मां बगलामुखी चालीसा, कवच pdf और पूजा विधि
माँ बगलामुखी दस महाविद्याओं में से एक शक्तिशाली देवी हैं। इन्हें पीताम्बरा भी कहा जाता है क्योंकि इनका स्वरूप हल्दी के समान पीला है। माँ बगलामुखी को शत्रु नाशिनी और स्तंभन शक्ति की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है।
कहा जाता है कि माँ के चालीसा (Maa Baglamukhi Chalisa), कवच (Baglamukhi Kavach) और बीज मंत्र के नियमित पाठ से साधक को मुकदमों में विजय, शत्रुओं पर नियंत्रण, धन-समृद्धि और मानसिक शांति प्राप्त होती है।
मां बगलामुखी चालीसा, कवच और पूजा विधि
मां बगलामुखी का महत्व
- माँ बगलामुखी को पीताम्बरा भी कहा जाता है क्योंकि इनका रंग हल्दी के समान पीला है।
- ये स्तंभन की देवी हैं और शत्रुओं की वाणी, बुद्धि व शक्ति को रोकने वाली मानी जाती हैं।
- बगलामुखी शब्द संस्कृत के “वल्गा” से बना है, जिसका अर्थ है दुलहन।
- रुद्रमाल तंत्र में माता बगलामुखी को शिव की अर्धांगिनी कहा गया है।
माँ बगलामुखी बीज मंत्र
ॐ ह्लीं बगलामुखीम सर्व दुष्टानाम वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिव्हां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा
बंगलामुखी चालीसा, कवच pdf download
मां बगलामुखी चालीसा (Maa Baglamukhi Chalisa in Hindi)
नमो महाविधा बरदा, बगलामुखी दयाल ।
स्तम्भन क्षण में करे, सुमरित अरिकुल काल ।।
नमो नमो पीताम्बरा भवानी, बगलामुखी नमो कल्यानी।
१. भक्त वत्सला शत्रु नशानी, नमो महाविधा वरदानी।
२. अमृत सागर बीच तुम्हारा, रत्न जड़ित मणि मंडित प्यारा।
३. स्वर्ण सिंहासन पर आसीना, पीताम्बर अति दिव्य नवीना।
४. स्वर्णभूषण सुन्दर धारे , सिर पर चन्द्र मुकुट श्रृंगारे।
५. तीन नेत्र दो भुजा मृणाला, धारे मुद्गर पाश कराला।
६. भैरव करे सदा सेवकाई , सिद्ध काम सब विघ्न नसाई।
७. तुम हताश का निपट सहारा , करे अकिंचन अरिकल धारा।
८. तुम काली तारा भुवनेशी ,त्रिपुर सुन्दरी भैरवी वेशी।
९. छिन्नभाल धूमा मातंगी , गायत्री तुम बगला रंगी ।१०।
सकल शक्तियाँ तुम में साजें, ह्रीं बीज के बीज बिराजे ।
११. दुष्ट स्तम्भन अरिकुल कीलन, मारण वशीकरण सम्मोहन ।
१२. दुष्टोच्चाटन कारक माता , अरि जिव्हा कीलक सघाता ।
१३. साधक के विपति की त्राता , नमो महामाया प्रख्याता ।
१४. मुद्गर शिला लिये अति भारी , प्रेतासन पर किये सवारी।
१५. तीन लोक दस दिशा भवानी , बिचरहु तुम हित कल्यानी।
१६. अरि अरिष्ट सोचे जो जन को , बुध्दि नाशकर कीलक तन को।
१७. हाथ पांव बाँधहु तुम ताके,हनहु जीभ बिच मुद्गर बाके।
१८. चोरो का जब संकट आवे , रण में रिपुओं से घिर जावे।
१९. अनल अनिल बिप्लव घहरावे , वाद विवाद न निर्णय पावे।
२०. मूठ आदि अभिचारण संकट . राजभीति आपत्ति सन्निकट।
२१. ध्यान करत सब कष्ट नसावे , भूत प्रेत न बाधा आवे ।
२२. सुमरित राजव्दार बंध जावे ,सभा बीच स्तम्भवन छावे।
२३. नाग सर्प ब्रर्चिश्रकादि भयंकर , खल विहंग भागहिं सब सत्वर।
