरे दिन की पूजा का अत्यधिक महत्व है और इस दिन माँ के चंद्रघंटा विग्रह का पूजन-आराधन किया जाता है। इस दिन साधक का मन ‘मणिपूर’ चक्र में प्रविष्ट होता है।
शारदीय नवरात्रि का तीसरा दिन माँ दुर्गा के चंद्रघंटा स्वरूप को समर्पित होता है। वर्ष 2025 में यह पर्व 24 और 25 सितम्बर 2025, बुधवार को मनाया जाएगा। इस दिन देवी चंद्रघंटा की विशेष पूजा की जाती है। शुभ मुहूर्त इस प्रकार रहेगा:
नवरात्रि तृतीय दिवस 2025 तिथि और शुभ मुहूर्त
तृतीया तिथि: 24 सितम्बर पूर्ण रात्रि
तृतीया तिथि: 25 सितम्बर 07:06 तक
🕖 पूजा का समय: प्रातः
लाभ मुहूर्त 06:17 – 07:48 शुभ
अमृत मुहूर्त 07:48 09:18 शुभ
पूजा का विशेष समय: सूर्योदय के बाद पहले तीन घंटे सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं।
माँ चंद्रघंटा का स्वरूप और महिमा
मां चंद्रघंटा का रूप स्वर्ण के समान तेजस्वी, दस भुजाओं से युक्त और सिंह वाहन पर आरूढ़ होता है। उनके मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र है, इसलिए उन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है। उनके दसों हाथों में अस्त्र-शस्त्र हैं और वे युद्ध के लिए तत्पर रहती हैं। माँ चंद्रघंटा की उपासना से साधक का मन ‘मणिपूर चक्र’ में स्थिर होता है और अलौकिक अनुभव होते हैं दिव्य सुगंध, ध्वनि, और प्रकाश के दर्शन।
माँ चंद्रघंटा की कृपा से:
1. समस्त पाप और बाधाएँ दूर होती हैं
2. प्रेतबाधा से रक्षा होती है
3. निर्भयता और पराक्रम प्राप्त होता है
4. सौम्यता, कांति और वाणी में माधुर्य बढ़ता है
5. इहलोक और परलोक का कल्याण होता है
माँ चंद्रघंटा की पूजा विधि
1. स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें।
2. पूजा स्थल पर माँ चंद्रघंटा का चित्र या विग्रह स्थापित करें।
3. पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य और घंटी अर्पित करें।
4. नीचे दिया गया मन्त्र 108 बार जपें:
मन्त्र:
या देवी सर्वभूतेषु माँ चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।
5. ध्यान मन्त्र से देवी का ध्यान करें:
वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्धकृत शेखरम्।
सिंहारूढा चंद्रघंटा यशस्वनीम्॥
मणिपुर स्थितां तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
खंग, गदा, त्रिशूल,चापशर,पदम कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर हार केयूर, किंकिणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम॥
प्रफुल्ल वंदना बिबाधारा कांत कपोलां तुगं कुचाम्।
कमनीयां लावाण्यां क्षीणकटि नितम्बनीम्॥
6. आरती करें और अंत में सभी भक्तों को प्रसाद दें।
माँ चंद्रघंटा की कथा
देवताओं और असुरों के बीच लंबे समय तक भयंकर युद्ध चलता रहा। असुरों का स्वामी महिषासुर था और देवताओं के राजा इंद्र। महिषासुर ने अपनी शक्ति से देवताओं को पराजित कर इंद्र का सिंहासन छीन लिया और स्वर्गलोक पर अधिकार कर लिया।
इंद्र सहित चंद्र, सूर्य, वायु और अन्य देवताओं के सारे अधिकार छिन गए। असहाय होकर देवता पृथ्वी पर विचरण करने लगे और स्वर्गलोक पर असुरों का कब्ज़ा हो गया। यह देखकर सभी देवगण अत्यंत व्याकुल हो उठे और त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश से सहायता माँगी।
देवताओं ने बताया कि महिषासुर ने उनके सारे अधिकार छीन लिए हैं, उन्हें बंदी बना लिया है और स्वर्ग पर शासन कर रहा है। यह सुनकर त्रिदेव क्रोध से भर उठे। उनके मुखों से निकली तेजस्वी ऊर्जा मिलकर एक अद्वितीय शक्ति का रूप ले ली। देवताओं के शरीरों से निकली दिव्य ऊर्जा भी उसमें सम्मिलित हो गई। यह तेज चारों ओर फैल गया और दिव्य देवी का अवतरण हुआ।
