कन्या राशि एवं लग्न सम्पूर्ण परिचय Virgo zodiac sign and ascendant complete introduction in Hindi
कन्या लग्ने भवेत् जातो नाना शास्त्र विशारद:।
सौभाग्य गुण सम्पन्न: सुरूपः सुरतप्रियः।।
षष्ठे साधुत्व युतः शिक्षा गान्धर्व काव्य शिल्प पटु:।
प्रिय वल्गु कथा भाषी प्रणयी दानोपचारोतः।।
भचक्र में कन्या राशि का क्रम छठा माना जाता है। इसका विस्तार १५०° से १८०° तक होता है इस राशि के अंतर्गत उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के अंतिम ३ चरण, हस्त के चारो चरण, तथा चित्रा के प्रथम २ चरण समाविष्ट है। उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र का स्वामी सूर्य, हस्त का चंद्र तथा चित्रा का स्वामी मंगल माना जाता है।
आकाश मंडल में इसकी स्थिति का स्वरूप नौका में बैठी युवती है। जिसके हाथों में सस्य (अन्न) और (नौस्था ससस्यानला) है। इस राशि का अधिपति ग्रह बुध है। बुध इस राशि के १५ अंश पर उच्च तथा १५ से २५ अंश तो मूल त्रिकोण कहलाता है। तथा २५ से ३० अंश तक स्वराशि होता है।
कन्या राशि के अन्य पर्यायवाची नाम
कांता, तन्वी, रामा, वामा, अंगना, अबला, कामिनी, कुमारी, तरुणी, पापोन, महिला, रमणी, सुंदरी, सुवासिनी इत्यादि है। अंग्रेजी में इसको (virgo) बोला जाता है।
यह राशि पृथ्वी तत्त्व प्रधान, प्रेम और बौद्धिकता की प्रतीक, सौम्य, सत्वगुणी, हरित, एवं मिश्रित वर्ण विश्वभाव, वृद्धत्व में भी युवा दिखने वाली, दिवस बलि वात प्रकृति, वैश्य जाती जीव एवं सम संज्ञक, शीर्षोदय राशि दक्षिण दिशा की स्वामिनी, चंचल, सौम्य एवं शांत दोनो प्रकार के गुण में युक्त लघुकाय सत्व गुणी राशि है। इसके अतिरिक्त यह राशि हरि भरी भूमि, कृषि, बागीचा, खेती, स्त्री-पुरुष युगलों की क्रीड़ास्थली तथा शिल्प तंत्र की विचरण राशि मानी जाती है। इसकी प्रिय धातु कांस्य एवं सुवर्ण है। तथा प्रिय रत्न पन्ना है। काल पुरुष में इस राशि का आधिपत्य कटि प्रदेश, (कमर, पेट व आंतो) से है। किसी व्यक्ति के जन्म समय निरयण चंद्र कन्या राशि ने संचारित हो तो उसकी जन्म राशि कन्या मानी जायेगी। गोचर में निरयण सूर्य प्रति वर्ष लगभग १६ सितंबर से १६ अक्टूबर तक कि अवधि में कन्या राशि में संचार करता है।
मुख्य गुण एवं विशेषताये
पृथ्वी तत्त्व प्रधान होने से जातक धैर्यवान, परिश्रमी, बुद्धिमान, तीव्रस्मरण शक्ति, व्यवहार कुशल, मिलनसार, मधुरभाषी, तर्क-वितर्क करने वाला स्वयं को परिस्थिति के अनुसार ढाल लेने की क्षमता, विश्लेषण एवं आलोचना करने में कुशल, विलंब से निर्णय लेने वाला, अध्ययन शील एवं बौद्विक कार्यो में विशेष रुचि लेने वाला एवं कुछ लज्जाशील स्वभाव एव आत्म विश्वास की कमी होती है।
कन्या लग्न के जातक
शारीरिक संरचना एवं स्वभाव