२४. सर्व रोग की नाशन हारी, अरिकुल मूलच्चाटन कारी।
२५. स्त्री पुरुष राज सम्मोहक , नमो नमो पीताम्बर सोहक।
२६. तुमको सदा कुबेर मनावे , श्री समृद्धि सुयश नित गावें।
२७. शक्ति शौर्य की तुम्हीं विधाता , दुःख दारिद्र विनाशक माता।
२८. यश ऐश्वर्य सिद्धि की दाता , शत्रु नाशिनी विजय प्रदाता।
२९. पीताम्बरा नमो कल्यानी , नमो माता बगला महारानी।
३०. जो तुमको सुमरै चितलाई ,योग क्षेम से करो सहाई।
३१. आपत्ति जन की तुरत निवारो , आधि व्याधि संकट सब टारो।
३२. पूजा विधि नहिं जानत तुम्हरी, अर्थ न आखर करहूँ निहोरी।
३३. मैं कुपुत्र अति निवल उपाया , हाथ जोड़ शरणागत आया।
३४. जग में केवल तुम्हीं सहारा , सारे संकट करहुँ निवारा।
३५. नमो महादेवी हे माता , पीताम्बरा नमो सुखदाता।
३६. सोम्य रूप धर बनती माता , सुख सम्पत्ति सुयश की दाता।
३७. रोद्र रूप धर शत्रु संहारो , अरि जिव्हा में मुद्गर मारो।
३८. नमो महाविधा आगारा,आदि शक्ति सुन्दरी आपारा।
३९. अरि भंजक विपत्ति की त्राता , दया करो पीताम्बरी माता।
४०. रिद्धि सिद्धि दाता तुम्हीं , अरि समूल कुल काल।
मेरी सब बाधा हरो , माँ बगले तत्काल।।
मां बगलामुखी कवच (Maa Baglamukhi Kavach)
शिरो मे पातु ॐ ह्रीं ऐं श्रीं क्लीं पातु ललाटकम्।
सम्बोधन-पदं पातु नेत्रे श्रीबगलानने।। (१)
श्रुतौ मम रिपुं पातु नासिकां नाशयद्वयम्।
पातु गण्डौ सदा मामैश्वर्याण्यन्तं तु मस्तकम्।। (२)
देहि द्वन्द्वं सदा जिह्वां पातु शीघ्रं वचो मम।
कण्ठदेशं मनः पातु वाञ्छितं बाहुमूलकम्।। (३)
कार्यं साधयद्वन्द्वं तु करौ पातु सदा मम।
मायायुक्ता तथा स्वाहा हृदयं पातु सर्वदा।। (४)
अष्टाधिक चत्वारिंश दण्डाढया बगलामुखी।
रक्षां करोतु सर्वत्र गृहेऽरण्ये सदा मम।। (५)
ब्रह्मास्त्राख्यो मनुः पातु सर्वांगे सर्व सन्धिषु।
मन्त्रराजः सदा रक्षां करोतु मम सर्वदा।। (६)
ॐ ह्रीं पातु नाभिदेशं कटिं मे बगलाऽवतु।
मुखिवर्णद्वयं पातु लिंग मे मुष्क-युग्मकम्।। (७)
जानुनी सर्वदुष्टानां पातु मे वर्णपञ्चकम्।
वाचं मुखं तथा पादं षड्वर्णाः परमेश्वरी।। (८)
जंघायुग्मे सदा पातु बगला रिपुमोहिनी।
स्तम्भयेति पदं पृष्ठं पातु वर्णत्रयं मम।। (९)
जिह्वा वर्णद्वयं पातु गुल्फौ मे कीलयेति च।
पादोर्ध्व सर्वदा पातु बुद्धिं पादतले मम।। (१०)
विनाशय पदं पातु पादांगुल्योर्नखानि मे।
ह्रीं बीजं सर्वदा पातु बुद्धिन्द्रियवचांसि मे।। (११)
सर्वांगं प्रणवः पातु स्वाहा रोमाणि मेऽवतु।
ब्राह्मी पूर्वदले पातु चाग्नेय्यां विष्णुवल्लभा।। (१२)
माहेशी दक्षिणे पातु चामुण्डा राक्षसेऽवतु।
कौमारी पश्चिमे पातु वायव्ये चापराजिता।। (१३)
वाराही चोत्तरे पातु नारसिंही शिवेऽवतु।
ऊर्ध्वं पातु महालक्ष्मीः पाताले शारदाऽवतु।। (१४)
इत्यष्टौ शक्तयः पान्तु सायुधाश्च सवाहनाः।
राजद्वारे महादुर्गे पातु मां गणनायकः।। (१५)
श्मशाने जलमध्ये च भैरवश्च सदाऽवतु।
द्विभुजा रक्तवसनाः सर्वाभरणभूषिताः।। (१६)
योगिन्यः सर्वदा पान्तु महारण्ये सदा मम।
