दीपावली, दीपोत्सव यानी महालक्ष्मी पूजन के शुभ अवसर हम सभी चाहते हैं कि विधि-विधान से पूजन कर मां लक्ष्मी को प्रसन्न किया जाए। यहां पूजन शास्त्रोक्त पौराणिक विधि प्रस्तुत है, आइए जानते हैं मां महालक्ष्मी पूजन शास्त्रीय विधान 

महालक्ष्मी पूजनकर्ता स्नान करके नये अथवा धुले हुए शुद्ध वस्त्र पहनें, माथे पर तिलक लगाएँ और शुभ मुहूर्त में पूजन शुरू करें। इस हेतु शुभ आसन पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुँह करके पूजन करें।

अपनी जानकारी हेतु पूजन शुरू करने के पूर्व प्रस्तुत पद्धति एक बार जरूर पढ़ लें।

पवित्रकरण :

बाएँ हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ की अनामिका से निम्न मंत्र बोलते हुए अपने ऊपर एवं पूजन सामग्री पर जल छिड़कें-

ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा ।

यः स्मरेत्‌ पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतरः शुचिः ॥

पुनः पुण्डरीकाक्षं, पुनः पुण्डरीकाक्षं, पुनः पुण्डरीकाक्षं । 

आसन

निम्न मंत्र से अपने आसन पर उपरोक्त तरह से जल छिड़कें-

ॐ पृथ्वी त्वया घता लोका देवि त्वं विष्णुना घृता ।

त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु च आसनम्‌ ॥ 

आचमन

दाहिने हाथ में जल लेकर तीन बार आचमन करें-

ॐ केशवाय नमः स्वाहा, ॐ नारायणाय नमः स्वाहा, ॐ माधवाय नमः स्वाहा ।

यह बोलकर हाथ धो लें-

ॐ गोविन्दाय नमः हस्तं प्रक्षालयामि । 

दीपक

दीपक प्रज्वलित करें (एवं हाथ धोकर) दीपक पर पुष्प एवं कुंकु से पूजन करें-

दीप देवि महादेवि शुभं भवतु मे सदा ।

यावत्पूजा-समाप्तिः स्यातावत्‌ प्रज्वल सुस्थिराः ॥ 

(पूजन कर प्रणाम करें)

स्वस्ति-वाचन 

निम्न मंगल मंत्र बोलें-

ॐ स्वस्ति न इंद्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ।

स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्ट्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥

द्यौः शांतिः अंतरिक्षगुं शांतिः पृथिवी शांतिरापः

शांतिरोषधयः शांतिः। वनस्पतयः शांतिर्विश्वे देवाः

शांतिर्ब्रह्म शांतिः सर्वगुं शांतिः शांतिरेव शांति सा

मा शांतिरेधि। यतो यतः समिहसे ततो नो अभयं कुरु ।

शंन्नः कुरु प्राजाभ्यो अभयं नः पशुभ्यः। सुशांतिर्भवतु ॥

ॐ सिद्धि बुद्धि सहिताय श्री मन्ममहागणाधिपतये नमः ॥

(नोट : पूजन शुरू करने के पूर्व पूजन की समस्त सामग्री व्यवस्थित रूप से पूजा-स्थल पर रख लें। श्री महालक्ष्मी की मूर्ति एवं श्री गणेशजी की मूर्ति एक लकड़ी के पाटे पर नया लाल वस्त्र बिछाकर उस पर स्थापित करें। गणेश एवं अंबिका की मूर्ति के अभाव में दो सुपारियों को धोकर, पृथक-पृथक नाड़ा बाँधकर कुंकु लगाकर गणेशजी के भाव से पाटे पर स्थापित करें व उसके दाहिनी ओर अंबिका के भाव से दूसरी सुपारी स्थापना हेतु रखें।)

संकल्प

अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प, अक्षत व द्रव्य लेकर श्री महालक्ष्मी आदि के पूजन का संकल्प करें-

ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य

विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य श्री ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीयेपरार्धे

श्री श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलि-

युगे कलि प्रथम चरणे जम्बूद्वीपे भरतखंडे भारतवर्ष

आर्य्यावर्तेक देशांतर्गत (*अमुक) क्षैत्रे/नगरे विजय नाम संवत्सरे, दक्षिणायने शरद त्र्मृतो

महामांगल्यप्रद मासोत्तमे कार्तिकमासे शुभ कृष्णपक्षे

अमावस्यां अमुक वासरे हस्तपरं अमुक नक्षत्रे कन्यापरं तुलाराशि स्थिते चंद्रे तुला राशि

स्थिते सूर्य्ये वृष राशि स्थिते

देवगुरौ शैषेषु गृहेषु यथा यथा राशि स्थितेषु सत्सु एवं

गृहगुणगण विशेषण विशिष्ठायां शुभ पुण्यतिथौ

(*अमुक) गौत्रः (*अमुक नाम शर्मा/ वर्मा/ गुप्तो दासोऽहम्‌ अहं) ममअस्मिन प्रचलित व्यापारे आयुरारोग्यैश्वर्याधभिवृद्धयर्थम्‌ व्यापारे उत्तरोत्तरलाभार्थम्‌ च दीपावली- महोत्सवे गणेश-अम्बिका-श्रीमहालक्ष्मी, महासरस्वती- महाकाली- लेखनी- मषीपात्र- कुबेरादि देवानाम्‌ पूजनम्‌ च करिष्ये ।

