शिखा मतलब चोटी की परिभाषा, शिखा का अर्थ definition of crest, meaning of crest in Hindi 

मुंडन के समय सिर के बीचो बीच छोड़ा हुआ एक बालों का गुच्छा जिसे फिर कभी नहीं कटाया जाता है, उसे शिखा कहा जाता है। यह शिखा हिंदुओं का एक प्रतीक चिन्ह भी है जिसे चोटी, चुटिया आदि भी कहा जाता है। शिखा शब्द की उत्पत्ति शिखी शब्द से हुयी है जिसका एक अर्थ अग्नि है वही दूसरा अर्थ ज्ञान है और शिखा रखने से ज्ञान की प्राप्ति होती है।

शिखा क्या है और कहा होती है what is crest and where is it in Hindi 

शिखा बालों का एक गुच्छा है जो मनुष्य के सिर में उस स्थान पर होता है जहां उस का अधिपति मर्म क्षेत्र होता है। यह अधिपति मर्म क्षेत्र वह स्थान है जहां पर व्यक्ति की समस्त नाड़ियों का मेल होता है और यह अधिपति मर्म स्थान ही शरीर को संतुलित करता है।

शिखा का आकार crest shape in Hindi 

धर्मं ग्रंथो और शास्त्रों के अनुसार शिखा का आकार गाय के पैर के खुर के समान होना चाहिए, न उससे अधिक और न ही उससे कम। कहा जाता है कि शिखा का आकर इससे कम या ज्यादा होने पर वह ठीक से काम नहीं कर पाती है।

शिखा बन्धन (चोटी) रखने का महत्त्व Importance of keeping Shikha Bandhan (Choti) in Hindi 

चोटी का महत्त्व विदेशी जान गए हिन्दू भूल गए। हिन्दू धर्म का छोटे से छोटा सिध्दांत, छोटी-से-छोटी बात भी अपनी जगह पूर्ण और कल्याणकारी हैं। छोटी सी शिखा अर्थात चोटी भी कल्याण, विकास का साधन बनकर अपनी पूर्णता व आवश्यकता को दर्शाती हैं। शिखा का त्याग करना मानो अपने कल्याण का त्याग करना हैं। जैसे घङी के छोटे पुर्जे की जगह बडा पुर्जा काम नहीं कर सकता क्योंकि भले वह छोटा हैं परन्तु उसकी अपनी महत्ता है।

शिखा न रखने से हम जिस लाभ से वंचित रह जाते हैं, उसकी पूर्ति अन्य किसी साधन से नहीं हो सकती।

हरिवंश पुराण में एक कथा आती है हैहय व तालजंघ वंश के राजाओं ने शक, यवन, काम्बोज पारद आदि राजाओं को साथ लेकर राजा बाहू का राज्य छीन लिया। राजा बाहु अपनी पत्नी के साथ वन में चला गया। वहाँ राजा की मृत्यु हो गयी। महर्षिऔर्व ने उसकी गर्भवती पत्नी की रक्षा की और उसे अपने आश्रम में ले आये। वहाँ उसने एक पुत्र को जन्म दिया, जो आगे चलकर राजा सगर के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

राजासगर ने महर्षि और्व से शस्त्र और शास्त्र विद्या सीखीं। समय पाकर राजा सगरने हैहयों को मार डाला और फिर शक, यवन, काम्बोज, पारद, आदि राजाओं को भी मारने का निश्चय किया। ये शक, यवन आदि राजा महर्षि वसिष्ठ की शरण में चले गये। महर्षि वसिष्ठ ने उन्हें कुछ शर्तों पर उन्हें अभयदान दे दिया। और सगर को आज्ञा दी कि वे उनको न मारे। राजा सगर अपनी प्रतिज्ञा भी नहीं छोङ सकते थे और महर्षि वसिष्ठ जी की आज्ञा भी नहीं टाल सकते थे। अत: उन्होंने उन राजाओं का सिर शिखा सहित मुँडवाकर उनकों छोङ दिया।