कन्या लग्न जातक का इकहरा एवं पतला संतुलित शरीर, मध्यम कद, गोरा रंग, सुन्दर आकर्षक नेत्र, सीधी नाक, ऊंचा मस्तक, उभरी हुई छाती, प्रिय भाषी किन्तु तीखी और बारीक आवाज, तीव्र एवं स्फूर्तिवान चाल, काले घने बाल, कोमल एवं संतुलित शरीर, तथा आंखों में मासूमियत एवं ईमानदारी की झलक होती है। ऐसे जातक अपनी वास्तविक आयु की अपेक्षा युवा दिखते है। जातक प्रायः कमनीय, सुन्दर तथा स्त्रियों के समान लज्जाशील एवं शर्मीले स्वभाव के होते है।
मानसिक एवं चारित्रिक विशेषताये
कन्या लग्न में बुध की स्थिति अच्छी हो तो ऐसे जातक अत्यंत बुद्धिमान, चतुर, तीव्र स्मरणशक्ति वाला, अध्ययनशील, गणित, लेखनादि में विशेष रुचि लेने वाला, गुणी, विश्लेषण करने में कुशल, विचारशील, व्यवहार कुशल, विनम्र, पृथ्वी तत्त्व राशि होने के कारण उच्चाभिलाषी, धन-संपदा एवं सुख-सुविधाओं की प्राप्ति के लिये विशेष संघर्ष करने वाला सतर्क एवं सावधान रहने वाला, योजनाबद्ध तरीके से काम करने वाला, अपनी उन्नति के प्रति सजग होगा परन्तु स्वयं नियमबद्ध करके आचरण करना इनको कठिन लगता है।
शनि गुरु के कारण जातक परिश्रमी, शांत चित्त, और अपने गुणों के द्वारा समाज मे मान-प्रतिष्ठा पाने वाला, धैर्यवान एवं भले-बुरे की पहचान की क्षमता रखने वाला विचारशील व्यक्ति होगा। चंद्र-शनि, चंद्र-शुक्र अथवा चंद्र-गुरु का योग या दृष्टि हो तो जातक अस्थिर किन्तु मौलिक विचारों से युक्त, संवेदनशील, परोपकारी, व्यवहार कुशल, तर्क-वितर्क करने में कुशल, तथा स्वयं को हर प्रकार की परिस्थितियों में ढाल लेने की क्षमता रखने वाला, मनोविज्ञान, क्रय-विक्रय व्यवसाय के कुशल होता है।
शुक्र के शुभास्थ होने से जातक भावुक, तीव्र सौंदर्याभूति, संगीत कला एवं साहित्य का प्रेमी, धीमे स्वर से बोलने वाला, समन्वयवादी, दयालु एवं सत्यनिष्ठ होता है। शुभ ग्रहों के प्रभाव से यद्यपि बहुमुखी प्रतिभा की योग्यता होती है। परन्तु द्विस्वभाव राशि होने से जातक एक ही समय मे एक से अधिक कार्य आरंभ कर लेता है। जिससे बहुत से कार्य अधूरे रह जाते है। कई बार अपने द्वारा किये कार्य से असंतुष्ट भी हो जाता है। तथा एक विषय पर चिरकाल तक स्थिर नही रहता।
गुरु के प्रभाव से आत्म प्रदर्शन एवं आडम्बर की प्रवृति नही होती। धार्मिक साहित्य एवं ज्योतिष तंत्रादि, गूढ़ विषयो के प्रति भी विशेष रुचि होती है। कन्या जातक को ज्ञान अर्जन करने की अभिलाषा जीवन पर्यंत बनी रहती है।
शनि-बुध का संबंध हो तो प्रत्येक विषय की गहराई तक जाने की प्रवृति होगी। विश्लेषण करने की योग्यता भी विशेष होगी। पर अपने अधिकांश कार्य गुप्त रखने की प्रवृति होगी।
द्वितीयेश शुक्र के प्रभाव से जातक को संगीत, कला एवं साहित्य (कविता आदि) का भी विशेष शौक रहता है।