श्रीगणेश-अंबिका पूजन 

हाथ में अक्षत व पुष्प लेकर श्रीगणेश एवं अंबिका का ध्यान करें 

श्री गणेश का ध्यान 

गजाननं भूतगणादि सेवितं कपित्थ जम्बूफल चारुभक्षणम्‌ ।

उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम्‌ ॥

श्री अंबिका का ध्यान 

नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः ।

नमः प्रकृत्यै भद्रायै प्रणताः स्मताम्‌ ॥

श्रीगणेश अंबिकाभ्यां नमः, ध्यानं समर्पयामि ।

(श्री गणेश मूर्ति अथवा मूर्ति के रूप में सुपारी पर अक्षत चढ़ाएँ, नमस्कार करें।

अब भगवान गणेश-अंबिका का आह्वान करें 

ॐ गणानां त्वा गणपति(गुँ) हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपति(गुँ)

हवामहे, निधीनां त्वा निधिपति(गुँ) हवामहे व्वसो मम ।

आहमजानि गर्भधमात्वमजासि गर्भधम्‌ ।

ॐ अम्बे अम्बिकेऽम्बालिके न मा नयति कश्चन ।

ससस्त्यश्चकः सुभद्रिकां काम्पीलवासिनीम्‌ ॥

ॐ भूभुर्वः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, गौरीमावाहयामि, स्थापयामि पूजयामि च ।

(श्री गणेश व सुपारी पर अक्षत चढ़ाएँ।)

प्रतिष्ठा हेतु निम्न मंत्र बोलकर गणेश व सुपारी पर पुनः अक्षत चढ़ाएँ 

ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञ(गुँ)

समिमं दधातु। विश्वे देवास इह मादयंतामो(गुँ) प्रतिष्ठ ॥

अस्यै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्ये प्राणाः क्षरन्तु च ।

अस्यै देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन ॥

गणेश-अम्बिके! सुप्रतिष्ठिते वरदे भवेताम्‌ ।

प्रतिष्ठापूर्वकम्‌ आसनार्थे अक्षतान्‌ समर्पयामि

गणेशाम्बिकाभ्यां नमः । 

(आसन के लिए अक्षत समर्पित करें।)

अब हाथ में जल लेकर निम्न मंत्र बोलकर जल अर्पित करें 

ॐ देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेऽश्विनोर्बाहुभ्यां पूष्णो हस्ताभ्याम्‌ ।

एतानि पाद्य, अर्घ्य, आचमनीय, स्नानीय, पुनराचमनीयानि

समर्पयामि गणेशाम्बिकाभ्यां नमः ।

(जल चढ़ा दें।)

पंचामृत स्नान 

पंचामृत (दूध, दही, शकर, घी, शहद के मिश्रण) स्नान कराएँ :-

पंचामृतं मयानीतं पयो दधि घृतं मधु ।

शर्करया समायुक्तं स्नानार्थ प्रतिगृह्यताम्‌ ॥

ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, पंचामृतस्नानं समर्पयामि । 

(पंचामृत से स्नान कराएँ।)

शुद्धोदक स्नानं 

शुद्ध जल से स्नान निम्न मंत्र बोलते हुए कराएँ-

गंगा च यमुना चैव गोदावरी सरस्वती ।

नर्मदा सिंधु कावेरी स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ॥

ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि ।

(शुद्ध जल से स्नान कराएँ।) अब आचमन हेतु जल दें-

शुद्धोदकस्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि। 

वस्त्र एवं उपवस्त्र 

निम्न मंत्र बोलकर वस्त्र व उपवस्त्र अर्पित करें :-

शीतवातोष्णसंत्राणं लज्जायां रक्षणं परम्‌ ।

देहालंकरणं वस्त्रमतः शांति प्रयच्छ मे ॥

ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, वस्त्रं समर्पयामि ।

(श्री गणेश-अम्बिका को वस्त्र समर्पित करें।)

यस्या भावेन शास्त्रोक्तं कर्म किंचिन सिध्यति ।

उपवस्त्रं प्रयच्छामि सर्वकर्मोपकारकम्‌ ॥

ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, उपवस्त्रं समर्पयामि ।

(श्री गणेश-अम्बिका को उपवस्त्र समर्पित करें।)

आचमन के लिए जल अर्पित करें 

वस्त्र उपवस्त्रान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ॥ 

यज्ञोपवीत 

यज्ञोपवीत अर्पित करें-

नवभिस्तन्तुभिर्युक्तं त्रिगुणं देवतामयम्‌ ।

उपवीतं मया दत्तं गृहाण परमेश्वर ॥

ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः यज्ञोपवीतं समर्पयामि ।

यज्ञोपवीतान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि। 

(यज्ञोपवीत अर्पित करें एवं आचमन के लिए जल दें।)

नाना परिमल द्रव्य 

अबीर, गुलाल इत्यादि अर्पित करें :-

अबीरं च गुलालं च हरिद्रादिसमन्वितम्‌ ।

नाना परिमल द्रव्यं गृहाण परमेश्वरः ॥

ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, नानापरिमलद्रव्याणि समर्पयामि ।

(अबीर, गुलाल, पुष्प इत्यादि अर्पित करें।)