प्राचीन काल में किसी की शिखा काट देना मृत्युदण्ड के समान माना जाता था। बङे दुख की बात हैं कि आज हिन्दु लोग अपने हाथों से अपनी शिखा काट रहे है। यह गुलामी की पहचान हैं।

शिखा हिन्दुत्व की पहचान हैं। यह आपके धर्म और संस्कृति की रक्षक हैं। शिखा के विशेष महत्व के कारण ही हिन्दुओं ने यवन शासन के दौरान अपनी शिखा की रक्षा के लिए सिर कटवा दिये पर शिखा नहीं कटवायी।

डा॰ हाय्वमन कहते है ”मैने कई वर्ष भारत में रहकर भारतीय संस्कृति का अध्ययन किया हैं, यहाँ के निवासी बहुत काल से चोटी रखते हैं, जिसका वर्णन वेदों में भी मिलता हैं। दक्षिण भारत में तो आधे सिर पर गोखुर के समान चोटी रखते हैं । उनकी बुध्दि की विलक्षणता देखकर मैं अत्यंत प्रभावित हुआ हुँ। अवश्य ही बौध्दिक विकास में चोटी बड़ी सहायता देती हैं। सिर पर चोटी रखना बढा लाभदायक हैं। मेरा तो हिन्दु धर्म में अगाध विश्वास हैं और मैं चोटी रखने का कायल हो गया हूँ ।

“प्रसिद्ध वैज्ञानिक डा॰ आई॰ ई क्लार्क एम॰ डी ने कहा हैं ” मैंने जबसे इस विज्ञान की खोज की हैं तब से मुझे विश्वास हो गया हैं कि हिन्दुओं का हर एक नियम विज्ञान से परिपूर्ण हैं। चोटी रखना हिन्दू धर्म ही नहीं, सुषुम्ना के केद्रों की रक्षा के लिये ऋषि-मुनियों की खोज का विलक्षण चमत्कार हैं।

“इसी प्रकार पाश्चात्य विद्वान मिअर्ल थामस लिखते हैं की सुषुम्ना की रक्षा हिन्दु लोग चोटी रखकर करते हैं जबकि अन्य देशों में लोग सिर पर लम्बे बाल रखकर या हैट पहनकर करते हैं। इन सब में चोटी रखना सबसे लाभकारी हैं। किसी भी प्रकार से सुषुम्ना की रक्षा करना जरुरी हैं।

वास्तव में मानव-शरीर को प्रकृति ने इतना सबल बनाया हैं की वह बड़े से बड़े आघात को भी सहन करके रह जाता हैं परन्तु शरीर में कुछ ऐसे भी स्थान हैं जिन पर आघात होने से मनुष्य की तत्काल मृत्यु हो सकती हैं। इन्हें मर्म-स्थान कहा जाता हैं।

शिखा के अधोभाग में भी मर्म-स्थान होता हैं, जिसके लिये सुश्रुताचार्य ने लिखा है

मस्तकाभ्यन्तरोपरिष्टात् शिरासन्धि सन्निपातो।

रोमावर्तोऽधिपतिस्तत्रपि सद्यो मरणम्। 

अर्थात् मस्तक के भीतर ऊपर जहाँ बालों का आवर्त (भँवर) होता हैं, वहाँ संपूर्ण नाङियों व संधियों का मेल हैं, उसे अधिपतिमर्म कहा जाता हैं।यहाँ चोट लगने से तत्काल मृत्यु हो जाती हैं (सुश्रुत संहिता शारीरस्थानम् : ६.२८)