कल्पनाशील होने के कारण कन्या जातक नई-नई योजनाएं एवं युक्तियों की रचना करने में कुशल होते है। परन्तु धैर्य की कमी के कारण एक ही कार्य पर अधिक समय तक क्रियाशील नही रह पाते।
कन्या जातक वैसे तो जीवन पर्यंत कर्मठ एवं क्रियाशील होते है। परन्तु जीवन का पहला भाग विशेष संघर्षपूर्ण एवं कठिन परिस्थितियों में गुजरता है। प्रायः इनमे आत्मविश्वाश की भी कमी होती है।
स्वास्थ्य एवं रोग
कन्या जातक की कुंडली मे यदि कोई विशेष अरिष्ट योग ना पड़ा हो तो सामान्यतः इनका स्वास्थ्य अच्छा और दीर्घायु होते है। जीवन मे सक्रिय एवं युवा रहते है। अपने स्वास्थ्य के संबंध में भी सतर्क रहते है। कुंडली मे चंद्र या शनि अशुभ हो तो मानसिक रोगों से ग्रस्त होने की अधिक संम्भावना रहती है। जातक में शीघ्र उत्साहित एवं शीघ्र ही निराश होने की प्रवृति होती है जिससे इनको मानसिक उद्वेग चिड़चिड़ापन, शीघ्र क्रोधित एवं शीघ्र उत्तेजित होने का स्वभाव बन जाता है। इनका मन और पेट दोनो अत्यंत संवेदनशील होते है।
जिससे प्रकृति विरुद्ध असंतुलित एवं अनियमित भोजन करने से इनको स्नायु विकृति एवं पाचन संबंधित रोग जैसे मंदाग्नि, पथरी, वायु रोग, जोड़ो का दर्द, रीढ़ का दर्द, पीलिया, मधुमेह, प्रमेह, त्वचा रोग, आदि गुप्त रोगों का भय भी रहता है। अधिक चिंता, असंतोष एवं क्रोधाधिक्य के कारण उच्च रक्तचाप, सर वेदना, नेत्र रोग, नाक-कान-गले आदि रोगों की संभावना रहती है।
सावधानी कन्या जातक को मानसिक तनाव, उत्तेजना तथा तामसिक भोजन एवं उत्तेजक पदार्थो का सेवन से बचना चाहिये तथा योग एयर ध्यान द्वारा अपना जीवन बेहतर बनाना चाहिए।
कन्या लग्न जातको की शिक्षा
कन्या लग्न की कुंडली मे यदि बुध, शुक्र, शनि, गुरु आदि ग्रह शुभस्थ पड़े हो तथा इन्ही में से किसी ग्रह की दशा अंतर्दशा चल रही हो तो जातक को उच्च शिक्षा के क्षेत्र में अच्छी सफलता मिलती है। विशेषकर कॉमर्स, कम्प्यूटर शिक्षा, गणित, सूचना एवं प्रसारण शिक्षा, संगीत, गायन चार्टेड अकाउंटेंट, गणित, व्यापार-प्रबंध, मेडिकल, विज्ञान, साहित्यिक एवं अनुसंधात्मक विद्या आदि। कन्या जातक को ऐसा व्यवसाय अधिक उपयुक्त रहता है जिसमे बौद्धिकता का अधिक उपयोग हो।
व्यवसाय एवं आर्थिक स्थिति
कन्या जातक चाहे स्त्री हो या पुरुष मेहनती, बहुमुखी प्रतिभा के स्वामी, तथा अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठावान होने के कारण लगभग प्रत्येक क्षेत्र में लाभ व उन्नति पा लेते है। ग्रहों के प्रभावस्वरूप यह उन्नति चाहे विघ्न/बाधाओं एवं विलंब से युक्त ही हो फिर भी कन्या जातक धैर्य व उद्धम द्वारा अभिलषित कार्य मे सफलता अवश्य प्राप्त कर लेते है। कन्या जातक अपनी प्रतिभा अनुसार आगे लिखे व्यवसायों में से किसी एक मे समुचित सफलता पा सकते है।