धूप 

धूप-बत्ती जलाएँ (हाथ धो लें) व निम्न मंत्र से धूप दिखाएँ :-

वनस्पतिरसोद्भूतो गन्धाढ्यो गंध उत्तमः ।

आघ्रेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम्‌ ॥ 

ऊँ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, धूपं आघ्रापयामि ।

(धूप दिखाएँ व पुनः हाथ धो लें।)

दीप 

एक दीपक जलाएँ। (हाथ धो लें) व निम्न मंत्र से दीप दिखाएँ

साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वह्निना योजतं मया ।

दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्यतिमिरापहम्‌ ॥

ॐ भूर्भुवः स्व. गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, दीपं दर्शयामि ।

(दीप दिखाएँ व हाथ धो लें।)

नैवेद्य

मालापुए व अन्य मिष्ठान्न यथाशक्ति अर्पित करें :-

शर्कराखंडखाद्यानि दधिक्षीरघृतानि च ।

आहारं भक्ष्य भोज्यं च नैवेद्यं प्रतिगृह्यताम्‌ ॥

ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, नैवेद्यं निवेदयामि ॥

इसके पश्चात जल छोड़ते हुए निम्न मंत्र बोलें

ॐ प्राणाय स्वाहा । ॐ अपानाय स्वाहा । ॐ समानाय स्वाहा । ॐ उदानाय स्वाहा । ॐ व्यानाय स्वाहा । नैवेद्यान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।

(नैवेद्य निवेदित करें व जल अर्पित करें।)

तांबूल

इसके पश्चात इलायची, लौंग, सुपारी, तांबूल इत्यादि अर्पित करें

पूगीफलं महादिव्यं नागवल्ली दलैर्युतम्‌ ।

एलादिचूर्णसंयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम्‌ ॥

ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, मुखवासार्थम्‌ एलालवंग ताम्बूलं समर्पयामि ॥

(इलायची, लौंग, ताम्बूल आदि अर्पित करें।)

इसके पश्चात गणेश-अम्बिका की प्रार्थना करें 

विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय जगद्धिताय ।

नागाननाय श्रुतियज्ञ विभूषताय गौरीसुताय नमो नमस्ते ॥

लम्बोदर नमस्तुभ्यं मोदकप्रिय। निर्विघ्नं कुरुमे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ।

सर्वेश्वरी सर्वमाता शर्वाणी हरवल्लभा सर्वज्ञा ।

सिद्धिदा सिद्धा भव्या भाव्या भयापहा नमो नमस्ते ॥

(अनया पूजया गणेशाम्बिके प्रीयेताम्‌ कहकर जल छोड़ दें।)

नोट :- इसके पश्चात (1) षोडशमातृका पूजन (2) कलश पूजन तथा (3) नवग्रह पूजन किया जाता है।

अथवा महालक्ष्मी पूजन करें।

महालक्ष्मी पूजन प्रारंभ

श्रीसूक्त की ऋचाओं के साथ विशिष्ट पूजन 

विशेष नोट :- श्रीसूक्त में लक्ष्मी की कृपा व अलक्ष्मी की अकृपा के लिए प्रार्थना है। अतः ध्यानपूर्वक मंत्र बोलें। आपकी सुविधा के लिए जहाँ अलक्ष्मी शब्द बोलना है वहाँ हमने संधि विच्छेद कर दिया है।

ध्यान

या सा पद्मासनस्था विपुलकटितटी पद्मपत्रायताक्ष

गम्भीरावर्तनाभिस्तनभरनमिता शुभ्रवस्त्रोत्तरीया ।

या लक्ष्मीर्दिव्यरूपैर्मणिगणखचितैः स्नापिता हेमकुम्भैः

सा नित्यं पद्महस्ता मम वसतु गृहे सर्वमांगल्ययुक्ता ॥

ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम्‌ ।

चंद्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, ध्यानार्थे पुष्पाणि समर्पयामि ।

(पुष्प अर्पित करें।)

आह्वान

सर्वलोकस्य जननीं सर्वसौख्यप्रदायिनीम्‌ ।

ॐ तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्‌ ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, महालक्ष्मीमावाहयामि, आवाहनार्थे पुष्पाणि समर्पयामि ।

(आह्वान के लिए पुष्प अर्पित करें।)

आसन

तप्तकांचनवर्णाभं मुक्तामणिविराजितम्‌ ।

अमलं कमलं दिव्यमासनं प्रतिगृह्यताम्‌ ॥

ॐ अश्र्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रमोदिनीम्‌ ।

श्रियं देवीमुप ह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम्‌ ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, आसनं समर्पयामि ।

(पुष्प अर्पित करें।)

पाद्य

गंगादितीर्थसम्भूतं गन्धपुष्पादिभिर्युतम्‌ ।

पाद्यं ददाम्यहं देवि गृहाणाशु नमोऽस्तु ते ॥

ॐ कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्‌ ।

पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोप ह्वये श्रियम्‌ ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, पादयोः पाद्यं समर्पयामि ।

(पाद्य अर्पित करें।)

अर्घ्य

अष्टगन्धसमायुक्तं स्वर्णपात्रप्रपूरितम्‌ ।

अर्घ्यं गृहाणमद्यतं महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते ॥

ॐ चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम्‌ ।

तां पद्यनीमीं शरणं प्रपद्ये-अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, हस्तयोरर्घ्यं समर्पयामि ।

