बुध ग्रह का जातक के जीवन पर प्रभाव 

ज्योतिष में सूर्य को ग्रहों का राजा पिता चन्द्रमा को ग्रहों की रानी और मंगल को ग्रहों का सेनापति और भाई का कारक माना गया है। बुध को युवराज/युवराज्ञी और बहन माना गया है। बुध ग्रह मिथुन राशि और कन्या राशि का स्वामी है बुध कन्या में उच्च और मीन राशि में नीच होता है मिथुन राशि इसकी अपनी राशि है। तुला राशि में यह सबसे अधिक प्रसन्न रहता है। साल में लगभग यह 24 दिन वक्री रहता है। युवराज या युवराज्ञी इसलिए माना जाता है कि जब इसकी दशा/अन्तरदशा आती है तब यह तत्काल फल देता है यह ग्रह बचपन में भी जल्दी प्रभावी हो जाता है इसलिए इसे युवराज्ञी की संज्ञा दिया जाता है।

बुध की महादशा 17 साल की होती है इसका रंग हरा और रत्न पन्ना है। आकृति गोल है और स्वाद मिश्रित खट्टा- मीठा, नमकीन 21 से 30 दिन तक रहता है। प्राचीन ज्योतिष के हिसाब से देवता विष्णु भगवान और लाल किताब के हिसाब से दुर्गा माता मानी जाती है इसकी दिशा उत्तर है और दृष्टि तिरछी है यह जिस घर में बैठा है उससे सप्तम दृष्टि से देखता है। विद्या, बुद्धि और मामा का विचार इससे किया जाता है बुध प्रधान व्यक्ति अर्थशास्त्र, लेखाशास्त्र, शिल्पकला और रसायन शास्त्र और चिकित्सा शास्त्र अधिक पढ़ते है।

विचारणीय विषय-बुध से हरियाली, खाली स्थान, खोल-ढांचा, खाम्चा, ठप्पा, छप्पा, ठठेरा, नकल, नकलची, दलाल, सट्टेबाज, जी-हजूरिया हीजड़ा, बहन, लड़की, साली, मौसी, नर्स, तोता, भेड़, बकरी, चमगादड़, मुर्गी, ढाक, दांत, नाड़े, जुबान, मुंह का स्वाद, सींग, बांस, शीशा, कोड़ी, फटकड़ी, ढोलक, रेडियों, तबला, सांरगी, राग, रंग के सामान, हुनर, कोरा कागज, सितार, टोपी, नाड़ी, तागड़ी पेटटी, सूखी घास, सीढ़ी, सींग, कौड़ी, शंख, सौंप, कली, मटका, अंडा, प्याज, लोटा, गड़वी चेचक बीमारी, पूंछ, चौड़े पत्तों के वृक्ष, व्यापार, नौकरानी, टूटी, पाईप, जबान, हलवा, पक्का कद्दू सबजी वाला, हरा पेठा मिठाई, रेत, राख आदि का संबंध बुध से माना जाता है।

जिनका बुध अच्छा होता है वे प्रकृति प्रेमी, काव्य संगीत में रूचि, हसमुख, विनोदी स्वभाव, और द्विअर्थी भाषा का प्रयोग करने एवं संगी या समय के हिसाब से बदलने वाला माहिर होता है। बुध प्रभावी व्यक्ति सरल स्वभाव का कामकाजी, विद्वान चुस्त और अध्यवासी होता है। उसका स्वभाव मृदु एवं प्रत्येक गतिविधि में प्रसन्नता टपकती है नम्र, विनीत, आत्मविश्वासी, हाजिर जवाब होने के साथ-2 चतुर भी होते है। बुध उत्तम होने पर व्यक्ति के जीवन पर 32 से 36 वर्ष में विशेष शुभ प्रदर्शित करता है।