अध्यापन, वकालात, क्रय-विक्रय, प्रतिनिधि, लेखाकार, लेखन, पत्रकार, पुस्तक विक्रेता, प्रकाशन, ज्योतिषी, शिल्पकार, कम्प्यूटर विशेषज्ञ, व्यापारी, अभिनेता, गायक, इंजीनियर, चिकित्सक, फोटोग्राफी, स्टेशनरी, वस्त्र उद्योग, मैनेजर, भूमि जायदाद, बैंकिंग, सौन्दर्यप्रसाधन, फैशन डिजाइनिंग, आयात निर्यात, उद्योग पति, करियाना व्यवसायी, आढ़ती, अध्यापन, वकालात जैसे बौद्धिक कार्य मे अच्छी सफलता मिल सकती है। चादर यदि जल या वायु राशि मे हो तो विदेश जाने के अवसर भी प्राप्त होते है।
आर्थिक स्थिति
कन्या लग्न वाले जातक की कुंडली मे बुध, शुक्र व चंद्र शनि ग्रह शुभस्थ हों तथा इन्ही शुभ व योगकारक ग्रहों की दशा अंतर्दशा चल रही हो तो जातक की आर्थिक स्थिति ठीक होगी। अधिकांशतः कन्या जातक किफायती व सोच समझकर खर्च करते है। आज के साधन चाहे सीमित हो फिर भी अपने परिश्रम तथा गुप्त युक्तियों से निर्वाह योग्य धनार्जन कर ही लेते है। थोड़े थोड़े बचत से भी धनराशि का संचय कर लेते है। यदि शुभ ग्रहों के प्रभाव में हो तो आय के स्तोत्र एक से अधिक होते है। आडम्बर, अपव्यय एवं फिजूल खर्च से यथा सम्भव परहेज करते है। फिर भी अत्यधिक परिश्रम के बाद भी अधिक मात्रा में धन संचय नही करपाते।
प्रेम और वैवाहिक सुख
प्रेम के संबंध में कन्या लग्न के जातक अत्यधिक भावुक एवं संवेदनशील होने पर भी अपनी प्रेमाभिव्यक्ति शीघ्र प्रकट नही कर पाते तथा न ही वह प्रेम में प्रदर्शन को अधिक महत्त्व देते है। लज्जाशील प्रकृति होने के कारण अपनी प्रेम भावनाओ को सीधा स्पष्ट प्रकट नही करते। बल्कि विभिन्न भूमिकाओं के बाद अपने प्रेमी को अपना मतलब समझा पाते है। ये जिससे प्रेम करे उससे पूरी निष्ठा और हृदय से करते है।
अपनी पत्नी और परिवार के प्रति पूरे उत्तरदायी, सहानुभूति एवं समर्पण के साथ निर्वाह करेंगे, यदि कुंडली मे सप्तम भाव क्रूर ग्रह से आक्रांत, दृष्ट हो या सप्तमेश गुरु-मंगल, राहु-शनि आदि पाप ग्रहों के प्रभाव में हो तो दाम्पत्य जीवन मे विषमता व कटुता पैदा होने की संभावना होती है। इसके अतिरिक्त कन्या जातक को प्रेम संबंधों में अत्यधिक संदेहशील, दुविधापूर्ण एवं आलोचनात्मक दृष्टिकोण का त्याग करना चाहिए। आत्म विश्वास को भी बढ़ाना चाहिए, भली प्रका मिलान करके किया गया संबंध कल्याणकारी होगा।
कन्या लग्न की जातिका
कन्योदये वा वनिताभीजिता सौभाग्य सौख्ये: सहिता हिता च।
भवेत्स्ववर्गे बहुधर्मरक्ता, जितेंद्रिया, सर्वकलासु दक्षा।।