(चन्दन मिश्रित जल अर्घ्यपात्र से देवी के हाथों में दें।)

आचमन

सर्वलोकस्य या शक्तिर्ब्रह्मविष्ण्वादिभिः स्तुता ।

ॐ आदित्यवर्णे तपसोऽधि जातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः ।

तस्य फलानि तपसा नुदन्तु या अन्तरा याश्च बाह्या-अलक्ष्मीः ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, आचमनीयं जलं समर्पयामि ।

(जल चढ़ाएँ।)

स्नान

मन्दाकिन्याः समानीतैर्हेमाम्भोरुहवासितैः ।

स्नानं कुरुष्व देवेशि सलिलैश्च सुगन्धिभिः ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, स्नानं समर्पयामि ।

(स्नानीय जल अर्पित करें।)

स्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।

(‘ॐ महालक्ष्म्यै नमः’ बोलकर आचमन हेतु जल दें।)

दुग्ध स्नान 

कामधेनुसमुत्पन्नां सर्वेषां जीवनं परम्‌ ।

पावनं यज्ञहेतुश्च पयः स्नानार्थमर्पितम्‌ ॥

ॐ पयः पृथिव्यां पय औषधीषु पयो दिव्यन्तरिक्षे पयो धाः ।

पयस्वतीः प्रदिशः सन्तु मह्यम्‌ ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, पयः स्नानं समर्पयामि । पयः स्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि ।

(कच्चे दूध से स्नान कराएँ, पुनः शुद्ध जल से स्नान कराएँ।)

दधिस्नान

पयसस्तु समुद्भूतं मधुराम्लं शशिप्रभम्‌ ।

दध्यानीतं मया देवि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्‌ ॥

ॐ दधिक्राव्णो अकारिषं जिष्णोरश्वस्य वाजिनः

सुरभि नो मुखा करत्प्र ण आयू(गुँ)षि तारिषत्‌ ।

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, दधिस्नानं समर्पयामि। दधिस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि । 

(दधि से स्नान कराएँ, फिर शुद्ध जल से स्नान कराएँ।)

घृत स्नान

नवनीतसमुत्पन्नं सर्वसंतोषकारकम्‌ ।

घृतं तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्‌ ॥

ॐ घृतं घृतपावनः पिबत वसां वसापावनः

पिबतान्तरिक्षस्य हविरसि स्वाहा ।

दिशः प्रदिश आदिशो विदिश उद्दिशो दिग्भ्यः स्वाहा ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, घृतस्नानं समर्पयामि । घृतस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि ।

(घृत स्नान कराकर शुद्ध जल से स्नान कराएँ।)

मधु स्नान

तरुपुष्पसमुद्भूतं सुस्वादु मधुरं मधु ।

तेजः पुष्टिकरं दिव्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्‌ ॥

ॐ मधु वाता ऋतायते मधु क्षरन्ति सिन्धवः ।

माध्वीर्नः सन्त्वोषधीः ॥

मधु नक्तमुतोषसो मधुमत्पार्थिव(गुँ) रजः ।

मधु द्यौरस्तु नः पिता ॥

मधुमान्ना वनस्पतिर्मधुमाँ(गुँ) अस्तु सूर्यः ।

माध्वीर्गावो भवंतु नः ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, मधुस्नानं समर्पयामि । मधुस्नानन्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि ।

(शहद स्नान कराकर शुद्ध जल से स्नान कराएँ।)

शर्करा स्नान

इक्षुसारसमुद्भूता शर्करा पुष्टिकारिका ।

मलापहारिका दिव्या स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्‌ ॥

ॐ अपा(गुं), रसमुद्वयस(गुं) सूर्ये सन्त(गुं) समाहित्‌म ।

अपा(गुं) रसस्य यो रसस्तं वो

गृह्याम्युत्तममुपयामगृहीतो-सीन्द्राय त्वा जुष्टं

गुह्ढाम्येष ते योनिरिन्द्राय त्वा जुष्टतमम्‌ ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः शर्करास्नानं समर्पयामि, शर्करा स्नानान्ते पुनः शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि । 

(शर्करा स्नान कराकर जल से स्नान कराएँ।)

पंचामृत स्नान

(दूध, दही, घी, शकर एवं शहद मिलाकर पंचामृत बनाएँ व निम्न मंत्र से स्नान कराएँ।)

पयो दधि घृतं चैव मधुशर्करयान्वितम्‌ ।

पंचामृतं मयानीतं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्‌ ॥

ॐ पंच नद्यः सरस्वतीमपि यन्ति सस्त्रोतसः ।

सरवस्ती तु पञ्चधा सो देशेऽभवत्‌-सरित्‌ ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, पंचामृतस्नानं समर्पयामि, पंचामृतस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि ।

(पंचामृत स्नान व जल से स्नान कराएँ।)

गन्धोदक स्नान 

मलयाचलसम्भूतं चन्दनागरुसम्भवम्‌ ।

चन्दनं देवदेवेशि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्‌ ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, गन्धोदकस्नानं समर्पयामि ।

(चंदनयुक्त जल से स्नान कराएँ।)