यदि इस अवधि में दशा एवं अन्य ग्रह स्थिति भी अनुकूल हो तो सर्वाधिक उन्नति होती है। बुध प्रधान व्यक्ति निम्न व्यवसाय करते हैं बैंकिंग व्यवसाय, रूपयों का लेने-देन अर्थात् व्याज पर उधार देना, ज्योतिष या कर्मकाण्ड का काम पुरोहित का काम, लिपक, टाइपिस्ट, अध्यापन, प्रध्यापक, वकालत, अनुवादक, लेखक, संपादक, पत्रकार, प्रिटिंग प्रेस प्रकाशक, शिल्पकार, भवन निर्माता, पुस्तक विक्रेता, चालक, सेल्समैन संबंधी कार्य या व्यवसाय से धन प्राप्त करना और साहित्यक ज्ञान प्राप्त करना इनका विचार बुध से किया जाता है।

ज्योतिष शास्त्र में बुध को पृथ्वी तत्व माना गया है इसकी जाति वैश्य और गुण रज माना गया है समिधा चिरचिटे यह कंटीले फूलों वाला कुरुप पौधा झांड झंखार के रूप में सर्वत्र पाया जाता है। वर्षा ऋतु में आकर गर्मी तक रहता है। लम्बाई 2 से 3 फीट, टहनी लम्बी व पतली होती है अगर किसी के दांत में कोई खराबी हो इसकी दातुन रोज करें तो दांत मजबूत होगे। ज्योतिष में दांत, फिटकरी, और चिरचिटा को बुध में बुध मिलाकर बुध को लाभ पहुंचाया जाता है। फिटकरी से कुल्ली करने से भी दांत दर्द कम और दांत की बीमारी समाप्त होती है।

ज्योतिष के अनुसार गुरू और राहु मिलकर बुध ग्रह बनते है राहु का रंग काला नीला और गुरु का पीला मिलाकर हरा बना है। कारक अच्छा है तो अच्छा फल देगा अगर कारक खराब हो तो अच्छा फल नहीं देगा। जिस जातक के दांत कम उम्र में खराब हो गये हैं बहन बुआ, मौसी कमजोर स्थिति में है या फिर बीमार रहती है या उनकी आर्थिक स्थिति खराब है या जातक से विचार नहीं मिलते है जातक की घड़ी गायब हो गयी है और जातक को सुगन्ध का पता नहीं चलता है इससे पता चलता है कि बुध खराब है या कमजोर स्थिति में है। चन्द्र राहु एक साथ होने पर बुध खराब हो जाता है।

बुध को बुद्धि का कारक माना गया। आगर जातक कि बुद्धि अच्छी है तो वह राजा बन जाता है अगर बुद्धि खराब हो गई है उसका राज्य छीना जा सकता है। बुध के साथ केतु या मंगल मिलने से या इनकी दृष्टि पड़ने से बुध खराब कमजोर हो जाता है। सूर्य, शुक्र और राहु इसके मित्र है चन्द्रमा बुध से शत्रुता करता है लेकिन बुध चन्द्रमा से शत्रुता नहीं करता है। राहु और बुध जो आपस में मित्र और एक दूसरे के सहयोगी है यदि किसी टेवे में दोनो ही मन्दे घरों में चले जाये। बुध 3,8, 9, 12 राहु 1, 5, 7, 8, 11 तो जातक बहुत परेशान हो जायेगा उसके दिमाग पर इतना बोझ होगा कि जिन्दा होते हुए भी जीवन का सुख नहीं पायेगा।

ज्योतिष में सब ग्रहों के बारे में दो स्थिति लिखी है शुभ और अशुभ, हमने देखा कि बुध के साथ जब उपयुक्त स्थिति बनती है तब मन्दो स्थिति मानी जाती है उपयुक्त विषयों में कमजोर विद्यार्थी का बुध कमजोर या खराब माना जाता है जब बुध खराब हो तो बुध से संबंधित चीजों को अपने पास रखने से उसका बुरा प्रभाव और पड़ना शुरू हो जायेगा ग्रहों के कारक से संबंधित चीजों से परहेज सहायता करेगा।

उदाहरण के तौर पर जिसका बुध खराब है वह हरा कपड़ा न पहने, हरी मुंगी न खायें अपने घर में मनीप्लांट न लगाये बुध के बुरे प्रभाव से बचने के लिए 9 साल से कम उम्र कि कन्याओं के पैर धोकर खाना खिलाये हरा सूट दान करे । दुर्गा सप्तसती का रोज पाठ करे । जब बुध खराब हो उस समय पन्ना धारण नहीं करना चाहिए।