इति ते कथितं देवि कवचं परमाद् भुतम्।। (१७)
फल-श्रुति
श्रीविश्व विजयं नाम कीर्ति-श्रीविजय-प्रदम्।
अपुत्रो लभते पुत्रं धीरं शूरं शतायुषम्।। (१८)
निर्धनो धनमाप्नोति कवचस्यास्य पाठतः।
जपित्वा मन्त्रराजं तु ध्यात्वा श्रीबगलामुखीम्।। (१९)
पठेदिदं हि कवचं निशायां नियमात् तु यः।
यद् यत् कामयते कामं साध्यासाध्ये महीतले।। (२०)
तत् यत् काममवाप्नोति सप्तरात्रेण शंकरि।
गुरुं ध्यात्वा सुरां पीत्वा रात्रौ शक्ति-समन्वितः।। (२१)
कवचं यः पठेद् देवि तस्य आसाध्यं न किञ्चन।
यं ध्यात्वा प्रजपेन् मंत्रं सहस्रं कवचं पठेत्।। (२२)
त्रिरात्रेण वशं याति मृत्योः तन्नात्र संशयः।
लिखित्वा प्रतिमां शत्रोः सतालेन हरिद्रया।। (२३)
लिखित्वा हृदि तन्नाम तं ध्यात्वा प्रजपेन् मनुम्।
एकविंशद् दिनं यावत् प्रत्यहं च सहस्रकम्।। (२४)
जपत्वा पठेत् तु कवचं चतुर् विं शतिवारकम्।
संस्तम्भं जायते शत्रोर्नात्र कार्या विचारणा।। (२५)
विवादे विजयं तस्य संग्रामे जयमाप्नुयात्।
श्मशाने च भयं नास्ति कवचस्य प्रभावतः।। (२६)
नवनीतं चाभिमन्त्र्य स्त्रीणां सद्यान् महेश्वरि।
वन्ध्यायां जायते पुत्रो विद्याबल-समन्वितः।। (२७)
श्मशानांगार मादाय भौमे रात्रौ शनावथ।
पादोद केन स्पृष्ट्वा च लिखेत् लोह शलाकया।। (२८)
भूमौ शत्रोः स्वरुपं च हृदि नाम समालिखेत्।
हस्तं तद्धदये दत्वा कवचं तिथिवारकम्।। (२९)
ध्यात्वा जपेन् मन्त्रराजं नवरात्रं प्रयत्नतः।
म्रियते ज्वरदाहेन दशमेऽह्नि न संशयः।। (३०)
भूर्जपत्रेष्विदं स्तोत्रम् अष्टगन्धेन संलिखेत्।
धारयेद् दक्षिणे बाहौ नारी वामभुजे तथा।। (३१)
संग्रामे जयमाप्नोति नारी पुत्रवती भवेत्।
ब्रह्मास्त्रदीनि शस्त्राणि नैव कृन्तन्ति तं जनम्।। (३२)
सम्पूज्य कवचं नित्यं पूजायाः फलमालभेत्।
वृहस्पतिसमो वापि विभवे धनदोपमः।। (३३)
काम तुल्यश्च नारीणां शत्रूणां च यमोपमः।
कवितालहरी तस्य भवेद् गंगा-प्रवाहवत्।। (३४)
गद्य-पद्य-मयी वाणी भवेद् देवी-प्रसादतः।
एकादशशतं यावत् पुरश्चरण मुच्यते।। (३५)
पुरश्चर्या-विहीनं तु न चेदं फलदायकम्।
न देयं परशीष्येभ्यो दुष्टेभ्यश्च विशेषतः।। (३६)
देयं शिष्याय भक्ताय पञ्चत्वं चान्यथाऽऽप्नुयात्।
इदं कवचमज्ञात्वा भजेद् यो बगलामुखीम्। (३७)
शतकोटिं जपित्वा तु तस्य सिद्धिर्न जायते।
दाराढ्यो मनुजोऽस्य लक्षजपतः प्राप्नोति सिद्धिं परां ।।
विद्यां श्रीविजयं तथा सुनियतं धीरं च वीरं वरम्।
ब्रह्मास्त्राख्य मनुं विलिख्य नितरां भूर्जेष्टगन्धेन वै, धृत्वा
राजपुरं ब्रजन्ति खलु ये दासोऽस्ति तेषां नृपः।। (३८)
श्री विश्वसारोद्धार तन्त्रे पार्वतीश्वर संवादे बगलामुखी कवचम्।।
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मां बगलामुखी कवच पढ़ने के लाभ
- शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।
- मुकदमों और विवादों में सफलता मिलती है।
- धन, संतान और यश की प्राप्ति होती है।
- नकारात्मक ऊर्जा और काले जादू से रक्षा होती है।
- साधक की वाणी मधुर और प्रभावशाली बनती है।