(नोट :- जो व्यक्ति श्री सूक्त, पुरुष सूक्त अथवा सहस्रनाम आदि से पुष्पार्चन अथवा जल अभिषेक करना चाहते हैं, वे अर्चन अथवा अभिषेक करें फिर शुद्धोदक स्नान कराएँ अथवा सीधे शुद्धोदक स्नान कराएँ।)

शुद्धोदक स्नान

मन्दाकिन्यास्तु यद्वारि सर्वपापहरं शुभम्‌ ।

तदिदं कल्पितं तुभ्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्‌ ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि ।

(गंगाजल अथवा शुद्ध जल से स्नान कराएँ।)

आचमन

पश्चात ‘ॐ महालक्ष्म्यै नमः’ से आचमन कराएँ।

वस्त्र 

दिव्याम्बरं नूतनं हि क्षौमं त्वतिमनोहरम्‌ ।

दीयमानं मया देवि गृहाण जगदम्बिके ॥

ॐ उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह ।

प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन्‌ ददातु मे ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, वस्त्रं समर्पयामि, आचमनीयं जलं च समर्पयामि । 

(वस्त्र अर्पित करें, आचमनीय जल दें।)

उपवस्त्र

कंचुकीमुपवस्त्रं च नानारत्नैः समन्वितम्‌ ।

गृहाण त्वं मया दत्तं मंगले जगदीश्र्वरि ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, उपवस्त्रं समर्पयामि, आचमनीयं जलं च समर्पयामि । 

(उपवस्त्र चढ़ाएँ, आचमन के लिए जल दें।)

यज्ञोपवीत

ॐ तस्मादअकूवा अजायंत ये के चोभयादतः ।

गावोह यज्ञिरे तस्मात्तस्माज्जाता अजावयः ॥

ॐ यज्ञोपवीतं परमं वस्त्रं प्रजापतयेः त्सहजं पुरस्तात ॥

आयुष्यम अग्रयं प्रतिमुञ्च शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तुतेजः ।

ॐ महालक्ष्म्यै नमः ।

यज्ञोपवीतं समर्पयामि ।

आभूषण

रत्नकंकणवैदूर्यमुक्ताहारादिकानि च ।

सुप्रसन्नेन मनसा दत्तानि स्वीकुरुष्व भोः ॥

ॐ क्षुत्विपासामलां ज्येष्ठाम्‌-अलक्ष्मीं नाशयाम्यहम्‌ ।

अभूतमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद मे गृहात्‌ ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, नानाविधानि कुंडलकटकादीनि आभूषणानि समर्पयामि । 

(आभूषण समर्पित करें।)

गन्ध

श्रीखण्डं चन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम्‌ ।

विलेपनं सुरश्रेष्ठे चन्दनं प्रतिगृह्यताम्‌ ॥

ॐ गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्युपुष्टां करीषिणीम्‌ ।

ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोप ह्वये श्रियम्‌ ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, गन्धं समर्पयामि । 

(केसर मिश्रित चन्दन अर्पित करें।)

रक्त चन्दन

रक्तचन्दनसम्मिश्रं पारिजातसमुद्भवम्‌ ।

मया दत्तं महालक्ष्मी चन्दनं प्रतिगृह्यताम ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, रक्तचन्दनं समर्पयामि ।

(रक्त चंदन चढ़ाएँ।)

सिन्दूर

सिन्दूरं रक्तवर्णं च सिन्दूरतिलकप्रिये ।

भक्तया दत्तं मया देवि सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम्‌ ॥

ॐ सिन्धोरिव प्राध्वने शूघनासो वात प्रमियः पतयन्ति यह्वाः ।

घृतस्य धारा अरुषो न वाजी काष्ठा भिन्दन्नूर्मिभिः पिन्वमानः ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, सिन्दूरं समर्पयामि ।

(सिन्दूर चढ़ाएँ।)

कुंकुम

कुंकुमं कामदं दिव्यं कुंकुमं कामरूपिणम्‌ ।

अखण्डकामसौभाग्यं कुंकुमं प्रतिगृह्यताम्‌ ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, कुंकुमं समर्पयामि । 

(कुंकुम अर्पित करें।)

पुष्पसार (इत्र) 

तैलानि च सुगन्धीनि द्रव्याणि विविधानि च ।

मया दत्तानि लेपार्थं गृहाण परमेश्वरि ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, पुष्पसारं च समर्पयामि । 

(इत्र चढ़ाएँ।)

अक्षत

अक्षताश्च सुरश्रेष्ठे कुंकुमाक्ताः सुशोभिताः ।

मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वरि ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, अक्षतान्‌ समर्पयामि । 

(कुंकुमाक्त अक्षत चढ़ाएँ।)

पुष्पमाला

माल्यादीनि सुगन्धीनि माल्यादीनि वै प्रभो ।

मयानीतानि पुष्पाणि पूजार्थं प्रतिगृह्यताम्‌ ॥

ॐ मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि ।

पशूनां रूपमन्नास्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, पुष्पं पुष्पमालां च समर्पयामि ।

(लाल कमल के पुष्प तथा पुष्पमालाओं से अलंकृत करें।)

दूर्वा

विष्ण्वादिसर्वदेवानां प्रियां सर्वसुशोभनाम्‌ ।

क्षीरसागरसम्भूते दूर्वां स्वीकुरू सर्वदा ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, दूर्वांकुरान्‌‌ समर्पयामि ।