ऊपर हमने लिखा था कि राहु और चन्द्र एक साथ होने पर बुध खराब हो जाता है वे इसलिए होता है कि राहु बुध का मित्र है वह चन्द्र के साथ बैठ जाता है उस समय चुप हो जाता है। हाथी राहु की सूंड में बुध का पानी चन्द्र आया तो गन्दा हो गया। भाव यह है कि चन्द्र ने जब भी राहु को शांत किया या राहु से जब भी चन्द्र मिला तो बुध को हानि हुई क्योंकि उसका मित्र राहु उसका साथ छोड़ गया। चन्द्र के साथ से राहु चुप हो जाया करता है। अर्थात् चन्द्र राहु के इक्कठे होने पर बुध कमजोर और मन्दा हो जायेगा।

बुध ग्रह के बुरे प्रभाव से बचने के कुछ सामान्य उपाय 

1. दुर्गा चालीसा का रोज पाठ करने से बुध के बुरे प्रभाव से बचाव होगा।

2. बुध को ठीक रखने के लिए मटर, हरी दालें. हरी साबूत मूंग, अमरूद, हरी सब्जियां अधिक से अधिक खाना चाहिए जातक को अपने पास इलायची रखना चाहिए और उसे दिन में 2/3 पर इलायची खाना चाहिए आपने घर में तुलसी का पौधा लगाये रोज़ नहाकर जल चढ़ाये तथा 5/7 पता तुलसी का रोज खाया करे। चम्पा के तेल या इत्र का प्रयोग करना चाहिए

3. अगर कुण्डली के बुध ग्रह ठीक है फिर पन्ना रत्न चांदी /सोने की अंगूठी में जड़वाकर बुधवार/पूर्णमासी के दिन कच्चे दूध में धोकर दुर्गा चलीसा का पाठ करके अंगुठी का धूप देकर धारण करना चाहिए उसके बाद में कच्चा दूध किसी फल वाले या फूल वाले पेड़ में डाल देना चाहिए।

चर्म रोग का कारक बुध ग्रह Mercury causes skin diseases 

भारतीय ज्योतिष में शरीर की चमड़ी का कारक बुध को माना गया है। कुंडली में बुध जितनी उत्तम अवस्था में होगा, जातक की चमड़ी उतनी ही चमकदार एवं स्वस्थ होगी। कुंडली में बुध पाप ग्रह राहु, केतु या शनि से दृष्टि में या युति के साथ होगा तो चर्म रोग होने के पूरे आसार बनेंगे। रोग की तीव्रता ग्रह की प्रबलता पर निर्भर करती है।

एक ग्रह दूसरे ग्रह को कितनी डिग्री से पूर्ण दीप्तांशों में देखता है या नहीं। रोग सामान्य भी हो सकता है और गंभीर भी। ग्रह किस नक्षत्र में कितना प्रभावकारी है यह भी रोग की भीषणता बताता है क्योंकि एक रोग सामान्य सा उभरकर आता है और ठीक हो जाता है। दूसरा रोग लंबा समय लेता है, साथ ही जातक के जीवन में चल रही महादशा पर भी निर्भर करता है।

बुध की समस्या मे त्वचा पर झुर्रियां पड़ जाती हैं, कभी कभी त्वचा रूखी और खराब सी हो जाती है, त्वचा पर दाने आ जाते हैं और छोटे छोटे धब्बे से आ जाते हैं, आम तौर से उम्र के 08 से 20 वर्ष तक और 60 वर्ष के पश्चात बुध संबंधित समस्या ज्यादा देखने मे आती है।

मंगल रक्त का कारक है, यदि मंगल किसी भी तरह से पाप ग्रहों से ग्रस्त हो, शत्रु राशिस्थ हो, नीच हो, वक्री हो तो वह रक्त संबंधी रोग पैदा करेगा। मुख्य बात यह है कि यदि मंगल बुध का योग होगा तो किसी भी प्रकार की समस्या अवश्य खड़ी होगी। इसी प्रकार मंगल शनि का योग खुजली पैदा करता है, खून खराब करता है। लग्नेश से किसी भी प्रकार का सम्बन्ध होने पर वह अवश्य ही चर्म-रोग का कारण बनता है। यदि यह योग कुंडली में हो