अर्थात कन्या लग्न में उत्पन्न जातिका सौभाग्यशाली, सबका हित चाहने वाली, धर्म एवं मर्यादा का पालन करने वाली तथा अनेक गुणों से युक्त होंगी। कन्या लग्न में उत्पन्न लड़की का कद मध्यम, इकहरा गोरा बदन, सुन्दर नेत्र, कोमलांगी, लज्जाशील, परन्तु बारीक व कुछ तीखी आवाज युक्त प्रियभाषिणी, घने काले बाल, चुस्त-स्फूर्तिवान, कमनीय व आकर्षक व्यक्तित्व की स्वामिनी होती है।
चारित्रिक विशेषताये
कन्या जातिका की कुंडली मे ग्रह स्थिति शुभ हो तो जातिका बुद्धिमान, भावुक, संवेदनशील, सौभाग्यशाली, मधुरभाषी, व्यवहार कुशला, स्त्रियोचित गुणों से युक्त, आंखों में मासूमियत एवं ईमानदारी की झलक लिए हुए, धार्मिक विचारों वाली होंगी।
कुंडली मे बुध-शुक्र शुभस्त हो तो जातिका तीव्र बुद्धिमान, समझदार, कर्मठ, तीव्र स्मरणशक्ति रखने वाली, अध्ययनशील, उच्चशिक्षित, गुणवान, तथा अपने गुणों के द्वारा अपने परिवार व समाज मे प्रतिष्ठा पाने वाली, इनमे हर प्रकार की कठिन परिस्थितियों में भी स्वयं को ढाल लेने की योग्यता होगी। गुरु शुक्र के कारण मानवीय भावनाओ और संवेदनाओं से युक्त अपना स्वभाव रखेंगी। मानसिक एवं बौद्धिक शक्ति अच्छी रहेगी।
उपयुक्त व्यवसाय
ये जातिकाये शिक्षा के क्षेत्र में नई-नई जानकारियां पाने को उत्सुक रहती है। गणित-कम्प्यूटर, वस्त्र एवं फैशन व ड्रेस डिजिनिंग, संगीत-कला, चित्रकारी, साहित्य व अध्यापन, चिकित्सा, पर्यटन, एक्टिंग, वकालत, पत्रकारिता, दूरदर्शन, लेखाकार, पठन-पाठन व बौद्धिक कार्य के क्षेत्रों में अधिक सफलता पा सकती है। ये जातिका छोटी-छोटी बचत से भी अच्छा धन संग्रह कर लेती है। परिवार व पति को आर्थिक क्षेत्र में भी सहयोग करती है। अपने घर व बच्चों को बड़े ही कलात्मक तरीके से सजाने-संवारने में रुचि लेती है।
प्रेम और वैवाहिक सुख
लज्जाशील और संकोची स्वभाव होने के कारण कन्या लग्न की जातिकाये प्रेम का प्रदर्शन नही कर पाती। इनके प्रेम में केवल भावुकता की ही प्रधानता नही होती बल्कि अपने साथी के प्रति पूर्ण निष्ठा, कर्तव्यनिष्ठा, ईमानदारी व समर्पण की भावना भी रहती है। धर्मपरायणता एवं पति व परिवार के प्रति उत्तरदायित्व, सहानुभूति एवं प्रेम द्वारा पारिवारिक दायित्वों को निभाती है। कठिन परिस्थितियों में भी स्वयं को ढाल लेती है। कन्या जातिका की कुंडली मे बुध, गुरु, शुक्र, शनि ग्रह शुभस्थ हो तो इनका दाम्पत्य जीवन अच्छा व मधुर रहता है। फिर भी वर-कन्या की कुंडली मे परस्पर भलीभांति मिलान करके विवाह किया जाए तो वैवाहिक जीवन सुखमय बना रहता है।
उपयुक्त जीवन साथी का चुनाव
कन्या जातिकाओ के लिये वृष, मिथुन, कर्क, कन्या, तुला, वृश्चिक, मकर व मीन राशि वालो के साथ मैत्री व वैवाहिक संबंध शुभ व सुखमय रहने की संभावना रहती है। इनमे भी तुला व वृश्चिक राशि वालो के साथ कन्या राशि लग्न के मिलान को सामान्य ही कहा जायेगा।
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