(दूर्वांकुर अर्पित करें।)

महालक्ष्मी के विभिन्न अंगों का कुंकुम एवं अक्षत से पूजन करें 

अंग पूजा 

पैर पूजन- ॐ चपलायै नमः, पादौ पूजयामि।

जानु पूजन- ॐ चंचलायै नमः, जानुनी पूजयामि

कमर पूजन- ॐ कमलायै नमः, कटिं पूजयामि

नाभि पूजन- ॐ कात्यायन्यै नमः, नाभिं पूजयामि

जठर पूजन- ॐ जगन्मात्रे नमः, जठरं पूजयामि

वक्षस्थल पूजन- ॐ विश्ववल्लभायै नमः, वक्षः स्थलम्‌ पूजयामि

हाथ पूजन- ॐ कमलवासिन्यै नमः, हस्तौ पूजयामि

मुख पूजन- ॐ पद्माननायै नमः, मुखं पूजयामि

तीनों नेत्र पूजन- ॐ कमलपत्राक्ष्यै नमः, नेत्रत्रयं पूजयामि

सिर पूजन- ॐ श्रियै नमः, शिरः पूजयामि

समस्त अंग पूजन- ॐ महालक्ष्म्यै नमः, सर्वांग पूजयामि

इसके पश्चात घड़ी की सुई की तरह पूर्व, आग्नेय कोण, दक्षिण, नैरुत, पश्चिम, वायव्य, उत्तर, ईशान दिशा में निम्न आठ सिद्धियों का पूजन करें।

अष्टसिद्धिपूजन

पूर्व दिशा में :- ‘ॐ अणिम्ने नमः’

आग्नेय कोण में :- ‘ॐ महिम्ने नमः’

दक्षिण दिशा में :- ‘ॐ गरिम्णे नमः’

नैरुत कोण में :- ‘ॐ लघिम्ने नमः’

पश्चिम दिशा में :- ‘ॐ प्राप्त्यै नमः’

वायव्य कोण में :- ‘ॐ प्रकाम्यै नमः’

उत्तर दिशा में :- ‘ॐ ईशितायै नमः’

ईशान कोण में :- ‘ॐ वशितायै नमः’

अष्टलक्ष्मी पूजन

इसके बाद पूर्व दिशा से शुरू कर घड़ी की सुई की दिशा के क्रम से आठों दिशाओं में अष्ट लक्ष्म‍ियों का पूजन करें।

पूर्व दिशा में :- ‘ॐ आद्यलक्ष्म्यै नमः’

आग्नेय कोण में :- ‘ॐ विद्यालक्ष्म्यै नमः’

दक्षिण दिशा में :- ‘ॐ सौभाग्यलक्ष्म्यै नमः’

नैरुत कोण में :- ‘ॐ अमृतलक्ष्म्यै नमः’

पश्चिम दिशा में :- ‘ॐ कामलक्ष्म्यै नमः’

वायव्य कोण में :- ‘ॐ सत्यलक्ष्म्यै नमः’

उत्तर दिशा में :- ‘ॐ भोगलक्ष्म्यै नमः’

ईशान कोण में :- ‘ॐ योगलक्ष्म्यै नमः’

धूप

वनस्पतिरसोद्भूतो गन्धाढ्यः सुमनोहरः ।

आघ्रेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम्‌ ॥

ॐ कर्र्दमेन प्रजा भूता मयि संभव कर्दम ।

श्रियं वासय में कुले मातरं पद्ममालिनीम्‌ ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, धूपमाघ्रापयामि ।

(धूप आघ्रापित करें।)

दीप

कार्पास वर्तिसंयुक्तं घृतयुक्तं मनोहरम्‌ ।

तमो नाशकरं दीपं गृहाण परमेश्वरि ॥

ॐ आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे ।

नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, दीपं दर्शयामि ।

(दीपक दिखाकर हाथ धो लें।)

नैवेद्य

(मालपुए सहित पंचमिष्ठान्न व सूखे मेवे।)

नैवेद्यं गृह्यतां देवि भक्ष्यभोज्य समन्वितम्‌ ।

षड्रसैन्वितं दिव्यं लक्ष्मी देवि नमोऽस्तु ते ॥

ॐ आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिंगलां पद्ममालिनीम्‌ ॥

चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, नैवेद्यं निवेदयामि । 

बीच में जल छोड़ते हुए निम्न मंत्र बोलें :-

1. ॐ प्राणाय स्वाहा 2. ॐ अपानाय स्वाहा 3. ॐ समानाय स्वाहा 4. ॐ उदानाय स्वाहा 5. ॐ व्यानाय स्वाहा। मध्ये पानीयम्‌, उत्तरापोशनार्र्थं हस्तप्रक्षालनार्थं मुखप्रक्षालनार्थं च जलं समर्पयामि ।

( नैवेद्य निवेदित कर पुनः हस्तप्रक्षालन के लिए जल अर्पित करें।)

करोद्वर्तन

‘ॐ महालक्ष्म्यै नमः’ यह कहकर करोद्वर्तन के लिए हाथों में चन्दन उपलेपित करें।

आचमन

शीतलं निर्मलं तोयं कर्पूरण सुवासितम्‌ ।

आचम्यतां जलं ह्येतत्‌ प्रसीद परमेश्वरि ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, आचमनीयं जलं समर्पयामि ।