सुषुम्ना के मूल स्थान को ‘मस्तुलिंग‘ कहते हैं। मस्तिष्क के साथ ज्ञानेन्द्रियों कान, नाक, जीभ, आँख आदि का संबंध हैं और कामेन्द्रियों – हाथ, पैर, गुदा, इन्द्रिय आदि का संबंध मस्तुलिंग से हैं मस्तिष्क व मस्तुलिंग जितने सामर्थ्यवान होते हैं उतनी ही ज्ञानेन्द्रियों और कामेन्द्रियों – की शक्ति बढती हैं। मस्तिष्क ठंडक चाहता हैं और मस्तुलिंग गर्मी मस्तिष्क को ठंडक पहुँचाने के लिये क्षौर कर्म करवाना और मस्तुलिंग को गर्मी पहुँचाने के लिये गोखुर के परिमाण के बाल रखना आवश्यक होता है। बालकुचालक हैं, अत: चोटी के लम्बे बाल बाहर की अनावश्यक गर्मी या ठंडक से मस्तुलिंग की रक्षा करते हैं।

शिखा क्यो बांधी जाती है / शिखा बंधन क्यों Why is Shikha tied / Why Shikha Bandhan 

शिखा को जीवन का आधार माना गया है, मस्तिष्क के भीतर जहां पर बालों का आवर्त या भंवर होता है उस स्थान पर नाड़ियों का मेल होता है, जिसे अधिपति मर्म कहा जाता है। यह स्थान बहुत ही नाजुक होता है जिस पर चोट लगने पर व्यक्ति की तुरंत मृत्यु हो सकती है। शिखा में गांठ लगाने पर वह इस स्थान पर कवच के जैसे कार्य करती है, यह तीव्र सर्दी और गर्मी से इस स्थान को सुरक्षित रखने के साथ ही चोट लगने से भी बचाव करती है।

शिखा बंधन मस्तिष्क की उर्जा तरंगों की रक्षा कर व्यक्ति की आत्मशक्ति बढ़ाता है।

पूजा पाठ के समय शिखा में गांठ लगाकर रखने से मस्तिष्क में संकलित ऊर्जा तरंगे बाहर नहीं निकल पाती है और वह अंतर्मुखी हो जाती है। इनके अंतर्मुखी हो जाने से मानसिक शक्तियों को पोषण, सद्बुद्धि, सद्विचार आदि की प्राप्ति वहीं वासना की कमी, आत्मशक्ति में बढ़ोतरी, शारीरिक शक्ति का संचार, अनिष्टकर प्रभाव से रक्षा, सुरक्षित नेत्र ज्योति, कार्यों में सफलता जैसे अनेक लाभ मिलते हैं।

शिखा कब बांधनी चाहिए When should the crest be tied 

शास्त्रों के अनुसार संध्या विधि में संध्या से पूर्व गायत्री मंत्र के साथ शिखा बंधन का विधान है। किसी भी प्रकार की साधना से पूर्व शिखा बंधन गायत्री मंत्र के साथ होता है जो कि एक सनातन परंपरा है।

स्नान, दान, जप, होम, संध्या और देव पूजन के समय सीखा में गांठ अवश्य लगानी चाहिए।

मंत्र उच्चारण और अनुष्ठान करने के समय भी सीखा में गांठ मारने का विधान है, इसका कारण यह है कि गांठ मारने से मंत्र स्पंदन द्वारा उत्पन्न होने वाली समस्त ऊर्जा शरीर में ही एकत्र होती है।

शिखा बंधन मंत्र Shikha Bandhan Mantra 

वैसे तो गायत्री मंत्र के साथ शिखा बांधी जाती है लेकिन इस मंत्र के साथ भी शिखा बंधन किया जाता है

चिद्रूपिणि महामाये दिव्यतेजः समन्विते ।

तिष्ठ देवि शिखामध्ये तेजोवृद्धि कुरुव मे ।।

चिद्रूपिणि महामाये दिव्यतेजः समन्विते ।

तिष्ठ देवि शिखामध्ये तेजोवृद्धि कुरुव मे ।।

यानी कि जो चित्रस्वरूपी महामाया है, जो दिव्य तेजोमयी है, वह महामाया शिखा के मध्य में निवास करें और तेज में वृद्धि करें।

इस समय खोल देनी चाहिए या इस समय शिखा नही बंधी होनी चाहिए

धर्म ग्रंथों के अनुसार व्यक्ति को लघुशंका, दीर्घशंका, मैथुन एवं किसी शव यात्रा को कंधा देते वक्त शिखा को खोल देना चाहिए