मां बगलामुखी विशेष पूजन विधि
- घर की उत्तर दिशा में पीले वस्त्र पर देवी का चित्र स्थापित करें।
- घी में हल्दी मिलाकर दीपक जलाएँ।
- चंदन की धूप करें और पीले फूल अर्पित करें।
- दूध-शहद का भोग लगाएँ और बेसन के लडडू चढ़ाएँ।
- 108 बार “ह्लीं” बीज मंत्र का जाप करें।
- अंत में भोग गरीबों में बाँटें।
निष्कर्ष
माँ बगलामुखी चालीसा, कवच और मंत्र का नियमित पाठ करने से साधक शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है, मुकदमों और विवादों में सफलता मिलती है और जीवन में समृद्धि आती है।
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❓ मां बगलामुखी से जुड़े सामान्य प्रश्न (FAQ)
Q1. माँ बगलामुखी कौन हैं ?
माँ बगलामुखी (Maa Baglamukhi) दस महाविद्याओं में से एक शक्तिशाली देवी हैं। इन्हें पीताम्बरा भी कहा जाता है क्योंकि इनका रंग हल्दी के समान पीला है। माँ बगलामुखी को शत्रु नाशक और स्तंभन शक्ति की देवी माना जाता है।
Q2. माँ बगलामुखी का बीज मंत्र क्या है ?
माँ बगलामुखी का बीज मंत्र है:
🔱 “ॐ ह्लीं बगलामुखी सर्व दुष्टानाम वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिव्हां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा” 🔱
इस मंत्र के जाप से शत्रु की वाणी और बुद्धि पर नियंत्रण होता है।
Q3. माँ बगलामुखी चालीसा (Maa Baglamukhi Chalisa) पढ़ने से क्या लाभ होता है?
- शत्रुओं की वाणी और सोचने की शक्ति नष्ट होती है।
- मुकदमों व विवादों में विजय मिलती है।
- मानसिक शांति और पारिवारिक सुख-समृद्धि बढ़ती है।
- आत्मबल, साहस और आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
Q4. माँ बगलामुखी कवच (Baglamukhi Kavach) का महत्व क्या है ?
माँ बगलामुखी कवच का पाठ साधक को हर प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा, काला जादू, मुकदमे और शत्रु भय से बचाता है। यह कवच साधना करने वाले को दिव्य सुरक्षा कवच प्रदान करता है।
Q5. माँ बगलामुखी पूजा विधि (Maa Baglamukhi Puja Vidhi) क्या है ?
उत्तर: दिशा में पीले वस्त्र पर माँ बगलामुखी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
घी व हल्दी से दीपक जलाएँ और चंदन की धूप करें।
दूध, शहद और बेसन के लड्डू का भोग लगाएँ।
108 बार “ह्लीं” बीज मंत्र का जाप करें।
अंत में प्रसाद गरीबों में बाँटें।
6. माँ बगलामुखी की साधना कब करनी चाहिए ?
माँ बगलामुखी की साधना मंगलवार, गुरुवार और नवरात्रि में विशेष फलदायी मानी जाती है। रात्रि समय में की गई साधना से शत्रु पर विजय और मुकदमों में सफलता जल्दी प्राप्त होती है।
Q7. क्या माँ बगलामुखी चालीसा रोज़ पढ़ सकते हैं ?
हाँ, Maa Baglamukhi Chalisa in Hindi का रोज़ पाठ करना शुभ होता है। नियमित रूप से पढ़ने से जीवन में समृद्धि आती है, शत्रु भय समाप्त होता है और साधक को आध्यात्मिक बल प्राप्त होता है।

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