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भगवान शंकर ने देवी को त्रिशूल प्रदान किया, भगवान विष्णु ने चक्र दिया, इंद्र ने वज्र और ऐरावत हाथी से उतरकर एक दिव्य घंटा दिया। सूर्य ने अपना तेज और तलवार अर्पित की। सभी देवताओं ने अपनी-अपनी शक्ति से देवी के हाथों में अस्त्र-शस्त्र सजाए। देवी को सिंह वाहन प्रदान किया गया। इस प्रकार देवी चंद्रघंटा युद्ध के लिए पूर्ण रूप से सुसज्जित हुईं।
उनका विशाल, तेजस्वी और दिव्य रूप देखकर महिषासुर समझ गया कि अब उसका विनाश निश्चित है। उसने अपनी सेना को देवी पर आक्रमण करने का आदेश दिया। दैत्यों और असुरों के दल युद्ध में कूद पड़े। लेकिन देवी चंद्रघंटा ने एक ही प्रहार में असुरों का संहार कर दिया। महिषासुर सहित उसके सेनापतियों का अंत कर दिया गया। देवताओं को उनका स्वर्गलोक लौटाया गया और उन्हें अभयदान मिला।
इस प्रकार माँ चंद्रघंटा ने देवताओं की रक्षा की और धर्म की स्थापना की। नवरात्रि के तीसरे दिन उनकी उपासना विशेष रूप से की जाती है ताकि भक्तों को निर्भयता, साहस, मानसिक शांति और संकटों से मुक्ति मिल सके।
कर्ज से मुक्ति के उपाय
यदि कर्ज से मुक्ति नहीं मिल रही हो तो:
1. 108 गुलाब के पुष्प लेकर मन्त्र ॐ ऐं ह्रीं श्रीं चं फट् स्वाहा जपते हुए अर्पित करें।
2. सवा किलो साबुत मसूर लाल कपड़े में बांधकर सामने रखें।
3. घी का दीपक जलाकर मन्त्र ॐ ऐं ह्रीं श्रीं चंद्रघण्टे हुं फट् स्वाहा 108 बार जपें।
4. मसूर को 7 बार अपने ऊपर से उतार कर सफाई कर्मचारी को दान करें।
5. विश्वास और श्रद्धा से उपाय करें।
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माँ चंद्रघंटा की आरती
जय माँ चन्द्रघंटा सुख धाम।
पूर्ण कीजो मेरे काम॥
चन्द्र समाज तू शीतल दाती।
चन्द्र तेज किरणों में समाती॥
क्रोध को शांत बनाने वाली।
मीठे बोल सिखाने वाली॥
मन की मालक मन भाती हो।
चंद्रघंटा तुम वर दाती हो॥
सुन्दर भाव को लाने वाली।
हर संकट में बचाने वाली॥
हर बुधवार को तुझे ध्याये।
श्रद्दा सहित तो विनय सुनाए॥
मूर्ति चन्द्र आकार बनाए।
शीश झुका कहे मन की बाता॥
पूर्ण आस करो जगत दाता।
कांचीपुर स्थान तुम्हारा॥
कर्नाटिका में मान तुम्हारा।
नाम तेरा रटू महारानी॥
भक्त की रक्षा करो भवानी।
माँ दुर्गा की आरती
जय अंबे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ।
तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी ॥ ॐ जय…
मांग सिंदूर विराजत, टीको मृगमद को ।
उज्ज्वल से दोउ नैना, चंद्रवदन नीको ॥ ॐ जय…
कनक समान कलेवर, रक्तांबर राजै ।
रक्तपुष्प गल माला, कंठन पर साजै ॥ ॐ जय…
केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्पर धारी ।
सुर-नर-मुनिजन सेवत, तिनके दुखहारी ॥ ॐ जय…
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती ।
कोटिक चंद्र दिवाकर, राजत सम ज्योती ॥ ॐ जय…
शुंभ-निशुंभ बिदारे, महिषासुर घाती ।
धूम्र विलोचन नैना, निशदिन मदमाती ॥ॐ जय…
चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे ।
मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भय दूर करे ॥ॐ जय…
ब्रह्माणी, रूद्राणी, तुम कमला रानी ।
आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी ॥ॐ जय…
चौंसठ योगिनी गावत, नृत्य करत भैंरू ।
बाजत ताल मृदंगा, अरू बाजत डमरू ॥ॐ जय…
तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता ।
भक्तन की दुख हरता, सुख संपति करता ॥ॐ जय…
भुजा चार अति शोभित, वरमुद्रा धारी ।
मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी ॥ॐ जय…
कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती ।
श्रीमालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योती ॥ॐ जय…
श्री अंबेजी की आरति, जो कोइ नर गावे ।
कहत शिवानंद स्वामी, सुख-संपति पावे ॥ॐ जय…
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