(आचमन के लिए जल दें।)

ऋतुफल

(सीताफल, गन्ना, सिंघाड़े व अन्य फल।)

फलेन फलितं सर्वं त्रैलोक्यं सचराचरम्‌ ।

तस्मात्‌ फलप्रदादेन पूर्णाः सन्तु मनोरथाः ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, अखण्डऋतुफलं समर्पयामि, आचमनीयं जलं च समर्पयामि ।

(ऋतुफल अर्पित करें तथा आचमन के लिए जल दें।)

ताम्बूल

पूगीफलं महादिव्यं नागवल्लीदलैर्युतम्‌ ।

एलादिचूर्णसंयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम्‌ ॥

ॐ आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम्‌ ।

सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, मुखवासार्थे ताम्बूलं समर्पयामि ।

(लवंग, इलायची एवं ताम्बूल अर्पित करें।)

दक्षिणा

हिरण्यगर्भगर्भस्थं हेमबीजं विभावसोः ।

अनन्तपुण्यफलदमतः शान्तिं प्रयच्छ मे ॥

ॐ तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्‌ ।

यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान्‌ विन्देयं पुरुषानहम्‌ ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, दक्षिणां समर्पयामि ।

(दक्षिणा चढ़ाएँ।)

आरती

चक्षुर्दं सर्वलोकानां तिमिरस्य निवारणम्‌ ।

आर्तिक्यं कल्पितं भक्तया गृहाण परमेश्वरि ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, नीराजनं समर्पयामि । 

(जल छोड़ें व हाथ धोएँ।)

प्रदक्षिणा

यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च ।

तानि तानि विनश्यन्ति प्रदक्षिणपदे पदे ॥ 

(प्रदक्षिणा करें।)

प्रार्थना

हाथ जोड़कर बोलें

विशालाक्षी महामाया कौमारी शंखिनी शिवा ।

चक्रिणी जयदात्री चरणमत्ता रणाप्रिया ॥

भवानि त्वं महालक्ष्मीः सर्वकामप्रदायिनी ।

सुपूजिता प्रसन्ना स्यान्महालक्ष्मी! नमोऽस्तु ते ॥

नमस्ते साधक प्रचुर आनंद सम्पत्ति सुखदायिनी ।

या गतिस्त्वत्प्रपन्नानां सा मे भूयात्‌ त्वदर्चनात्‌ ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, प्रार्थनापूर्वकं नमस्कारम्‌ समर्पयामि ।

(प्रार्थना करते हुए नमस्कार करें।)

समर्पण

‘कृतेनानेन पूजनेन भगवती महालक्ष्मीदेवी प्रीतताम्‌, न मम’ ।

(हाथ में जल लेकर छोड़ दें।)

देहली, दवात, बही-खाता, तिजोरी व दीपावली (दीपमालिका) पूजन

देहली पूजन 

अपने व्यापारिक प्रतिष्ठान व घर के मुख्य प्रवेश द्वार पर ‘ॐ श्रीगणेशाय नमः’ लिखें साथ ही ‘स्वस्तिक चिन्ह’, ‘शुभ-लाभ’ आदि मांगलिक एवं कल्याणकारी शब्द सिन्दूर अथवा केसर से लिखें। इसके पश्चात निम्न मंत्र बोलकर ‘ॐ देहलीविनायकाय नमः’ गन्ध, पुष्प, अक्षत से पूजन करें।

दवात (श्री महाकाली) पूजन

काली स्याहीयुक्त दवात को भगवती महालक्ष्मी के सामने पुष्प तथा अक्षत पर रखें, सिन्दूर से स्वस्तिक बना दें तथा नाड़ा लपेट दें। निम्न मंत्र बोलकर ‘ॐ श्रीमहाकाल्यै नमः’ गन्ध, पुष्प, अक्षत, धूप, दीप न नैवेद्य से दवात में भगवती महाकाली का पूजन करें। इस प्रकार प्रार्थनापूर्वक उन्हें प्रणाम करें

कालिके! त्वं जगन्मातः मसिरूपेण वर्तसे ।

उत्पन्ना त्वं च लोकानां व्यवहारप्रसिद्धये ॥

या कालिका रोगहरा सुवन्द्या भक्तैः समस्तैर्व्यवहराद क्षैः ।

जनैर्जनानां भयहारिणी च सा लोकमाता मम सौख्यदास्तु ॥

(पुष्प अर्पित कर प्रणाम करें।)

लेखनी पूजन

कलम पर नाड़ा बाँधकर सामने की ओर रखें। निम्न मंत्र बोलकर पूजन करें

लेखनी निर्मिता पूर्वं ब्रह्मणा परमेष्ठिना ।

लोकानां च हितार्थाय तस्मात्तां पूजयाम्यहम्‌ ॥

‘ॐ लेखनीस्थायै देव्यै नमः’

गंध, पुष्प, पूजन कर इस प्रकार प्रार्थना करें :-

शास्त्राणां व्यवहाराणां विद्यानामाप्नुयाद्यतः ।

अतस्त्वां पूजयिष्यामि मम हस्ते स्थिरा भव ॥ 

बही-खाता ( सरस्वती) पूजन

बही-खातों पर स्वस्तिक बनाएँ व बसना पर स्वस्तिक चिह्न बनाकर उस पर रखें एवं एक थैली के ऊपर रोली या केसरयुक्त चंदन से स्वस्तिक चिन्ह बनाएँ तथा थैली में पाँच हल्दी की गाँठें, धनिया, कमलगट्टा, अक्षत, दूर्वा व द्रव्य रखकर, उसमें सरस्वती का ध्यान करें।