किन्तु दशा अच्छी चल रही हो तो हो सकता है कि वह रोग ना हो जब तक उस ग्रह की दशा अन्तर्दशा पुनः ना आये। यदि शनि पूर्ण बली हो और मंगल के साथ तृतीय स्थान पर हो तो जातक को खुजली का रोग होता है। यदि मंगल और केतु छठे या बारहवें स्थान में हो तो चर्म रोग होता है। यदि मंगल और शनि छठे या बारहवें भाव में हों तो व्रण (फोड़ा) होता है। यदि मंगल षष्ठेश के साथ हो तो चर्म रोग होता है।

यदि बुध और राहु षष्ठेश और लग्नेश के साथ हो तो चर्म-रोग होता है (एक्जीमा जैसा)। यदि षष्ठेश पाप ग्रह होकर लग्न, अष्टम या दशम स्थान में बैठा हो तो चर्म-रोग होता है। यदि षष्ठेश शत्रुगृही, नीच, वक्री अथवा अस्त हो तो चर्म -रोग होता है। षष्टम भाव में कोई भी ग्रह नीच, शत्रुक्षेत्री, वेक्री अथवा अस्त हो तो भी चर्म रोग होता है। यदि षष्ठेश पाप ग्रह के साथ हो तथा उस पर लग्नस्थ, अष्टमस्थ दशमस्थ पाप ग्रह की दृष्टि हो तो चर्म रोग होता है। यदि शनि अष्टमस्थ और मंगल सप्त्मस्थ हो तो जातक को पंद्रह से तीस वर्ष की आयु में चेहरे पर फुंसी होती है।

यदि लग्नेश मंगल के साथ लग्नगत हो तो पत्थर अथवा किसी शस्त्र से सिर में व्रण होते हैं। यदि लग्नेश मंगल के साथ लग्नगत हो और उसके साथ पाप ग्रह हो अथवा पाप ग्रह की दृष्टि पड़ती हो तो पत्थर अथवा किसी शस्त्र के द्वारा सिर में व्रण (घाव) होता है।

इनके अतिरिक्त अशुभबुध के कारण निम्न समस्याएं भी उत्पन्न होती है। 

1. तुतलाहट।

2. सूंघने की शक्ति क्षीण हो जाती है।

3. समय पूर्व ही दांतों का खराब होना।

4. मित्र से संबंधों का बिगड़ना।

5. अशुभ हो तो बहन, बुआ और मौसी पर विपत्ति आना।

6. नौकरी या व्यापार में नुकसान होना।

7. संभोग की शक्ति क्षीण होना।

8. व्यर्थ की बदनामी होती है।

9. हमेशा घूमते रहना, ज्यादातर पहाड़ी इलाकों में।

10. कोने का अकेला मकान जिसके आसपास किसी का मकान न हो।

बुध के कारण त्वचा की समस्या के उपाय 

रोज सुबह सूर्य को जल चढ़ाएं. ज्यादा से ज्यादा हरी सब्जियों और सलाद का सेवन करें।

प्रभावित जगह पर नारियल का तेल लगाएं।

अगर त्वचा की समस्या ज्यादा हो तो एक पन्ना पहनें।

बुध से कान, नाक और गले की समस्या 

बुध बहुत कमजोर हो तो सुनने और बोलने में दिक्कत होती है। कभी-कभी गला खराब हो जाता है और लगातार खराब ही रहता है।

सर्दी-जुकाम की समस्या हो सकती है, किसी खास तरह की गंध से एलर्जी होती है।

बुध से कान, नाक और गले की समस्या के उपाय 

रोज सुबह गायत्री मंत्र का जाप करें या मन में दोहराएं।

चांदी के चौकोर टुकड़े पर “ऐं” लिखवाकर गले में पहनें।

ज्यादा से ज्यादा हरे कपड़े पहनें।

रोज सुबह स्नान के बाद पीला चन्दन माथे, कंठ और सीने पर लगाएं।

डिसक्लेमर इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।