सर पर चोटी रखने के वैज्ञानिक महत्व scientific significance of braiding on the head in Hindi 

विज्ञान के अनुसार शिखा रखे जाने का स्थान मस्तिष्क का केंद्र होता है। इसी स्थान से बुद्धि, मन और शरीर के अंगों को नियंत्रित किया जाता है इसी कारण स्थान पर शिखा या चोटी रखने से मस्तिष्क का संतुलन बना रहता है। शिखा रखने से इस स्थान पर होने वाले सहस्त्रार चक्र को जागृत करने और शरीर, बुद्धि व मन पर नियंत्रण करने में सहायता मिलती है।

वेद ही नही विज्ञान ने भी बताया है शिखा का महत्व Not only Vedas, science has also told the importance of Shikha in Hindi 

शिखा रखने के महत्व को न केवल वेद ने बल्कि विज्ञान ने भी अनेक अवसरों पर प्रमाणित किया है। शिखा सुषुम्ना की रक्षा करती है एवं इससे स्मरण शक्ति का भी विकास होता है साथ ही यह मानसिक रोगों से भी बचाव करती है। शिखा के कसकर बंधने से मस्तिष्क पर दबाव बनता है जिससे रक्त का संचार सही तरीके से होता है। शिखा रखने के स्थान पर पिट्यूटरी ग्रंथि होती है जिससे उस रस का निर्माण होता है जो पूरे शरीर और बुद्धि को तेज, संपन्न, स्वस्थ और चिरंजीवी बनाता है। शिखा रहने से वह स्थान स्वस्थ रहता है।

शिखा रखने के अन्य निम्न लाभ बताये गये हैं। 

1. शिखा रखने तथा इसके नियमों का यथावत् पालन करने से सद्‌बुद्धि, सद्‌विचारादि की प्राप्ति होती हैं।

2. आत्मशक्ति प्रबल बनती हैं।

3. मनुष्य धार्मिक, सात्विक व संयमी बना रहता हैं।

4. लौकिक – पारलौकिक कार्यों मे सफलता मिलती हैं।

5. सभी देवी देवता मनुष्य की रक्षा करते हैं।

6. सुषुम्ना रक्षा से मनुष्य स्वस्थ, बलिष्ठ, तेजस्वी और दीर्घायु होता हैं।

7. नेत्र्ज्योति सुरक्षित रहती हैं।

इस प्रकार धार्मिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक सभी दृष्टियों से शिखा की महत्ता स्पष्ट होती हैं। परंतु आज हिन्दू लोग पाश्चात्योंके चक्कर में पड़कर फैशनेबल दिखने की होड़ में शिखा नहीं रखते व अपने ही हाथों अपनी संस्कृति का त्याग कर डालते हैं।

लोग हँसी उड़ाये, पागल कहे तो सब सह लो पर धर्म का त्याग मत करो। मनुष्य मात्र का कल्याण चाहने वाली अपनी हिन्दू संस्कृति नष्ट हो रही हैं। हिन्दु स्वयं ही अपनी संस्कृति का नाश करेगा तो रक्षा कौन करेगा।

वेद में भी शिखा रखने का विधान कई स्थानों पर मिलता है, देखिये।

शिखिभ्यः स्वाहा (अथर्ववेद १९-२२-१५)

अर्थ चोटी धारण करने वालों का कल्याण हो।

यशसेश्रियै शिखा।-(यजु० १९-९२)

अर्थ यश और लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए सिर पर शिखा धारण करें।

याज्ञिकैंगौर्दांणि मार्जनि गोक्षुर्वच्च शिखा। (यजुर्वेदीय कठशाखा)

अर्थात सिर पर यज्ञाधिकार प्राप्त को गौ के खुर के बराबर (गाय के जन्में बछड़े के खुर के बराबर) स्थान में चोटी रखनी चाहिये।

केशानां शेष करणं शिखास्थापनं।

केश शेष करणम् इति मंगल हेतोः ।। 

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