या कुन्देन्दुतुषारहार धवला या शुभ्रवस्त्रावृता । या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्यासना ॥ या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवेः सदा वन्दिता । सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥

ध्यान बोलकर प्रणाम करें। निम्न मंत्र द्वारा सरस्वती का गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य द्वारा पूजन करें

‘ॐ वीणापुस्तक धारिण्यै श्री सरस्वत्यै नमः’

तिजोरी (कुबेर) पूजन

तिजोरी पर स्वस्तिक बनाएँ एवं निधिपति कुबेर का निम्न वाक्य बोलकर आह्वान करें :-

आवाहयामि देव त्वामिहायाहि कृपां कुरु ।

कोशं वर्द्धय नित्यं त्वं परिरक्ष सुरेश्र्वर ॥

आह्वान के पश्चात निम्न मंत्र द्वारा ‘ॐ कुबेराय नमः’ कुबेर का गन्ध, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से पूजन कर प्रार्थना करें

धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च ।

भगवन्‌ त्वत्प्रसादेन धनधान्यादिसम्पदः ॥

इसके पश्चात पूर्व में महालक्ष्मी के साथ पूजित थैली (हल्दी, धनिया, कमलगट्टा, द्रव्य, दूर्वादि से युक्त) तिजोरी में रखकर कुबेर एवं महालक्ष्मी को प्रणाम करें।

तुला-पूजन

व्यापारिक प्रतिष्ठान में उपयोग आने वाले तराजू (तुला) पर स्वस्तिक बनाकर उस पर नाड़ा लपेटें व नाड़े से लपेटे तुलाधिष्ठातृदेवता का ध्यान निम्न प्रकार से करें :-

नमस्ते सर्वदेवानां शक्तित्वे सत्यमाश्रिता ।

साक्षीभूता जगद्धात्री निर्मिता विश्वयोनिना ॥

ध्यान के पश्चात निम्न मंत्र द्वारा ‘ॐ तुलाधिष्ठातृदेवतायै नमः’ तुला का गंध, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य से पूजन कर प्रणाम करें।

दीपमालिका (दीपक) पूजन 

ऐक थाली में ग्यारह, इक्कीस या उससे अधिक या कम (यथाशक्ति) दीपक प्रज्वलित कर उन्हें महालक्ष्मी के सामने की ओर रखकर उस दीपमालिका की इस प्रकार प्रार्थना करें :-

त्वं ज्योतिस्त्वं रविश्चन्द्रो विद्युदग्निश्च तारकाः ।

सर्वेषां ज्योतिषां ज्योतिर्दीपावल्यै नमो नमः ॥ 

प्रार्थना के पश्चात निम्न मंत्र ‘ॐ दीपावल्यै नमः’ द्वारा दीप माला का गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य से पूजन करें।

इसके पश्चात अपने अनुसार गन्ना, सीताफल सिंघाड़े, साल की धानी इत्यादि पदार्थ अर्पित करें। साल की धानी गणेश, अम्बिका, महालक्ष्मी तथा अन्य देवी-देवताओं को भी अर्पित करें। अंत में इन सभी दीपकों द्वारा घर या व्यापारिक प्रतिष्ठान को सजाएँ। इसके पश्चात दीपक और कपूर से श्री महालक्ष्मी की महाआरती करें।

(आरती करके शीतलीकरण हेतु जल छोड़ें एवं स्वयं आरती लें, पूजा में सम्मिलित सब लोगों को आरती दें फिर हाथ धो लें।)

मंत्र-पुष्पांजलि 

( अपने हाथों में पुष्प लेकर निम्न मंत्रों को बोलें) :-

ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्‌ ।

तेह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः ॥

ॐ राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे ।

स मे कामान्‌ कामकामाय मह्यं कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु ॥

कुबेराय वैश्रवणाय महाराजाय नमः ।

ॐ स्वस्ति साम्राज्यं भौज्यं स्वाराज्यं वैराज्यं पारमेष्ठ्यं राज्यं

महाराज्यमपित्यमयं समन्तपर्यायी स्यात्‌ सार्वभौमः

सार्वायुषान्तादापरार्धात्‌ ।

पृथिव्यै समुद्रपर्यन्ताया एकराडिति

तदप्येष श्लोकोऽभिगीतो मरुतः परिवेष्टारो मरुत्तस्यावसन्‌ गृहे ।

आविक्षितस्य कामप्रेर्विश्वेदेवाः सभासद इति ।

ॐ विश्वतश्चक्षुरुत विश्वतोमुखो विश्वतोबाहुरुत विश्वतस्पात्‌ ।

सं बाहुभ्यां धमति सं पतत्रैर्द्यावाभूमी जनयन्‌ देव एकः ॥

महालक्ष्म्यै च विद्महे, विष्णुपत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात्।।

अब क्षमा प्रार्थना करके सम्पूर्ण पूजा फल श्रीलक्ष्मी जी को समर्पित कर दें। 

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