रात्रि भोजन गलत कैसे ? रात में खाना खाने के नुकसान
हमने देखा होगा की सूर्य की पहली किरणो से सूर्यमुखी और कमल जैसे पुष्प खिलते है और सूर्यास्त के साथ वापिस वो पुष्प की पंखुड़िया अपने आप बन्द हो जाती हैं
क्या इस प्रक्रिया का इंसान के साथ कुछ सम्बंध है ? जी हा जैसे सूर्यमुखी की पंखुड़िया सूर्य की हाजरी मे खुलती है वैसे ही हमारा जठर (होज़री) का छोटा सा मूह भी खुल जाता है और सूर्यास्त होने के बाद वो अपने आप सिकुड़ जाता है वैज्ञानिक और वैध कहते है भोजन पचाने के लिये जरूरी ऑक्सिजन सूर्य की हाज़री से मिलता है।
रात को लोग सोते क्यू है ? रात को सुस्ती क्यू आती है रात को डर क्यू लगता है रात को कौन से जानवर शिकार के लिये बाहर निकलते है ? उल्लू ? बिल्ली ? कुत्ते ? भेड़िये ? जंगली जानवर ? रात को ही काले काम क्यू होते है ? जैसे की चोरी, मार-काट ? रात को ही भूत प्रेत जैसी बुरी शक्तिया क्यू महसूस होती है ? रात को ही आवारा, मक्कार और गन्दे लोग क्यू दिखाई देते है ?
उपर के कुछ सवालो से महसूस किया जाता है की रात सोने लिये है हर प्राणी और जानवर नई उर्जा पाने के लिये सोते हैं दिन भर की भगदड़ से शरीर थकान महसूस करता है.. जो लोग बुरी तरह से ठक गये है उनसे ज्यादा काम हम नही करवा सकते वैसे ही
हमारे शरीर खुद एक यन्त्र है जो दिनभर खाई हुई खुराक को चयापचय की प्रक्रिया से पूरी करते हुए शर्करा के रूप मे उत्पादन करता है जो हमे पोषण देती है रात का खाना मतलब शरीर के यन्त्र से ओवर टाइम करवाना।
सूर्यास्त के 2 घंटे के बाद शरीर मे आई हुई खुराक अन्ननली से जठर के मूह तक आती है। सूर्य प्रकाश की मोजूदगी ना होने से खुराक पर होने वाली प्रक्रिया मंद हो जाती है। धीरे धीरे से वो जठर मे उतरती है। बहुत खाने पर पूरा पाचनतंत्रा ठप्प हो जाता है मानो की ट्रेफिक जाम !! कई बार पूरा का पूरा खुराक सुबह तक पेट मे पड़ा रहता है। ऐसे इंसान को रात भर नींद नही आती। हाज़त की बीमारी के साथ वॉमिट हो सकती है। उसी से आंखे, पेट, अजीर्ण, ज़ाडा जैसी बीमारी जन्म लेती है।।
आयुर्वेद कहता है। की जो लोग अपने पेट को नरम रखते है, दिमाग को ठंडा रखते है और पैर को गरम रखते है उनको कभी भी डॉक्टर या वैध के पास जाना नही पड़ता। आज साइन्स की इतनी सारी दवाइया है फिर भी करोड़ो लोग अस्पताल मे दिखाई देते है। ऐसा क्यो ?
उसका एक बड़ा कारण है की हमारी दिनचर्या व आहारचर्या बदल गई है। जंक फुड, रात का खाना, खाने का कोई समय ना होना, पेप्सी और कॉक जैसे पेय है। उसी से सुस्ती आती हैं उसी की वजह से गुस्सा आता है।
क्या कहते है अपने शास्त्र :
पद्मपुराण – प्रभासखण्ड
चत्वारो नरकद्वारा: प्रथमं रात्रिभोजनम ।
परस्त्रीगमानम् चैव, सन्धानान्तकाइये ।।
मतलब, नर्क याने जहन्नुम के चार द्वार है.. पहला रात्रि भोजन, दूसरा परस्त्रीगमन, तीसरा सूर्य के ताप मे रखे बिना बनाया हुआ अचार और चौथा कंदमूल खाने से।
मारकण्डेय ऋषि का कथन है मार्कंड पुराण..
सूर्यास्त के बाद पिया हुआ पानी लहू के बराबर है और खुराक मांस खाने के बराबर है ?
मांस, मदिरा, रात को खाना और कंदमूल खाने वाले नर्क मे जाने का प्रबंध करते है
हे युधिस्थिर देवताओ ने दिन के प्रथम प्रहर मे भोजन किया, दूसरे प्रहर मे संत महात्मा, तीसरे प्रहर मे पूर्वज और चौथे प्रहर मतलब रात को दैत्य व राक्षसो ने किया हुआ है
जैन धर्म :
केवल ज्ञानी बताते है की अनेक जीवो को अभयदान देने के लिये और जीव हिंसा से बचाने के लिये रात्रि भोजन का निषेध है इसलिये जैन धर्म मे रात्रि भोजन को महापाप माना गया है..
योग शास्त्र :
रात को खाने वाले लोग सींग और पूछ के बगैर घूमने फिरने वाले जानवर है रात को कम रोशनी मे हमे बहुत कम दिखाई देता है ऐसे मे भोजन मे यदि ज़ू यानी बालो मे होने वाली लीख से जलोदर की बीमारी आती है
भोजन मे यदि मक्खी आती है तो वॉमिट हो सकती है। भोजन मे यदि स्पाइडर आ जाता है तो सफेद कोढ़ की बीमारी आ सकती है। भोजन मे यदि कंटक आ जाता है तो गले मे भारी दर्द होता है। भोजन मे यदि बॉल आ जाता है तो स्वरभंग हो सकता है।
रात को भोजन मे बिजली के प्रकाश से आकर्षित होकर कई उड़ते कीडे मर जाते है..यदि भोजन बिजली के बल्ब के नीचे बन रहा हो तो वो सीधे खुराक मे घुलमिल जाते है उसी से फ़ूड पाइज़न होता है कभी कभार छिपकली और कॉंक्रोच भी खुराक मे घुलमिल जाते है।
पहले के जमाने के लोग 100 बरस बहुत ही आरम से निकलते थे आज 40 बरस मे मानसिक और शारीरिक बीमारिया शुरु हो जाती है उसके पीछे कहीं ना कही हमारे बदले हुए आहार और विचार है रात्रि भोजन के मुद्दे पर अरबी रिवाज़ आर्या संस्कृति से पूरी तरह भिन्न है
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